सेवा में कमी पर क्लेम व हर्जाना पाने का हक
उपभोक्ता आयोग ने कई मामलों में बीमा कंपनी को सेवा में कमी का दोषी माना और पीड़ित शिकायतकर्ता के पक्ष में उसे क्लेम राशि व मुआवजा देने का आदेश दिया। ऐसा ही मामला सिरोही, राजस्थान का है जहां एजेंट ने वाहन दुर्घटना का बीमा क्लेम देने में तकनीकी खामियां दिखाकर आनाकानी की थी। जबकि एक अन्य मामले में राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने राज्य आयोग के फैसले पर अपील की सुनाई में कहा कि एक वैध अनुबंध केवल तभी स्थापित किया जाता है जब अधिकृत पार्टी से स्पष्ट स्वीकृति हो।
श्रीगोपाल नारसन
राजस्थान स्थित सिरोही के जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने एक इंश्योरेंस कंपनी को उपभोक्ता सेवा में कमी के लिए दोषी मानते हुए उपभोक्ता को 19650 की क्लेम राशि 9 फीसदी वार्षिक ब्याज के साथ देने का आदेश दिया है,साथ ही मानसिक और शारीरिक परेशानी के लिए 20 हजार रुपए का अतिरिक्त मुआवजा देना होगा। शिवगंज निवासी हिम्मत मल ने अपने ऑटो रिक्शा का बीमा स्थानीय फर्म के एजेंट राजेंद्र सिंह से करवाया था। 10 अक्तूबर 2022 को शिवगंज में उनके ऑटो से सांड टकरा गया। इस दुर्घटना में ऑटो बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। सूचना पर बीमा कंपनी के सर्वेयर ने जांच की और क्षतिग्रस्त ऑटो की मरम्मत कराने की अनुमति दी,जिसमे 19650 रुपए का खर्च आया,फिर सर्वेयर ने क्लेम पास करने के लिए रिश्वत मांगी। लेकिन हिम्मत मल ने घूस देने से मना किया तो सर्वेयर ने दुर्घटना स्थल कहीं ओर दिखाकर क्लेम रिजेक्ट करवा दिया। उपभोक्ता आयोग ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद पीड़ित पक्ष को बीमा क्लेम के 19650 रुपए परिवाद दायर करने की तिथि 19 दिसंबर 2022 से वसूली दिनांक तक 9 फीसदी साधारण ब्याज वार्षिक दर से अदा किए जाने के आदेश दिए।
अनुबंध के लिए पार्टी से स्वीकृति जरूरी
ऐसे ही एक अन्य मामले में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने कहा कि बीमा प्रस्तावों में प्रतिक्रिया की कमी का अर्थ समझौता नहीं है, और एक वैध अनुबंध केवल तभी स्थापित किया जाता है जब अधिकृत पार्टी से स्पष्ट स्वीकृति हो। शिकायतकर्ता के दिवंगत पति ने बीमाकर्ता से आवास ऋण लिया और इस ऋण को कवर करने के लिए एक समूह मास्टर पॉलिसी के तहत जीवन बीमा पॉलिसी, एसबीआई ऋण रक्षा पॉलिसी योजना खरीदी। उन्होंने 50 लाख रुपये की बीमा राशि वाली पॉलिसी के लिए 85,360 रुपये के प्रारंभिक प्रीमियम के साथ एक सदस्यता फॉर्म जमा किया। मेडिकल जांच में हाई ब्लड शुगर के स्तर का खुलासा होने के बाद, बीमाकर्ता ने 1,39,137 रुपये के बढ़े हुए प्रीमियम पर कवरेज की पेशकश की, जिसे शिकायतकर्ता के पति ने स्वीकार नहीं किया। नतीजतन, प्रारंभिक प्रीमियम वापस कर दिया गया था। कुछ समय बाद उनका निधन हो गया, और शिकायतकर्ता ने दावा फॉर्म जमा कर दिया।
राज्य आयोग के फैसले को कंपनी ने दी चुनौती
दावे के संबंध में कानूनी नोटिस जारी करने के बाद, शिकायतकर्ता ने सेवा में कमी का आरोप लगाते हुए आंध्र प्रदेश के राज्य आयोग में वाद दायर कर ब्याज के साथ 50 लाख रुपये, परेशानी के लिए 5 लाख रुपये और वाद खर्च के रूप में 1 लाख रुपये की मांग की। राज्य आयोग ने बीमाकर्ता को ब्याज के साथ बकाया ऋण राशि का भुगतान करने का आदेश दिया। नतीजतन, बीमाकर्ता ने राष्ट्रीय आयोग के समक्ष अपील की।
बीमाकर्ता ने तर्क दिया कि एसबीआई ऋण रक्षा पॉलिसी योजना के तहत बीमा कवरेज आवास ऋण से जुड़ा एक स्वैच्छिक विकल्प था, जिसके लिए चिकित्सा जांच की आवश्यकता थी। उच्च रक्त शर्करा स्तर के कारण, बीमा प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप मृतक के लिए कोई बीमा कवरेज नहीं था। केवल प्रीमियम राशि जमा करने से स्वचालित रूप से पॉलिसी नहीं बनती है, क्योंकि अनुबंध के लिए आवश्यक पूर्ण शेष प्रीमियम का भुगतान नहीं किया गया था। प्रतिफल की कमी के कारण बीमा अनुबंध शून्य था। उन्होंने तर्क दिया कि राज्य आयोग ने शिकायतकर्ता के पक्ष में निर्णय देकर गलती की।
अनुबंध ब्योरा देने में देरी ‘सेवा में कमी’
इसी प्रकार के एक अन्य मामले में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने कहा है कि बिना किसी कारण के प्राथमिक बीमा कवरेज दस्तावेजों सहित पूर्ण पॉलिसी अनुबंध विवरण प्रदान करने में देरी ‘सेवा में कमी’ है। यह माना गया कि यह पॉलिसीधारक को जोखिम कवर के संबंध में अनिश्चितता के लिए उजागर करता है। शिकायतकर्ताओं ने कोल्ड स्टोरेज में 60,543 बैग और आलू के 41,880 बैग की अपनी खेप रखी और न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड से बीमा करवाया। कवरेज 90 लाख रुपये था। पॉलिसी 15 अप्रैल 2008 से 14 नवम्बर 2008 तक वैध थी और 50,400 रुपये के प्रीमियम का भुगतान किया गया था। दिनांक 10 सितंबर 2008 को कोल्डस्टोर सुविधा में शार्टकट का पता चला था। भयंकर तूफान के कारण बिजली की बंदी 22 सितंबर 2008 तक बनी रही। परिणामस्वरूप 27,81,592 रुपये मूल्य के 31,609 बोरे आलू खराब हो गए। वहीं घटना की तारीख तक बीमा कंपनी द्वारा शिकायतकर्ता को बीमा कवर नोट जारी नहीं किया गया था। जो उपभोक्ता सेवा में व्यापक कमी थी।
- लेखक उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता आयोग के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।