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खानपान-जीवन शैली में सुधार से करें उच्च रक्तचाप नियमन

योग-प्राकृतिक चिकित्सा
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सामान्य शब्दों में कहें तो हमारा हृदय धमनियों में रक्त प्रवाह को गति देने हेतु जो दबाव बनाता है, वह रक्तचाप कहलाता है। यह दबाव सामान्य से अधिक हो जाता है तो उच्च रक्तचाप कहलाता है। जब लंबे समय तक शरीर में सामान्य से अधिक रक्तचाप बना रहता है तो हृदय संबंधी विकार, शरीर में खून के थक्के जमना तथा गुर्दों पर घातक प्रभाव पड़ने का खतरा बना रहता है। दरअसल, उच्च रक्तचाप हमारे परिवेश-जीवन शैली से उपजा रोग है। अमेरिका जैसे विकसित देश में वयस्कों की एक तिहाई आबादी का उच्च रक्तचाप से पीड़ित होना आधुनिक सभ्यता की विसंगति दर्शाता है। यूं तो स्वस्थ मनुष्य के शरीर में रक्तचाप के मानक सिस्टोलिक व डायस्टोलिक आधार पर पूरी दुनिया में एक जैसे ही हैं, लेकिन बाजार की दखल से इसमें बदलाव भी दिखे हैं। हालांकि, दैनिक जीवन में रक्तचाप में उतार-चढ़ाव होते रहते हैं। हमारे जागने-सोने की स्थिति में यह बदलता है। हमारी अतिसक्रियता, खुशी, उदासी व उत्तेजना के क्षणों में रक्तचाप परिवर्तनशील होता है। लेकिन इसके स्तर में वृद्धि का बना रहना, चिंता का विषय होता है, जिसके लिये योग्य चिकित्सक से सलाह व उपचार लेना बेहतर रहता है। दरअसल, वर्तमान समय में खानपान की विसंगतियों व जीवनशैली में आयी कई प्रकार की विकृतियों की वजह से यदि धमनियों में रक्त प्रवाह बाधित होता है तो उच्च रक्तचाप की समस्या जन्म  लेती है।

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उच्च रक्तचाप के लक्षण

यदि किसी व्यक्ति का रक्तचाप लगातार 140/90 से अधिक रहता है तो यह उच्च रक्तचाप की स्थिति कही जा सकती है। जिसके सामान्य लक्षणों में शरीर में थकावट महसूस होना, सांस फूलना, सिरदर्द या भारीपन, नींद में व्यवधान, हृदयगति बढ़ जाना, मन उचाट होना, कान गर्म होना तथा छाती में खिंचाव या असामान्य महसूस होना शामिल है।

क्यों बढ़ता है रक्तचाप

ऐसा माना जाता है कि यह रोग उम्र बढ़ने के साथ बढ़ता है क्योंकि हमारी धमनियों में संकुचन बढ़ता है। जिसमें हमारे निष्क्रिय जीवन की भी भूमिका होती है। पुरुषों में यह स्थिति महिलाओं की अपेक्षा जल्दी आती है। पुरुषों में पैंतालिस व स्त्रियों में पचपन के बाद ऐसा होना सामान्य है। कई विकसित देशों में साठ वर्ष के बाद लगभग आधी आबादी इसकी चपेट में नजर आती है। यह ‍वंशानुगत रोग भी है। यदि परिवार के किसी व्यक्ति को अतीत में यह रोग रहा हो तो बच्चों में होने की संभावना बढ़ जाती है। वहीं पुरुषों में महिलाओं के मुकाबले यह समस्या कुछ ज्यादा होती है।

रक्तचाप बढ़ाने वाले कारक

ज्यादा तला-भुना खाने, अधिक मसालेदार भोजन करने, अधिक नमक का उपयोग, योग, व्यायाम व सैर न करने, नियमित शराब का सेवन, धूम्रपान करने, कार्यालय में अधिक तनावपूर्ण हालात उच्च रक्तचाप की स्थितियां बनाती हैं। खाने में पोटेशियम की अधिक मात्रा भी नुकसानदायक हो सकती है।

उच्च रक्तचाप से होने वाली बीमारियां

दरअसल, उच्च रक्तचाप का सीधा असर हमारे हृदय पर पड़ता है। वह या तो कमजोर हो जाता है या फिर उसके आकार में वृद्धि हो सकती है। जो कालांतर हृदयाघात का कारण बनता है। धमनियों में विकार आने से शरीर में सामान्य रक्त-संचरण नहीं हो पाता। जिससे शरीर के मुख्य घटकों में विकार उत्पन्न होते हैं। वहीं गुर्दे में सामान्य रक्त प्रवाह न होने से इससे जुड़े गंभीर रोग होते हैं। दरअसल, रक्त-वाहिकाओं के संकुचित होने से दिल, दिमाग, गुर्दे फेल होने, पक्षाघात जैसे अनेक रोग पैदा हो सकते हैं।

जीवनशैली में बदलाव से उपचार

यदि उच्च रक्तचाप के मूल में आनुवंशिक कारणों को नजरअंदाज कर दें, तो हमारी जीवन शैली-खानपान की आदतों का बड़ा रोल होता है। यदि व्यक्ति सुबह समय पर उठता है, रात को जल्दी सो जाता है तो शरीर का व्यवहार सामान्य रहता है। देर रात तक भोजन करना, शराब का सेवन, धूम्रपान, देर रात तक स्क्रीन से जुड़े रहना और फिर सुबह देर से अलसाये शरीर के साथ उठना तथा नींद का पूरा न होना हमारे सामान्य रक्तचाप को बाधित करता है। धूम्रपान या किसी भी प्रकार के तंबाकू सेवन रक्त वाहनियों को क्षति पहुंचती है। जिससे उच्चरक्तचाप की स्थिति बनती है। वहीं उच्च रक्तचाप से बचने के लिये शरीर के मोटापे को कम करना भी जरूरी है। जिस पर नियंत्रण के लिये योग्य चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए।

आहार ही उपचार

योग व प्रकृतिक चिकित्सा में हमारे आहार को ही उपचार बताया गया है। दरअसल, उचित समय पर , सही मात्रा और उचित गुणवत्ता का भोजन दवा का काम करता है। हमारी कोशिश हो कि तीखे मसाले, तेज नमक व अधिक वसा के सेवन से बचें। हमारे किचन में मौसमी सब्जियों व फलों की भरपूर उपस्थिति हो। अंकुरित अनाज न केवल ऊर्जावर्धक व सुपाच्य होते हैं, बल्कि रक्तचाप को सामान्य रखते हैं। जितना संभव हो सके लाल मीट, अंडे, प्रसंस्कृत मीठे पदार्थ, पेस्ट्री, चीनी, मैदे से बने व्यंजनों का परहेज उच्च रक्तचाप पीड़ित लोग करें। योग व प्राकृतिक चिकित्सा में कहा जाता है कि हमारे रसोई में तीन सफेद जहर हैं- चीनी, समुद्री नमक व मैदा। सलाद आदि में ऊपर से डाला गया नमक घातक होता है। सेंधा नमक का सेवन उपयोगी होता है। सुबह कोसे पानी के साथ नींबू का उपयोग, मौसमी सब्जियां, नाशपाती, सेव, संतरा,सेब का मौसम के अनुरूप सेवन करना लाभदायक होता है।

प्रसन्न व तनावरहित रहें

दरअसल, मानवीय संवेदनाओं और विचार तत्व का हमारे रक्तचाप पर गहरा असर पड़ता है। जो लोग सही मायनों में आध्यात्मिक जीवन जीते हैं वे उच्च रक्तचाप से बच सकते हैं। शरीर को तनाव मुक्त रखने से रक्तचाप सामान्य रहता है। इससे हमारे शरीर की रक्तवाहिनियां लचीली बन रहती हैं।

योग में आसन बेहद लाभकारी

हमारे शरीर को शिथिल बनाने वाले योग के आसन रक्तचाप नियंत्रण में खासे लाभकारी होते हैं। सुख आसन में ज्ञानमुद्रा के साथ बैठना शरीर को शिथिल करता है। गोमुख आसन, बालासन,पश्चिमोत्तानासन, वज्रासन, पवनमुक्तासन, मकरासन, सेतुबंधासन आदि आसन उच्च रक्तचाप कम करने में सहायक होते हैं। वहीं योगनिद्रा व शवासन को उच्च रक्तचाप में बेहद उपयोगी माना जाता है।

प्राणायाम की बड़ी भूमिका

दरअसल, हमारी सांसों का नियमन हमारे रक्तचाप का नियंत्रण करने में सहायक होता है। लंबे गहरे सांस हमें सहज बनाते हैं। चंद्रभेदी प्राणायाम, शीतकारी, शीतली प्राणायाम, उज्जाई , योगनिद्रा तथा अनुलोम-विलोम व भ्रामरी प्राणायाम हमारे रक्तचाप को संतुलित करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। लेकिन किसी योग्य योग शिक्षक की देख-रेख में इन आसनों व प्राणायाम को करना चाहिए।

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