छोटे समूह में विवाह से दुर्लभ रोगों की आशंका
भारत में करोड़ों लोग दुर्लभ रोगों से पीड़ित हैं। जेनेटिक डाटा दुर्लभ आनुवंशिक रोगों की पहचान व इलाज करने में मददगार है। राष्ट्रीय मिशन के तहत दुर्लभ रोगों वाले 5,000 लोगों की मैपिंग का लक्ष्य है ताकि जीनोम सीक्वेंस के तहत नये जीन/वैरिएंट की खोज व जांच की जा सके। शोधकर्ताओं के अनुसार, अपने ही सांस्कृतिक समूह के भीतर विवाह के कारण जेनेटिक विविधता कम होती है व दुर्लभ रोगों की आशंका बढ़ती है।
दिल्ली के अस्पताल में भर्ती एक रोगी और बेंगलुरु के दूसरे अस्पताल में भर्ती रोगी में, दोनों में जाहिर तौर से आपसी संपर्क नहीं था। लेकिन दोनों में समान म्युटेशन (किसी जीन के डीएनए में स्थायी परिवर्तन) था और उनके सैंपलों में डीएनए का लम्बा डुप्लीकेट ब्लॉक भी था। इसलिए यह संभव है कि 200-300 साल पहले उनके पूर्वज समान हों। ऐसा अश्विन दलाल का कहना है। वह हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक्स के प्रमुख हैं। बच्चों में दुर्लभ जेनेटिक रोगों पर नये राष्ट्रीय मिशन की यह शीर्ष संस्था है और इस मिशन के अश्विन दलाल प्रमुख जांचकर्ता हैं। यह कार्यक्रम 2023 में आरंभ हुआ था ताकि दुर्लभ बीमारियों वाले 5,000 रोगियों की मैपिंग की जा सके और भारतीय उपमहाद्वीप में जो देशज दुर्लभ रोगों से जुड़े नये जीन/वैरिएंट हैं उनकी खोज की जा सके। आधिकारिक तौरपर भारत में 72 मिलियन रोगी ज्ञात दुर्लभ रोगों से पीड़ित हैं। दलाल की संस्था में अभी तक 2,000 रोगी पंजीकृत किये जा चुके हैं और 1,000 जीनोम सीक्वेंस किये जा चुके हैं। वैरिएंट्स खोजने के बाद उनकी सेलुलर व एनिमल मॉडल्स से अतिरिक्त जांच की जायेगी।
Advertisementसीसीएमबी में जेनेटिक म्युटेशन पर स्टडी
दलाल की संस्था से कुछ फासले पर ही सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) है, जिसकी लैब में कुमारस्वामी थंगराज एक मशीन की ओर इशारा करते हैं जिसमें एनिमल मॉडल के टिश्यू से भरी टेस्ट ट्यूब्स घुमायी जा रही हैं। यह हाल ही में दक्षिण भारत के एक छोटे से समुदाय में खोजे गये जेनेटिक म्युटेशन के अध्ययन का पहला चरण है। जब इस वैरिएंट के वाहक दोनों पैरेंट्स होते हैं, तो बच्चे में घातक रोग उत्पन्न हो सकता है। थंगराज के अनुसार यह म्युटेशन संभवतः हज़ारों साल पहले किसी पूर्वज के जीन में उत्पन्न हुआ होगा और चूंकि यह समुदाय अपने समूह के भीतर ही विवाह करता रहा, इसलिए यह वैरिएंट बरकरार रहा।
अपने समुदाय में विवाह परंपरा का असर
भारत में जाति, धर्म, क्षेत्र आदि के भीतर विवाह करने की परम्परा है। यहां जो लगभग 4,600 समुदाय हैं उनमें से एक-तिहाई से भी अधिक पर दुर्लभ जेनेटिक रोग होने का खतरा मंडराता रहता है। यह बात थंगराज व अमेरिका के जेनीटीसिस्ट डेविड रीश के 2017 के मौलिक अध्ययन से सामने आयी। थंगराज सीसीएमबी में सीएसआईआर-भटनागर फेलो हैं और अन्य संस्थाओं व शोधकर्ताओं के सहयोग से आदिवासियों सहित 20-25 अलग अलग समूहों में जेनेटिक म्युटेशन का अध्ययन कर रहे हैं। वहीं अश्विन दलाल का कहना है कि देशभर के डॉक्टर अक्सर उनके पास वह जेनेटिक सैंपल भेजते हैं, जो वह पहचान नहीं पाते। जब उनकी टीम समान वैरिएंट अलग-अलग सैंपलों में पाती है, तो उन्हें सामुदायिक लिंक का संदेह होता है।
खोज में मददगार जीनोम सीक्वेंसिंग
बहरहाल, जीनोम सीक्वेंसिंग में हुई प्रगति रोगों की खोज में बहुत मददगार साबित हो रही है और यह नई समझ भी कि वंशावली व सामाजिक रीति-रिवाजों से भी स्वास्थ्य खतरे उत्पन्न होते हैं। इसलिए पहले चरण में म्युटेशन की तलाश करके समुदाय की पहचान की जाती है।
म्युटेशन कैटलॉग व जेनेटिक टेस्ट्स के फायदे
रोगों का बोझ कम करने के लिए म्युटेशन कैटलॉग और जेनेटिक टेस्ट्स विकसित किये जाते हैं, जो स्क्रीनिंग के लिए इस्तेमाल किये जा सकते हैं। जेनेटिक डाटा न सिर्फ दुर्लभ रोगों की पहचान करने के लिए लाभकारी है बल्कि इलाज में भी सहायक है। एक दशक पहले आंध्र प्रदेश के व्यास समुदाय में पाया गया कि उनमें एक ऐसा जेनेटिक म्युटेशन था, जो कुछ मसल रिलैक्सटेंट को हज़म नहीं होने देता था। अब डॉक्टर सर्जरी के दौरान इन ड्रग्स का प्रयोग इस समुदाय के लोगों पर नहीं करते ताकि कुप्रभावों से उन्हें बचाया जा सके।
समूह में दुर्लभ रोगों का प्रवेश!
शोधकर्ताओं के अनुसार, अपने ही कुल या सांस्कृतिक समूह के भीतर विवाह करने के कारण समय के साथ छोटी संख्या वाले समूहों की जेनेटिक विविधता कम हो गई और नतीजतन दुर्लभ रोगों की आशंकाएं बढ़ गईं। दरअसल, हमारी पहचान ही हमारे जेनेटिक स्वास्थ्य के खतरों को आकार देती है। हम सभी हर जीन की दो कापियां लेकर चलते हैं, जिनमें से एक मां की तरफ से आती है और दूसरी पिता की तरफ से। कभी कभी रोग-कैरी करने वाला म्युटेशन एक पैरेंट से मिल जाता है। अकेले उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। लेकिन अगर दोनों पैरेंट्स म्युटेशन कैरी करते हैं, तो बच्चे में 25 प्रतिशत संभावना दोनों कापियां विरासत में पाने और रोग विकसित करने की रहती है।
अधिकतर लोग जानते हैं कि करीबी रिश्तेदारियों या खून के रिश्तों में शादी करने से बच्चों में दबे हुए रोग उभरने का खतरा बढ़ जाता है। लेकिन जाति, कुल या कबीले के भीतर शादी करने के भी यही खतरे हैं, विशेषकर छोटे समुदायों में। इसीलिए बहुत से समुदाय अपने गोत्र या वंश में शादी करने से बचते हैं। -इ. रि.सें.