Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

रोम-रोम में बसे हैं राम

रामनवमी आज
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

रामनवमी का त्योहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान श्री राम का जन्म हुआ था। इस पर्व के साथ ही मां दुर्गा के नवरात्र का समापन भी होता है। धर्मशास्त्रों के अनुसार त्रेतायुग में रावण के अत्याचार समाप्त करने तथा धर्म की पुनर्स्थापना के लिए भगवान विष्णु ने रामावतार लिया था। धर्म, साहित्य, संस्कृति और समाज में राम अतुलनीय पात्र हैं। समाज के मानस में रचे-बसे हैं। रामकथाएं-रामलीलाएं हों या फिर ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ और राम राज्य की अवधारणा- वे जन-जन के आदर्श हैं।

प्रमोद जोशी

Advertisement

भारत की विविधता में एकता को देखना है तो उसके पर्वों और त्योहारों पर नज़र डालनी होगी। इनका देश की संस्कृति, अर्थव्यवस्था और समाज के साथ भौगोलिक परिस्थितियों और मौसम के साथ गहरा रिश्ता है। जिस तरह साल के उत्तरार्ध में पावस की समाप्ति और शरद के आगमन के साथ पूरे देश में त्योहारों और पर्वों का सिलसिला शुरू होता है, उसी तरह सर्दियां खत्म होने और गर्मियों की शुरुआत के बीच वसंत ऋतु के पर्व हैं। वसंत पंचमी,मकर संक्रांति, होली, नव संवत्सर, वासंतिक नवरात्र, रामनवमी और गंगा दशहरा इन पर्वों का समुच्चय है।

यूं तो हमारा हर दिन पर्व है और यह खास तरह की जीवन शैली है, जो परंपरागत भारतीय संस्कृति की देन है। जैसा उत्सव धर्मी भारत है, वैसा शायद ही दूसरा देश होगा। आप भारत और भारतीयता की परिभाषा समझना चाहते हैं, तो इस बात को समझना होगा कि किस तरह से इन पर्वों और त्योहारों के इर्द-गिर्द हमारी राष्ट्रीय एकता काम करती है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक और अटक से कटक तक कुछ खास तिथियों पर अलग-अलग रूप में मनाए जाने वाले पर्वों के साथ एक खास तरह की अद्भुत एकता काम करती है- वह मकर संक्रांति, नव संवत्सर, पोइला बैसाख, पोंगल, ओणम, होली हो या दीपावली और छठ।

धार्मिक दृष्टि

यह सप्ताह नव संवत्सर और नवरात्र का था, जिसका समापन रामनवमी के साथ होगा। रामनवमी का त्योहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में हुआ था। इस पर्व के साथ ही मां दुर्गा के नवरात्र का समापन भी होता है। धार्मिक दृष्टि से देखें, तो भगवान श्री राम ने भी देवी दुर्गा की आराधना की थी। उनकी शक्ति-पूजा ने उन्हें युद्ध में विजय प्रदान की। इन दो महत्वपूर्ण पर्वों का एक साथ होना उसकी महत्ता को बढ़ा देता है। इसी दिन गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ भी किया था। रामनवमी का व्रत पापों का क्षय करने वाला और शुभ फल प्रदान करने वाला होता है।

धर्मशास्त्रों के अनुसार त्रेतायुग में रावण के अत्याचारों को समाप्त करने तथा धर्म की पुनर्स्थापना के लिए भगवान विष्णु ने मृत्यु लोक में श्री राम के रूप में अवतार लिया था। यह धार्मिक दृष्टि है, पर विश्व साहित्य में शायद ही कोई ऐसा दूसरा पात्र होगा, जिसकी राम से तुलना की जा सके। यह बहस का विषय है कि राम, ऐतिहासिक पात्र हैं या नहीं, पर इसमें दो राय नहीं कि साहित्य, संस्कृति और समाज में राम अतुलनीय हैं।

सामाजिक प्रभाव

राम के चरित्र ने जितना हमारे समाज को प्रेरित और प्रभावित किया है, उतना शायद ही किसी दूसरे ने किया होगा। उत्तर भारत में अभिवादन का तरीका ही ‘राम-राम’ है। मैथिलीशरण गुप्त ने अपने ग्रंथ ‘साकेत’ में लिखा है, ‘राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है, कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है।’ राम के साथ भारत का रिश्ता बहुत गहरा है। भगवान राम व्यापक रूप से पूजनीय देवता हैं, पर जन संस्कृति के क्षेत्र में, उनकी भूमिका और भी व्यापक है।

जवाहरलाल नेहरू ने ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में रामायण और महाभारत के प्रभाव का वर्णन करते हुए लिखा है, ‘मेरे बचपन की सबसे पहली यादों में इन महाकाव्यों की वे कहानियां हैं, जिन्हें मैंने अपनी मां से और घर की बड़ी-बूढ़ी महिलाओं से उसी तरह सुना था, जिस तरह कि यूरोप या अमेरिका में बच्चे परियों और साहस की दूसरी कहानियों को सुनते हैं। फिर हर साल खुले मैदान में होने वाली रामलीला का अभिनय होता था।’नेहरू ने राम के महत्व को उसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भों में देखा, पर गांधी ने उसका आध्यात्मिक संदर्भों में इस्तेमाल किया। 30 जनवरी, 1948 को उन्होंने ‘हे राम’ कहते हुए अंतिम सांस ली। उनपर राम का बचपन से ही प्रभाव था, जैसा कि उन्होंने अपनी आत्मकथा में उल्लेख किया है। जन्मना वैष्णव विश्वास के होने के कारण, राम और कृष्ण के मंदिरों में जाना उनकी आदत थी, उन्होंने लिखा, मेरी पुरानी परिचारिका रंभा ने भय के इलाज के रूप में राम-नाम का जप करने का सुझाव दिया। यह उनके लिए जीवन भर के लिए एक अचूक उपाय बन गया। पर गांधी का जीवन व्यावहारिक राजनीति से जुड़ा था। उन्हें पता था कि उन्हें काफी बड़े समाज को अपने साथ लेकर चलना है, जिसमें बड़ी संख्या में हिंदू हैं, पर सभी हिंदू नहीं हैं।

सांस्कृतिक भूमिका

हर साल रामलीलाओं में वही पात्र, वही कहानियां, वही संवाद होते हैं, जो दर्शकों को प्रेरित और प्रभावित करते हैं। भारत में रामलीला के अनेक रूप देखने को मिलते हैं। भारत में ही नहीं दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में रामकथा रंगमंच और सैकड़ों तरह की नाट्य शैलियों में देखने को मिलती हैं। रामकथा से जुड़ी सैकड़ों प्राचीन पुस्तकें हैं। सोलहवीं शताब्दी के अंत में गोस्वामी तुलसी दास ने अवधी में रामचरित मानस लिखी, जिसे तुलसी रामायण कहते हैं। संस्कृत में रामायण के रचनाकार वाल्मीकि को आदि कवि भी कहा जाता है। उसके बाद अलग-अलग काल में और विभिन्न भाषाओं में रामायण की रचना हुई। ज्यादातर का स्रोत वाल्मीकि रामायण है। बारहवीं सदी में तमिल में लिखी गई कंबन की रामावतारम्, तेरहवीं सदी में थाई रामकीयन और कम्बोडियाई रामायण, पंद्रहवीं-सोलहवीं सदी में उड़िया रामायण और कृतिबास की बांग्ला रामायण भी प्रसिद्ध हैं।

इस्लाम के भारतीयकरण की लंबी प्रक्रिया में मुसलमान कवियों और लेखकों ने भी राम के प्रति अपना सम्मान प्रकट किया है। अकबर के नवरत्नों में से एक अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना ने, जो रहीम (1556-1627) के नाम से प्रसिद्ध है, राम की प्रशंसा में लिखा : ‘गहि सरनागति राम की, भवसागर की नाव, रहिमन जगत उधार कोए और न कछु उपाय’ ; राम की शरण में जाना ही भवसागर से पार ले जाने वाली नाव है, और संसार से उद्धार पाने का दूसरा कोई उपाय नहीं है।’ इकबाल ने भगवान राम को ‘इमाम-ए-हिंद’ यानी भारत का आध्यात्मिक नेता या मार्गदर्शक कहा जो उनकी नज़्म ‘है राम के वज़ूद पे हिन्दोस्तां को नाज़’ में व्यक्त हुआ है।’ लोगों को सही राह दिखाते और अंधेरे से रोशनी की ओर ले जाते हैं राम।

लोहिया के राम

भारत के आध्यात्मिक महापुरुषों के वर्तमान संदर्भों पर समाजवादी चिंतक राममनोहर लोहिया ने काफी विस्तार से और सार्थक-दृष्टि से लिखा है। उन्होंने 1955 में प्रकाशित ‘राम, कृष्ण और शिव’ शीर्षक से अपने लेख में लिखा- ‘राम, कृष्ण और शिव हिंदुस्तान की उन तीन चीजों में हैं जिनका असर हिंदुस्तान के दिमाग पर अनेक ऐतिहासिक चरित्रों से भी ज्यादा है। गौतम बुद्ध या अशोक ऐतिहासिक लोग थे लेकिन उनके काम के किस्से इतने ज्यादा और इतने विस्तार में आपको नहीं मालूम हैं जितने राम, कृष्ण और शिव के क़िस्से। कोई आदमी वास्तव में हुआ या नहीं, यह इतना बड़ा सवाल नहीं है जितना यह कि उस आदमी के काम किस हद तक, कितने लोगों को मालूम हैं और कितने लोगों के दिमाग पर उनका असर है।’

लोहिया ने लिखा, लोगों के दिमाग पर उनका असर सिर्फ इसलिए नहीं है कि उनके साथ धर्म जुड़ा हुआ है। असर इसलिए है कि वे लोगों के दिमाग में एक मिसाल की तरह आते हैं और ज़िंदगी के हरेक पहलू और हरेक कामकाज के सिलसिले में वे मिसालें आंखों के सामने खड़ी हो जाती हैं। सिर्फ मिसाल ही नहीं, बल्कि छोटे-छोटे किस्से भी, जैसे राम ने परशुराम को क्या कहा, कब कहा और कितना कहा, यह एक-एक किस्सा सबको मालूम है। या जब शूर्पणखा आई तो राम-लक्ष्मण और शूर्पणखा में क्या-क्या बातचीत हुई या जब राम को वापस ले जाने के लिए भरत आए तब उनकी आपस में क्या-क्या बातें हुईं, इन सबकी एक-एक तफ़सील, इसने यह कहा, उसने वह कहा, सबको मालूम है।

राम की सबसे बड़ी महिमा उनके ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ नाम में है। राम की ताकत बंधी हुई है, उसका दायरा खिंचा हुआ है। जो मन में आया, सो नहीं कर सकते। राम की ताकत पर कुछ नीति की या शास्त्र की या धर्म की या व्यवहार की या विधान की मर्यादा है। लोहिया ने यह बताने का प्रयास भी किया है कि गांधी ने राम के नाम का इस्तेमाल क्यों किया, कृष्ण के नाम का क्यों नहीं। उन्होंने आगे लिखा कि गांधी के काम मर्यादा के अन्दर रहकर ही हुए। काफी हद तक यह बात सही है, लेकिन पूरी तरह नहीं। हमें गांधी की व्यावहारिक राजनीति को भी समझना होगा।

तुलसी का रामराज्य

राम को जन-जन तक पहुंचाने में सबसे बड़ी भूमिका गोस्वामी तुलसीदास ने निभाई जिन्होंने जनता की भाषा में ऐसा ग्रंथ लिखा जो आज घर-घर में धर्मग्रंथ की जगह रखा जाता है। उन्होंने को ‘मर्यादा पुरुषोत्तम राम को ‘भगवान’ का दर्जा दिलाया। तुलसी ने केवल रामकथा को ही लोकप्रिय नहीं बनाया बल्कि आदर्श नेता या प्रशासक के रूप में राम को स्थापित किया।

गांधी ने एक जगह कहा- ‘चाहे मेरी कल्पना के राम कभी इस धरती पर रहे हों या नहीं, रामराज्य का प्राचीन आदर्श निस्संदेह सच्चे लोकतंत्र का एक उदाहरण है जिसमें सबसे गरीब नागरिक भी बिना किसी जटिल और महंगी प्रक्रिया के त्वरित न्याय का भरोसा कर सकता है। पवन कुमार वर्मा ने अपनी किताब ‘द ग्रेटेस्ट ओड टु लॉर्ड राम’ में तुलसीदास कृत रामचरित मानस में तुलसीदास वर्णित ‘राम राज्य’ का अर्थ समझाने का प्रयास किया है। उनके अनुसार, तुलसी के रामराज्य के चार स्तंभ हैं-सत्य, पवित्रता,करुणा और दान। ये सब हर धर्म के स्तंभ भी हैं। रामराज्य ऐसा राज्य है जिसमें कोई हिंसा नहीं होती, सभी के लिए समान अधिकार होते हैं और सभी लोग परस्पर प्रेम से बंधे होते हैं, ‘सब नर करहिं परस्पर प्रीति।’ जब कोई महाकाव्य लोगों के दिलो-दिमाग में बैठ जाता है तो उसके कारणों को समझने की कोशिश भी करनी चाहिए। -लेखक वरिष्ठ संपादक रहे हैं। 

Advertisement
×