पुष्पा गिरिमाजी
मैं सभी उपभोक्ताओं, विशेष रूप से महिलाओं से आग्रह करूंगी कि उन विज्ञापनों के लिए और अधिक मुखर बनें जो उनके लिए अहितकारी हैं, जो उन्हें बदनाम करते हैं या उनकी छवि खराब करते हैं। आज, असंख्य ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म हैं जिनका उपयोग ऐसे विज्ञापनों पर अपनी नाराजगी व्यक्त करने और उन्हें रोकने के लिए किया जा सकता है। उत्पादों और सेवाओं की जब बात आती है तो महिलाओं को पूरी तरह जानकारी होनी चाहिए। मैं यहां पर सिर्फ गुणवत्ता या बिक्री के बाद सर्विस की ही बात नहीं कर रही, बल्कि कंपनी की पूरी छवि की चर्चा कर रही हूं। इसमें न केवल कंपनी द्वारा प्रदर्शित नैतिक मानकों और साफ छवि की बात हो, बल्कि इसमें महिलाओं के प्रति उसका दृष्टिकोण भी शामिल हो और उनके विज्ञापनों के बेहतर मापदंड के बारे में भी। दूसरे शब्दों में, जब आप विज्ञापनों को देखते हैं, तो सिर्फ यह नहीं देखते कि वे क्या प्रचार कर रहे हैं, बल्कि एक विचार भी होता है कि वे किस तरह से उत्पाद को आगे बढ़ा रहे हैं और यदि आप उनके कृत्य को नापसंद करते हैं तो अपने विचार व्यक्त करें। इस पर विचार करें कि जब आज के युग में यह स्पष्ट रूप से स्वीकार कर लिया गया है कि घर के कामों को पति और पत्नी समान रूप से मिलकर निपटाते हैं, पत्नी का स्वास्थ्य भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि पति का; एक महिला को छुट्टी पर जाने और मौज-मस्ती करने का उतना ही अधिकार है जितना पुरुष को; फिर ऐसा क्यों है कि विज्ञापनों में वही पुरानी छवि पेश की जाती है? बाथरूम क्लीनर के विज्ञापन में महिलाओं को सफाई एजेंटों के रूप में क्यों दिखाना चाहिए? प्रेशर कुकर का विज्ञापन या मसाला ब्रांड का प्रचार या कुकिंग ऑयल का विज्ञापन केवल महिलाओं के लिए ही क्यों होना चाहिए? एडवेंचर और मस्ती को दर्शाने वाले विज्ञापनों में केवल पुरुषों को ही क्यों दिखाया जाना चाहिए? महिलाओं को ऐसा तेल क्यों चुनना चाहिए जो उनके पतियों को स्वस्थ रहने में मदद करे इसके उलट क्यों नहीं? सौभाग्य से, मैं आजकल, कुछ विज्ञापन देखती हूं जो इन रूढ़ियों से दूर जा रहे हैं, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसे विज्ञापन बहुत कम हैं। विज्ञापन संचार का एक सशक्त माध्यम हैं और ये न केवल उपभोक्ता की पसंद को प्रभावित कर सकते हैं, बल्कि उपभोक्ताओं के सोचने और कार्य करने के तरीके को भी प्रभावित करते हैं, खासकर जब उत्पादों या सेवाओं का लाखों अनुयायियों के साथ मशहूर हस्तियों द्वारा समर्थन किया जा रहा हो। विज्ञापनदाता और समर्थनकर्ता दोनों को इसके प्रति संवेदनशील होना होगा और जिम्मेदारी से काम करना होगा। लेकिन हमेशा ऐसा होता नहीं। इसका एक बड़ा उदाहरण फेयरनेस क्रीम और साबुन की मार्केटिंग है। यह सच है कि रंग पूर्वाग्रह हमारे समाज में पहले भी था, लेकिन अपने उत्पादों को बेचने के लिए, दशकों तक इन निर्माताओं ने अपने विषैले संदेशों के जरिये गोरी त्वचा को सुंदरता और सफलता से जोड़ा। जुलाई 2018 में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ मैकेनिकल एंड इंजीनियरिंग टेक्नोलॉजी में प्रकाशित मैसूरू में युवाओं के खरीद-व्यवहार और विश्वास प्रणाली पर फेयरनेस क्रीम के विज्ञापनों के प्रभाव पर एक अध्ययन रिपोर्ट छपी, इसमें सामने आया कि कैसे फेयरनेस क्रीम विज्ञापनों ने सुंदरता की परिभाषा को प्रभावित किया और यह विश्वास पैदा किया कि गोरी त्वचा किसी व्यक्ति का कैलिबर या ताकत है। सुंदर सांवले लोगों के मानस को इन विज्ञापनों ने जो नुकसान पहुंचाया वह अभूतपूर्व है। दुर्भाग्य से, इन पूर्वाग्रहों के कारण हीन भावना रखने वालों में से किसी ने भी इन कंपनियों के खिलाफ मामले दर्ज नहीं किए और न ही मुआवजे की मांग की। इन उत्पादों के एंडोर्सर्स और भी अधिक दोषी हैं क्योंकि मानसिक रूप से हुए नुकसान के लिए उनकी लोकप्रियता का सीधा मामला जुड़ा था। इसी कारण से मैं तर्क दे रही हूं कि बतौर प्रायश्चित ऐसे उत्पादकों को वह सारा पैसा वापस करना चाहिए जो उन्होंने इस तरह के विज्ञापनों के जरिये कमाए हैं और इस धनराशि का उपयोग भारतभर के गांवों में लड़कियों के लिए उच्च श्रेणी के स्कूल और तकनीकी कॉलेज बनाने के लिए किया जाना चाहिए।
पिछली फरवरी में, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम में एक संशोधन प्रकाशित किया, जिसमें न केवल त्वचा की फेयरनेस से संबंधित विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाया गया, बल्कि इसके उल्लंघन के लिए सजा भी बढ़ा दी-जेल की अवधि दो साल तक और 10 लाख रुपये तक का जुर्माना। इसे काफी पहले किया जाना चाहिए था, लेकिन अब भी सरकार को इसमें तुरंत प्रभाव से संशोधन करना चाहिए क्योंकि ड्राफ्ट तैयार कर इसे पब्लिक डोमेन में डाले एक साल से अधिक का वक्त हो गया है।
लेकिन यहां में कानून के विषय, जनता की राय का महत्व और कार्रवाई पर ज्यादा फोकस नहीं कर रही हूं। हाल के वर्षों में, लोगों के मजबूत विचारों के कारण उत्पादकों को ऐसे विज्ञापन हटाने पड़े हैं। इसलिए, महिला विरोधी विज्ञापनों के खिलाफ मजबूती से डटें और ऐसे उत्पादों का बहिष्कार करें। सच में आप क्रांतिकारी परिवर्तन देखेंगे।