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जड़ी-बूटियों संग करें तन-मन का रक्षण

हर्बल बागवानी
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आयुर्वेदिक पद्धति से जड़ी-बूटियों से औषधियां तैयार करने व रोगों के इलाज की प्राचीन परंपरा है। असल में, कुछ दवाओं के साइड इफेक्ट सामने आ रहे हैं तो लोग फिर से हर्बल चिकित्सा की ओर लौट रहे हैं। ऐसे में हर्बल व प्राकृतिक खेती की ओर रुझान भी बढ़ा है।

केवल तिवारी

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हर्बल बागवानी में क्या इंसुलिन का पौधा भी होता है, क्या शुगर, ब्लड प्रेशर और अन्य अनेक असाध्य रोगों के उपचार के पौधे भी आपकी-हमारी बगिया में हो सकते हैं? जी हां, बिल्कुल हो सकते हैं। इस आलेख से न केवल आजकल आम रोगों के शिकार लोगों के मन में आशा के बीज अंकुरित हो सकते हैं, बल्कि ऐसे शौकीन आमजन भी अभिभूत हो सकते हैं जो इत्र, परफ्यूम, हर्बल सिंदूर और उबटन के इस्तेमाल में भी रुचि रखते हों।

हर्बल उत्पादों की ओर रुझान

आज अधिकतर खाद्य पदार्थों में रासायनिक उपयोग और एलोपैथी दवाइयों के दूरगामी कुप्रभावों से परेशान लोगों का रुझान निश्चित रूप से प्राकृतिक खेती और हर्बल से तैयार पदार्थों की ओर बढ़ रहा है। हर्बल खेती यानी बागवानी के शौक को पूरा करने के साथ-साथ आयुर्वेदिक दवा के बाजार में भी ऐसे शौकीन लोग योगदान दे रहे हैं। अब सवाल उठता है कि हर्बल खेती की जानकारी कहां से मिलेगी, किस मौसम में कौन से पेड़-पौधों को लगाया जाये। हर्बल का संसार बहुत विस्तारित है। यही विस्तार इससे जुड़े लोगों को मिल सकता है।

दिया जाये जड़ी-बूटियों का ज्ञान

हर्बल बागवानी के संबंध में बात करते हुए विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के पंजाब शाखा से जुड़े ओम प्रकाश मनौली कहते हैं कि विद्यार्थी जीवन से ही अगर बच्चों को इसका ज्ञान दिया जाये तो आगे चलकर वे रोजगार याचक के बजाय रोजगार सृजक बन सकते हैं। साथ ही पढ़ाई के दौरान उन्हें प्रैक्टिकल ज्ञान भी मिलेगा। ओम प्रकाश विद्या भारती उत्तर क्षेत्र के ग्रीन प्रोजेक्ट्स से जुड़े हैं। उनके साथ कई अन्य लोग भी हैं। वह चंडीगढ़ एवं आसपास के स्कूलों में भी संबंधित प्रोजेक्ट के बारे में जानकारी साझा करते हैं और जरूरी टिप्स देते हैं।

ओम प्रकाश का कहना है कि हर्बल बागवानी या खेती से मतलब है औषधीय पौधों को उगाना और उनकी खेती करना। यह एक ऐसा तरीका है जिससे आज का युवा या किसान अपनी आय बढ़ा सकते  हैं। हर्बल खेती से जमीन की उर्वरा शक्ति बरकरार रहती है और भूजल दोहन भी कम होता है। हर्बल बागवानी में आमतौर पर हम नीम, आंवला, हरड़ आदि के बारे में जानते हैं। लेकिन असल में हर्बल बागवानी का बहुत ज्यादा विस्तार है।

रोगों के इलाज में कारगर

अगर हम कहें कि इंसुलिन का भी पौधा होता है तो शायद अनेक लोगों को विश्वास न हो, लेकिन यह सत्य है। यह अलग बात है कि विभिन्न रोगों के निदान में काम आने वाले इन हर्बल पौधों या इनके फल-फूलों का सेवन डॉक्टरी देखरेख में ही किया जाना चाहिए। इनकी खेती की जानकारी आज अनेक संस्थाएं दे रही हैं। कई विश्वविद्यालयों में  भी इन पर काम हो रहा है।

हर्बल पेड़-पौधे और इनके फायदे

अनेक ऐसे औषधीय पौधे हैं जिनकी मांग बाजार में हमेशा बनी रहती है

। इसलिए ये पेड़-पौधे आय का जरिया बन सकते हैं। साथ ही कुछ हर्बल प्लांट्स ऐसे होते हैं

 जिनका सीधे सेवन  किया जा सकता है यानी  उसके लिए डॉक्टरी सलाह की जरूरत नहीं होती। मसलन, पुदीना, तुलसी, एलोविरा, गिलोय, अजवाइन, लेमन ग्रास, हल्दी आदि। इनके अलावा जो अन्य पौधे हैं उनमें अश्वगंधा बहुत महत्वपूर्ण है। इसके अलावा हरड़, ब्राह्मी, स्टीविया, रुद्राक्ष, बेहड़ा, सुहांजना, लैवेंडर, शतावरी, जटामांसी, महाभृंगराज, पत्थरचूर, मुलेठी, ईसबगोल, अपराजिता, लताक्रंज, मेहंदी, कागनाशा, हारसिंगार आदि हैं। साथ ही जिरेनियम, मोगरा जैसे अनेक पेड़-पौधे हैं जिनसे इत्र बनाया जा सकता है। इन पौधों को लगाने से आसपास का वातावरण भी सुगंधित हो जाता है। एक पौधा सिंदूर का भी होता है जिससे हर्बल सिंदूर बनता है।

रंगों को बनाने का उपक्रम

कई बार प्रयोग किए गए फूलों को लोग ऐसे ही फेंक देते हैं या फिर वह कूड़ेदान में चले जाते हैं। कुछ लोग पॉलिथीन की पन्नियों सहित उसे प्रवाहित कर देते हैं जो पर्यावरण के लिए हानिकारक है, लेकिन अब हर्बल रंगों को बनाने का उपक्रम भी चल रहा है। हर्बल बागवानी से ही जुड़ीं एवं रसायन शास्त्र की व्याख्याता बलजिंदर कौर बताती हैं कि इन फूलों के अलावा चुकंदर, हल्दी आदि से प्राकृतिक रंगों का निर्माण किया जाता है। उन्होंने बताया कि इन रंगों में से कुछ तो उबटन की तरह काम करते हैं साथ ही इनको बनाने से दोहरा फायदा है। एक तो रसायन न होने से इनका त्वचा पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा, दूसरा इससे कमाई भी की जा सकती है। बलजिंदर कौर ने बताया कि स्वयं सहायता समूहों के साथ वह इस तरह की ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाती हैं और इन हर्बल रंगों को बाजार में सप्लाई किया जाता है।

हमें तो उपहार मिला है प्रकृति से

हर्बल बागवानी के साथ ओम प्रकाश के शिष्य एवं वर्तमान में कनाडा से लेकर भारत के अनेक इलाकों में संबंधित काम कर रहे भाग सिंह कहते हैं भारत देश तो सचमुच महान है। यहां तो प्रकृति ने जैसे उपहार दिया है। यह उपहार चाहे क्लाइमेट के मामले में हो या फिर उपजाऊ भूमि के मामले में। जड़ी-बूटियों के लिए भारत जैसा पर्यावरण कहीं नहीं। उन्होंने बताया कि दुनिया में ऐसे अने हर्बल मसाले या फूल पत्तियों की जबरदस्त मांग है जिन्हें भारत में ही उपजाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि समय-समय पर वे लोग किसानों, खासतौर से युवाओं के साथ इस संबंध में संवाद करते हैं।

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