प्रमीला गुप्ता
मां प्रकृति का अनुपम वरदान व ईश्वर का प्रतिरूप होती है। यहूदी कहावत है, ‘ईश्वर प्रत्येक स्थान पर नहीं रह सकता, इसलिए मां को बनाया है।’ मां का होना जितना सुखद है, उतना ही अनूठा अनुभव होता है मां बनना। मां बनने का यह अनुभव और सुखद हो जाएगा जब बच्चा और जच्चा दोनों की सेहत ठीक रहे। दुखद है कि अनेक देशों में आज भी हजारों महिलाओं की मौत इसलिए हो जाती है कि उन्हें मां बनने की प्रक्रिया के दौरान सही स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल पातीं। कुछ महिलाओं के लिए तो शिशु जन्म उनकी मौत का कारण बन जाता है।
मां बनने की प्रक्रिया के दौरान महिला को शारीरिक एवं भावनात्मक सहयोग की जरूरत होती है। बेशक आज भारत में स्थिति पहले से बहुत बेहतर है, लेकिन मंजिल अभी दूर है। महिलाओं की खराब स्थिति के कुछ प्रमुख कारण हैं-अशिक्षा, अज्ञानता, कम आयु में विवाह, निर्धनता, कुपोषण, बेटों को प्राथमिकता देना, समय पर गर्भवती महिला के स्वास्थ्य का आकलन न हो पाना, प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों का अभाव, काम के बोझ के कारण स्वास्थ्यकर्मियों में सद्भाव की कमी, स्वास्थ्य केंद्र में आवश्यक उपकरणों, वस्तुओं की सप्लाई की कमी।
जानते हैं उन जरूरी बातों को जिनसे महिला और बच्चा स्वस्थ रहें-
गर्भवती महिला का प्रसवपूर्व जांच के लिए अस्पताल में पंजीकरण करवाना चाहिए। डॉक्टर की सलाह पर पूरे गर्भावस्था के दौरान जांच कराते रहना चाहिए ताकि किसी भी जटिलता का पता चल सके तथा आवश्यक सावधानी बरती जा सके। गर्भावस्था काल में महिला को पौष्टिक आहार की आवश्यकता होती है। दूध, फल, सब्जियां, मछली, अंडा, मटर, फलियों का सेवन लाभदायक है।
जारी हैं प्रयास : सरकार के साथ अनेक स्वैच्छिक संगठन महिलाओं में जागरूकता फैलाने का प्रयास कर रहे हैं। 1800 संगठनों की सामूहिक संस्था डब्ल्यूआरएआई (व्हाइट रिबन एलायंस इंडिया) के अनुरोध पर 2003 में भारत सरकार ने 11 अप्रैल को कस्तूरबा गांधी के जन्म दिवस को ‘राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस’ घोषित किया था। वर्तमान में ‘प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान’ के अंतर्गत गर्भवती महिलाओं की प्रसव पूर्व देखभाल की समुचित व्यवस्था है। गर्भवती महिला को 6,000 रु/= वित्तीय सहायता देने का प्रावधान है।