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बॉलीवुड की कमाई में पायरेसी का घुन

सोशल मीडिया पायरेसी ने फिल्म उद्योग पर जबरदस्त प्रभाव डाला है। फिल्म रिलीज होते ही उसकी कॉपी मोबाइल पर आ जाती है। सिनेमाघर में बैठा दर्शक मोबाइल से सीन या गाने को रिकार्ड कर शार्ट्स-रील के जरिये इतना वितरित कर...
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सोशल मीडिया पायरेसी ने फिल्म उद्योग पर जबरदस्त प्रभाव डाला है। फिल्म रिलीज होते ही उसकी कॉपी मोबाइल पर आ जाती है। सिनेमाघर में बैठा दर्शक मोबाइल से सीन या गाने को रिकार्ड कर शार्ट्स-रील के जरिये इतना वितरित कर देता है कि फिल्म में दर्शकों की रुचि कम हो जाती है।

मनोज प्रकाश

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सोशल मीडिया के मध्यकाल में पायरेसी एक नई मुसीबत बनकर उभर रही है। बॉलीवुड को इस सोशल मीडिया ने जबरदस्त तरीके से अपनी जकड़ में ले रखा है। एक तो देश में सिनेमाघरों की संख्या वैसे ही कम है, दूसरे रही-सही कसर मोबाइल पर कब्जा किए सोशल मीडिया ने पायरेसी के माध्यम से दर्शकों को मूवीहोम से दूर कर रखा है। आज जब देश में लगभग हर घर में दो-तीन स्मार्टफोन हैं, तब मनोरंजन का केन्द्रबिन्दु सिनेमा पायरेसी के चंगुल में फंस चुका है। दो दशक पहले जैसे ही रंगीन टीवी का चलन बढ़ा और केबल के माध्यम से फिल्में और उनसे संबंधित कंटेट दर्शकों को आसानी से मिलने लगा, तब ही पायरेसी ने अपना जाल फेंक दिया था। उस समय बॉलीवुड का हर व्यक्ति पायरेसी के खिलाफ उठ खड़ा हुआ था। अब लगभग वैसी ही स्थिति बन रही है।

घटते क्रेज की वजहें

सोशल मीडिया पायरेसी ने फिल्म उद्योग पर जबरदस्त प्रभाव डाला है। फिल्म के रिलीज होते ही उसकी कॉपी मोबाइल पर आ जाती है। सिनेमाघर में बैठा दर्शक अपने मोबाइल से खास सीन या गाने को रिकार्ड कर उसे शार्ट्स या रील के माध्यम से इतना अधिक वितरित कर देता है कि फिल्म में दर्शकों की रुचि कम हो जाती है। दूसरे माध्यमों से भी फिल्में बिना सिनेमा हॉल जाए दर्शकों तक पहुंच रही हैं। कम ही फिल्में ऐसी होती हैं जो मोबाइल प्रचार के कारण हिट होती हैं। फिल्मों के गाने तो रील के माध्यम से कई-कई बार दर्शक सुन या देख लेते हैं। यह बात दीगर है कि निर्माता-निर्देशक फिल्म के सेंसर बोर्ड से पास होते ही संगीत आदि बेचकर काफी लाभ पहले ही ले लेते हैं। फेसबुक,यू-ट्यूब तथा ओटीटी, वेब सीरीज जैसे प्लेटफार्म सोशल मीडिया पायरेसी को ही सपोर्ट करते हैं।

मूवी प्रमोशन के फंडे नाकाम

सोशल मीडिया पर जैसे ही फिल्मों के स्पॉइलर वायरल होते हैं,दर्शक निर्णय ले लेता है कि वह फिल्म को देखे या नहीं। ऐसी स्थिति में माउथ पब्लिसिटी भी दर्शकों के मन पर कोई प्रभाव नहीं डाल पाती, जिससे सीधे ही कमाई पर असर होता है। कई बार तो निर्माता-निर्देशक को लागत भी निकालना मुश्किल हो जाता है। इस वर्ष जो फिल्में सर्वाधिक कमाई वाली सिद्ध हुई हैं, उनमें ‘छावा’ ने 121, ‘रेड-2’ ने 73, ‘स्काईफोर्स’ ने 73 और ‘जाट’ ने 41 करोड़ रुपए की पहले सप्ताह में कमाई की है। सिनेमा उद्योग ऐसी स्थिति में पहले कभी नहीं रहा। ‘छावा’ को छोड़ दें तो सौ करोड़ के लिए कोई फिल्म दर्शकों को आकर्षित नहीं कर सकी। दूसरी फिल्में जिन्होंने अपनी सफलता के झंडे गाड़े, उनमें ‘दंगल’ ने 1971, ‘बाहुबली’ ने 1800, ‘आरआरआर’ ने 1276 तथा ‘बजरंगी भाईजान’ और ‘एनिमल’ ने 900 करोड़ से अधिक रुपए कमाए थे। इन फिल्मों के पहले सप्ताह का हाल इतना बुरा नहीं रहा। पहले जब सोशल मीडिया जनसामान्य पर हावी नहीं था तो मूवी प्रमोशन के लिए कई फंडे होते थे। माना जा रहा है कि सोशल मीडिया पायरेसी से सिने उद्योग को कम से कम दस हजार करोड़ का नुकसान हो ही रहा है। सिंगल सिनेमाघर खुद को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं।

सिनेमाघरों तक नहीं पहुंच पा रहे लोग

अभी केन्द्र सरकार ने वेव्स समिट में जब मनोरंजन पर बात की तो अभिनेता आमिर खान ने भी यह माना था कि देश के अधिकांश लोग सिनेमाघरों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं व सिनेमाघरों की संख्या बढ़ानी चाहिए। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जो भी पायरेटेड सामग्री होती है वह हर कोशिश के बाद भी नहीं हट पाती। एक समय के बाद यह सामग्री इतनी अधिक फैल चुकी होती है कि मूवी को अधिकतम नुकसान हो चुका होता है। वैसे भी एक मूवी की उम्र पहले सप्ताह में ही तय हो जाती है। जब से फाइव जी और ऑनलाइन का चलन हुआ है, तब से फिल्म डाउनलोड होने में लगने वाला समय चंद मिनटों का रह गया है। आमिर खान की बात भले ही एक दर्जे तक सही हो, लेकिन अगर सिनेमाघरों में दर्शकों को लाना है तो पहले पायरेसी को रोकने के उपाय करने होंगे।

-इ.रि.सें.

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