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किरदार में रमे कलाकार ही छूते हैं दर्शक का दिल

‘उमराव जान’ की रि-रिलीज/ निर्देशक मुजफ्फर अली से बातचीत
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साल 1981 में मुज़फ़्फ़र अली के निर्देशन में पर्दे पर उतरी संगीतमय ड्रामा फ़िल्म उमराव जान ने दर्शकों का भी दिल जीता था और अभिनय, निर्देशन व संगीत में कई पुरस्कार जीते। इसमें रेखा ने मुख्य भूमिका निभाई थी। नेशनल हेरिटेज संस्था ने इसे ‘फोर के’ में डिजिटलाइज्ड फॉर्म में रेस्टोर किया है। इस नये रूप में यह फिर से रिलीज होगी।

दीप भट्ट

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आज से 44 साल पहले जब फिल्म ‘उमराव जान’ रिलीज हुई थी तो इसे देश भर में सिने दर्शकों का अच्छा प्रतिसाद मिला था। मुजफ्फर अली के कुशल निर्देशन, रेखा, फारूख शेख और नसीरुद्दीन शाह के दमदार अभिनय, खय्याम के दिलकश संगीत और आशा भोंसले की खनकती आवाज ने करोड़ों दर्शकों को फिल्म का प्रशंसक बना दिया था। अब ‘उमराव जान’ तकनीकी तौर पर और भव्य रूप में 27 जून को देश भर के पीवीआर सिनेमाघरों में रिलीज होने जा रही है। पेश है फिल्म के निर्देशक मुजफ्फर अली से फिल्म को लेकर हुई लंबी बातचीत :

‘उमराव जान’ फिल्म की दोबारा रिलीज को लेकर आप कैसा महसूस कर रहे हैं?

बहुत खुश हूं, और उत्साहित भी। सबसे बड़ी चीज है वो इमोशन जिसे चार दशक पहले की पीढ़ी ने इस फिल्म को देखते हुए महसूस किया था। अब उसी इमोशन को फिल्म देखते हुए नई पीढ़ी महसूस करेगी। इसी तरह कोई फिल्म क्लासिक व कालजयी हो जाती है।

क्या फिल्म तकनीकी तौर पर पहले से और बेहतर होगी?

अब सिनेमा डिजिटल हो गया है। पहले निगेटिव सेल्यूलाइड वाली तकनीक थी जिससे फिल्में बेहतर ढंग से रेस्टोर भी नहीं हो पाती थी। भारत सरकार की नेशनल हेरिटेज संस्था ने इसे ‘फोर के’ में डिजिटलाइज्ड फॉर्म में रेस्टोर किया है।

‘उमराव जान’ फिल्म की सबसे बड़ी ताकत क्या है?

- फिल्म का हर कलाकार अपने किरदार में रमा हुआ है। वह उस दुनिया का हो गया है जो उमराव जान की दुनिया थी। वो समय और वो जमाना फिल्म में जीवंत रूप में प्रदर्शित हुआ है। रेखा उसमें डूब गई थी। फारूख शेख, नसीरुद्दीन शाह और अन्य सभी कलाकार अपने किरदारों की दुनिया में इस तरह डूब गए थे कि हर किरदार नेचुरल लगता है।

क्या आपको नहीं लगता कि ‘उमराव जान’ फिल्म अब पुरानी हो गई है?

इतिहास कभी पुराना नहीं होता। ‘उमराव जान’ फिल्म का अपना एक खास समय और समाज है। इस फिल्म में एक महिला का दर्द है। तो इन सारी चीजों को कैसे पकड़ा गया है, ये सारी बातें उस फिल्म को कालजयी बनाती हैं।

फिल्म को हिन्दुस्तान के बाहर के मुल्कों में ले जाने की क्या योजना है?

फिल्म के वर्ल्ड राइट कंट्रोलर संजय जैन हैं। हिन्दुस्तान में प्रीमियर के बाद इसे बाहर के मुल्कों में भी प्रदर्शित किया जाएगा।

क्या आपने ओटीटी और नेटफ्लिक्स को भी फिल्म के राइट्स दिए हैं?

-नहीं, मैंने ओटीटी और नेटफ्लिक्स को इस फिल्म के राइट नहीं दिए हैं।

फिल्म को लेकर आपकी शूटिंग के दौरान की क्या कोई खास तरह की यादें हैं?

- इस फिल्म में एक भूमिका के लिए मैंने नसीरुद्दीन शाह को लिया था। उनकी दिक्कत यह थी कि उन्हें उर्दू नहीं आती थी। पर संवाद में उर्दू लफ्जों को बोलना था। उन्होंने उर्दू के लफ्जों के माने समझे। इससे पहले उनके द्वारा की गयी सभी फिल्मों के किरदार इस फिल्म के किरदार से एकदम अलग थे। थोड़े असमंजस के बाद वे किरदार में उतरते चले गए।

फिल्म का संगीत पक्ष बहुत मजबूत है। क्या खय्याम साहब को मिस नहीं करेंगे?

खय्याम साहब को मैं उनके जाने के बाद से ही मिस करता रहा हूं। उमराव जान का संगीत उन्होंने उस पीरियड को ध्यान में रखकर मधुर बनाया है। फिर आशा भोंसले जी की आवाज। फिल्म के गाने शहरयार साहब ने क्या खूब लिखे थे। ‘दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिए..’। आज ये दोनों महान शख्सियतें हमारे बीच नहीं, इन्हें मिस करना स्वाभाविक है।

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