अब डिग्री से ज्यादा स्किल बनी नियोक्ताओं की प्राथमिकता
बीते कुछ सालों से बड़ी आईटी कंपनियों में कई जॉब से डिग्री की अनिवार्य शर्त खत्म कर दी है, अब उन्हें सिर्फ इम्प्लॉई में प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल से ही लेना-देना है। खासकर एआई और ग्रीन जॉब क्षेत्रों में। स्टार्टअप्स में भी आजकल उम्मीदवारों की डिग्री के बजाय उम्मीदवार के काम करने का ट्रैक रिकॉर्ड और स्किल पर ध्यान दिया जाता है। जमाना एलीट डिग्री का नहीं एलीट स्किल और माइंड सेट का है।
पहले जब कोई कहता था कि उसने आईआईटी, आईआईएम, हावर्ड्स या ऑक्सफोर्ड से डिग्री ली है, तो कारपोरेट जगत में उसे एंट्री ऑटोमेटिक ही मिल जाती थी। लोग उससे ज्यादा सवाल-जवाब करने की कोशिश नहीं करते थे। लेकिन हाल के कुछ सालों से इस चलन में कमी आ रही है बल्कि अब बड़ी कंपनियां इस बात की परवाह नहीं करतीं कि डिग्री कितने एलीट एकेडमिक संस्थान से है। नियुक्ति का व्यावहारिक परिदृश्य बदल गया है। एलीट डिग्रियों की जादुई ताकत अब नहीं रही। कंपनियां अपने इम्प्लॉयी से परफोर्मेंस चाहती हैं, उसकी डिग्रियां भर नहीं। यही कारण है कि दुनिया की बड़ी आईटी कंपनियां जैसे- गूगल, एप्पल, आईबीएम आदि में कई जॉब से हाल के सालों में डिग्री की अनिवार्य शर्त खत्म कर दी है, अब उन्हें सिर्फ इम्प्लॉई में प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल से ही लेना देना है यानी स्किल और आउटपुट अब पहले है, डिग्री बाद में। यही कारण है कि आज बड़ी से बड़ी कंपनियां आपकी ऑनलाइन डिग्री पर ही भरोसा कर लेती हैं। किसी को इसकी जरूरत नहीं है कि आपने किसी एलीट शिक्षण संस्थान के कैंपस में वक्त गुजारा है या नहीं।
Advertisementदरअसल साल 2018 के बाद से दुनिया की ज्यादातर कंपनियों में स्किल बेस्ड हायरिंग का चलन शुरू हुआ है। तब से लगातार कंपनियां भर्ती किये जाने वाले कर्मचारियों की डिग्रियों से ज्यादा उनकी कुशलता को महत्व दे रही हैं। खास तौरपर एआई और ग्रीन जॉब जैसे क्षेत्रों में। उदाहरण के लिए साल 2018 से 2023 के बीच इंग्लैंड में एआई रोल्स की मांग में 21 फीसदी की वृद्धि हुई और विश्वविद्यालय डिग्री की मांग में 15 फीसदी की गिरावट आयी। स्किल की वैल्यू पर अब बहुत ज्यादा जोर बढ़ गया है। कई कंपनियां माइक्रो सर्टिफिकेट, बूट कैंप और कौशल प्रशिक्षण वर्कशॉप को प्राथमिकता दे रही हैं।
स्टार्टअप्स में भी यही संस्कृति
भारत के मशहूर स्टार्टअप्स जैसे- पेटीएम, ओला, जोमटो और जेरोढा में आजकल उम्मीदवारों की डिग्री पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता बल्कि इस बात पर ध्यान ज्यादा रहता है कि उम्मीदवार के काम करने का ट्रैक रिकॉर्ड और उसका स्किल क्या है? यही वजह है कि आजकल किसी वी. टेक डिग्रीधारी से कहीं ज्यादा प्राथमिकता एक ऐसे वेब डेवलपर को मिलती है, जिसने ऑनलाइन प्रोजेक्ट्स, हैक ऑन या गिट हब्स पर अच्छे प्रोजेक्ट दिखाये हैं। इसी तरह इन दिनों हिंदुस्तान में ज्यादातर सेमीकंडेक्टर कंपनियां फ्रेशर्स को 6 से 12 लाख सालाना पैकेज पर ले रही हैं। ये कंपनियां उन उम्मीदवारों को ज्यादा प्राथमिकता देती हैं, जिन्होंने एफपीजीए, वीएलएसआई डिजाइन, एआई हार्डवेयर प्रोजेक्ट्स में काम किया है, चाहे उनका कॉलेज या यूनिवर्सिटी कहीं की भी हो।
फ्रीलांसिंग और गिग इकोनॉमी
अपवर्क, फीवरर या टैपटॉल जैसे प्लेटफॉर्म्स पर क्लाइंट सिर्फ यह देखते हैं कि व्यक्ति का प्रोफाइल और स्किल कैसा है? उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि आपने हार्वर्ड से एमबीए किया है या किसी छोटे शहर से बीकॉम। अगर आपने दो हफ्तों में एक मोबाइल एप बना लिया तो आपको प्रोजेक्ट मिलेगा, न कि उस उम्मीदवार को जिसकी डिग्री बड़ी हो, मगर एक एप बनाने में पसीने छूट रहे हों।
बदलाव के कारक
डिग्री को तरजीह के पीछे बड़ा कारण यह है कि नई टेक्नोलॉजी इतनी जल्दी तबदील या नई हो रही है कि केवल डिग्री पर टिके रहने से आज काम नहीं चल रहा। कंपनियों को आज ऐसे लोग चाहिए, जो तुरंत काम शुरू कर सकें। यानी जिनके पास पहले से ही प्रैक्टिकल नॉलेज हो। ऐसे कर्मचारियों को ज्यादा तरजीह दी जाती है जो ऑनलाइन प्लेटफॉर्म जैसे कोरसेरा, यूडेमी और नेपटोल से स्किल हासिल कर रखी है। इन दिनों कंपनियां डिग्रियों पर ज्यादा जोर इसलिए नहीं देतीं, क्योंकि अनेक डिग्रियों में जो लंबे समय के बाद स्किल सिखायी जाती थीं, वही स्किल अब ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स महज कुछ महीनों के कोर्स में सिखा देते हैं।
ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर अनुभव
पहले जो तमाम कुशलताएं लोग कई कई सालों तक एमआईटी और आईआईटी जैसे संस्थानों में पढ़ाई करके सीखते थे, अब वो कुशलताएं आज के तेजतर्रार नौजवान अपने लैपटॉप और इंटरनेट के जरिये गांव में बैठे हुए ही सीख लेता है। सबसे बड़ी बात यह है कि पहले इस तरह की सीखी गई कुशलताओं को प्रैक्टिकल इस्तेमाल के प्लेटफॉर्म्स नहीं थे या बहुत कम थे। मगर आज ऐसे अनेक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स मौजूद हैं, जोमेटो और ओला यहां रियल वर्ल्ड में प्रॉब्लम सॉल्व करना सिखाया जाता है और ये कोई छोटी मोटी जगह नहीं है। बड़े बड़े ग्लोबल यूनिकॉन्स ही अब यही फंडा अपना रहे हैं। एआई, साइबर सिक्योरिटी, डेटा एनालिटिक्स जैसे क्षेत्र अब किसी डिग्रीधारी छात्र के लिए उसकी सीखी चार साल पुरानी स्किल की बजाय किसी भी जगह से हाल फिलहाल में सीखी गई अत्याधुनिक स्किल में पारंगत लोगों पर भरोसा जता रहे हैं।
कुछ व्यावहारिक उदाहरण
आज गूगल इंडिया में सैकड़ों ऐसे इंजीनियर काम कर रहे हैं, जिन्होंने आईआईटी या एनआईटी से कोडिंग नहीं सीखी बल्कि इन्होंने सेल्फ लर्निंग या ऑनलाइन अथवा किसी गली-कूचे के संस्थान से ही ये सीख ली है और इनमें कुशल हैं। जेरोढा के संथापक नितिन कामंथ ने किसी एलीट डिग्री के बिना भारत की सबसे बड़ी ब्रोकरेज कंपनी खड़ी की। बायजू रवींद्रन (बायजूस) स्कूल टीचर्स से स्टार्टअप यूनिकॉन खड़ा कर चुके हैं, वे प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल के जरिये आगे बढ़े हैं। -इ.रि.सें.