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अब आम आदमी की अंतरिक्ष में चहलकदमी

डॉ. संजय वर्मालेखक एसोसिएट प्रोफेसर हैं। अंतरिक्ष सबका है। इस धरती पर रहने वाले सभी प्राणियों के लिए यह एक साझी जगह है। हम मनुष्यों के लिए तो खास तौर से अंतरिक्ष रिझाने वाला ऐसा स्थान है, जिसके आंगन में...
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डॉ. संजय वर्मा

लेखक एसोसिएट प्रोफेसर हैं।

अंतरिक्ष सबका है। इस धरती पर रहने वाले सभी प्राणियों के लिए यह एक साझी जगह है। हम मनुष्यों के लिए तो खास तौर से अंतरिक्ष रिझाने वाला ऐसा स्थान है, जिसके आंगन में उतरकर हम सिर्फ इस पृथ्वी के नहीं रह जाते। बल्कि पूरे ब्रह्मांड के बाशिंदे हो जाते हैं। पर अभी तक इस साझेदारी का मौका जिन करीब सात सौ लोगों को मिला है, उनमें से ज्यादातर सरकारी अंतरिक्ष संगठनों के वैज्ञानिकों या इंजीनियरों के रूप में अंतरिक्ष तक पहुंचे हैं। यही नहीं, जब से स्पेस टूरिज्म का सिलसिला शुरू हुआ है, आम इंसान तो सिर्फ अंतरिक्ष की सरहदें छूकर लौटते रहे हैं। लेकिन इस साल यानी सितंबर 2024 में यह परंपरा टूट गई।

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ऐसा पहली बार हुआ, जब आम इंसानों ने वैज्ञानिकों की तरह अंतरिक्ष में चहलकदमी यानी स्पेसवॉक की। वे वहां कुछ समय तक रुके और करीब तीन दर्जन प्रयोग भी किए। यह करिश्मा किया अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी- नासा की मदद से एक निजी कंपनी- स्पेसएक्स द्वारा आयोजित मिशन पर गए उन आम नागरिकों ने जिन्होंने इस आयोजन के लिए काफी बड़ी रकम चुकाई थी। ये चार आम नागरिक थे- जारेड आइसैकमैन (मिशन कमांडर), स्कॉट ‘किड’ पोटीट (पायलट), साराह गिलिस और अन्ना मेनन।

आम लोगों की स्पेसवॉक का कीर्तिमान

असल में, 10 सितंबर 2024 को नासा के कैनेडी स्पेस सेंटर से टेस्ला और ट्विटर (अब एक्स) के मालिक ईलॉन मस्क की कंपनी- स्पेसएक्स ने पांच दिवसीय पोलारिस डॉन मिशन के लिए अपने ताकतवर रॉकेट फॉल्कन-9 से जो यान रवाना किया था, उस पर ये चारों आम लोग सवार थे। इस मिशन को जारेड आइसैकमैन और ईलॉन मस्क ने साझा रूप से धन मुहैया कराया था। प्रक्षेपण के बाद उनका यान चारों लोगों को मानव सभ्यता के इतिहास में पहली बार अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा ऊंचाई यानी पृथ्वी से 1408 किलोमीटर ऊपर की कक्षा अर्थात ऑर्बिट में ले गया। इससे पहले यह रिकॉर्ड नासा के मिशन जेमिनी-11 के नाम था, जो वर्ष 1966 में अंतरिक्ष में 1373 किमी (853 मील) की ऊंचाई तक गया था। उसके बाद नासा के चंद्र अभियान- अपोलो कार्यक्रम में ही इंसान इससे ऊपर की कक्षा में गए थे, लेकिन तब उनका उद्देश्य चंद्रमा पर उतरना था। इस तरह कह सकते हैं कि जेमिनी-11 और अपोलो मिशनों के बाद किसी भी इंसान द्वारा अंतरिक्ष में हासिल की गई यह सर्वाधिक ऊंचाई है, जहां पोलारिस डॉन मिशन से चार आम इंसान पहुंचे हैं। कीर्तिमान सिर्फ उनका वहां पहुंचना ही नहीं है बल्कि 12 सितंबर को इनमें से दो आम इंसानों ने स्पेसवॉक भी किया। उनका यान थोड़ा नीचे आकर जब पृथ्वी से 737 किमी की ऊंचाई पर टिक गया, तब एक नए एडवांस प्रेशराइज्ड सूट में मिशन कमांडर जारेड आइसैकमैन यान के कैप्सूल से बाहर निकले और 15 मिनट तक अंतरिक्ष में चहलकदमी की। इस चहलकदमी को दुनिया की पहली प्राइवेट एक्स्ट्राव्हीकलर एक्टिविटी (स्पेसवॉक) के रूप में दर्ज किया गया है।

पहले भी दर्ज हैं रिकॉर्ड

मिशन कमांडर आइसैकमैन के बाद सारा गिलिस ने उनका अनुसरण किया। यानी स्पेसवॉक का स्वाद चखा। आइसैकमैन ने स्पेसवॉक के बाद कहा कि वैसे तो घर वापसी के बाद हम सभी के पास करने के लिए बहुत काम है, लेकिन यहां से हमारी पृथ्वी एक आदर्श दुनिया की तरह दिखती है। यूं तो स्पेसवॉक से जुड़े कई कीर्तिमान पहले ही बन चुके हैं। जैसे अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा बार ‘घुम्मी-घुम्मी’ (स्पेसवॉक) करने का विश्व रिकॉर्ड रूसी अंतरिक्ष यात्री अनातोली सोलोवयेव के पास है। वे 16 बार स्पेसवॉक कर चुके हैं। उनके ये स्पेसवॉक अंतरिक्ष में 82 घंटे से ज्यादा समय के बराबर हैं। कह सकते हैं कि उन्होंने कुल मिलाकर साढ़े तीन दिन यान से बाहर निकलकर खुले अंतरिक्ष में बिताए हैं।

चहलकदमी के साथ सेहत से जुड़े शोध

इस अंतरिक्षीय चहलकदमी के अलावा चारों आम अंतरिक्षयात्रियों ने 31 अलग-अलग संस्थानों के साथ मिलकर इस दौरान वहां इंसानी सेहत से जुड़े 36 किस्म के शोध और प्रयोग भी किए। आखिर में 15 सितंबर को वापसी की यात्रा में 27 हजार किमी की रफ्तार के साथ पृथ्वी के वायुमंडल में घर्षण के कारण 1900 डिग्री तापमान में ‘डी-ऑर्बिट बर्न’ करते हुए स्पेसएक्स का क्रू ड्रैगन कैप्सूल जब कामयाबी के साथ फ्लोरिडा (अमेरिका) के ड्राई टोर्टुगास कोस्ट पर पानी में उतरा, तो इसने एक नया इतिहास रच दिया। अंतरिक्ष से लौटते वक्त पृथ्वी के वायुमंडल का घर्षण झेलना कितना खतरनाक हो सकता है, इसे 21 साल पहले 1 फरवरी 2003 को स्पेस शटल कोलंबिया के हादसे से समझा जा सकता है। स्पेस मिशन से लौटते वक्त टेक्सास और लुसियाना के ऊपर हीटशील्ड में छूट गई खामी के कारण कोलंबिया स्पेस शटल आग के शोलों में बदल गया था। इसमें भारतीय मूल की मिशन विशेषज्ञ कल्पना चावला समेत चालक दल के सभी सातों सदस्य मारे गए थे। इसलिए क्रू ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट की हीटशील्ड ने चारों अंतरिक्षयात्रियों को 1900 डिग्री तापमान में सुरक्षित रखा है तो इसे भी एक उपलब्धि माना जा सकता है। पूरे मिशन में स्पेसएक्स के बनाए रॉकेट फॉल्कन-9 की भी एक खास भूमिका है। यह दोबारा इस्तेमाल में आने वाला यानी रीयूजेबल रॉकेट है, जो एक से ज्यादा बार अंतरिक्ष में भेजा जा सकता है।

निजी कंपनियों का सहयोग

नासा हो या इसरो, निजी कंपनियों का अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों में सहयोग लेना अब नया नहीं रह गया है। बल्कि अगर किसी की जेब में पैसा हो, तो वह निजी स्पेस कंपनियों के जरिये अंतरिक्ष भ्रमण का अपना सपना पूरा कर सकता है। जैसा कि इसी वर्ष मई में एक भारतीय गोपी थोटाकुरा ने किया था। थोटाकुरा 19 मई 2024 को ई-कॉमर्स मंच अमेजन के मालिक जेफ बेजोस की स्पेस कंपनी ब्लू ओरिजन के मिशन- न्यू शेपर्ड 25 पर सवार होकर 5 पर्यटकों के साथ अंतरिक्ष कही जाने वाली सरहद तक पहुंचे थे। इस तरह विंग कमांडर राकेश शर्मा के बाद ऐसा कारनामा करने वाले वह दूसरे भारतीय बन गए थे। फर्क सिर्फ यह है कि राकेश शर्मा किसी निजी स्पेस कंपनी की बजाय रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) के सरकारी अंतरिक्ष कार्यक्रम- इंटर कॉसमॉस के सोयुज टी-11 से तीन अप्रैल 1984 को स्पेस में पहुंचे थे।

जहां तक अंतरिक्ष पर्यटन की निजी मुहिमों का सवाल है, तो यह रास्ता दो दशक पहले ही, साल 2001 में अमेरिका के अमीर डेनिस टीटो की उपलब्धि के साथ खुल गया था। 30 अप्रैल 2001 को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर पहुंच कर वह निजी तौर पर स्पेस में पहुंचने वाले दुनिया के पहले व्यक्ति बने थे। बाद में यही काम कई अन्य लोगों ने उसी तरह किया, जैसे हर साल सैकड़ों लोग रोमांच (एडवेंचर) के लिए एवरेस्ट पर चढ़ने का जोखिम लेते हैं। लेकिन अंतरिक्ष संधान के मामले में अब बात इससे भी आगे निकल गई है।

कामकाज का फैलता दायरा

अब अंतरिक्ष में निजी कंपनियों के कामकाज का दायरा तकनीक और जटिल कार्यों तक बढ़ गया है, जहां पहले वे वर्जित थीं। जैसे, उनके रॉकेट यान के प्रक्षेपण में काम आ रहे हैं। जैसे उनके स्पेसक्रॉफ्ट नासा के अंतरिक्षयात्रियों को ढोने में काम आ रहे हैं। नासा को ही नहीं, इसरो को भी तकनीकी कुशलता और जटिल कार्यों में निजी कंपनियों का सहयोग लेने में कोई गुरेज़ नहीं है। इसरो में यह सहयोग किस स्तर का है, इसका अंदाजा इससे लगता है कि दो साल पहले 18 नवंबर 2022 को इसरो के जरिये एक निजी रॉकेट विक्रम-एस का जो सफल प्रक्षेपण किया गया था, उसे हैदराबाद के स्पेस स्टार्टअप- स्काईरूट ने बनाया था। यह पहल भारत में अंतरिक्षीय कार्यक्रमों के निजीकरण के एक मिशन ‘प्रारंभ’ के साथ शुरू हुई है। असल में, निजी अंतरिक्ष कंपनियों को इसका अहसास हो चला है कि आने वाले वक्त में सरकारी कंपनियां अंतरिक्षीय कार्यक्रमों पर जनता के पैसे यानी टैक्स के खर्च को लेकर होने वाली टीका-टिप्पणी से बचना चाहेंगी। ऐसे में वे ज्यादा से ज्यादा कामकाज निजी कंपनियों को सौंप सकती हैं। खासतौर से अंतरिक्ष पर्यटन में पैसे झोंकने का जोखिम सरकारी अंतरिक्ष संगठन हरगिज नहीं लेना चाहते हैं। वजह यह है कि इसमें खर्च और कमाई की तस्वीर साफ नहीं है। दूसरे, यह क्षेत्र अत्यधिक जोखिम भरा है। और कुछ नहीं तो मान लीजिए कि स्पेस टूरिस्ट उसी तरह अंतरिक्ष में जाकर अटक गए, जैसे इन दिनों सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर फंसे हुए हैं। तो ऐसे में, सारी तोहमत निजी अंतरिक्ष कंपनियों पर लगे- सरकारी कंपनियों को यह ज्यादा सुहाता है।

अंतरिक्ष की लहरों पर एक वॉक

इंसान ने पृथ्वी के अलावा जिस जमीन पर चहलकदमी की है, वह चंद्रमा की है। इसके अलावा विमान यात्रा में या फिर आईएसएस पर थोड़ी-बहुत कदमताल हमारे खाते में आती है। इसमें सबसे दिलचस्प मामला स्पेसवॉक का है, जिसका मौका अंतरिक्ष में गए हर शख्स को नहीं मिलता है। कायदे से अंतरिक्ष में मौजूद रहते हुए यान से बाहर निकलने की गतिविधि को स्पेसवॉक कहा जाता है। विज्ञान की भाषा में ईवीए यानी एक्स्ट्राव्हीक्यूलर एक्टिविटी की नौबत अमूमन तब आती रही है, जब आईएसएस या किसी अन्य मिशन पर गए स्पेसक्रॉफ्ट से बाहर निकलकर किसी उपकरण की मरम्मत करने की जरूरत पैदा हुई है। स्पेसवॉक करते वक्त विज्ञानी कई प्रयोग भी करते रहे हैं, जैसे अंतरिक्ष में मौजूद रहने पर शरीर तथा मशीनों पर क्या असर पड़ता है। नए उपकरणों और उनकी प्रणालियों को जांचने के लिए अंतरिक्ष में बाहर आकर प्रयोग करने पड़ते हैं। आईएसएस या किसी अन्य यान के पुर्जों या उपकरणों की मरम्मत के लिए उन्हें पृथ्वी पर लाने की बजाय स्पेसवॉक करते हुए वहीं ठीक करने की कोशिश की जाती है।

रूसी अंतरिक्ष यात्री एलेक्सी लियोनोव

स्पेसवॉक करने वाले दुनिया के पहले शख्स रूसी अंतरिक्षयात्री एलेक्सी लियोनोव थे, जो 18 मार्च 1965 को 10 मिनट के लिए आईएसएस से बाहर निकले थे। अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री एडवर्ड एच. व्हाइट को यह करिश्मा करने का मौका बहुत जल्द 3 जून, 1965 को ही मिल गया था जोकि जेमिनी-4 मिशन से स्पेस में गए थे। उनकी चहलकदमी 23 मिनट तक चली थी। हालांकि कीर्तिमान के मामले में रूसी अंतरिक्षयात्री अनातोली सोलोवयेव की बराबरी अब तक कोई नहीं कर सका है, जो 16 बार स्पेसवॉक कर चुके हैं। हालांकि इसमें एक रिकॉर्ड अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों के नाम है। नासा के चार अंतरिक्ष यात्रियों क्रमशः माइकल लोपेज़-एलेग्रिया, पैगी व्हिटसन, बॉब बेहनकेन और क्रिस कैसिडी ने 10-10 बार स्पेसवॉक किया है। इनमें स्पेस स्टेशन के बाहर सबसे ज्यादा यानी 67 घंटे बिताने का रिकॉर्ड माइकल लोपेज के नाम है।

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