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प्रकृति की छननी  खुद प्रदूषण में उलझी

मेनहेडेन मछली
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के.पी. सिंह

मेनहेडेन व्यावसायिक उपयोग की एक समुद्री मछली है। यह एक ऐसी मछली है, जिसका उपयोग भोजन के रूप में किया जाता है। इसे सागर तटों से प्रतिवर्ष बहुत बड़ी संख्या में पकड़ा जाता है और इससे तेल निकाला जाता है। अटलांटिक महासागर के तटों पर दो प्रकार की मेनहेडेन मछलियां देखने को मिलती हैं, उत्तरवाली मेनहेडेन और दक्षिण वाली मेनहेडेन। उत्तरी मेनहेडेन दक्षिण की मेनहेडेन से कुछ बड़ी और मोटी होती है। इसके साथ ही उत्तरी मेनहेडेन से दक्षिण की मेनहेडन की अपेक्षा अधिक तेल प्राप्त होता है।

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मेनहेडेन सागर तट के निकट उथले पानी में रहती हैं। मेनहेडेन हमेशा झुंड में रहती है। इसके झुंड बहुत बड़े होते हैं। मेनहेडेन हमेशा उथले पानी में रहती है, किंतु एक ही स्थान पर इसकी संख्या बदलती रहती है। कभी-कभी मेनहेडेन एक ही स्थान पर इतना बड़ा झुंड बना लेती है, जिसमें लाखों मछलियां होती हैं। मेनहेडेन की शारीरिक संरचना सागर की सामान्य मछलियों की तरह होती है। इसका सिर बड़ा और शरीर दबा हुआ होता है। मेनहेडन के शरीर पर चांदी की तरह रूपहले रंग के शल्क होते हैं। इसके शल्क एक-दूसरे पर चढ़े हुए होते हैं एवं इन पर गहरे नीले रंग की चमक होती है। कभी-कभी तो इसके शल्क पूरी तरह नीले रंग के दिखाई देते हैं। मेनहेडेन के शरीर के मांसल भागों पर गहरे रंग के धब्बे होते हैं। इसकी लंबाई 30 सेंटीमीटर से लेकर 40 सेंटीमीटर तक होती है कितु कभी-कभी इससे बड़े आकार की मेनहेडेन मछलियां भी देखने को मिल जाती हैं।

मेनहेडेन बहुत अधिक भोजन करने वाली मछली है। यह अपने मुंह की छन्नी से एक मिनट में सात गैलन तक प्लेंकटन छान लेती है तथा इसके छोटे-छोेटे जीवों को अपना आहार बना लेती है। मेनहेडेन का प्रजनन हेरिंग मछली के समान होता है। यह उसी के समान ही अंडे देती है और हेरिंग के समान ही इसके अंडों और बच्चों का विकास होता है। मेनहेडेन हमेशा मुहानों में अंडे देती है। इसका प्रजनन काल अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग होता है। यह मई से खाड़ी में पतझड़ और सर्दियों में अंडे देती है तथा न्यूयार्क और इसके आसपास के क्षेत्रों में मई से लेकर जून तक अंडे देती है। मेनहेडेन जैसे-जैसे उत्तर की ओर बढ़ती है, इसका प्रजनन काल बदलता जाता है। मेनहेडेन के अंडे स्वतंत्र रूप से शुक्राणुओं से मिलते हैं, जिससे इनका निषेचन हो जाता है। मेनहेडेन के प्रत्येक अंडे में तेल की एक बूंद होती है, जिससे ये हल्के हो जाते हैं और सागर की सतह पर आकर उतराने लगते हैं। इसके अंडे एक लंबे समय तक प्लेंकटन का भाग बनकर रहते हैं।

इनके अंडों का विकास पानी के तापक्रम पर निर्भर करता है। यदि पानी का तापक्रम अधिक होता है तो ये जल्दी परिपक्व हो जाते हैं, किंतु पानी का तापक्रम कम होने पर इन्हें परिपक्व होने में अधिक समय लगता है। मेनहेडेन के अंडे परिपक्व हो जाने के बाद फूटते हैं और इनसे छोटे-छोटे लारवे निकल आते हैं। इसके प्रत्येक लारवे के साथ योल्क की थैली होती है। इसी थैली के योल्क के सहारे इसका पोषण होता है। मेनहेडेन के नवजात लारवे के न मुंह होता है और न ही कोई महत्वपूर्ण अंग। यह आरंभ में सागर में उतराता रहता है। धीरे-धीरे इसके मुंह निकल आता है, जिससे यह प्लेंकटन खाने लगता है। मेनहेडेन के लारवे का बड़ी तेजी से विकास होता है और यह शीघ्र ही छोटी-सी मेनहेडेन मछली की तरह दिखाई देने लगता है। मेनहेडेन के बहुत से शत्रु हैं। सागर में बहुत से मांसाहारी जीव और बड़ी मछलियां इसका शिकार करती हैं। इसके शत्रु बहुत बड़ी संख्या में प्रतिवर्ष इसे अपना आहार बनाते हैं। एक अनुमान के अनुसार मानव जितनी मेनहेडेन पकड़ता है, उससे लगभग एक हजार गुना मेनहेडेन अपने प्राकृतिक शत्रुओं द्वारा मारी जाती है। मेनहेडेन की प्रमुख शत्रु नीली मछली है। यह प्रतिवर्ष लाखों मेनहेडेन मछलियों को अपना आहार बनाती है।

मेनहेडेन की वर्तमान स्थिति अच्छी नहीं है। सागर में इसकी संख्या निरंतर कम होती जा रही है। इसका प्रमुख कारण है पर्यावरण प्रदूषण। नदियों के जल प्रदूषण का प्रभाव इसके प्रजनन पर पड़ा है। क्योंकि यह मुहानों में ही अंडे देती है। मेनहेडेन को बचाने के लिए नदियों का जल प्रदूषण रोकना होगा। मानव ने यदि जल प्रदूषण नहीं रोका तो यह नदियों के मुहानों में विषम स्थिति उत्पन्न कर देगा, जिससे मेनहेडेन के साथ ही साथ मुहानों में अंडे देने वाली अन्य समुद्री मछलियों के प्रजनन पर भी निश्चित रूप से अत्यंत घातक प्रभाव पड़ेगा। इ.रि.सें.

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