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Makar Sankranti Festival समाज और परिवार को जोड़ने का पर्व मकर संक्रांति

जरूरतमंदों की मदद करने का संदेश भी शामिल
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Amritsar: Students during 'Lohri' festival celebrations, in Amritsar, Punjab, Monday, Jan. 13, 2025. (PTI Photo/Shiva Sharma) (PTI01_13_2025_000231B)
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देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग नाम से मनाया जाने वाला नये साल का पहला त्योहार है मकर संक्रांति। ऊर्जा के स्रोत सूर्य की आराधना का यह उत्सव सेहत सहेजने, सामाजिक सरोकार जोड़ने और अपने आसपास मौजूद जरूरतमंदों की मदद करने का संदेश लिये है। तिल, मूंगफली, गुड़, चावल और उड़द की दाल जैसी चीज़ों के स्नैक्स, मिठाई और पकवान बनाने व बांटने में यही भाव रहता है। पतंगबाजी में उत्साह के रंग बिखरते हैं। इस उत्सव पर स्त्री मन की सामाजिकता का भाव कई पहलुओं पर मुखर होता है।

डॉ. मोनिका शर्मा

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सामाजिक मेलजोल, जरूरतमंदों की मदद और अपनों संग हंसने-खिलखिलाने का पर्व मकर संक्रांति पूरे परिवार को जोड़ने वाला उत्सव है। सेहत सहेजने के संदेश से लेकर शगुन-सौगात देने की रिवायत तक, स्त्रियां के उल्लास से इस उत्सव के रंग आसमान में उड़ान भरते हैं। यों भी त्योहारों के जरिये हमारे यहां सोशल कनेक्शन को मजबूती देने में महिलाओं की भूमिका सबसे अहम है। साथ ही परिवार को जोड़ने में तो स्त्रियां सदा आगे रहती ही हैं। मकर संक्रांति के त्योहार पर भी उनका रोल और मुखर हो उठता है। तिल-गुड़ की मिठास परोसने से लेकर पतंगबाजी के पेच लड़ाने और रीति-रिवाज निभाने तक। नये साल के पहले त्योहार पर ऊर्जा और उत्साह के भी नये रंग बिखरते हैं।

सेहत सहेजने का खयाल

परिवार की सेहत सहेजने की सोच हर स्त्री के मन में गहराई से बसी होती है। संक्रांति का त्योहार स्वस्थ खानपान और प्राकृतिक जीवनशैली से भी जुड़ा है। पतंगबाजी का यह पर्व न सिर्फ रहन-सहन, खान-पान और दिनचर्या में बदलाव का मोड़ होता है बल्कि सेहत के लिए सार्थक सन्देश भी देता है। छंटते कोहरे और गुनगुनी धूप वाली इस रुत में घर के हर सदस्य की दिनचर्या बदल जाती है। मकर संक्रांति पर सूर्य के उत्तर दिशा में जाने से दिन बड़े होने लगते हैं। प्रकृति करवट लेती है। महिलाएं तिल, मूंगफली, गुड़, चावल और उड़द की दाल जैसी चीज़ों के स्नैक्स, मिठाई और पकवान बनाती हैं। सर्दियों के बाद ऊर्जा से भरी जीवनशैली की ओर लौटने का यह पड़ाव महिलाओं के लिए अपनों की सेहत संभालने का भी समय होता है। धूप सेकते हुए बच्चों-बड़ों की मालिश करना, सिगड़ी जलाकर बातचीत की बैठकी जमाना या पौष्टिक और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली चीजों को खानपान का हिस्सा बनाना। महिलाएं इस मौसमी त्योहार के समय अपनों की सेहत के मोर्चे पर बहुत अधिक मुस्तैद रहती हैं।

सामाजिक सामंजस्य की भावना

सामाजिक संबंध पतंग-डोर से ही तो होते हैं। आपसी जुड़ाव ही जीवंत बने रहने का आसमान देता है। साझे सरोकारों की डोर ही सोशल कनेक्शन्स में ठहराव लाती है। आस-पड़ोस के लोगों में भावनात्मक बंधन बनाती है। सगे-संबंधियों को करीब लाती है। सामन्जस्य की डोर के बंधन के बिना एक-दूजे से कटकर जीने के तो कोई मायने ही नहीं। संघर्ष का दौर हो या सहज स्थितियां, आपसी तालमेल की इस बुनियाद को स्त्रियां सबसे ज्यादा मजबूत बनाती हैं- सुख-दुख साझा करना हो या मिलजुलकर पर्व मनाना। रिश्तों के ताने-बाने को सहेजती स्त्रियां स्नेह की प्रेमपगी डोर से परिचितों-अपरिचितों को बांधती हैं। सद्भाव की उड़ान को बल देने वाला यह भाव भारतीय समाज की पहचान रहा है। हमारे फैमिली सिस्टम को थामने वाला आधार बना है। मकर संक्रांति के पर्व पर समाज और परिवार को बांधने वाला मेलमिलाप का यह भाव-चाव देश के हर कोने में साफ दिखाई देता है। तमिलनाडु में पोंगल तो आंध्र प्रदेश, कर्नाटक व केरल में संक्रांति। हिमाचल प्रदेश, हरियाणा एवं पंजाब में माघी तो गुजरात में उत्तरायण के नाम से मनाए जाने वाले इस त्योहार पर स्त्रियां सामाजिक सद्भाव को मन से सींचती हैं।

मदद की सोच

मकर संक्रांति के त्योहार पर किया जाने वाला दान भी सामाजिक सरोकार की सोच से ही जुड़ा है। मन के मेल संग अपने माहौल में किसी जरूरतमंद का मददगार बनना, इस पर्व का सबसे सुंदर पक्ष है। रिवाज के मुताबिक शगुन स्वरूप दान करने की बात हो या कमजोर परिस्थितियों से जूझते लोगों की सहायता करने का भाव- स्त्रियां हमेशा आगे रहती हैं। मानवीय मदद से जुड़ी सामाजिक मान्यताओं के मायने स्त्रियां व्यावहारिक धरातल पर उतारती दिखती हैं। प्रकृति का आभार जताने के इस पर्व पर जरूरतमंदों को दान देने की रीत का निर्वहन ज़्यादातर घर की महिलाएं ही करती हैं। जिसके चलते सामाजिक सरोकार से भी स्त्रियां गहराई से जुड़ जाती हैं। संक्रांति के त्योहार पर घर-परिवार के सभी लोग इकठ्ठे होकर खुशियां मनाते हैं। पूरा परिवार छत पर जमा होकर पतंगबाजी करता है। हंसता-खिलखिलाता है।

आस-पड़ोसी भी एक-दूजे से जुड़ते, बोलते-बतियाते हैं। खुशियों के भावों को जोड़ने वाली साझी कड़ी महिलाएं ही होती हैं। सामाजिकता के भावों को पोषण देते हुए मेलजोल का माहौल बनाती हैं। समग्र सृष्टि के लिए ऊर्जा के स्रोत सूर्य की आराधना के इस उत्सव पर स्त्री मन की सामाजिकता का भाव कई मानवीय पहलुओं पर मुखर होता दिखता है।

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