Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

अलकनंदा की जलधारा के मध्य सुशोभित मां धारी देवी मंदिर

सुषमा जुगरान ध्यानी आदिशक्ति मां नंदा और आदिदेव भगवान शंकर की भावभूमि वाले उत्तराखंड के कण-कण में शिव और शक्ति का अनिर्वचनीय आध्यात्मिक भाव निहित है। पौराणिक आख्यानों में भिन्न-भिन्न नाम और रूपों में यहां 26 शक्तिपीठ स्थापित हैं। इन्हीं...
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

सुषमा जुगरान ध्यानी

आदिशक्ति मां नंदा और आदिदेव भगवान शंकर की भावभूमि वाले उत्तराखंड के कण-कण में शिव और शक्ति का अनिर्वचनीय आध्यात्मिक भाव निहित है। पौराणिक आख्यानों में भिन्न-भिन्न नाम और रूपों में यहां 26 शक्तिपीठ स्थापित हैं। इन्हीं में से एक है मां धारी देवी, जिसका दिव्य और भव्य मंदिर बदरी-केदार यात्रा मार्ग पर श्रीनगर (गढ़वाल) से 15 किलोमीटर आगे कलियासौड़ नामक स्थान पर अलकनंदा की जलधारा के मध्य 611 मीटर ऊंचे मजबूत स्तंभों पर सुशोभित है।

पौराणिक आख्यानों में वर्णित धारी देवी किसी समय श्रीनगर और आसपास के क्षेत्र की आराध्य देवी थी। धीरे-धीरे मां की महिमा गढ़वाल के दूर-दराज क्षेत्रों में फैलने लगी और मनौती मांगते हुए श्रद्धालु उसके चरणों में शीश नवाने के लिए आने लगे। यह भव्य मंदिर आज देश-विदेश के श्रद्धालुओं और पर्यटकों की श्रद्धा और आकर्षण का भी बड़ा केंद्र बन गया है। सकुशल यात्रा की कामना करते हुए तीर्थयात्री क्षेत्र की रक्षक मां धारी के दर्शन कर धन्य हो जाते हैं।

Advertisement

किंवदंतियों के मतानुसार, जिस धारी गांव के नाम पर देवी का नाम धारी देवी पड़ा, उसका अस्तित्व द्वापर युग से बताया जाता है। बताते हैं, हिमालय की ओर जाते हुए पांडवों ने धारी गांव में विश्राम किया था। एक अन्य कथा के अनुसार पौराणिक काल में भीषण जल प्रलय के दौरान रुद्रप्रयाग से करीब 22 किलोमीटर ऊपर ऊखीमठ क्षेत्र में स्थित मां काली का मंदिर भी ध्वस्त हो गया और वहां स्थापित देवी की मूर्ति दो भागों में विभक्त हो गई। उसके सिर का भाग मंदाकिनी नदी में बह गया, जो श्रीनगर की ओर बहते हुए धारी गांव के आगे आकर रुक गया। किंवदंती है कि देवी ने यहां मध्य रात्रि में गांव वालों को अपने को नदी की धारा से बाहर निकालने के लिए आवाज लगाई। धारी गांव के कुंजू नाम के धुनार (मल्लाह) ने जब देवी की पुकार सुनी, तो वह मूर्ति को नदी से निकाल लाया। देवी ने उसे आशीर्वाद देते हुए अपने को वहीं तट से सटे छोटे से टीले पर प्रतिष्ठित करने की बात कही। इसके बाद धारी देवी के नाम से उसकी पूजा-अर्चना शुरू कर दी।

दक्षिण काली का स्वरूप मानी जाने वाली मां धारी के विषय में प्रचलित एक अन्य कथा में उसे सात भाइयों की इकलौती बहन बताया गया है, जिसे भाई बहुत स्नेह करते थे, लेकिन जब उन्हें पता चला कि बहन उनके भाग्य के लिए शुभ नहीं है, तो उन्होंने चुपके से उसे नदी में बहा दिया। आगे की कथा पहली कथा से ही जुड़ जाती है कि कैसे वह धारी गांव की आराध्य देवी बन गई। आज मां धारी का भव्य मंदिर अलौकिक और दिव्य अलकनंदा के बीचोंबीच मजबूत पिलरों पर स्थापित है। मान्यता है कि देवी अपने सिर के ऊपर छत नहीं चाहती। यही कारण है कि वर्तमान मंदिर में भी देवी की मूर्ति मूल टीले की ही अनुकृति पर अधिष्ठित है। उसके सिर के ठीक ऊपर का हिस्सा खुला छोड़ा गया है। देवी खुले आसमान के नीचे ही प्रतिष्ठित है।

देवी के चमत्कारिक स्वरूप के बारे में धारणा है कि मां धारी दिन में तीन बार अपना रूप बदलती हैं। प्रातःकाल इसका रूप कुंवारी कन्या का होता है। दोपहर में यह युवा और शाम होते-होते प्रौढ़ या वृद्ध स्त्री के रूप में बदल जाती हैं।

दरअसल, देवी का दिन में तीन बार जो शृंगार किया जाता है, उसमें प्रातःकाल वाला शृंगार छोटी बच्ची जैसा होता है और दोपहर व सायंकाल का युवा और प्रौढ़ स्त्री का। इसमें दो मत नहीं कि बेशकीमती काले पत्थर से निर्मित धारी देवी की मूर्ति में एक अलौकिक सम्मोहन है। खासकर देवी की आंखों की चमक श्रद्धालुओं को अभिभूत कर देती है। पौराणिक काल में देवी तीन रूपों में साक्षात दर्शन देती होंगी, तभी तो लोक में यह मान्यता प्रचलित है। इसीलिए प्रतीकस्वरूप शृंगार की भी उसी तरह की परंपरा चली आ रही है।

Advertisement
×