लिवर शरीर का अहम अंग है जो सेहत संबंधी कई मूलभूत कार्य करता है। जब यह वायरल संक्रमण यानी हेपेटाइटिस रोग की चपेट में आता है, तो स्वास्थ्य पर गंभीर असर डालता है। पीजीआई, चंडीगढ़ में हेपेटोलॉजी विभाग के डॉक्टरों के मुताबिक, हेपेटाइटिस के प्रति सतर्कता, जांच व टीकाकरण जरूरी है।
हमारे शरीर में कुछ अंग ऐसे हैं जिनका काम तो चुपचाप चलता है, लेकिन जब वे बीमार होते हैं तो पूरा शरीर इसकी कीमत चुकाता है। लिवर भी ऐसा ही एक अंग है। यह शरीर का सबसे बड़ा आंतरिक अंग है, जो विषैले तत्वों को बाहर निकालने, पोषक तत्वों को संचित करने, पाचन में सहायता करने और प्रोटीन बनाने जैसे सैकड़ों कार्य करता है। लेकिन जब यह अंग हेपेटाइटिस जैसी बीमारी की चपेट में आता है, तो स्वास्थ्य पर गंभीर असर डालता है।
हेपेटाइटिस का शाब्दिक अर्थ है, जिगर में सूजन। यह सूजन आमतौर पर एक वायरल संक्रमण के कारण होती है, लेकिन शराब, कुछ दवाएं, विषाक्त पदार्थ और ऑटोइम्यून रोग भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। अधिकांश मामलों में कारण वायरल संक्रमण ही होता है।
वायरल हेपेटाइटिस मुख्यत: चार प्रकार के वायरस से होता है—हेपेटाइटिस ए, बी, सी और ई। इनमें से कुछ वायरस अल्पकालिक संक्रमण पैदा करते हैं, जबकि कुछ दीर्घकालिक और जानलेवा स्थिति का कारण बन सकते हैं।
हेपेटाइटिस ए और ई
ये संक्रमित भोजन-पानी से फैलने वाला संक्रमण हैं। हेपेटाइटिस ए और ई वायरस मुख्यतः दूषित भोजन और पानी के ज़रिए फैलते हैं। पीजीआई के हेपेटोलॉजी विभाग की एडिशनल प्रोफेसर डॉ. मधुमिता प्रेमकुमार बताती हैं कि आईसीयू में भर्ती तीव्र यकृत विफलता के लगभग आधे मामलों में हेपेटाइटिस ए जिम्मेदार पाया गया है। वहीं एडिशनल प्रोफेसर डॉ. निपुण वर्मा के अनुसार, अब यह संक्रमण हल्के लक्षणों के बजाय दीर्घकाल तक खुजली और असामान्य पीलिया जैसे लक्षणों के साथ सामने आ रहा है, जिनमें स्टेरॉयड या प्लाज़्मा एक्सचेंज जैसी उन्नत चिकित्सा की आवश्यकता हो सकती है।
हेपेटाइटिस बी और सी
ये चुपचाप जिगर को नुकसान पहुंचाने वाले वायरस हैं। हेपेटाइटिस बी और सी वायरस संक्रमित रक्त और शारीरिक फ्लुएड के संपर्क से फैलते हैं। इनके मुख्य कारण हैं : संक्रमित सुई या इंजेक्शन का उपयोग, असुरक्षित यौन संबंध, संक्रमित रक्त चढ़ाया जाना व संक्रमित व्यक्ति से जन्म लेने वाले नवजात।
इन दोनों वायरस कई वर्षों तक शरीर में बिना लक्षण के मौजूद रह सकते हैं और धीरे-धीरे सिरोसिस , अंतिम चरण की यकृत विफलता या जिगर कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का कारण बन सकते हैं। वहीं पीजीआई चंडीगढ़ के हेपेटोलॉजी विभाग के विभागध्यक्ष प्रो. अजय दुसेजा के अनुसार, संस्थान में हर साल 800 से 1000 मरीज क्रॉनिक हेपेटाइटिस बी और सी के इलाज के लिए देशभर से आते हैं। हेपेटाइटिस अक्सर बिना लक्षण के होता है और जब तक मरीज डॉक्टर के पास पहुंचता है, तब तक जिगर को काफी नुकसान पहुंच चुका होता है।
पंजाब में बढ़ता खतरा
हेपेटोलॉजी विभाग के ही एडिशनल प्रोफेसर डॉ. सुनील तनेजा बताते हैं कि कुछ राज्यों में हेपेटाइटिस का खतरा विशेष रूप से बढ़ा हुआ है। मसलन, पंजाब में इंजेक्शन के जरिए नशा करने की प्रवृत्ति के कारण हेपेटाइटिस सी संक्रमण का बोझ तेजी से बढ़ा है। राज्य में इको मॉडल के माध्यम से जांच और उपचार को विकेंद्रीकृत कर ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंचाया गया है । हाल के वर्षों में हेपेटाइटिस ए संक्रमण कुछ नए लक्षणों के साथ सामने आ रहा है। अब मरीजों में केवल पीलिया ही नहीं, बल्कि लंबे समय तक चलने वाली खुजली, शरीर में असहजता और पीलिया के दीर्घ लक्षण भी होते हैं।
बचाव के उपाय
हेपेटोलॉजी विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अरका डे के अनुसार, ‘वायरल हेपेटाइटिस रोके जाने योग्य है।’ कुछ सावधानियां बरतें, तो इस संक्रमण से बचा जा सकता है। मसलन, टीकाकरण : हेपेटाइटिस ए और बी के लिए सुरक्षित और प्रभावी टीके उपलब्ध हैं। नवजात शिशु को जन्म के 24 घंटे के भीतर हेपेटाइटिस बी का टीका अवश्य दिया जाना चाहिए। वयस्कों को भी डॉक्टर से परामर्श लेकर टीकाकरण करवाना चाहिए। स्वच्छता और सतर्कता : हमेशा खाने से पहले और शौच के बाद हाथ धोने की आदत डालें। साफ, उबला या फिल्टर किया हुआ पानी पिएं और भोजन को ढककर रखें।
नशीली दवाओं का सेवन न करें। टैटू या पियर्सिंग कराते समय नई और स्टरलाइज्ड सुइयों का ही उपयोग करें। वहीं सुरक्षित यौन व्यवहार अपनाना जरूरी है।
मुफ्त जांच और इलाज
हेपेटाइटिस की समय रहते जांच कराना आवश्यक है। जांच से ही यह पता चल सकता है कि आप संक्रमित हैं या नहीं। हेपेटोलॉजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. नवीन भगत के अनुसार, राष्ट्रीय वायरल हेपेटाइटिस नियंत्रण योजना के तहत देशभर में मुफ्त जांच और इलाज की सुविधा उपलब्ध है। सरकारी अस्पतालों, मेडिकल कॉलेजों और विशेष केंद्रों पर हेपेटाइटिस बी और सी का इलाज निशुल्क है। असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. बाबूलाल मीणा बताते हैं कि इन उपचारों से बेहतर परिणाम देखने को मिल रहे हैं। हेपेटाइटिस ऐसी बीमारी है, जो समय पर पहचान और सतर्कता से पूरी तरह रोकी जा सकती है।
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