मुख्य समाचारदेशविदेशहरियाणाचंडीगढ़पंजाबहिमाचलबिज़नेसखेलगुरुग्रामकरनालडोंट मिसएक्सप्लेनेरट्रेंडिंगलाइफस्टाइल

ग्रहणी रोग नियंत्रण में मददगार जीवनचर्या

असंतुलित खानपान व जीवनशैली की गड़बड़ियों से अन्न का सही पाचन नहीं हो पाता जिससे आम उत्पन्न होता है जो ग्रहणी रोग के लक्षणों को बढ़ाता है। नियमित जीवनचर्या और व्यायाम आदि से इस रोग पर काबू पा सकते हैं।...
Advertisement

असंतुलित खानपान व जीवनशैली की गड़बड़ियों से अन्न का सही पाचन नहीं हो पाता जिससे आम उत्पन्न होता है जो ग्रहणी रोग के लक्षणों को बढ़ाता है। नियमित जीवनचर्या और व्यायाम आदि से इस रोग पर काबू पा सकते हैं।

बार-बार प्यास लगना, सुस्ती या शरीर में शक्ति का अभाव, भोजन के बाद जलन या भारीपन महसूस होना, भोजन का देर से पचना- ये सब संकेत हैं कि व्यक्ति ग्रहणी रोग की ओर अग्रसर हो रहा है। यदि समय रहते सावधानी या उपचार न किया जाए, तो यह रोग पूरी तरह प्रकट हो जाता है और पाचन तंत्र को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।

Advertisement

लक्षणों को पहचानें

ग्रहणी रोग का प्रमुख संकेत है अनियमित दीर्घशंका , कभी दस्त तो कभी कब्ज। बार-बार शौच जाने के बाद भी अपूर्णता की भावना बनी रहना, भोजन के बाद या तनाव की स्थिति में पेट दर्द और मरोड़ बढ़ जाना, गैस, डकार, भारीपन और असहजता महसूस होना इसके सामान्य लक्षण हैं। भूख का अभाव, जीभ पर सफेद परत, मुंह में खट्टा या कड़वा स्वाद भी ग्रहणी की उपस्थिति दर्शाते हैं। आधुनिक चिकित्सा प्रणाली में इरिटेबल बाउल सिंड्रोम के लक्षण भी ग्रहणी से मिलते-जुलते हैं, इसलिए आयुर्वेद में इन दोनों का उपचार लगभग समान ढंग से किया जाता है।

मानसिक प्रभाव

ग्रहणी केवल पाचन तंत्र का नहीं, बल्कि मानसिक संतुलन का भी रोग है। रोगियों में तनाव, चिंता, चिड़चिड़ापन, नींद की कमी, थकान और भावनात्मक अस्थिरता सामान्य होती है। भय, शोक, तनाव और अनिद्रा जैसे कारक अग्नि को कमजोर कर रोग को बढ़ाते हैं। अतः मानसिक शांति, सकारात्मक सोच और आत्मनियंत्रण अत्यंत आवश्यक हैं। अत्यधिक चिंतन या मानसिक व्याकुलता पाचन को प्रभावित करती है, क्योंकि मस्तिष्क का रक्तसंचार और आंतों की क्रिया गहराई से जुड़ी होती हैं।

रोग के मुख्य कारण

अनुचित भोजन संयोजन और तले-मसालेदार या जंक फूड का अधिक सेवन। अनियमित भोजन समय, देर रात भोजन करना या बार-बार उपवास करना। मानसिक तनाव, भय और असुरक्षा की भावना। नींद की कमी और अधिक मानसिक परिश्रम से उत्पन्न वात का असंतुलन। इन सभी कारणों से जठराग्नि मंद हो जाती है, जिससे अन्न का पाचन अधूरा रहकर आम उत्पन्न होता है यही आम ग्रहणी के लक्षणों को बढ़ाता है।

आहार-विहार से नियंत्रण

ग्रहणी के रोगी को हल्का, सुपाच्य और वातशामक भोजन ग्रहण करना चाहिए। मूंग दाल की खिचड़ी, ताजी सब्जियों का सूप, सूखी मूली का सूप शक्ति बढ़ाने में सहायक हैं। छाछ को आयुर्वेद में सर्वोत्तम पाचक पेय बताया गया है। तक्र मधुर, अम्ल और कषाय स्वादयुक्त, गुण में लघु व रुक्ष और विपाक में मधुर होता है। मधुर विपाक के कारण यह पित्त को नहीं बढ़ाता, उष्णता से कफ का शमन करता है, और अम्ल-मधुर स्वाद से वात को संतुलित करता है। ताजे तक्र का सेवन ग्रहणी रोगियों के लिए औषधि समान लाभ देता है। आयुर्वेद में यवागू (दलिया जैसा पतला भोजन), पंचकोल सूप, तक्रारिष्ट जैसे पाचनवर्धक योग बताए गए हैं।

जीवनशैली और व्यायाम

नियमित व्यायाम शरीर और अग्नि को सुदृढ़ बनाता है। इसे दिन के निश्चित समय पर करना चाहिए ताकि शरीर की प्राकृतिक लय बनी रहे। ध्यान, योग और प्राणायाम मानसिक तनाव को कम करते हैं तथा मन-शरीर के संतुलन को पुनःस्थापित करते हैं। आयुर्वेद में ऋतुचर्या और दिनचर्या के नियमों का पालन करने से पाचन क्रिया में सुधार होता है। वहीं शोधन कर्म ग्रहणी में लाभकारी हैं।

इनसे करें बचाव

अत्यधिक पानी पीना या बार-बार स्नान करना। लघु व दीर्घशंका आदि के प्राकृतिक वेगों को रोकना।

धूम्रपान, अधिक परिश्रम और विपरीत आहार। देर रात तक जागना या तेज धूप में अधिक देर रहना।

इनका सेवन लाभकारी

अधभुनी सौंफ में समान मात्रा में गुड़ पीसकर चूर्ण बना लें। सोंठ के टुकड़ों को घी में भूनकर पीसकर चूर्ण बनाकर भी उसका सेवन हितकर होता है। रात को थोड़ी सी खसखस पानी में भिगोकर सुबह उसको चबाने से लाभ होता हैं। वहीं इस रोग की चिकित्सा में प्रसन्न रहना अहम है। अतः पूरी नींद के साथ-साथ तनाव से बचें। ग्रहणी रोग पाचन अग्नि के असंतुलन से उत्पन्न विकार है। अनुचित आहार-विहार, तनाव और अनियमित जीवनशैली इसके प्रमुख कारण हैं। इसमें तीनों दोष कुपित होते हैं। उक्त नियमों का पालन करने से न केवल ग्रहणी रोग का प्रभावी प्रबंधन संभव है, बल्कि पाचक अग्नि सुदृढ़ होकर सम्पूर्ण स्वास्थ्य की पुनःस्थापना भी होती है।

Advertisement
Show comments