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Consumer Rights नेटवर्क न आना भी उपभोक्ता सेवा में कमी

मुआवजा न मिलने पर अदालत से लें मदद
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मोबाइल सिग्नल की कमी
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डिजिटल इंडिया के इस दौर में भी देश के कई इलाकों में मोबाइल नेटवर्क या तो धीमा चलता है या बिल्कुल नहीं। जरूरी फोन करना हो या मरीजों को अस्पताल पहुंचाने के लिए एंबुलेंस बुलानी पड़े तो बड़ी दिक्कत आती है। ट्राई का प्रावधान है कि जिला स्तर पर पर्याप्त इंटरनेट न मिले या 24 घंटे से ज्यादा इंटरनेट सेवाएं बाधित रहें तो दूरसंचार कंपनी को उपभोक्ता को मुआवजा देना होगा। यदि राहत नहीं दी जाती तो ग्राहक उपभोक्ता अदालत की शरण ले सकता है।

श्रीगोपाल नारसन

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सोशल मीडिया और संचार क्रांति के इस दौर में भी मोबाइल नेटवर्क के अभाव में शासन की ऑनलाइन योजनाओं और सुविधाओं का लाभ भी ग्रामीणों को नहीं मिल पा रहा है। मसलन, राजस्थान के राघौगढ़ ब्लाक के कई गांवों में आज भी मोबाइल नेटवर्क की कनेक्टिविटी नहीं मिलने से ग्रामीण परेशान हैं। जननी एक्सप्रेस, 108 एंबुलेंस और 100 डायल की जरूरत पड़ने पर ग्रामीणों को नेटवर्क की तलाश में भटकना पड़ता है। बीएसएनएल और निजी कंपनियों का टॉवर भी आए दिन बंद होने से उपभोक्ता परेशान होते हैं। इस आधुनिक दौर में गांव-गांव मोबाइल नेटवर्क पहुंचाने के दावे जहां विफल साबित हो रहे हैं,वहीं ग्राम पंचायतों में इंटरनेट की सुविधा नहीं होने से ऑनलाइन योजनाओं के लाभ से ग्रामीण वंचित हो जाते हैं।

डिजिटल इंडिया के लक्ष्यों में बाधा

मोबाइल नेटवर्क की समस्या देश में बहुत गांवों के साथ कई शहरों तक की है। दिन या रात के समय अगर किसी को बहुत जरूरी बात मोबाइल पर करनी हो तो परेशानी आती है। सबसे ज्यादा दिक्कत बीमार और गर्भवती महिलाओं को अस्पताल पहुंचाने के लिए जननी एक्सप्रेस और एंबुलेंस बुलाने में आती है। अगर ऐसे ही हालात रहे तो डिजिटल इंडिया का सपना अधूरा रह जाएगा। कहीं-कहीं कभी नेटवर्क आ जाता है तो कभी बिल्कुल नेटवर्क नहीं मिलता है।

धीमे नेटवर्क की वजहें

उपयोगकर्ता कभी-कभी शिकायत करते हैं कि नेटवर्क बहुत धीमा है। वास्तव में कई कारणों से नेटवर्क को धीमा हो जाता हैं जो पहले अच्छा चल रहा था। जैसे यदि व्यवस्थापक नेटवर्क में कोई नया एप्लिकेशन जोड़ते हैं - जैसे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग या ऑनलाइन प्रशिक्षण वीडियो- तो इससे बैंडविड्थ की खपत बढ़ सकती है, तब एक विफल स्विच पोर्ट या लिंक ट्रैफ़िक को विफलता के आसपास रूट करने और दूसरे लिंक को ओवरलोड करने का कारण बनता है। वाई-फाई सिग्नल की ताकत कहीं पर्याप्त हो सकती है, लेकिन कई क्षेत्रों में कमज़ोर या न के बराबर हो सकती है। यदि कोई कंपनी अपने कार्यालय क्षेत्र को पुनर्व्यवस्थित करने का निर्णय लेती है, तो उस क्षेत्र में वायरलेस कनेक्शन कमज़ोर हो सकता है जहां स्थानांतरण से पहले सिग्नल की ताकत पर्याप्त थी। मसलन, फ़ाइल कैबिनेट जैसी कोई बड़ी धातु की वस्तु वाई-फाई सिग्नल को ब्लॉक कर सकती है। भौतिक कनेक्टिविटी की समस्याएं भी नेटवर्क कनेक्टिविटी में व्यवधान पैदा कर सकती हैं। समस्या तब भी होती है जब नेटवर्क केबल क्षतिग्रस्त या ढीली हो जाती है। ऐसा तब हो सकता है जब नेटवर्क प्रशासक स्विच से केबल जोड़ते या हटाते हैं या यदि अन्य केबलों में से कोई गलती से डिस्कनेक्ट हो जाता है। सिस्टम संसाधनों, जैसे कि सीपीयू, मेमोरी या डिस्क स्पेस का उच्च अनुपात उपयोग कर रहा है। वहींकुछ एप्लिकेशन जटिल गणनाएं करते हैं, उच्च गति वाले वीडियो प्राप्त करते हैं या बड़े डेटाबेस के साथ इंटरैक्ट करते हैं। वायरस भी संसाधनों का उपभोग कर सकता है, इसलिए एंटीवायरस सॉफ़्टवेयर को अपडेट रखना महत्वपूर्ण होता है। साथ ही यदि कोई एप्लिकेशन लंबे समय से चल रहा है, तो यह धीरे-धीरे संसाधनों को लीक कर सकता है। प्रदर्शन को बेहतर बनाने का बेहतर तरीका एप्लिकेशन को रोकना व फिर से शुरू करना है। डिवाइस ड्राइवर अपडेट करने से भी परफॉर्मेंस में सुधार हो सकता है।

इंटरनेट सेवाएं बाधित रहें तो...

विधिक रूप से जिला स्तर पर 24 घंटे या इससे ज्यादा इंटरनेट सेवाएं बाधित रहने पर दूरसंचार कंपनियों को उपभोक्ताओं को मुआवजा देना होता है। दूरसंचार रेगुलेटर ट्राई की ओर से गुणवत्ता सेवा नियमों में पर्याप्त इंटरनेट न मिलने पर जुर्माने का प्रावधान किया गया है। ट्राई के नए नियमों के तहत प्रत्येक गुणवत्ता मानक को पूरा न करने पर जुर्माने की राशि 50,000 रुपये से बढ़ाकर एक लाख रुपये कर दी गई है। रेगुलेटर ने एक्सेस सेवाओं (वायरलेस व वायरलाइन) और ब्रॉडबैंड (वायरलेस व वायरलाइन) सेवा संशोधित विनियम, 2024 के तहत नियम उल्लंघन के विभिन्न पैमानों के लिए एक लाख, दो लाख, पांच लाख और 10 लाख रुपये की श्रेणीबद्ध जुर्माना व्यवस्था शुरू की है। बेसिक और सेलुलर मोबाइल सेवाओं, ब्रॉडबैंड सेवाओं और ब्रॉडबैंड वायरलेस सेवाओं के लिए सेवा की गुणवत्ता को बनाये रखने के लिए ही उपभोक्ताओं के हित में ये नियम बनाये गए हैं। नए नियमों के तहत एक जिले में नेटवर्क में बाधा की स्थिति में दूरसंचार ऑपरेटर्स को पोस्टपेड ग्राहकों को मासिक शुल्क में छूट प्रदान करनी होगी और प्रीपेड ग्राहकों की वैधता बढ़ानी होगी।

रेगुलेटर मासिक शुल्क में छूट या वैधता की गणना के लिए एक दिन में 12 घंटे से अधिक की नेटवर्क बाधा अवधि को एक पूरे दिन के रूप में गिनेगा। हालांकि, प्राकृतिक आपदा के कारण होने वाली समस्याओं को इसमें शामिल नहीं किया गया है। नियमों का उल्लंघन होने पर यदि इंटरनेट कम्पनियों द्वारा राहत नहीं दी जाती तो ग्राहक उपभोक्ता अदालत की शरण ले सकता है।

-लेखक उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता आयोग के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।

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