हेपेटाइटिस लिवर की बीमारी है जो हेपेटाइटिस वायरस के इन्फेक्शन से होती है। लिवर हमारी बॉडी का दूसरा बड़ा ऑर्गन और डेढ़ किलोग्राम वजन की सबसे बड़ी ग्लैंड है। व्यक्ति के स्वस्थ रहने के लिए लिवर का बड़ा योगदान होता है। यह बॉडी के मेटाबॉलिज्म सिस्टम को कंट्रोल में रखता है। बाइल फ्ल्यूड का निर्माण करता है जो भोजन को पचाने, इसमें मौजूद पोषक तत्वों के अवशोषण या स्टोर करने में मदद करता है। ब्लड को फिल्टर कर टॉक्सिक शरीर से बाहर निकाल कर साफ करने का काम करता है। हेपेटाइटिस इंफेक्शन होने से लिवर में सूजन आ जाती है और उसकी कार्यप्रणाली बाधित हो जाती है।
क्या हैं कारण संक्रमण के
लिवर मूलतः दो कारणों से संक्रमित होता है- वायरस शरीर में प्रवेश करने से और अल्कोहल के सेवन से। दरअसल, आधुनिक जीवन-शैली के चलते हमारे खान-पान और रहन-सहन के तरीके में काफी बदलाव आए हैं जो हेपेटाइटिस की वजह बनते हैं। मसलन, दूषित पानी और भोजन करना, संक्रमित व्यक्ति का ब्लड लेने या ब्लड संबंधी उत्पादों के इस्तेमाल से, संक्रमित सीरिंज के उपयोग से, संक्रमित व्यक्ति के रेजर, ब्रश, नेलकटर का इस्तेमाल करने से, संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने, असुरक्षित यौन संबंधों से हेपेटाइटिस फैलता है वहीं गर्भवती मां से बच्चे को अल्कोहल, नशीली चीजों या धूम्रपान का अधिक सेवन करना, इंट्रानेज़ल ड्रग्स लेने या एक ही नीडल शेयर करने से, कुछ मेडिसिन के ज्यादा सेवन से, टैटू निडल से, डॉक्टर, नर्स, लैबोरेटरी टेक्नीशियन आदि में ब्लड ट्रांसफ्यूजन के दौरान इंफेक्शन से भी संक्रमण की आशंका है।
हैपेटाइटिस के प्रकार
हैपेटाइटिस मुख्यतः पांच प्रकार के होते हैं जिन्हें ए,बी,सी,डी और ई नाम से जाना जाता है। इनमें हेपेटाइटिस बी सबसे खतरनाक माना जाता है। टीका होने के बावजूद इसे पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता, केवल रोकथाम या बचाव संभव है। पकड़ में न आने के कारण वायरस धीरे-धीरे पनपते रहते हैं और लिवर को नुकसान पहुंचाते हैं। ज्यादा समय तक मौजूद रहने पर लिवर सिरोसिस और लिवर फैल्योर, हेपेटोसेल्युलर कार्सिनोमा का जोखिम बढ़ा देते हैं। ये वायरस बॉडी फ्ल्यूड के माध्यम से शरीर में प्रवेश करते हैं। हैपेटाइटिस सी बड़ों या बच्चों, किसी को भी हो सकता है।
लक्षण जो पकड़ में नहीं आते
हैपेटाइटिस बी के लक्षण कभी-कभी शुरुआती दौर में पकड़ में नहीं आते जैसे-हल्का बुखार, जी मितलाना, शरीर में कमजोरी, भूख कम लगना, पेट दर्द, मांसपेशियों में दर्द, पेशाब का रंग पीला होना, पेट में पानी भर जाना। कई बार तो छह महीने बाद पता चलता है। रूटीन चैकअप या दूसरी बीमारियों की वजह से अल्ट्रासाउंड या ब्लड टेस्ट करवाने पर भी पता नहीं चल पाता कि उसे कौन-सा हैपेटाइटिस है।
जांच व वैक्सीनेशन
हेपेटाइटिस का अंदेशा होने पर क्रॉनिक हेपेटाइटिस बी,सी डिजीज की जांच के लिए मरीज का एसजीपीटी ब्लड टेस्ट किया जाता है। वर्तमान में नेशनल प्रोग्राम के तहत नवजात शिशु को हैपेटाइटिस बी वैक्सीन की तीन डोज लगाई जाती हैं। अगर टेस्ट के दौरान गर्भवती को हैपेटाइटिस बी होने का पता चले तो बच्चे को हेपेटाइटिस वैक्सीन के साथ हेपेटाइटिस बी इम्यूनोग्लोबुलिन ¼HBIG½ वैक्सीन भी लगानी पड़ती है ताकि इंफेक्शन का रिस्क कम हो जाए। वयस्क व्यक्ति भी हैपेटाइटिस वैक्सीन लगवाएं लेकिन यदि एंटीबॉडी टेस्ट पॉजिटिव निकलता है तो वैक्सीन जरूरी नहीं।
ओरल टेबलेट भी
हैपेटाइटिस बी के उपचार के लिए ओरल टेबलेट भी उपलब्ध हैं जो मरीज की स्थिति के हिसाब से दी जाती हैं। हैपेटाइटिस सी के लिए तीन महीने का मेडिसिन का कोर्स चलाया जाता है। कुछ मरीजों को लिवर सिरोसिस हो सकता है, जिनका इलाज आगे चलता है।
हैपेटाइटिस ए और इ
फ्लेवी वायरस से होने वाले इन हेपेटाइटिस को जॉन्डिस या पीलिया कहा जाता है जो दूषित पानी या ऐसे भोजन के सेवन से होता है। मरीज को आंत्रशोथ भी हो जाता है। इसका संक्रमण फीको ओरल रूट के जरिये होता है व सफाई न रखने, हाथ न धोने से फैलता है। यदि व्यक्ति गंदे हाथों से खाने-पीने की चीजें छूता है, तो वायरस उनमें चले जाते हैं। यह वायरस लीवर में बनने वाले पीले रंग बाइलरुबिन फ्ल्यूड की मात्रा बढ़ा देता है जिससे जॉन्डिस हो जाता है। तेज बुखार होता है। आंखें और त्वचा का रंग पीला व यूरिन भी पीला हो जाता है। भूख न लगने, उल्टी या डायरिया की शिकायत रहती है।
डॉक्टर हैपेटाइटिस की जांच के लिए मरीज का लिवर फंक्शन टेस्ट और आईएनआर ब्लड टेस्ट करते हैं। आमतौर पर मरीज 3-4 सप्ताह में ठीक हो जाता है। अधिक दवाइयों की जरूरत नहीं पड़ती। नवजात शिशु को भी हेपेटाइटिस ए से बचाने के लिए (HepA ) वैक्सीन लगाई जाती है।
रोकथाम के उपाय
अगर आप हेपेटाइटिस से पीड़ित हैं तो परिवार के सभी सदस्यों का परीक्षण कराएं। अगर किसी व्यक्ति को 15-20 साल पहले कभी भी ब्लड ट्रांसफ्यूजन हुआ हो या सर्जरी हुई हो, डेंटल प्रोसिजर हुआ हो तो हैपेटाइटिस बी और सी के टेस्ट करवाएं। वैवाहिक रिश्ते से बाहर रिलेशन में रहने वाले लोग हैपेटाइटिस टेस्ट व रोकथाम के लिए वैक्सीनेशन जरूर कराएं। डिस्पोजेबल सिरिंज के इस्तेमाल की मांग करें। पर्सनल हाइजीन की चीजें शेयर करने से बचें। जरूरत पड़ने पर ब्लड रेड क्रॉस सोसाइटी या मान्यता प्राप्त ब्लड बैंक से ही लें। अल्कोहल से बचें। डॉक्टर से कंसल्ट करके ही मेडिसिन लें।