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स्नैक्स खरीदने से पहले जानें सेहत के जोखिम

पैकेट बंद खाद्य पदार्थ

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लुभावने पैकेटबंद खाद्य पदार्थों को देखकर बच्चे खास तौर से आकर्षित होते हैं। लेकिन स्नैक्स व मिठाई के ऐसे ज्यादातर पैकेट्स में स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड आइटम होते हैं। जिनमें कृत्रिम रंग, प्रिजर्वेटिव्स, खुशबू और एडिटिव्स भरे होते हैं। ऐसे में खरीदने से पहले इनग्रेडिएंट्स और न्यूट्रिशन लेबल पढ़ें व बच्चों को भी इस बारे जागरूक करें।

डॉ. अरुण गुप्ता, एमडी

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जब आप कोई चमकदार पैकेट वाला स्नैक या मिठाई खरीदते हैं, तो सोचते हैं कि कोई स्वास्थ्यवर्धक चीज़ ले रहे हैं। लेकिन ज़्यादातर मामलों में, उस पैकेट के अंदर अत्यधिक चीनी, नमक, वसा और रासायनिक पदार्थों का मिश्रण होता है— जो स्वाद बढ़ाने के मकसद को मुख्य रखकर बनाए जाते हैं, न कि आपके स्वास्थ्य के लिए। ये वही पदार्थ हैं जिन्हें हम अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड या जंक फूड कहते हैं— और खास तौर से चिंताजनक यह कि यह चुपचाप हमारे बच्चों की आदतों और सेहत को नकारात्मक तौर से प्रभावित कर रहा है।

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जंक फूड क्या होता है?

सेहतमंद खानपान के पदार्थों के बारे में यहां यह बताना समीचीन है कि भोजन के योग्य वस्तुओं की हर तरह की प्रोसेसिंग बुरी नहीं होती। जैसे दालों को उबालना, अनाज पीसना या दूध उबालना सामान्य बातें हैं। लेकिन अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स यानी कि ऐसे पैकेट वाले उत्पाद जो रंग, स्वाद, प्रिजर्वेटिव्स, खुशबू यानी एसंस और एडिटिव्स से भरे होते हैं, जिनमें जाहिर है पोषण नहीं बल्कि मार्केटिंग छुपी होती है।

ये खाद्य पदार्थ हैं शामिल

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स यानी पैकेट व डिब्बाबंद तैयार खाद्य पदार्थों की लिस्ट वैसे तो बहुत लंबी है। हालांकि यहां कुछ प्रमुख अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स का ही जिक्र उचित है, जैसे चिप्स, नमकीन, कुकीज़, बिस्किट, इंस्टैंट नूडल्स, तैयार सूप, मीठे पेय और फलों के नाम वाले पेय, फ्लेवर वाली दही, शक्करयुक्त ब्रेकफास्ट सीरिल, “हेल्दी” बार्स और स्नैक्स जो असल में हेल्दी नहीं होते।

बढ़ते स्वास्थ्य जोखिम

आज भारत में हर चौथा बच्चा या किशोर मोटापे से जूझ रहा है। हर चौथा वयस्क डायबिटिक या प्री-डायबिटिक है। हर तीसरा व्यक्ति हाई ब्लड प्रेशर से ग्रस्त है। शोध बताते हैं कि जिन आहारों में 10 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स का होता है, वहां मोटापा, टाइप 2 डायबिटीज, फैटी लिवर, दिल की बीमारी, और यहां तक कि पार्किंसन जैसी बीमारियों का ख़तरा बढ़ जाता है।

ऐसे किया जाता है गुमराह

कंपनियां जानबूझकर ऐसे शब्दों और छवियों का प्रयोग करती हैं जो भ्रम पैदा करते हैं। जैसे - “बेक्ड, नॉट फ्राइड”, “फ्रूट से बना”, “प्रोटीन से भरपूर”, कार्टून, स्कूल बैग डिज़ाइन, सेलिब्रिटी एड्स, पैकेट पर हरे रंग का डॉट दिखा कर “सेहतमंद” होने का भ्रम। लेकिन असलियत यह है कि कोई चेतावनी नहीं होती, ना ही अधिक शुगर या नमक की साफ़ जानकारी दी होती है।

ये सावधानी बरत सकते हैं

पहली बात तो फ्रंट पैक पर दिए गए दावों पर भरोसा न करें। वहीं खरीदने से पहले इनग्रेडिएंट्स और न्यूट्रिशन लेबल पढ़ें — 10 फीसदी से अधिक चीनी, सैचुरेटेड फैट या 1मिलीग्राम/किकै से अधिक सोडियम यानी यह स्वास्थ्य के लिए ख़तरनाक है। अपने बच्चों को बताएं कि “असली खाना” और “पैकेट वाला खाना” अलग हैं। घर का बना ताज़ा खाना, फल, सब्ज़ी, अनाज और दालें प्राथमिकता बनाएं। जो चीज़ ज्यादा विज्ञापन में दिखाई दे, वो ख़ासकर ध्यान से देखें — वो ज़रूरी नहीं कि आपके लिए अच्छी हो।

जानने का अधिकार

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और स्वास्थ्य का अधिकार देता है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि खाद्य उत्पादों पर स्पष्ट जानकारी होनी चाहिए, और सरकार को तीन महीने में लेबलिंग नीति को अंतिम रूप देना चाहिए। हम सबका अधिकार है कि हमें बताया जाए — “पैकेट के अंदर क्या है?”

तो आइए, भ्रामक विज्ञापनों से न बहकें। दरअसल, हमें चाहिए साफ, सटीक चेतावनी— क्योंकि असली बात पैकेट के बाहर नहीं, अंदर

ही होती है।

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