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झंझावातों की उलझन में मासूम किशोर मन

हमारा सौभाग्य है कि हमारे पास दुनिया की बड़ी युवा शक्ति है। लेकिन हम उनकी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को संबोधित नहीं कर पा रहे हैं। इस अवस्था में किशोरों में तमाम शारीरिक-भावनात्मक परिवर्तन होते हैं। लेकिन इन बड़े बदलावों के...
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चित्रांकन : संदीप जोशी
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हमारा सौभाग्य है कि हमारे पास दुनिया की बड़ी युवा शक्ति है। लेकिन हम उनकी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को संबोधित नहीं कर पा रहे हैं। इस अवस्था में किशोरों में तमाम शारीरिक-भावनात्मक परिवर्तन होते हैं। लेकिन इन बड़े बदलावों के प्रभावों को समझाने को हम संवेदनशील नहीं होते। जहां परिवार से संवाद नहीं हो पाता, वहीं बाहर विश्वसनीय माध्यम नजर नहीं आता। तभी किशोर स्वास्थ्य व मनोविज्ञान से जुड़े विशेषज्ञ ‘आई सपोर्ट माई फ्रेंड्स’ जैसे रचनात्मक अभियान की जरूरत बताते हैं।

दुनिया में भारत की गिनती एक युवा देश के रूप में होती है। भारत उन देशों में शुमार है जिसमें किशोरों की आबादी सर्वाधिक है। लेकिन देश का किशोर संक्रमण कालीन समाज की तमाम मानसिक चुनौतियों से जूझ रहा है। किशोरावस्था तेरह से उन्नीस साल के बीच मानी जाती है। यह समय एक युवा के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव का होता है। इस संवेदनशील समय में उसमें शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक बदलावों के साथ तमाम मनोवैज्ञानिक परिवर्तन होते हैं। उसके सामने अलग पहचान गढ़ने, जीवन मूल्यों के अंगीकार और भविष्य की नींव तैयार करने की चुनौती होती है। यह भविष्य का नागरिक तैयार करने का भी वक्त होता है। इस संवेदनशील समय में यदि उसे सही गाइडेंस, भावनात्मक संबल, रचनात्मक सहयोग व भविष्य के लिये आश्वस्ति मिले तो वह निखर जाता है। अन्यथा वह आत्मघात, हिंसा, अपराध व भटकाव की अंधी गलियों की तरफ बढ़ सकता है। हाल के दिनों में किशोरों में बढ़ती आत्मघात की प्रवृत्ति, हिंसा, अपराधों की ओर झुकाव व नशे के दलदल में उतरने के कारकों को इसी नजरिये से देख सकते हैं।

भारत का सौभाग्य

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माना जाता है कि भारत में किशोरों की आबादी बीस प्रतिशत है। भारत का सौभाग्य है कि तमाम विकसित देशों के मुकाबले हमारे पास बड़ी युवा शक्ति है। लेकिन हम उनकी क्षमताओं का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। उनकी मानसिक व स्वास्थ्य समस्याओं को संबोधित नहीं कर पा रहे हैं। इस अवस्था में किशोरों में तमाम शारीरिक परिवर्तन होते हैं। किशोर पुरुषत्व की ओर, तो किशोरियां स्त्रीत्व की ओर उन्मुख होती हैं। लेकिन इन बड़े बदलावों के प्रभावों को समझाने को हम संवेदनशील नहीं होते। जहां परिवार से संवाद नहीं हो पाता, वहीं बाहर विश्वसनीय माध्यम उन्हें नजर नहीं आता। तभी किशोर स्वास्थ्य व मनोविज्ञान से जुड़े विशेषज्ञ ‘आई सपोर्ट माई फ्रेंड्स’ जैसे रचनात्मक अभियान की जरूरत बताते हैं।

मायाजाल में उलझा किशोर मन

संचार क्रांति और तकनीकी प्रगति से हासिल ज्ञान मौजूदा समय में एक भ्रमजाल भी गढ़ रहा है। ऑनलाइन कार्यक्रमों का मायाजाल किशोरों में भटकाव की वजह बना है। यौन इच्छाओं के विस्फोट को बढ़ावा देने वाले सोशल मीडिया के कुछ प्लेटफॉर्म तथा इंटरनेट पर सहज पहुंच ने किशोरों के भटकाव को बढ़ाया है। वयस्कों से जुड़ी सामग्री तक किशोरों की सरल पहुंच ने स्थिति को गंभीर बनाया है। बड़ी संख्या में किशोर साइबरबुलिंग का भी शिकार होकर आत्मविश्वास खोते नजर आते हैं। यौन शिक्षा के अभाव में इससे जुड़े अपराधों में वृद्धि तथा कम उम्र का मातृत्व इस संकट का दूसरा पहलू है। जिससे किशोरियों को रक्ताल्पता जैसी समस्याओं से भी दो-चार होना पड़ता है।

वहीं तमाम अन्य कारक हैं जो किशोरों को आत्मघात की ओर उन्मुख कर रहे हैं। उनकी जल्दीबाजी और तेजी सड़क दुर्घटनाओं के रूप में सामने आती है। वहीं नशे की तरफ बढ़ते कदम भी किशोरों के जीवन में उथल-पुथल व पारिवारिक अशांति को दर्शाते हैं। ऐसे में पर्याप्त काउंसलिंग न होना तथा मानसिक स्वास्थ्य का समय रहते इलाज न होना समाज के लिये घातक साबित हो सकता है। एक मुख्य कारण किशोरों की समस्याओं की तरफ समाज में जागरूकता का अभाव भी है। हाल के वर्षों में संक्रमणकालीन दौर में पीढ़ियों का अंतराल तेजी से बढ़ा है। जो पुरानी पीढ़ी व नई पीढ़ी के बीच टकराव का सबब भी बना। ऐसे में संस्कारों की पहली इकाई परिवार और स्कूलों में शिक्षकों को किशोरों की समस्याओं के प्रति गंभीर पहल करनी चाहिए। निस्संदेह, घर की परिस्थितियां किशोरों का व्यक्तित्व गढ़ने में निर्णायक भूमिका निभाती हैं। किशोर-किशोरियों के सशक्तीकरण में परिवार व शिक्षक रचनात्मक भूमिका निभा सकते हैं। समाज व परिवार इस दिशा में सार्थक पहल करके किशोरों के व्यक्तित्व में संतुलन स्थापित कर सकते हैं। निश्चय ही इससे हम देश को बेहतर नागरिक देकर स्वस्थ समाज की आधारशिला रख सकते हैं।

भटकाव की अंधी गलियां

आज किशोर जिस तेजी से हिंसा व अपराध की अंधी गलियों में उतर रहे हैं, उसके मूल में इस संक्रमणकालीन दौर में इस उम्र के बच्चों का भटकाव भी है। जिसमें पारिवारिक संरचना की विसंगतियां भी निहित हैं।

संयुक्त परिवारों का बिखरना और एकल परिवारों में आर्थिक दबावों के चलते मां-बाप का कामकाजी होना बच्चों के जीवन में रिक्तता पैदा करता है। जटिल सामाजिक व आर्थिक परिस्थितियां स्थिति को विकट बनाती हैं। असुरक्षाबोध किशोर मन पर गहरा असर डालता है। सामाजिक ताने-बाने में बिखराव व नैतिक मूल्यों का पराभव संकट को गहरा कर देते हैं। संवाद के अभाव में किशोरमन की उलझनों का समाधान नहीं मिलता। यह संकट उन परिवारों में ज्यादा गंभीर हो जाता है जहां माता-पिता के संबंधों में टकराव है। माता-पिता की लड़ाई किशोरों के कोमल मन में गहरी नकारात्मकता भर देती है। भविष्य के प्रति यह असुरक्षा बोध किशोरों को आक्रामक बना देता है। जो कालांतर हिंसा की प्रवृत्ति को बढ़ावा देता है।

परिवार की भूमिका

हम यह विचार करें कि किशोरों को संरक्षण देने वाली पारिवारिक संस्था किस सीमा तक किशोरों का व्यक्तित्व गढ़ने में सहायक है। उसकी रचनाशीलता को बढ़ाने और व्यक्तित्व विकास में परिवार कैसी भूमिका निभा रहा है। क्या माता-पिता किशोरों के सर्वांगीण विकास में सहायक गुणात्मक समय दे पा रहे हैं? जिससे वे नकारात्मकता से दूर रह सकें। निश्चय ही किशोरावस्था किसी भी किशोर के जीवन में बेहद संवेदनशील समय होता है। इस दौर में जैसी इबारत कोरी स्लेट पर लिख दी जाती है, वह उसके व्यक्तित्व का निर्धारण कर देती है। यही उसके शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक संवेगों को संबल देता है। दरअसल, हमारे शैक्षिक परिदृश्य में परीक्षाओं का दबाव व उच्च अंक लाने की होड़ भी किशोरों के व्यक्तित्व के गंभीर संकट के मूल में है।

हर किशोर की अपनी मौलिकता

हर किशोर अपने आप में अलग व्यक्तित्व होता है, लेकिन हम उसके व्यक्तित्व का निर्धारण परीक्षाओं में लाए अंकों से करने लगते हैं। यदि हम किशोर के मौलिक गुणों का मूल्यांकन करके उसके कैरियर की दिशा निर्धारित करें तो वह अपना बेहतर रिजल्ट दे सकता है। लेकिन हम सबको एक ही तराजू में तोलने का प्रयास करते हैं। जिससे वह जीवन पर्यंत एक द्वंद्व से जूझता रहता है। उसके सामने व्यक्तित्व गढ़ने व भविष्य की दिशा निर्धारण की चुनौती होती है। इसमें असफलता मिलने पर उसे लगता है कि उसका जीवन निरर्थक हो चला है। यही वजह है कि बड़े कोचिंग संस्थानों व उच्च शिक्षा संस्थानों में किशोरों की आत्महत्या की खबरें आती हैं। दरअसल, हर किशोर अपने आप में अलग प्रतिभा होता है, उसे एक तराजू में तोलना नादानी ही है। वक्त की विडंबना यह भी है कि समाज में यह धारणा बलवती होने लगी है कि किशोर के इंजीनियर-डॉक्टर न बन पाने पर उसका जीवन सारहीन हो जाता है। हकीकत यह है कि मानविकीय संकाय के छात्र भी अपने जीवन में उच्च लक्ष्य हासिल करते हैं। वास्तव में शिक्षा व कौशल विकास के तमाम क्षेत्र ऐसे भी हैं जहां सफलता के नये मानक संभव हैं।

मन की गांठ खोलिए

दरअसल, बदलते वक्त के साथ किशोर मन को पढ़ने की जरूरत है। अभिभावकों को उनके साथ खुले संवाद और मित्रवत व्यवहार से मन की गांठ को खोलना चाहिए। सहज व्यवहार उन्हें सार्थक बातचीत के लिये प्रोत्साहित करेगा। हमें उनकी मानसिक समस्याओं को समय रहते पहचानते हुए कारगर उपचार की व्यवस्था भी करनी होगी। अभी वह सोच विकसित नहीं हो पायी है कि जो किशोर के मनोवैज्ञानक पक्ष को संवेदनशील ढंग से महसूस कर सके। किशोरों की शारीरिक सक्रियता और खेलों में सक्रिय भागीदारी जहां शारीरिक स्वस्थ्य को बढ़ावा देगी, वहीं जीवन में जीत-हार से ऊपर उठने को भी प्रेरित करेगी। उनके साथ भविष्य की तमाम चुनौतियों व शारीरिक बदलाव को लेकर चर्चा की जरूरत होती है। जिससे किशोर किसी मानसिक तनाव से मुक्त हो सकें। तेजी से बदलते समाज में किशोरों के मनोभावों को समझने और समय की जरूरत के हिसाब से मार्गदर्शन की जरूरत होती है।

साथी ही मददगार होगा

वास्तव में किशोरों की समस्याओं और जीवन की चुनौतियों को जितनी सहजता से उसके साथी समझ सकते हैं, उतना दूसरा कोई नहीं। एक हमउम्र साथी की सलाह उसे आसानी से समझ आ सकती है। वह उनसे बेझिझक बात कर सकता और मन की गांठ खोलकर तनाव-मुक्त हो सकता है। राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित हेल्प लाइन इस दिशा में कारगर सिद्ध हो सकती है। एक अच्छा दोस्त बेहतर मार्गदर्शक साबित हो सकता है। जरूरत किशोरों की चुप्पी तोड़ने की है। बेहतर व रचनात्मक संवाद इसमें खासा मददगार साबित हो सकता है। योग-प्राणायाम किशोरों को बेहतर मानसिक स्वास्थ्य देने में सहायक हो सकता है। जिसमें अभिभावक-शिक्षक अच्छी भूमिका निभा सकते हैं। दरअसल, हमें तेजी से बदलते समाज में किशोरों को समायोजित करने के लिये मनोवैज्ञानिक पक्ष का भी गहरे तक अवलोकन करना होगा। तभी स्वस्थ तन-मन वाले किशोर भविष्य के भारत की मजबूत आधारशिला रख सकते हैं।

विशेषज्ञों की राय

किशोरों की सेहत हेतु जरूरी है कि स्कूल और सामुदायिक स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के डिजिटल सॉल्यूशन मसलन स्क्रीनिंग, स्व-मूल्यांकन व सहायता देने वाले मनहित ऐप जैसे समाधान अपनाए जाएं। इस काम में टोल-फ्री टेली-मानस हेल्पलाइन भी सार्थक विकल्प है। उल्लेखनीय है कि किशोरों के भावनात्मक संकट में मानसिक स्वास्थ्य की धारणाएं, पारिवारिक अपेक्षाएं, शैक्षिणक दबाव व रिश्तों का टकराव कारक हैं। इसके लिये पारिवारिक मजबूती बढ़ाने वाले कार्यक्रमों की जरूरत है। वहीं मीडिया को आत्महत्या के मामलों की रिपोर्टिंग करते वक्त संवेदनशीलता दर्शानी चाहिए। उन्हें जीवन में आशावाद व सुधार संबंधी स्टोरियों को बढ़ावा देना चाहिए। जो जीवन की जटिलताओं से जूझने में मददगार हों।

तनाव व दबाव से मुक्ति के लिये समुदायिक स्तर पर पहल कारगर हो सकती है। जिसमें अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं का कौशल विकास मददगार होगा। उनकी सक्रियता तथा सहायता के तौर-तरीकों पर ध्यान देने की जरूरत है। जिसमें खुद की देखभाल और पर्यवेक्षण प्रणाली को एकीकृत करें। किशोर का मार्गदर्शन करने में शिक्षकों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। जो सामुदायिक स्वास्थ्य जरूरतों को विभिन्न विभागों के समन्वय से पूरा कर सकते हैं। साझा लक्ष्यों को पाने के लिये पर्याप्त बजट भी हो। ऐसे में रोकथाम उपायों, प्रोत्साहन व सेवाओं के क्रियान्वयन में विश्वसनीय व दीर्घकालीन डेटा वाली प्रबंधन प्रणालियां मददगार हो सकती हैं। सेवाओं की प्रभावशीलता सामुदायिक प्रयासों और सुविधाओं की गुणवत्ता पर निर्भर करेगी।

दरअसल, मानसिक स्वास्थ्य एक ऐसी बहुआयामी अवधारणा है जो किशोरों के कल्याण से लेकर गंभीर मानसिक बीमारी तक विस्तृत है। जो हमारे जीवन के विभिन्न चरणों में विद्यमान रहती है। जागरूकता से इससे निपटने और जीवन को बेहतर बनाने में कुशल रणनीति से मदद मिलती है। इसके लिये जरूरी है कि मानसिक स्वास्थ्य संबंधी धारणा में शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा, आजीविका, आपदा प्रबंधन और सुरक्षा सेवाओं को शामिल करें। खासकर अभिभावकों से वंचित, प्रवासी व विकलांग बच्चों को सामाजिक-आर्थिक गतिशीलता के प्रति संवेदनशीलता जरूरी होती है। जिसे स्कूलों तथा समुदाय स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों के जरिये रोकथाम में मदद मिल सकती है। मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम किशोरों के समूह को ध्यान में रखकर तैयार किया जाना चाहिए।

किशोरों की मानसिक सेहत हेतु जरूरी संवेदनशील पहल

भारत में किशोरों और युवाओं की बढ़ती मानसिक सेहत की ज़रूरतों के मद्देनजर, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने यूनिसेफ और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज यानी एनआईएमएचएएनएस के साथ मिलकर एक अभिनव पहल की है। एक राष्ट्रीय परामर्श अभियान के जरिये किशोर- युवा मानसिक स्वास्थ्य पर एक राष्ट्रीय तथ्यपत्र और ‘आई सपोर्ट माय फ्रेंड्स’ नामक नया प्रशिक्षण मॉड्यूल लॉन्च किया। यह मॉड्यूल पहले से चल रहे राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत मौजूद साथी-समर्थन मॉड्यूल का विस्तार है।

यह नया मॉड्यूल किशोरों को ऐसे व्यावहारिक उपायों से सशक्त करता है, जिनकी मदद से वे अपने दोस्तों में भावनात्मक तनाव के संकेत पहचान सकें, संवेदनशीलता से उन्हें सहारा दे सकें, ज़रूरत पड़ने पर आगे मदद से जोड़ सकें। यूनिसेफ और डब्ल्यूएचओ के वैश्विक संसाधनों पर आधारित इस मॉड्यूल को एनआईएमएचएएनएस ने भारत के परिप्रेक्ष्य में ढालकर विकसित किया है। यह प्रशिक्षण ‘लुक, लिसन, लिंक’ रूपरेखा पर आधारित है। जिसमें इंटरैक्टिव गतिविधियां, परिदृश्य आधारित शिक्षण और मार्गदर्शित आत्ममंथन शामिल हैं। इसका उद्देश्य है किशोरों में भावनात्मक समझ, सहानुभूतिपूर्ण संवाद और ज़िम्मेदार साथी-सम्बंधों को बढ़ावा देना।

इस अभिनव पहल के मूल में अवधारणा रही है कि आज के किशोरों पर पढ़ाई, परिवार और सामाजिक माहौल का दबाव है। हमें ऐसे सिस्टम तैयार करने होंगे जहां वे खुलकर बोल सकें, उन्हें सुना जाए और उन्हें पूरा समर्थन मिले। मानसिक भलाई में निवेश केवल नीति नहीं, बल्कि नैतिक ज़िम्मेदारी और हमारे साझा भविष्य के प्रति वचनबद्धता भी है।

निस्संदेह हमारे किशोरों को खुद की और अपने साथियों की मानसिक सेहत का ध्यान रखने में सक्षम बनाना, देश के उज्ज्वल भविष्य में निवेश करने जैसा है। राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम और यह नया’ साथी-समर्थन’ मॉड्यूल एक ऐसा समाज गढ़ने में मदद कर रहे हैं, जहां युवाओं की आवाज़ सुनी जाती है, उन्हें समर्थन मिलता है और वे आगे बढ़ने में सक्षम बनते हैं।”

स्वास्थ्य मंत्रालय में किशोर स्वास्थ्य की डिप्टी कमिश्नर डॉ. ज़ोया अली रिज़वी का मानना है, “यह मॉड्यूल देश में मानसिक स्वास्थ्य नीति और व्यवहार को सुदृढ़ करने की बड़ी राष्ट्रीय योजना का हिस्सा है। भारत ऐसे मानसिक स्वास्थ्य तंत्र की ओर बढ़े जो युवाओं की ज़रूरतों के प्रति उत्तरदायी हो। लक्ष्य है ऐसे राष्ट्रीय दिशा-निर्देश बनाना जो प्रारंभिक स्तर पर सहयोग को प्रोत्साहित करें, स्थानीय तंत्र को मजबूत करे और साथी-समर्थन जैसे वैज्ञानिक उपायों से किशोरों को सशक्त बनाएं।”

एनआईएमएचएएनएस की निदेशक डॉ. प्रतिमा मूर्ति का मानना है, “किशोरों की जटिल मानसिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं को देखते हुए ज़रूरी है कि स्कूलों और समुदायों जैसे रोज़मर्रा के माहौल में ही मानसिक स्वास्थ्य सहयोग की शुरुआत की जाए। ऐसे परामर्श सत्र, जहां तकनीकी विशेषज्ञ, युवा, नीति निर्माता और मीडिया एक साथ हों ।”

यूनिसेफ इंडिया के स्वास्थ्य प्रमुख डॉ. विवेक सिंह का मानना है कि ‘भारत ने हाल के वर्षों में मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में खासी प्रगति की है। अब ज़रूरत है कि हम प्रतिक्रियात्मक देखभाल से सक्रिय, समुदाय-आधारित मानसिक स्वास्थ्य प्रणालियों की ओर अग्रसर हों। हमें एक एकीकृत मानसिक स्वास्थ्य ढाँचे पर भी ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। यूनिसेफ इस बदलाव में सरकार को व्यापक, युवा-नेतृत्व वाले दृष्टिकोणों के माध्यम से सहयोग देने के लिए प्रतिबद्ध है, खासकर ऐसे मॉडलों के ज़रिए जो बड़े पैमाने पर लागू हो सकें और जिनका नेतृत्व स्वयं युवा करें।” वहीं यूनिसेफ के एम.पी. फील्ड ऑफिस के प्रमुख अनिल गुलाटी का मानना है कि “राज्य और समुदाय स्तर की व्यवस्थाएं ही राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य प्राथमिकताओं को ज़मीन पर उतार सकती हैं। यदि हम सुरक्षित वातावरण बना सकें, साथी-समर्थकों को प्रशिक्षित कर सकें और फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं को सशक्त बना सकें, तो देश के किसी भी कोने में रहने वाला हर किशोर समर्थन, समझ और आशा पा सकेगा।”

निस्संदेह, मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों, जैसे कि चिंता, आत्मविश्वास की कमी, डिजिटल लत, मानसिक अवसाद और आत्महीनता से जूझ रहे किशोरों को शुरुआती मदद मिलनी चाहिए । निस्संदेह सामाजिक सोच, पारिवारिक अपेक्षाएं, शैक्षणिक दबाव और रिश्तों में तनाव जैसे कारक किशोरों पर गहरा असर डालते हैं। किशोरों से जुड़ी समस्याएं बताती हैं कि युवाओं के लिए सुरक्षित और सहयोगी वातावरण सबसे ज़रूरी है। वहीं दूसरी ओर स्वास्थ्य विशेषज्ञ, यूनिसेफ डॉ. सैयद हुब्बे अली मानते हैं संक्रमणकालीन स्थितियों से गुजरते किशोरों को पारिवारिक व सामाजिक संबल देने वक्त की जरूरत है। एनएचएम अभियान से जुड़ी डॉ. सलोनी सिदाना मानती है कि किशोरों की समस्याओं को लेकर समाज की उदासीनता हमारी गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए। सेंटर फॉर मेंटल हेल्थ लॉ एंड पॉलिसी से जुड़े विशेषज्ञ चुनौतियों से जुड़े किशोरों की काउंसलिंग पर जोर देते हैं।

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