16वीं विधानसभा के गठन के लिए पंजाब के लोग आज वोट डालेंगे। गुरुओं की धरती कहे जाने वाले पंजाब के लोगों ने जीवन के हर पहलू में अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं। आजादी के बाद संयुक्त पंजाब रहा और वर्ष 1966 में राज्य का पुनर्गठन हुआ। पंजाब से हरियाणा और हिमाचल प्रदेश दो पृथक राज्य बने। हरित क्रांति का अग्रदूत रहे पंजाब ने सियासत के भी कई रंग देखे हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता का उद्गम स्थल माना जाने वाला पंजाब आज बड़े बदलाव का दौर देख रहा है। यह बदलाव आब-ओ-हवा से लेकर सियासत तक है। इन बदलावों में कई विडंबनाएं भी छिपी हुई हैं। यह विडंबना पानी की है। यह विडंबना नशे की है, यह विडंबना कृषि उत्पादों से जुड़ी है। यह विडंबना आतंकवाद की है, पड़ोसी देश की नापाक हरकतों के दंश झेलने की है। जैसा कि पंजाब के नाम से ही स्पष्ट होता है। ‘पंज’ (अर्थात पंच या पांच) और ‘आब’ (अर्थात पानी)। यानी पांच नदियों का स्थान पंजाब। सतही तौर पर देखें-सोचें तो पांच नदियों वाली धरती में पानी की क्या कमी हो सकती है। झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज। लेकिन यहां भूजल यानी ग्राउंड वाॅटर का ऐसा उपयोग या दुरुपयोग हुआ कि जानकारों के मुताबिक आज पंजाब के अनेक इलाकों में पानी 400 फुट नीचे चला गया। एक समय था जब यहां पानी महज 40 फुट पर ही उपलब्ध हो जाता था। यही नहीं, पानी में कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग से कैंसर जैसी घातक बीमारी फैलने का भी खतरा बढ़ा और एक अनुमान के मुताबिक, इस वक्त पंजाब में एक लाख लोगों में करीब 90 लोग कैंसर से पीड़ित हैं। जहां तक पंजाब की आबादी का सवाल है वर्ष 2022 के अनुमानित आंकड़ों के मुताबिक पंजाब की जनसंख्या करीब 3 करोड़ पांच लाख है। इनमें पुरुषों की संख्या करीब 1 करोड़ 60 लाख और महिलाओं की तादाद करीब 1 करोड़ 44 लाख है। राज्य में सिख आबादी कुल जनसंख्या का 60 फीसदी है। यहां के सिख समुदाय में जट सिखों की संख्या ज्यादा है। पंजाब की जनसंख्या में करीब 20 फीसदी हिस्सा दूसरे राज्यों से पलायन करके आये लोगों का है।
विडंबनाओं से इतर, पंजाब देश की तरक्की का प्रतिबिंब भी रहा है। हरित क्रांति के अग्रदूत राज्य का मामला हो या फिर जीडीपी में कृषि के सर्वाधिक योगदान की बात, पंजाब ने हमेशा लीड ली है। संयुक्त पंजाब से लेकर अलग राज्य बनने तक पंजाब ने कई पड़ाव देखे और हर पड़ाव पर वह डटकर खड़ा रहा। यहां के मेहनतकश लोगों ने इस सरहदी राज्य को हमेशा सिरमौर रखा। साहित्य, कला में भी पंजाब ने देश को नयी दिशा दी। यहां की फिल्मों का अलग मुकाम है। बॉलीवुड में आधा पंजाब बसता है। यहां से संगीत की विभिन्न धाराएं बहीं। सूफी कलाम सुनाई दिये। गुरुओं की धरती कहे जाने वाले इस राज्य में धार्मिक समरसता की मधुर धारा बहती है। उद्योग धंधे फलते-फूलते रहे हैं। यहां के युवाओं में विदेश जाने का ऐसा क्रेज रहा है कि आज आधा पंजाब कनाडा, यूरोपीय देशों में जा बसा है। पंजाब के खाते में इतनी उपलब्धियां हैं कि उनका बखान करने के लिए शब्द और जगह कम पड़ जायें। इसी तरह पंजाब ने दंश भी खूब झेले हैं।
सफर सियासत का
फिलवक्त पंजाब की विधानसभा में 117 सीटें हैं। पंजाब के सियासी सफर की अगर बात करें तो इसे तीन क्षेत्रों के नजरिये से देखना पड़ेगा। ये तीनों क्षेत्र हैं दोआबा, माझा और मालवा। माझा क्षेत्र ब्यास दरिया से शुरू होकर पाकिस्तान सीमा तक है, जबकि दोआबा ब्यास व सतलुज के बीच पड़ता है। इन तीनों क्षेत्रों के अपने-अपने सियासी समीकरण हैं। बात करें आजादी के तत्काल बाद की तो संयुक्त पंजाब के पहले मुख्यमंत्री बने कांग्रेस के गोपीचंद भार्गव। फिर कभी आंदोलन, कभी राष्ट्रपति शासन का दौर देखने वाले पंजाब में सियासत का अनूठा दौर चलता रहा। शुरुआत से ही इस राज्य में दो पार्टियों का दबदबा रहा। क्षेत्रफल की दृष्टि से छोटे राज्य पंजाब में एकसदनीय विधायिका है। पहली विधानसभा की अंतरिम सरकार से लेकर पहली, दूसरी और तीसरी विधानसभा में कांग्रेस का ही वर्चस्व रहा। 20 मार्च, 1967 को चुनी गई चौथी विधानसभा में सत्ता की बागडोर अकाली दल के पास आई। एक रोचक प्रकरण यह है कि इसी कार्यकाल के दौरान ‘पंजाब जनता पार्टी’ को भी सत्ता सुख मिला। 13 मार्च, 1969 को गठित हुई पांचवीं विधानसभा में एक बार फिर अकाली दल के हाथ शासन की बागडोर आई। पांचवीं विधानसभा में दो मुख्यमंत्री रहे- गुरनाम सिंह और प्रकाश सिंह बादल। उस वक्त प्रकाश सिंह बादल पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। छठी विधानसभा में कांग्रेस के हाथ फिर सत्ता की बागडोर आई। उस वक्त यानी 21 मार्च, 1972 को चुनी गई सरकार में कांग्रेस ने ज्ञानी जैल सिंह को मुख्यमंत्री बनाया। वर्ष 1977 में फिर अकाली दल की वापसी हुई। प्रकाश सिंह बादल एक बार फिर मुख्यमंत्री बने। हालांकि सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई। इसके बाद 23 जून, 1980 को फिर चुनाव हुए और कांग्रेस 8वीं विधानसभा में सत्ता पर काबिज हुई। कांग्रेस नेता दरबारा सिंह मुख्यमंत्री बने। नौवीं विधानसभा का गठन हुआ अक्तूबर 1985 में। इस वक्त शिरोमणि अकाली दल को सत्ता मिली और सुरजीत सिंह बरनाला बने मुख्यमंत्री। 10वीं विधानसभा में राज्य ने तीन मुख्यमंत्री देखे। ये थे- बेअंत सिंह, हरचरण सिंह बराड़, राजिंदर कौर भट्ठल। शासन था कांग्रेस का। फिर मार्च 1997 में शिरोमणि अकाली दल के प्रकाश सिंह बादल बने राज्य के मुख्यमंत्री। इसी तरह मार्च 2002 को गठित 12वीं विधानसभा में कांग्रेस को सत्ता मिली। कैप्टन अमरेंद्र सिंह पहली बार मुख्यमंत्री बने। कैप्टन की सरकार पूरे पांच साल चली। 13वीं विधानसभा 1 मार्च, 2007 को बनी और प्रकाश सिंह बादल को मुख्यमंत्री बनने का फिर मौका मिला। साल 2012 में लगातार दूसरी बार शिरोमणि अकाली दल सत्ता में आया और प्रकाश सिंह बादल ही राज्य के मुख्यमंत्री बने। 15वीं विधानसभा के दौरान राज्य ने दो मुख्यमंत्रियों को कांग्रेस की सरकार में देखा। मार्च 2017 में कैप्टन अमरेंद्र सिंह मुख्यमंत्री बने। फिर अंदरूनी कलह के चलते चरणजीत सिंह चन्नी को कांग्रेस ने मुख्यमंत्री बनाया और अब उन्हें ही भावी सीएम का चेहरा घोषित किया गया है। वैसे पंजाब में इस बार की सियासी स्थिति रोचक है। परिणाम तो 10 मार्च को आएंगे, लेकिन सियासत की धुरी बहुकोणीय है। यहां सत्ता पर काबिज है कांग्रेस और मुख्य विपक्षी पार्टी है आम आदमी पार्टी (आप)। आप ने भगवंत मान को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया है। इस बार भाजपा और शिरोमणि अकाली दल का गठबंधन टूट चुका है। कांग्रेस से अलग हुए कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने भाजपा के साथ हाथ मिलाया है। वहीं शिअद और बसपा ने गठबंधन किया है। कुछ किसान संगठनों ने भी चुनावी मैदान में किस्मत आजमाने का फैसला किया है और संयुक्त रूप में मैदान में हैं।
अब तक के मुख्यमंत्री
आजादी के बाद संयुक्त पंजाब के पहले मुख्यमंत्री बने कांग्रेस के गोपी चंद भार्गव। वह करीब दो साल सीएम रहे। उनके बाद करीब छह माह के लिए भीम सेन सच्चर मुख्यमंत्री बने। सच्चर के बाद एक बार फिर गोपी चंद भार्गव को सीएम बनने का मौका मिला और उसके बाद करीब सालभर के लिए पंजाब में राष्ट्रपति शासन रहा। राष्ट्रपति शासन के बाद जब अप्रैल 1952 में विधानसभा बनी तो एक बार फिर भीम सेन सच्चर को मुख्यमंत्री पद मिला। उनके बाद कांग्रेस के प्रताप सिंह कैरों मुख्यमंत्री बने। कैरों के बाद फिर गोपी चंद भार्गव सीएम बने। उनके बाद राम किशन मुख्यमंत्री बने और वर्ष 1966 में एक बार फिर पंजाब में राष्ट्रपति शासन लागू हुआ। इसके बाद पंजाब राज्य से हरियाणा अलग हो गया। हरियाणा के विभाजन के बाद अलग पंजाब (1966) में पहले मुख्यमंत्री बने कांग्रेस के ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफिर। उनके बाद शिरोमणि अकाली दल के गुरनाम सिंह मुख्यमंत्री बने। इसके बाद भी सत्ता शिअद को मिली और मुख्यमंत्री बने लक्ष्मण सिंह गिल। वर्ष 1968 में पंजाब में एक बार फिर राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। राष्ट्रपति शासन हटने के बाद गुरनाम सिंह एक बार फिर सीएम बने। उनके बाद प्रकाश सिंह बादल राज्य के मुख्यमंत्री बने। वर्ष 1971 में पंजाब में एक बार फिर राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। मार्च 1972 में नये चुनाव के बाद कांग्रेस के ज्ञानी जैल सिंह मुख्यमंत्री बने। वर्ष 1977 में पंजाब में फिर राष्ट्रपति शासन लग गया। उसी वर्ष चुनाव के बाद शिअद के प्रकाश सिंह बादल मुख्यमंत्री बने। वर्ष 1980 में एक बार फिर यहां राष्ट्रपति शासन लगा। उसी वर्ष चुनाव हुए तो कांग्रेस के दरबारा सिंह सीएम बने। लेकिन तीन साल बाद यानी 1983 में फिर राष्ट्रपति शासन लग गया। वर्ष 1985 में चुनाव के बाद सुरजीत सिंह बरनाला सीएम बने। दो साल बाद फिर राष्ट्रपति शासन लग गया। उसके बाद 1992 में कांग्रेस के बेअंत सिंह सीएम बने। तीन साल बाद कांग्रेस के ही हरचरण सिंह बराड़ व फिर कुछ ही महीनों में राजिंदर कौर भट्ठल को सीएम बनाया गया। वर्ष 1997 में शिअद प्रमुख प्रकाश सिंह बादल को फिर सत्ता मिली। पांच साल बाद यानी 2002 में कांग्रेस के कैप्टन अमरेंद्र सिंह की सरकार बनी। उसके पांच साल बाद चुनाव हुए और शिअद के प्रकाश सिंह बादल फिर मुख्यमंत्री बने। अगले चुनाव में भी प्रकाश सिंह बादल ही सीएम बने। वर्ष 2017 में कैप्टन अमरेंद्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस जीती और कैप्टन सीएम बने। लेकिन हाल ही में कैप्टन कांग्रेस से अलग हो गये और अब चरणजीत सिंह चन्नी सीएम हैं जिनके भाग्य का फैसला 10 मार्च को होगा।
12 सीएम का पूरा नहीं हुआ कार्यकाल
पंजाब के सियासी जगत में कैप्टन अमरेंद्र सिंह एेसे 12वें मुख्यमंत्री हैं जो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाये। हालांकि इससे पहले उनका एक कार्यकाल पूरा रहा। वर्ष 1966 में राज्य के पुनर्गठन के बाद कांग्रेस के ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफिर 127 दिन के लिए मुख्यमंत्री रहे। उनके बाद उनके उत्तराधिकारी के तौर पर अकाली दल-संत फतेह सिंह ग्रुप के गुरनाम सिंह मुख्यमंत्री बने। पंजाब जनता पार्टी के लक्ष्मण सिंह गिल भी 272 दिन मुख्यमंत्री रहे। उनके इस्तीफे के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। इसके बाद गुरनाम सिंह फिर फरवरी 1969 में मुख्यमंत्री बने। वे एक साल 38 दिन तक पद पर रहे। शिरोमणि अकाली दल में विद्रोह की वजह से उन्होंने पद छोड़ दिया। प्रकाश सिंह बादल 27 मार्च, 1970 को मुख्यमंत्री बने। वह केवल एक साल 79 दिन ही इस पद पर रहे। लोकसभा चुनाव में पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन की जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने इस्तीफा दे दिया। फिर 277 दिन तक राष्ट्रपति शासन रहा। इसके बाद ज्ञानी जैल सिंह 1972 में मुख्यमंत्री बने, जिन्होंने कार्यकाल पूरा किया। उनके बाद प्रकाश सिंह बादल ने 20 जून, 1977 को कार्यभार संभाला। इस बार वह दो वर्ष 242 दिन तक मुख्यमंत्री रहे। राज्य में 17 फरवरी, 1980 से 6 जून, 1980 तक राष्ट्रपति शासन लग गया। इसके बाद दरबारा सिंह मुख्यमंत्री बने। वह तीन साल 122 दिन तक ही मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद करीब दो वर्ष तक राष्ट्रपति शासन लगा रहा। फिर शिअद से सुरजीत सिंह बरनाला मुख्यमंत्री बने। वह भी एक साल 255 दिन तक ही पद पर रहे। जून 1987 से फरवरी 1992 तक राष्ट्रपति शासन लगा रहा। इसके बाद 25 फरवरी, 1992 को बेअंत सिंह मुख्यमंत्री बने। खालिस्तानी अलगाववादियों ने 31 अगस्त, 1995 को उनकी कार को बम से उड़ाकर उनकी हत्या कर दी। वह तीन साल 187 दिन तक ही पद पर रहे। इसके बाद कांग्रेस के हरचरण सिंह बराड़ मुख्यमंत्री बने। वे भी एक साल 82 दिन तक पद पर रहे। बराड़ के इस्तीफे के बाद राजिंदर कौर भट्ठल 1996 में राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। वे 82 दिन तक पद पर रहीं।
– प्रस्तुति : फीचर डेस्क