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रोग को पहचान कर तुरंत करें रोकथाम

फेफड़ा कैंसर दिवस : 1 अगस्त
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फेफड़े का कैंसर खतरनाक रोग है, जो अकसर बिना किसी शुरुआती लक्षण के हमें धर दबोचता है। हालांकि शुरुआती दौर में पता चल जाए तो कई दवाएं हैं, जिनके इस्तेमाल से फेफड़ा कैंसर के शुरुआती लक्षणों को टाला जा सकता है। शुरुआत में ही पहचान हो तो फेफड़ा कैंसर के मरीजों को बचाया जा सकता है।

फेफड़े का कैंसर ऐसा खतरनाक रोग है, जो अकसर बिना किसी शुरुआती चेतावनी या लक्षण के हमें धर दबोचता है। जब तक हम इसके हमले को समझ पाते हैं, तब तक काफी देर हो चुकी होती है। इसलिए हर साल एक अगस्त को विश्व फेफड़ा कैंसर दिवस मनाया जाता है ताकि दुनियाभर के लोग इस बीमारी के प्रति जागरूक रहें और इसके अचानक हमला करते ही हम इसे पहचान लें।

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तंबाकू का सेवन बड़ी वजह

देश में तमाम कोशिशों के बावजूद आज भी 28-29 करोड़ लोग किसी न किसी रूप में तंबाकू का सेवन करते हैं, वह सिगरेट, खैनी, गुटखा या किसी और रूप में हो सकता है। इस कारण हर साल भारत में फेफड़ा कैंसर से 70 हजार लोगों की मौत हो जाती है और इससे कई गुना ज्यादा लोग अपाहिज हो जाते हैं।

जागरूकता व जांच शिविरों का आयोजन

फेफड़ा कैंसर दिवस की शुरुआत पहली बार साल 2012 में अमेरिकन कॉलेज ऑफ चेस्ट फिजीशियन और इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर द स्टडी ऑफ लंग कैंसर के संयुक्त प्रयास से हुई थी। इस दिन लोगों को फेफड़े के कैंसर के लक्षणों, उसके कारणों और रोकथाम के प्रति सचेत किया जाता है। तंबाकू सेवन के खतरों को बताया जाता है। कैंसर मरीजों और उनके परिजनों को भावनात्मक सहारा देने के कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। अस्पताल व एनजीओ जांच हेतु मुफ्त शिविरों का आयोजन करते हैं।

सांसों की अहमियत व एकजुटता

युवाओं को इस दिन विशेषकर सोशल मीडिया और स्कूल, कॉलेजों में समझाया जाता है कि सिगरेट, बीड़ी केवल एक लत नहीं बल्कि मौत का न्यौता है। कैंसर से जूझ चुके या जूझ रहे मरीजों की प्रेरक कहानियों को साझा किया जाता है तथा डॉक्टर, वैज्ञानिक और समाजसेवी जन जागरूकता फैलाने के लिए सेमिनार-बेबिनार में हिस्सा लेते हैं। लंग कैंसर से लड़ने व जागरूकता के लिए हर साल की कोई विशेष थीम होती है। इस साल की थीम है- ‘सांस दर सांस एकजुट हों और फेफड़ा कैंसर को हराएं’। इस थीम की तीन मुख्य बातें हैं। पहली,सांसों की अहमियत को समझें, क्योंकि फेफड़ा कैंसर उन्हें चुपचाप खत्म कर देता है। दूसरी, जल्दी पहचानें और तीसरी है सामूहिक जिम्मेदारी, फेफड़ा कैंसर को अगर हमेशा के लिए दूर करना है, तो परिवार, समाज और नीति निर्माताओं को मिलकर काम करना होगा।

लोगों में हाल के सालों में जागरूकता आयी है, तो फिर फेफड़ा कैंसर खौफनाक बनकर उभरा है। दरअसल , प्रयास करने के बावजूद तंबाकू के सेवन में कमी नहीं आ रही। हर साल इस कारण बड़ी तादाद में मौतों के बावजूद, लोग तंबाकू नहीं छोड़ पा रहे। वहीं बढ़ते प्रदूषण और घरेलू धुएं के कारण भी फेफड़ा कैंसर बदतर होता जा रहा है। हालांकि पिछले एक दशक में रसोई गैस के इस्तेमाल का चलन गांवों और कस्बों में भी खूब बढ़ा है।

 बड़े कारक तंबाकू व प्रदूषण

भारत तंबाकू का दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा उपभोग करने वाला देश है। यहां करोड़ों लोग बीड़ी, सिगरेट, खैनी और गुटखे की चंगुल में फंसे हैं। अब शहरों में वायु प्रदूषण भी इसकी एक बड़ी वजह बन गया है। पीएम 2.5 जैसे सूक्ष्म कण फेफड़ों में जाकर जमा होते हैं और उन्हें रोगी बना देते हैं। इस कारण देश में फेफड़ा कैंसर के पीड़ितों की संख्या कम होने का नाम नहीं ले रही।

अगर शुरुआती दौर में पता चल जाए कि हमें फेफड़े का कैंसर है, तो ऐसी दर्जनों दवाएं हैं, जिनके इस्तेमाल से फेफड़ा कैंसर के शुरुआती लक्षणों को टाला जा सकता है। शुरुआत में फेफड़ा कैंसर की प्रमुख गतिविधियों में शामिल है- तेजी से वजन घटना, रह-रहकर खांसी आना व सांस फूलना। अगर हम इन लक्षणों को पकड़ लें और मरीज को इसके बचाव की सुविधाएं दे सकें तो काफी हद तक फेफड़ा कैंसर के मरीजों को बचाया जा सकता है। अगर बचाना संभव न भी हो तो उन्हें देर तक जिंदा रखा जा सकता है। विशेषज्ञ कहते हैं कि सर्जरी, कीमोथैरेपी और इम्यूनोथैरेपी जैसे विकल्पों के जरिये फेफड़ा कैंसर पीड़ितों को बचाया जा सकता है। पहले फेफड़ा कैंसर का इलाज काफी पीड़ादायक प्रक्रिया थी, लेकिन आज नई तकनीकों जैसे स्कैन, मिनिमल इन्वेसिव सर्जरी और टारगेटेड थैरेपी के जरिये इसका सटीक इलाज किया जा सकता है।

फेफड़ा कैंसर से बचने के उपाय

धूम्रपान छोड़ें और दूसरों को भी छोड़ने को प्रेरित करें। हर साल अपने फेफड़ों की सामान्य जांच कराएं, खासकर अगर 40 साल या इसके ऊपर के हैं। प्रदूषण से बचने को मास्क पहनें, इंडोर एयर प्यूरीफायर का उपयोग करें। फेफड़ों के कैंसर संबंधित सरकारी योजनाओं और सहायता समूहों से जुड़ें। सांस संबंधी किसी भी लक्षण को नजरअंदाज न करें।

                                                                                                                                              -इ.रि.सें.

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