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खुद को ठेठ पहाड़ी मानती हूं : सुभद्रा

लेखक व निर्देशक सुभद्रा महाजन ने कैरियर की शुरुआत में कुछ फिल्मों में सह लेखन व निर्देशन किया। उस अनुभव के बाद अपनी फिल्म ‘सेकंड चांस’ को पर्दे पर लाना संभव हुआ। फिल्म में हर इंसान को दूसरा चांस मिलने...
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लेखक व निर्देशक सुभद्रा महाजन ने कैरियर की शुरुआत में कुछ फिल्मों में सह लेखन व निर्देशन किया। उस अनुभव के बाद अपनी फिल्म ‘सेकंड चांस’ को पर्दे पर लाना संभव हुआ। फिल्म में हर इंसान को दूसरा चांस मिलने के अलावा क्लाइमेट चेंज व पहाड़ी संस्कृति आदि की बात की गयी है। सुभद्रा हिमाचल से मुंबई मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई करने गयीं। मकसद पत्रकार बनना था। लेकिन वहां फिल्म जगत के एक्सपोज़र ने उन्हें बड़े पर्दे पर सृजनकारी भूमिका में ला खड़ा किया।

शान्तिस्वरूप त्रिपाठी

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चंबा में जन्मी और शिमला में पली-बढ़ी सुभद्रा महाजन बतौर फिल्म लेखक व निर्देशक अपनी फिल्म ‘सेकंड चांस’ को लेकर चर्चा में हैं। यह उनकी पहली फीचर फिल्म है। कार्लोवी वेरी व बुसान समेत कई इंटरनेशनल फिल्म महोत्सवों में शामिल होने के बाद अब फिल्म ‘सेकंड चांस’ 13 जून को यानी कल भारतीय सिनेमाघरों में रिलीज हुई। फिल्म ‘सेकंड चांस’ की कहानी 25 वर्षीय अकेली व गर्भवती निया की है, जो कि अपने प्रेमी द्वारा त्यागे जाने से जूझ रही है। वहीं इस फिल्म में हर इंसान को दूसरा चांस मिलने,क्लाइमेट चेंज,हिमाचली संस्कृति व रहन-सहन आदि की भी बात की गयी है।

हिमाचल प्रदेश से फिल्म निर्देशक बनने की आपकी यात्रा को लेकर क्या कहेंगी?

मैं ठेठ पहाड़ी हूं। मेरा जन्म हिमाचल के चंबा में और परवरिश शिमला में हुई। मां उषा महाजन लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता हैं। मेरे पिता हर्ष महाजन उद्योगपति और राजनेता हैं। अपनी मां के कार्यों से प्रेरित होकर मैंने पत्रकार बनना चाहा। इसीलिए मुंबई आकर सेंट जेवियर कालेज से मास कम्यूनिकेशन की पढ़ाई की जिस दौरान मेरा कालेज के फिल्म क्लब से जुड़ना हुआ था। जहां मैंने सत्यजीत रे सहित कई फिल्मकारों की क्लासिक फिल्में देखीं। वेस्टर्न क्लासिक व विश्व सिनेमा की भी फिल्में देखी। माजिद मजीदी की लगभग सभी फिल्में देखी। इस एक्सपोजर के बाद महसूस हुआ कि मुझे भी इस तरह की फिल्में बनाने का प्रयास करना चाहिए। फिर मैंने फिल्म मेकिंग का कोर्स किया। उसके बाद फिल्मकार पैन नलिन के यहां काम करने लगी। ऑफिस असिस्टेंट से क्रिएटिव काम तक काफी काम किया। फिल्म ‘एंग्री इंडियन गॉडेसेज’ में पैन नलिन के साथ स्क्रिप्ट का सह लेखन किया। साठ देशों में रिलीज हुई इस फिल्म के लिए मैं ग्रोलश ऑडियंस चॉइस अवार्ड की उप विजेता थी। साल 2019 में पैन नलिन की फिल्म ‘द लास्ट शो’ में मैं मुख्य सहायक निर्देशक थी। यह फिल्म ऑस्कर सहित कई जगह पुरस्कृत हुई। तब तक मैंने अपनी फिल्म ‘सेकंड चांस’ की स्क्रिप्ट लिख ली थी और फिर बतौर निर्देशक इसे बनाने का निर्णय किया। यह तय था कि मैं इसे हिमाचल प्रदेश में वहां की ठेठ पहाड़ी संस्कृति में ही जाकर फिल्माऊंगी।

हिमाचली संस्कृति को समझने की उम्र में तो अब आप मुंबई आ गयी थीं?

हर इंसान के जीवन में कई पड़ाव होते हैं। एक बचपना होता है। फिर टीनएज की उम्र आती है,जब उसमें थोड़ा सा विरोध करने का स्वभाव आ जाता है। टीनएज उम्र में मैं मुंबई आ गयी थी। फिर एक पड़ाव आया, जब मुझे घर और पहाड़ों की बहुत याद आयी। तो मैं लंबे लंबे समय के लिए हिमाचल यानी कि पहाड़ों पर जाने लगी। वहां पर ट्रैकिंग की, स्थानीय कल्चर से जुड़ी। पर्यावरण के मुद्दों को समझा। इस कारण भी मैं अपनी पहली फिल्म हिमाचल प्रदेश में ही बनाना चाहती थी। मेरे मन में सवाल उठता रहा है कि हमारी हिमाचली फिल्में कहां हैं,जिनमें हमारे लोग,हमारी कल्चर,ठेठ पहाड़ीपना नजर आए। जिनकी कहानियां भी अथैंटिक रूप से हिमाचली हों।

अपनी फिल्म ‘सेकंड चांस’ के बारे में आप कुछ बताएंगी?

हमारी फ़िल्म उपचार और आशा के बारे में है। यह एक लड़की निया (धीरा जॉनसन ) के दर्द व उपचार की कहानी है। यह फिल्म इस बात की वकालत करती है कि हर इंसान को जिंदगी में दूसरा मौका मिलता है। इसकी कहानी दिल्ली की 25 वर्षीय डांसर निया की है। वह कबीर (सूर्य आनंद) से प्यार करती है। उसे पता चलता है कि वह गर्भवती है। पर बच्चे का जैविक पिता कबीर निया का फोन उठाना बंद कर देता है। वह अकेली पड़ जाती है। अपने माता-पिता को इस बारे में बताना नहीं चाहती। अब उसे एकांत चाहिए। वह अपने उपचार के लिए हिमाचल प्रदेश में अपने पैतृक घर पहुंचती है,जहां केअर टेकर राजू, उसकी वृद्धा सास भेमी व सात साल का बेटा सनी हैं। निया गर्भपात की दवाइयां खा लेती है,जिससे ज्यादा रक्त स्राव होता है। अब डाक्टर को बुलाने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। भेमी उसे आश्वस्त करती है कि यह सब राज़ ही रहेगा। अंततः निया अपनी जिंदगी को दूसरा मौका देने के लिए दिल्ली के लिए रवाना हो जाती है। इस फिल्म को हिमाचल के नग्गर और लाहौल में -20 डिग्री तापमान में फिल्माया गया।

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