कई पीढ़ियों से हासिल योग की विरासत को समृद्ध करने वाले योग गुरु लालजी महाराज पिछले पांच दशक से योग के जरिये मानवता के कल्याण में रत हैं। वे योग की सरल, सहज और सर्वस्वीकार्य विधाओं के जरिये जीने का सलीका सिखा रहे हैं। कैसे योग की विधाएं आसन, षट्कर्म क्रियाएं,प्राणायाम व मेडिटेशन आपके जीवन में बदलाव लाकर आपको ऊर्जावान व स्वस्थ बना सकती हैं, इन्हीं मुद्दों पर उनसे हुई अरुण नैथानी की लंबी बातचीत के चुनिंदा अंश।
पीढ़ियों की विरासत
मेरी उम्र करीब आठ वर्ष की रही होगी। थोड़ा ही होश संभाला था। पिताजी ब्रह्मलीन स्वामी देवीदयाल जी अपने समय के प्रतिष्ठित योगी थे। उस समय योग की चर्चा बहुत कम होती थी। पिताजी के गुरु योगेश्वर मुल्खराज थे जो हरिद्वार में रहते थे। उनके गुरु महाराज रामलाल जी 135 साल पहले संसार में आये थे। वे योग, ज्योतिष व आयुर्वेद के गजब के जानकार थे। तो कह सकता हूं कि योग के जरिये मानवता की सेवा सवा सौ साल से अधिक समय से चल रही है जिससे लाखों लोगों को लाभ हुआ। योग पर हमारा अटूट विश्वास है,अब तो भारत सरकार भी, कहें तो पूरी दुनिया भी कह रही है, विश्व स्वास्थ्य संगठन कह रहा है कि योग वास्तव में अद्भुत विद्या है। जो भारत में जन्मी और पनपी है। इस यात्रा में महाराज रामलाल प्रभु जी का भी योगदान है। उन्होंने योग का सरलीकरण किया। निस्संदेह योग तो बहुत प्राचीन विद्या है। वेद ले लीजिए, उपनिषद लीजिए। गीता उठाओ तो सारा योग है। हमारे हर ग्रंथ में योग का जिक्र है। बीमारियों से लड़ने के लिये गजब का शस्त्र है।
योग यात्रा की शुरुआत
आठ वर्ष की आयु से शुरू कर दिया था। पिताजी लेक्चर देते थे तो मैं योग-आसनों का प्रदर्शन करता था। उस समय यह करने वाला कोई नहीं था तो उन्होंने मुझे सिखा दिया। बाद में पढ़ाई के साथ-साथ और योगियों का सान्निध्य मिला। योग से जुड़ी किताबें पढ़ीं। मसलन हठ प्रदीपिका, घेरंड संहिता, योग वशिष्ठ गौरक्ष संहिता- ये सभी शास्त्र मैंने लगभग सारे पढ़े। भक्तिसागर है भक्तचरण दास का, उन्होंने अष्टांग योग का विशद वर्णन किया है। योग का पहला पाठ भगवान शिव ने दिया। शिव संहिता सांसों का विज्ञान बताती है। शिव स्वरोदय में सांसों के बारे में गजब की जानकारी है। अष्टांग योग का महर्षि पतंजलि ने विस्तृत वर्णन किया है।
स्वतंत्र पारी की शुरुआत
वर्ष 1968 में जर्मनी की यात्रा पर गया। पहले दिल्ली से बंबई ट्रेन से फिर बंबई से बसरा समुद्री जहाज से। फिर यूरोप में जर्मनी गया। वहां महान योगी रहते थे स्वामी देवमूर्ति जी महाराज। उनके साथ जर्मनी में दो साल रहने का मौका मिला। वहीं से मुझे लगा कि योग ही मेरे जीवन का लक्ष्य है। पहले सोचता था कोई काम-धंधा करूंगा यूरोप में। वहीं कहीं बस जाऊंगा। मैंने देखा वहां महाराज से मिलने वालों का मेला लगा है। वे योग सिखाते थे। मेरे पिताजी भी योग सिखाते थे। मैंने कहा ये तो मैं जानता हूं। तो नौली क्रिया वगैरह उनसे सीखी। दूरदर्शन पर सबसे पहले मैंने ही यह दिखाया। 1975 में योग मेरे नाम से होता था दूरदर्शन पर, स्वामी लालजी महाराज का योग। मैंने शुरुआत की थी अमृतसर टीवी पर। कार्यक्रम पाकिस्तान तक जाता था।
आपके परिवार की योग की गौरवशाली विरासत रही, आपने उसका संवर्धन किया। फिर आप योग के परिदृश्य में बड़ी उपस्थिति क्यों नहीं दर्ज करा पाये? क्या ये बाजार का खेल था या और कुछ?
- दरअसल, हमारे बाद योग में आने वाले करोड़पति हो गये, फेमस हो गये। हम वहीं के वहीं योग में लगे रहे। पिताजी त्यागमूर्ति थे। उन्होंने लिखा हुआ था कि कोई पैसा नहीं लेना किसी से योग के लिये। पिताजी ने उस दौरान आयुर्वेद की जड़ी-बूटी देना शुरू किया। उससे उनका खर्चा निकल जाता था। वो मैंने बाद में शुरू किया। दिल्ली सरकार में एडवाइजरी बोर्ड का मेंबर रहा हूं मैं। आयुष मंत्रालय में एडवाइजर रहा हूं। योग का भी और प्राकृतिक चिकित्सा का भी, मंत्रालय ने नियुक्त किया। मैं कभी राजनीतिक मदद लेने नहीं गया। प्रभु ने कभी भूखा नहीं सुलाया। बाईस देशों में गया हूं। जेब में एक पैसा नहीं होता था। ये भी तो प्रभु की कृपा है। यूरोप के पंद्रह देशों, मिडिल ईस्ट, सिंगापुर, जॉर्डन, कनाडा, अमेरिका तक गया। ये समझ लो कि 1968 से 1918-19 तक मेरी यात्राएं चलती रही।
सेहत की कुंजी आपके हाथ
- मैं कहना चाहूंगा लोगों से कि अंधाधुंध दवाई लेना बंद करो। यदि आपका पेट खराब है तो पानी पीकर बाहर निकाल दो। दस मिनट में ठीक हो जाओगे, कहीं डाक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं है। ऐसा ही आपको गैस बन रही है, कब्ज है, उसके लिए शंख प्रक्षालन करो। चाहे कितनी पुरानी कब्ज हो ठीक हो जायेगी। एसिडिटी हो तो वमनधोती से ठीक कर लें। टॉक्सिन, दूषित हवा व गैस निकल जाती है। सिरदर्द ठीक हो जाता है। मधुमेह नियंत्रित होता है। बीपी नहीं बढ़ता। कोलेस्ट्रोल नहीं बढ़ता।
कपालभाति षट्कर्म की क्रिया है या प्राणायाम?
- आपका प्रश्न महत्वपूर्ण है। करोड़ों लोग इस बारे में ज्यादा भ्रमित हो गये। कपालभाति किसी भी दृष्टि से प्राणायाम नहीं है। कपाल का मतलब है माथे का क्षेत्र। प्राणायाम के बारे में महर्षि पतंजलि ने कहा- प्राण में, श्वास-प्रश्वास के बीच में गतिरोध प्राणायाम है। सांसों को रोकना है।
विश्व योग दिवस से क्या बदला
विश्व योग दिवस बनने के बाद योग का परिदृश्य कितना बदला है?
- स्थिति ठीक नहीं है। हमने योग का मूल स्वरूप नहीं अपनाया। बल्कि और विकृति ज्यादा बढ़ी है। योग का व्यवसायीकरण हो गया। तभी बदलाव नहीं आया।
समय इंटरनेट, टीवी मोबाइल का है, आदमी भ्रमित है। कैसे योगमय जीवन जी सकता है?
- भगवान कृष्ण से यही प्रश्न अर्जुन ने किया था। देखिए भगवान ने कहा कि अभ्यास व वैराग्य से ये चंचल मन काबू में आता है। अभ्यास मतलब साधना, घंटा-डेढ़ घंटा लगाओ। प्राणायाम व आसन करें। उम्र के हिसाब से वैराग्य का मतलब ये है कि कोशिश करो कि संसार से थोड़ा हटो।
गुस्से पर काबू कैसे हो?
- गुस्सा किसको आता है? जो करना तो बहुत कुछ चाहता है, लेकिन कुछ कर नहीं पाता। कोई सुनता नहीं है। नियंत्रण के लिये साधना करो। स्वाध्याय करो। ध्यान लगाओ। आसन-प्राणायाम करना चाहिए, क्षमता व आयु के हिसाब से। जैसा खाओगे अन्न वैसा होगा मन। मेरा कहना है कि वैसा होगा तन। योग दिवस का संदेश यह है कि वास्तविक योगियों को तलाशें। जिन्होंने साधना करके शरीर को साधा हो।
प्राणों को आयाम देना प्राणायाम
जब तक प्राण है तो हम हैं। लेकिन हमने कभी ध्यान नहीं दिया कि कब सांस ले रहे हैं, कब छोड़ रहे हैं। कितना ले रहे हैं। धारणा ये है कि ध्यान लगाने की कोशिश कर रहे हो, मगर मन नहीं लग रहा। ध्यान है कि लग रहा थोड़ी देर के लिये। समाधि है कि आत्मा के साथ एकरस हो गये।
योग में क्या करें
योग में आसन महत्वपूर्ण हैं। जितने जीव जन्तु हैं, उतने आसन भी हैं। उन्हें देखिए बिना दवाई के भी ठीक रहते हैं। प्राकृतिक तरीके से उपचार करते हैं। शुद्धि क्रियाएं हैं। इन्हें षट्कर्म भी कहते हैं। बंध हैं। मुद्राएं हैं। ध्यान है। धारणा है। समाधि है। शुरुआत यम नियम से है। कहते हैं मन-वचन-कर्म से किसी को दुख दे दिया तो आप योगी नहीं हो सकते। यदि योग करोगे भी तो लाभ नहीं होगा। अस्तेय, शौच, अपरिग्रह, संतोष, तप, स्वाध्याय व ईश्वर प्राणिधान। ये जब पूरे होंगे तब योग होगा। लोग ध्यान नहीं देते। कई विश्व योग दिवस हो चुके हैं। कभी इसके बारे में चर्चा नहीं होती।