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निरोगी और आनन्दमयी जीवन की कुंजी हस्त-मुद्राएं

हिमालय सिद्ध अक्षर बताते हैं कि मुद्राएं योग की अनेक तकनीकों में से एक हैं, जो शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक शांति और आध्यात्मिक आनंद प्राप्त करने के लिए प्रयोग की जाती हैं। इस अद्भुत विज्ञान के जरिये हम निरोगी और आनन्दमय...
रूद्र मुद्रा
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हिमालय सिद्ध अक्षर बताते हैं कि मुद्राएं योग की अनेक तकनीकों में से एक हैं, जो शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक शांति और आध्यात्मिक आनंद प्राप्त करने के लिए प्रयोग की जाती हैं। इस अद्भुत विज्ञान के जरिये हम निरोगी और आनन्दमय हो सकते हैं।

मनुष्य के भीतर यह सामर्थ्य है कि जीवन में स्वास्थ्य, शांति एवं पूर्णता हासिल कर सके और अपने जीवन में शुभता को आकर्षित कर सके। यह सब कुछ हमारे अपने हाथों की उंगलियों पर निर्भर करता है। मुद्रा विज्ञान की यह यात्रा प्राचीन योग परंपराओं में से एक गहन अंतर्दृष्टि के रूप में विकसित की गई है।

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सेहत के समृद्ध ज्ञान की विरासत

भारतीय समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में अनेक शताब्दियों पूर्व, हमारे ऋषि-मुनियों ने ब्रह्मांड को विकसित करने वाले तत्वों के विषय में अद्भुत और विलक्षण ज्ञान अर्जित किया। ये महापुरुष असाधारण क्षमताओं से युक्त थे, जिन्हें आज हम महर्षि और सिद्ध पुरुषों के नाम से जानते हैं। उनके लिए उनका अवचेतन मन ही प्रयोगशाला था, और उनके प्रयोगों का विषय था ब्रह्मांड के रहस्य। ऋषि-मुनियों ने गहन तप, अटूट ध्यान, और अपने नश्वर शरीर पर संपूर्ण विजय प्राप्त कर, जीवन के सत्य को उद्घाटित किया। वे हमारे लिए अनेक शास्त्रों का खजाना छोड़ गए। एक ऐसी विरासत, जिसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी गुरु-शिष्य परंपरा के माध्यम से आगे बढ़ाया गया।

उन्होंने अनेक विषयों के पीछे छिपे वैज्ञानिक सिद्धांतों को खोजा, उन्हें शास्त्रों में लिपिबद्ध किया, और मानवता को पूर्णता से जीने के उपाय बताए। इन्हीं शास्त्रों में कुछ ऐसे उपाय हैं यदि उन्हें हम अपने जीवन में अपनाएंगे, तो उनसे शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक संतुलन, भावनात्मक स्थिरता, और आध्यात्मिक शांति हासिल की जा सकती है। हमारी यह यात्रा हमें हजारों वर्ष पूर्व के सूक्ष्म लोक, महाहिमालयों की दिव्य गोद में ले जाती है, जहां भगवान शिव, माता पार्वती के समक्ष सप्त ऋषियों की उपस्थिति में गहन संवाद में लीन थे। इसी संवाद में भगवान शिव ने योग के रहस्यों और ऐसे अनेक सूत्रों का उद्घाटन किया, जिनका अनुसरण करने से कोई भी मानव उन्नति की उच्चतम अवस्था तक पहुंच सकता है।

ज्ञानोदय की अलौकिक अनुभूति

यहीं से आरंभ हुई महर्षियों और योगियों द्वारा मानव शरीर, उसके सूक्ष्म संचालन तन्त्र और जीवन को परिष्कृत करने के तरीकों की खोज—जिसका उद्देश्य केवल स्वास्थ्य नहीं, बल्कि परमबोध (ज्ञानोदय) प्राप्त करना था। प्राचीन ग्रंथों जैसे — शिव संहिता, हठयोग प्रदीपिका, घेरंड संहिता, पतंजलि योग सूत्र आदि से हमें एक अमूल्य कला सिखाई गई है — जिसे हम योग कहते हैं।

संपूर्णता की ओर यात्रा

योग, संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ है — जोड़ना, एकत्व में लीन होना, अथवा समरसता में विलीन हो जाना। इस शब्द का सच्चा अर्थ यही है — संपूर्णता की ओर यात्रा। ‘योग’ एक ऐसा अनुभव है जो केवल शब्दों तक सीमित नहीं है— यह स्थूल सीमाओं से परे है, एक अलौकिक अनुभूति है। सामान्य रूप से, हम इसे इस रूप में समझ सकते हैं कि यह हमारी आत्मा का ब्रह्मांड से एकाकार हो जाना है। योग जैसे विस्तृत और विराट विषय में अनेक शास्त्र सम्मिलित हैं, जिनमें आसन, मुद्रा, प्राणायाम और ध्यान के गूढ़ रहस्य समाहित हैं। ये सभी विधियां मानव शरीर, मन और अंत:चेतना पर संपूर्ण अधिकार पाने के लिए विकसित की गई सूत्र प्रणाली हैं।

हस्त मुद्राओं का विज्ञान

हस्त-मुद्रा वे हस्त-संकेत हैं, जो हमारे हाथों से बनाए जाते हैं। हस्त मुद्राओं का विज्ञान बताता है कि ये हमारे शरीर की आंतरिक कार्यप्रणाली को कैसे प्रभावित करते हैं, और इस अभ्यास से कौन-कौन से लाभ प्राप्त होते हैं। इस दिव्य ज्ञान का परम उद्देश्य यह है कि इसे अपने जीवन में अपनाकर हम स्वास्थ्य को प्राप्त करें और अपने अस्तित्व में सकारात्मक चेतना का प्रसार कर सकें।

पंचमहाभूतों से निर्धारित जीवन

दरअसल, मानव शरीर के स्वरूप का योगिक दृष्टिकोण समझने की आवश्यकता है। इस संपूर्ण ब्रह्मांड की रचना पांच मूलभूत तत्वों से हुई है : आकाश ,वायु, अग्नि ,जल व पृथ्वी। ब्रह्मांड में विद्यमान हर वस्तु इन पांच तत्वों के विभिन्न अनुपातों और संयोजनों से बनी है। ठीक उसी प्रकार, मानव शरीर भी इन्हीं मूल तत्वों का संयोग है।

अथर्ववेद का अंग माने जाने वाले ग्रंथ गर्भ उपनिषद में, जिसे महर्षि पिप्पलाद ने रचित किया है, हमें मानव शरीर की संरचना का स्पष्ट वर्णन प्राप्त होता है। इस उपनिषद के आरंभिक श्लोकों में वे मानव शरीर का विवरण देते हैं। जिसका सरल और संक्षिप्त रूप में इस प्रकार है- जो शरीर को संरचना देता है, वह है पृथ्वी तत्व। जो शरीर में तरलता और द्रव के रूप में विद्यमान है, वह है जल तत्व। जो शरीर में उष्मा और ताप उत्पन्न करता है, वह है अग्नि तत्व। जो शरीर में गति और संचार करता है, वह है वायु तत्व। और जिसमें यह सब कुछ स्थित होता है, वह है आकाश तत्व। इन सभी तत्वों की उपस्थिति मानव शरीर के भीतर एक सूक्ष्म संतुलन के रूप में होती है, और प्रत्येक का अपना विशिष्ट कार्य और क्षमता है।

मुद्राएं और इनके कार्य का तरीका

संस्कृत भाषा में ‘मुद्रा’ का शाब्दिक अर्थ होता है - बांधना या जोड़ना। मुद्राएं कई प्रकार की होती हैं - काय मुद्रा, बंध मुद्रा, आधार मुद्रा, मन मुद्रा और हस्त मुद्रा।कल्पना कीजिए एक विद्युत सर्किट की, जब उसके दोनों सिरे जुड़ जाते हैं, तो करंट के प्रवाह के लिए मार्ग तैयार हो जाता है। ठीक वैसे ही, जब हमारी उंगलियों के सिरे आपस में मिलते हैं, तो हमारे भीतर की ऊर्जा का प्रवाह सक्रिय हो जाता है। प्रत्येक अलग संयोजन के साथ एक अलग मार्ग बनता है, जिससे अलग-अलग परिणाम प्राप्त होते हैं।

पांच तत्वों की प्रतिनिधि

मानव हाथ की प्रत्येक उंगली पर पांच तत्वों में से एक का शासन होता है। अंगूठे पर अग्नि तत्व का नियंत्रण होता है। तर्जनी उंगली वायु तत्व द्वारा शासित होती है। मध्यमा उंगली आकाश तत्व को दर्शाती है। अनामिका पर पृथ्वी तत्व का प्रभाव होता है और कनिष्ठा उंगली जल तत्व से संबंधित होती है।

अग्नि तत्व में शरीर के अन्य चार तत्वों को नियंत्रित करने की क्षमता होती है। अग्नि तत्व का स्थान अंगूठे में होता है। उंगलियों की विभिन्न स्थितियों के माध्यम से हम शरीर के भीतर इन पांचों तत्वों के प्रभाव को बढ़ा सकते हैं, घटा सकते हैं या संतुलित कर सकते हैं।

तत्वों की शक्ति का नियंत्रण

जब किसी भी उंगली का सिरा अंगूठे की जड़ से छूता है, तब उस उंगली से संबंधित तत्व का प्रभाव शरीर में कम हो जाता है। जब अंगूठे का सिरा, किसी भी उंगली की जड़ से छूता है, तब उस तत्व की शक्ति शरीर में बढ़ जाती है।

जब अंगूठे और किसी भी उंगली के सिरे आपस में मिलते हैं, तब उस तत्व का प्रभाव शरीर में संतुलित होता है। और जब पांचों उंगलियों के सिरे एक साथ मिलते हैं, तब शरीर की सर्वांगीण ऊर्जा में वृद्धि होती है। इस प्रकार, हमारे शरीर में बनने वाले यह ‘सर्किट्स’ शरीर के भीतर अनेक रासायनिक परिवर्तन लाने में सक्षम होते हैं। स्वास्थ्य की क्षमता हमारे अपने शरीर के भीतर ही निहित है। यदि हम अपने पूर्वजों — प्राचीन समय के वैज्ञानिकों, ऋषियों, मुनियों और सिद्धों — द्वारा खोजी गई और लिपिबद्ध किये गये इस अद्भुत ज्ञान को अपनाएं, तो हम एक स्वस्थ, शारीरिक व मानसिक पीड़ाओं से मुक्त जीवन का आनंद ले सकते हैं।

मन मंदिर में अनंत शक्ति

शरीर मंदिर है,मन उसका गर्भगृह( पवित्रतम स्थान),आत्मा वह अनंत शक्ति है, जो उसके भीतर वास करती है। जब शरीर स्वस्थ होता है, तब मन निर्भार होता है। जब मन शुभता व सकारात्मकता से भरा होता है, तब आत्मा कल्पनाओं से परे ऊंचाइयों तक पहुंच सकती है।

मुद्राएं योग की अनेक तकनीकों में से एक हैं, जो शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक शांति और आध्यात्मिक आनंद प्राप्त करने के लिए प्रयोग की जाती हैं। इस अद्भुत विज्ञान के जरिये हम निरोगी और आनन्दमय हो सकते हैं।

                    -योग गुरु हिमालय सिद्ध अक्षर से हुई अरुण नैथानी की बातचीत पर आधारित।

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