कोविड-19 की दूसरी लहर ने हाहाकार मचा दिया है। लाखों लोगों की जान चली गयी और करोड़ों लोग इससे जूझ रहे हैं। महामारी को लेकर खौफ के इस माहौल में कहा जा रहा है कि तीसरी लहर भी आ सकती है। बेशक वैक्सीन लगाने की प्रक्रिया भी चल रही है, लेकिन इसकी गति अभी धीमी है। भारत में कोरोना महामारी की वर्तमान स्थिति, भविष्य की चुनौती, वैक्सीनेशन और इससे जुड़े अन्य पहलुओं पर देश के शीर्ष विशेषज्ञों का क्या कहना है, बता रही हैं अदिति टंडन
‘… तो बच सकते हैं अगली लहर से’
नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) एवं कोविड-19 वैक्सीन कार्यबल पर राष्ट्रीय विशेषज्ञ समूह के चेयरमैन वीके पॉल तीसरी लहर के सवाल पर कहते हैं, ‘हम अब भी सार्स सीओवी-2 वायरस की गतिशीलता के बारे में सीख रहे हैं। हमने कई भौगोलिक क्षेत्रों में देखा है कि महामारी कई लहरों में आती है क्योंकि आबादी का एक हिस्सा, जो इससे अछूता और असुरक्षित रहता है, वहां वायरस हमला कर सकता है और एक नया प्रकोप पैदा कर सकता है। भविष्य में तीसरी लहर की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। हालांकि, अगर हर कोई कोविड से जुड़े सुरक्षात्मक नियमों का पालन करे और अधिक से अधिक लोगों को वैक्सीन लगे तो तीसरी लहर की आशंका को कम किया जा सकता है। तकनीकी रूप से सर्वोत्तम और व्यापक प्रयासों से तीसरी लहर से बचा जा सकता है। ऐसे भी देश हैं जिन्होंने दूसरी लहर का ही अनुभव नहीं किया।’ म्यूटेंट को अत्यधिक चिंता का विषय बताते हुए पॉल कहते हैं, ‘वायरस म्यूटेंट अधिक संचारित होते हैं और गंभीर बीमारी का कारण बनते हैं या टीके के प्रभाव को बेअसर करते हैं। वायरस की जानकारी को एकत्र करने के लिए राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं का एक संघ बनाया गया है। इस मामले में 25 हजार से अधिक अनुक्रमण डाटा उपलब्ध है। इससे वेरिएंट के बारे में पता चलता है। सरकार प्रयास कर रही है कि जल्द ही हर महीने 25,000 से अधिक आइसोलेट्स को सीक्वेंस करना संभव हो सके। लगता है कि वर्तमान लहर वेरिएंट के कारण ज्यादा घातक हुई है। महामारी चरम पर कब होगी, इसका अंदाजा लगाना कठिन है। सामान्यत: दो सप्ताह का चरम मृत्युदर ही पीक होता है। साथ ही यह ध्यान भी रखना होगा कि न्यूनतम तक पहुंचने में कई सप्ताह लगेंगे।’ वैक्सीन की कमी के बारे में पॉल कहते हैं, ‘हमने सबसे तेजी से 20 करोड़ खुराक दी हैं। यह उपलब्धि और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हमारे प्रयास पूरी तरह से ‘मेड इन इंडिया’ टीकों द्वारा संचालित हैं। यह कवरेज अब तक अमेरिका की आधी आबादी, रूस की पूरी आबादी और यूके की आबादी का 2.5 गुना है। हम जुलाई के बाद महत्वपूर्ण तेजी की उम्मीद करते हैं, जब कोविशील्ड और कोवैक्सीन का तेजी से उत्पादन शुरू होगा। इसके बाद, जैविक ई और सीरम संस्थान (कोवोवैक्स) द्वारा बनाए गए नए टीके उपलब्ध होने की उम्मीद है।’ ब्लैक फंगस की बात पर पॉल कहते हैं, ‘म्यूक्रोमाइकोसिस एक फंगस (म्यूकोर) के कारण होता है। कोविड के मामलों में देखा गया है कि यह व्यावहारिक रूप से उन लोगों तक ही सीमित है जिन्हें मधुमेह (विशेषकर अनियंत्रित) है और उन्हें स्टेरॉयड दिया गया। मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति को कोविड के दौरान स्टेरॉयड देना पड़ता है जो कई बार इस बीमारी का कारण बनता है। यह संक्रमण नाक, मस्तिष्क पर दुष्प्रभाव डालते हुए दृष्टि पर भी असर डालता है। कोविड बीमारी के शुरुआती सात दिनों तक स्टेरॉयड को नहीं दिया जाना चाहिए। मरीज के आसपास नमी नहीं होनी चाहिए। ऑक्सीजन ह्यूमिडीफायर को डिस्टिल्ड वाटर से भरा जाना चाहिए ताकि फंगस लगने की आशंका न रहे। जल्दी ही इसका पता लगाने और सर्जिकल इलाज करने की जरूरत है।’ वीके पॉल कहते हैं कि वैक्सीन उत्पादन को अधिकतम क्षमता तक बढ़ाने और टीकाकरण तेज़ करने के लिए संबंधित उद्योग का साथ देना होगा और प्रत्येक वयस्क को टीका लगाना होगा।
‘ज्यादा सजग रहना होगा’
एम्स, नयी दिल्ली के निदेशक एवं कोविड-19 पर बनी नेशनल टास्कफोर्स के सदस्य डॉ. रणदीप गुलेरिया कहते हैं, ‘जैसे-जैसे कोविड के मामले बढ़ रहे हैं, हमें अस्पतालों में संक्रमण नियंत्रण के लिए ज्यादा सजग होना होगा। साथ ही कोविड प्रोटोकॉल को सुनिश्चित करने की आवश्यकता है क्योंकि दूसरी तरह के संक्रमण, दोनों- बैक्टीरियल एवं फंगल देखे जा रहे हैं और इससे रुग्णता और मृत्यु दर बढ़ रही है। म्यूक्रोमाइकोसिस नयी चुनौती बनकर उभर रहा है। प्री-कोविड, इस फंगल संक्रमण की घटना कम थी और यह एक दुर्लभ संक्रमण था, जो केवल ट्रांसप्लांट, मधुमेह और कैंसर रोगियों की कीमोथेरेपी के बाद देखा गया था। लेकिन अब कोविड के उपचार के कारण भी इसके कई मामले सामने आ रहे हैं। कुछ राज्यों में करीब 500 से भी ज्यादा केस आये हैं। यह चेहरे, आंखों और यहां तक कि दिमाग को भी प्रभावित करता है। अब हम अधिक मामले देख रहे हैं क्योंकि अनियंत्रित मधुमेह वाले कई लोग और स्टेरॉयड के तर्कहीन उपयोग के कारण यह संक्रमण हो रहा है। हम लोगों को सुझाव देंगे कि यूं भी अपने ब्लड शुगर लेवल की जांच कराते रहें क्योंकि कोविड के उपचार के दौरान स्टेरॉयड के उपयोग से यह 400 तक बढ़ सकता है। इस संक्रमण का शीघ्र पता लगना ही इसका बेहतरीन उपचार है। हमें बहुत सावधान रहना होगा।
कम सप्लाई होने पर वैक्सीनेशन की कितनी चुनौतियां हैं, पूछने पर गुलेरिया कहते हैं, ‘करीब दो महीने में बड़ी मात्रा में टीके उपलब्ध हो जाएंगे क्योंकि कंपनियां नयी सुविधाओं के ज़रिए निर्माण शुरू करेंगी। आगामी कुछ सप्ताह में नयी कंपनियों से भी भारत में वैक्सीन आ जाएंगी। आपूर्ति की स्थिति में सुधार होगा, लेकिन मुझे अभी भी लगता है कि बुजुर्गों और रोगग्रस्त लोगों को पहले कवर किया जाना चाहिए क्योंकि उनकी मृत्यु दर अधिक है। कई वैक्सीन के बीच हम जॉनसन एंड जॉनसन वैक्सीन के आने की उम्मीद भी कर रहे हैं जिसकी एक ही डोज लगेगी। अभी कम उम्र के लोगों की वैक्सीन बुकिंग को थोड़ा आगे बढ़ाया जा सकता है, पहले बुजुर्गों और बीमार लोगों को लगाया जाना जरूरी है।’
कोविशील्ड की दूसरी डोज़ को 12 से 16 सप्ताह आगे किए जाने के मामले में गुलेरिया कहते हैं, ‘डाटा बताता है कि जिन लोगों ने चार सप्ताह से कम समय में कोविशील्ड लिया, उनमें 55 से 60 पीसी की सीमा में प्रतिरक्षा मिली, जबकि 12 सप्ताह के बाद टीका लेने वालों को 80 से 85 पीसी की सीमा में प्रतिरक्षा मिली। खुराक अंतराल बढ़ाने का निर्णय वैज्ञानिक है।’ वह कहते हैं कोविड के लिए बनाई गयी गाइड लाइंस का पालन, स्थानीय कंटेनमेंट और तेजी से टीकाकरण ही बचाव है।