सोने जैसी आभा वाला लोहे का पुल
गुजरात के भरुच और अंकलेश्वर को जोड़ने वाला ऐतिहासिक गोल्डन ब्रिज न केवल इंजीनियरिंग का चमत्कार है, बल्कि क्षेत्र की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का प्रतीक भी रहा है। 144 वर्षों तक सेवा देने के बाद अब यह पुल हमेशा के लिए बंद कर दिया गया है। नर्मदा के तट पर स्थित यह पुल कई पीढ़ियों की यादों का हिस्सा है।
प्राचीन तीर्थस्थल भरुच शहर। जिसे भरुच, भरौंच, भड़ोंच, ब्रोच आदि अनेक नामों से पुकारा गया है। रेलवे स्टेशन पर आज भी शहर का नाम हिन्दी में ‘भड़ोंच’ और गुजराती में ‘भरुच’ लिखा हुआ है। गुजरात का यह क्षेत्र, जो नर्मदा जिले के अंतर्गत आता है, प्राचीन काल में ‘भृगुक्षेत्र’ के नाम से प्रसिद्ध था। ऐसा माना जाता है कि यह महर्षि भृगु की भूमि है और यहां उनका आश्रम स्थित था।
नर्मदा नदी के दूसरे तट पर स्थित ‘अंकलेश्वर’ शहर एशिया के एक प्रमुख औद्योगिक नगर के रूप में जाना जाता है। नर्मदा नदी को पार करने हेतु भरुच में पुल निर्माण का विचार ब्रिटिश सरकार द्वारा किया गया था, ताकि मुंबई में स्थित व्यापार के लिए और प्रशासनिक अधिकारियों के आवागमन में सुविधा हो सके।
इस पुल का निर्माण कार्य 7 दिसंबर, 1877 को प्रारंभ हुआ और 16 मई, 1881 को पूरा हुआ। इस पुल पर उस समय 45 से 65 लाख रुपये की लागत आई थी। इतने अधिक खर्च के कारण इसे ‘गोल्डन ब्रिज’ कहा जाने लगा। कहा जाता है कि उस समय की लागत से तो यह पुल ‘सोने’ का बन सकता था। निर्माण के दौरान अनेक बार नर्मदा के तेज जल प्रवाह के कारण बाधाएं आईं, पुल का ढांचा कई बार ध्वस्त भी हुआ, परंतु अंततः यह तैयार हुआ। आजादी के बाद यह पुल राष्ट्रीय राजमार्ग का हिस्सा रहा, लेकिन नए राष्ट्रीय राजमार्ग बनने के बाद इस पर भारी वाहनों की आवाजाही प्रतिबंधित कर दी गई।
यह लोहे का पुल ब्रिटिश इंजीनियर सर जॉन हॉकशॉ द्वारा डिज़ाइन किया गया था। इसकी लंबाई 1412 मीटर है और इसे टू-लेन ब्रिज कहा गया। 18 मई, 1881 को इसे आम जनता के लिए खोल दिया गया। हाल ही में इसके समानांतर एक नया फोरलेन ब्रिज निर्माणाधीन है।
गोल्डन ब्रिज लोहे से निर्मित है, परंतु निर्माण के पश्चात इसे सुनहरे रंग से रंगा गया था। अंकलेश्वर की ओर से पुल का दृश्य अत्यंत आकर्षक दिखता है, विशेषकर शाम के समय सूर्यास्त का दृश्य देखने अनेक यात्री वहां ठहरते हैं।
नर्मदा नदी के जल में समुद्र के जल के प्रभाव के कारण जल की गुणवत्ता में परिवर्तन होता रहा है। समय-समय पर किए गए निरीक्षणों में यह पाया गया कि पुल के स्तंभों में कहीं-कहीं जंग लगने के लक्षण दिखाई देने लगे हैं। यातायात की बढ़ती मांग को देखते हुए नर्मदा नदी पर इस क्षेत्र में अन्य पुल बनाए गए हैं, फिर भी यह ऐतिहासिक पुल आज भी अपनी महत्ता बनाए हुए है।
वर्ष 2024 के दिसंबर माह में इस पुल पर यातायात पूरी तरह से बंद कर दिया गया। दोनों छोरों पर गेट लगाकर प्रवेश निषिद्ध कर दिया गया है।
भरुच में नर्मदा नदी का जलस्तर समय-समय पर बढ़ता रहा है, जिससे पुल को अस्थायी रूप से बंद करने का प्रस्ताव पहले भी आता रहा है। केवड़िया के पास स्थित सरदार सरोवर बांध, जिसका निर्माण कार्य वर्ष 2006 में पूरा हुआ, का उद्देश्य गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान को पानी और ऊर्जा प्रदान करना था। यह बांध लगभग 56 वर्षों में बनकर तैयार हुआ। बांध से पानी छोड़े जाने के कारण भरुच में नर्मदा का जलस्तर अक्सर बढ़ जाता है।
आज यह पुल अपनी पूरी शान के साथ खड़ा है। भरुच का गौरव – ‘गोल्डन ब्रिज’, क्षेत्रीय इतिहास, दैनिक जीवन और इंजीनियरिंग की अद्भुत कहानी कहता है।