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गायन के टैलेंट पर छाया ग्लैमर की

गायिका का सज-संवर कर पब्लिक अपीयरेंस देना सही है। पर सिर्फ लुक से दर्शकों को प्रभावित करने की कोशिश से टैलेंट पर सवाल उठने शुरू हो जातेे हैं। इस दौर की कई नवोदित गायिकाएं गायन के बजाय ग्लैमर से चर्चा...
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फिल्म पार्श्व गायिका सुनिधि चौहान
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गायिका का सज-संवर कर पब्लिक अपीयरेंस देना सही है। पर सिर्फ लुक से दर्शकों को प्रभावित करने की कोशिश से टैलेंट पर सवाल उठने शुरू हो जातेे हैं। इस दौर की कई नवोदित गायिकाएं गायन के बजाय ग्लैमर से चर्चा में रहती हैं। जबकि पुराने दौर की गायिकाओं का ध्यान सिर्फ आवाज पर होता था।

असीम चक्रवर्ती

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बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री को ढेरों हिट गाने दे चुकी सुनिधि एक अरसे से अपने गैर-फिल्मी गायन के लिए चर्चा में हैं। उन्होंने 41 की उम्र में भी अपने ग्लैमरस लुक को मेंटेन रखा है। मगर उनके बाद की ज्यादातर गायिकाओं ने उनकी गायिकी के बजाय ग्लैमर को फॉलो किया है। यही वजह कि नवोदित प्रतिभाओं को गायिका कम, ग्लैमर गर्ल ज्यादा कहा जा रहा है।

लुक और परिधान पर जोर

एक मुलाकात के दौरान गायिका नेहा कक्कड़ काफी उत्साही नजर आई। वे काफी दिनों से एक नामी म्यूजिक कंपनी की चहेती गायिका हैं। उनकी लोकप्रियता का मुख्य आधार रीमिक्स गाने रहे। चैलेंजिंग गानों से वे हमेशा दूर रहीं। बावजूद इसके वह चर्चा में रहती हैं। वजह, उनका जबरदस्त लुक होता है,जो कई बार अतिरंजित लगता है। सज-संवर कर पब्लिक अपीयरेंस देना हर गायिका का हक है। पर जब वह सिर्फ लुक से दर्शकों को चौंकाने की कोशिश करती है, तो वे आकलन करने लगते हैं। इस होड़ में नेहा कक्कड़, अदिति कक्कड़,पलक मुच्छल के अलावा दिवानी भानुशाली,हर्षदीप कौर, तुलसी, नीति मोहन,कनिका कपूर, मोनाली ठाकुर, श्यामली, भूमि त्रिवेदी,जोनिता गांधी आदि गायिकाओं की लंबी फेहरिस्त है।

लुक अहम होता है

इस परिप्रेक्ष्य में हम यदि पुरानी गायिकाओं को याद करें, तो स्वर कोकिला लता मंगेशकर को तो ऐसी चर्चा से बहुत दूर रखना पड़ेगा। हमेशा उनके सादगी वाले लुक में सरस्वती का वास रहा। उनकी ही तरह गीता दत्त,सुमन कल्याणपुर,शमशाद बेगम व नये दौर की कविता कृष्णमूर्ति,अलका याज्ञिक,अनुराधा पौडवाल,साधना सरगम,श्रेया घोषाल आदि कई ऐसी गायिकाएं रही,जिनका सौम्य गेटअप रहा। जबकि उनकी समकालीन नूरजहां,सुरैया और उसके बाद की कुछ तारिकाओं को सजने का भी शौक था। लताजी की बहन आशा भोसले भी इस श्रेणी में हैं। पर इन सबने गायन में भी परचम लहराया।

ग्लैमर का तीर

मगर नये दौर की गायिकाएं इस मामले में उनसे काफी आगे हैं। नवोदित गायिका मोनाली ठाकुर को ही लें। वह टीवी पर कई बार दिखाई दी व कुछ फिल्मों में भी काम किया। उनका तर्क है, ‘मैं म्यूजिक को ही अपना कैरियर बनाना चाहती हूं। लेकिन बीच-बीच में टीवी या फिल्मों में काम कर लेती हूं। मौका मिले, तो हर्ज क्या है?’ दूसरी ओर पलक मुच्छल साफ कहती हैं, ‘यह दौर ग्लैमर का है, और शो वर्ल्ड में इसकी ही धाक चलती है।’ इस प्रसंग में गायिका सुनिधि चौहान बताती हैं, ‘लता जी हों या पुराने दौर की कोई भी गायिका, उनका ग्लैमर सिर्फ उनकी आवाज थी। उन्होंने अपनी आवाज की कशिश को किस तरह से मेंटेन किया रखा, यह जिज्ञासा का विषय बना रहेगा। जबकि हम भी रियाज करते हैं, पर हमारा ध्यान स्टाइल मेंटेन करने में भी खर्च होता है।’

परदे की परियों का गायन

फिल्मी इतिहास देखें, तो हमारे परदे की कई परियों की आवाज बहुत सुरीली थी, मगर इन्हें अपना गायन कभी भी फिल्मी पार्श्वगायन के अनुकूल नहीं लगा। बीते दौर की फेमस अभिनेत्री मीना कुमारी के गले में बहुत कशिश थी। लेकिन उन्होंने कभी पार्श्व गायन में ज्यादा रुचि नहीं दिखाई। उनके बाद आई नायिकाओं के हर दौर में कुछ की आवाज बहुत अच्छी थी, मगर इनमें अधिकांश ने सिर्फ एक्टिंग तक खुद को सीमित रखा। अब जैसे कि रेखा और इसके बाद प्रियंका चोपड़ा की आवाज बहुत अच्छी थी। नये दौर की नायिकाओं में परिणीति चोपड़ा, श्रद्धा कपूर, आलिया भट्ट की आवाज बहुत अच्छी है। कुछेक फिल्मों के लिए इन्होंने गाया भी है। मगर आमतौर पर फिल्मी पार्श्व गायन में रुचि नहीं दिखाई।

यह दिमागी उपज है

ढेरों हिट गानों की गायिका श्रेया घोषाल के मुताबिक, गायन और ग्लैमर को एक साथ जोड़ना कुछ संगीत व्यापारियों की दिमागी उपज है। वह कहती हैं, ‘ भारतीय संगीत की समृद्ध परंपरा रही है। यदि यहां किसी गायिका का कोई गाना उसके म्यूजिक वीडियो की वजह से श्रोताओं की जुबां पर चढ़ जाता है, तो इसका यह मतलब नहीं कि उसने अपनी सारी श्रेष्ठता साबित कर दी। इस मामले में लताजी हमेशा हम सबका आदर्श बनी रहेंगी।’ वहीं कविता कृष्णमूर्ति, अलका याज्ञिक, साधना सरगम, मधुश्री व रुचि शर्मा जैसी अधिकांश संजीदा गायिकाओं ने कई मौकों पर इसी तरह का विचार रखा।

शून्यता सी आ गई

लेकिन इस वजह से फिल्मी गायन में एक शून्यता नजर आ रही है। गीता दत्त, लता मंगेशकर, आशा भोसले आदि पुरानी महान गायिकाओं की परंपरा में कोई नया नाम जुड़ता नजर नहीं आ रहा। बीच में कविता कृष्णमूर्ति, साधना सरगम, अनुराधा पौडवाल, अलका याज्ञिक जैसी प्रतिभाशाली गायिकाएं सामने आईं, जिन्होंने अच्छा काम भी किया, मगर संगीत जगत की राजनीति ने इन्हें हाशिए पर धकेल दिया। फिल्म संगीत ग्लैमर की चपेट में है। देखते हैं यह अंधेरा कब छंटता है। फोटो : लेखक

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