दूसरों को दें जीवन का उपहार
मरीजों को जिंदगी देने का पीजीआई का भगीरथ प्रयास
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दैनिक ट्रिब्यून सरोकार
हर साल देश को करीब 50 हजार दिल, दो लाख किडनी और 50 हजार लिवर की जरूरत है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट व पीजीआई समेत अन्य मेडिकल संस्थाओं के शोध के अनुसार गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए प्रतिवर्ष 50 हजार फेफड़ों और 40-50 हजार लिवर और 2500 पेनक्रियाज (अग्नाश्ाय) की आवश्यकता होती है। अंग फेल होने की वजह से हर साल 3 लाख लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ती है। दस लाख लोगों में से 232 की जान किडनी नहीं मिलने की वजह से हर साल जाती है। हर साल 5 लाख लोगों को अंग प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है जबकि 52 हजार के करीब ही मिल पाते हैं। इसी तरह हर साल दो लाख कॉर्निया की जरूरत होती है जबकि 50 हजार ही उपलब्ध हो पाती है। इनमें प्रत्येक 4 में से 3 व्यक्ति आंखों की रोशनी पाने के लिए डोनेशन का इंतजार करते हैं। अंगदान कम होने के पीछे काफी मिथक भी हैं, जिन्हें समाज से दूर करने की आवश्यकता है। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार हर साल करीब 1.5 लाख लोग सड़क दुर्घटना में जान गंवाते हैं। डेढ़ से दो लाख लोगों की स्ट्रोक के कारण मौत हो जाती है, लेकिन ज्यादातर मृतकों के परिजन अंगदान के लिए अपनी सहमति नहीं देते। इसके बावजूद पीजीआई चंडीगढ़ देशभर में अंगदान कराने में नंबर वन है। पीजीआई चंडीगढ़ द्वारा मरीजों की जान बचाने के लिए भगीरथ प्रयास लगातार जारी हैं, जिनमें काफी सफलता भी मिल रही है। अंग प्रत्यारोपण के लिए पीजीआई को कई बार केंद्र सरकार द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है।
दधीचि महर्षि के जीवन से लें सीख
भारत महर्षि दधीचि जैसे ऋषि व शिबि जैसे राजा का देश है। असुरों से जन सामान्य की रक्षा हेतु महर्षि दधीचि ने अपना देहदान कर दिया था और राजा शिबि ने एक कबूतर के लिए अपने प्राणों का बलिदान करना स्वीकार किया था। एक ने असुरों से जन सामान्य की रक्षा के लिये अपनी अस्थियां दान की तो दूसरे ने शरणागत जीव के लिए बलिदान की ठानी। परंतु समय के साथ देश में अंगदान की प्रवृत्ति में गिरावट देखी गई है। निश्चित तौर पर अंगदान करके किसी अन्य व्यक्ति की जिंदगी में नई उम्मीदों का सवेरा लाया जा सकता है। दुनिया से विदा लेने के बाद भी इंसान जीवित रह सकता है और इसके लिए अमृत की जरूरत भी नहीं। बस! अंगदान जैसा पुण्य कार्य करना पड़ेगा। दरअसल, अंगदान के इंतजार में कई बेटे, कई पिता, कई माएं-बहनें, कई भाई और कई दोस्त जिंदगी की जंग हार जाते हैं। लेकिन व्यक्ति अंगदान कर मौत के बाद भी किसी अन्य को जिंदगी दे सकता है। दुनिया से जाने वाले जाने चले जाते हैं कहां, कैसे ढूंढे कोई उनको, नहीं कदमों के भी निशां... अंगदान ने इन वाक्यों को गलत साबित किया क्योंकि अंगदान के जरिये दुनिया से जाने के बाद भी कोई किसी के सीने में दिल बन धड़क रहा है तो कोई दूसरों की आंखों से दुनिया से जाने के बाद भी दुनिया देख रहा है।
इंतजार में मरीज
पीजीआई चंड़ीगढ़ में इस समय 3658 मरीजों को तुरंत किडनी की जरूरत है, लेकिन डोनर नहीं मिल रहे। डोनर के इंतजार में मरीजों का एक-एक दिन साल के बराबर बीत रहा है। अभी 62 को लिवर, एक दिल, 74 पैनक्रियाज और एक मरीज को लंग्स की जरूरत है। चंडीगढ़ पीजीआई अब तक 603 मरीजों में किडनी ट्रांसप्लांटेशन करके उनको नयी जिंदगी दे चुका है। इसके अलावा 40 मरीजों के दिल, 114 के लिवर, 48 के पेनक्रियाज, आठ के लंग्स ट्रांसप्लांटेशन कर चुका है।
पांच दशक में 5 हजार से ज्यादा किडनी ट्रांसप्लांट
पहली बार 1954 में हुआ था अंग प्रत्यारोपण
अंग प्रत्यारोपण के इतिहास को देखें तो पहली बार सफल जीवित दाता अंग प्रत्यारोपण 1954 में संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ था। डॉ जोसेफ मरे ने 1990 में जुड़वां भाइयों रोनाल्ड और रिचर्ड हेरिक के बीच गुर्दा प्रत्यारोपण को सफलतापूर्वक करने के लिए फिजियोलॉजी और मेडिसिन में नोबल पुरस्कार जीता था।
अंगदान के मामले में भारत काफी पीछे
स्पेन 46.9 प्रति दस लाख पर
अमेरिका 31.96 प्रति दस लाख पर
भारत 0.86 प्रति दस लाख पर
मिथक के चलते चुनौती बड़ी
कुछ सकारात्मक हो ऐसा करते हैं प्रयास
किसी के काम आना सबसे बड़ा धर्म
-महामंडलेश्वर स्वामी कपिल पुरी, रोहतक
व्यक्ति की सोच बदलना जरूरी
-डॉ. तनुजा कौशल, क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट
जीने का दूसरा मौका देना सबसे बड़ा परोपकार
-प्रो. विवेक लाल, डायरेक्टर, पीजीआई
कौन-कौन कर सकता है अंगदान
ब्रेन डेड पेशेंट
ब्रेन डेड घोषित होने के बाद सभी अंग डोनेट किए जा सकते हैं। ब्रेन डेड के अधिकतर केस सिर की चोट (एक्सीडेंट), दिमाग में ट्यूमर व स्ट्रोक के मरीज होते हैं। डॉक्टरों की टीम पहले मरीज को ब्रेन डेड घोषित करती है। इसमें पेशेंट के परिजनों से स्वीकृति लेनी जरूरी होती है। सहमति के बाद एक्सपर्ट डाक्टर पेशेंट से हृदय, फेफड़े, लीवर, पेनक्रियाज, किडनी, कोर्निया, हार्ट वाल्व, त्वचा, बोन मैरो व रक्त शिराएं सुरक्षित निकाल लेते हैं और ब्लड मैचिंग के बाद मरीज में ट्रांसप्लांट कर दी जाती हैं।
कार्डियक डेथ पेशेंट
प्राकृतिक रूप से होने वाली मौतें। इसमें 30 से 60 मिनट के अंदर अंग को निकालना जरूरी होता है। यह उन्हीं मरीजों में संभव है, जिनकी मौत अस्पताल में हुई हो और डॉक्टरों की टीम मौके पर तैयार हो। ब्रेन डेड के मुकाबले कार्डियक डेथ पेशेंट से अंग निकालना काफी चुनौती भरा है। ब्रेन डेड पेशेंट को वेंटिलेटर पर रखकर तीन से चार दिन का इंतजार कर सकते हैं, लेकिन कार्डियक डेथ में ऐसा नहीं होता। 30 से 60 मिनट के भीतर अंग निकालना जरूरी होता है। आईसीयू में कार्डियक डेथ घोषित करने के बाद मृतक के अंगों को मसाज के जरिये सुरक्षित रखा जाता हैऔर उसके बाद अंग निकाले जाते हैं।
जीवन के दौरान दान
ट्रांसप्लांटेशन आफ ह्यूमन आर्गन एक्ट 1994 के अनुसार केवल खून के रिश्ते (भाई-बहन, माता-पिता व बच्चे) वाले अपने अंग दान कर सकते हैं। जिंदा रहते वक्त व्यक्ति कुछ अंग दान कर सकता है। इसमें मुख्य रूप से किडनी। दूसरा अंग पेनक्रियाज का हिस्सा। पेन्क्रियाटिक कार्य करने के लिए पेनक्रियाज का आधा हिस्सा पर्याप्त है। तीसरा अंग लिवर का हिस्सा। लीवर के कुछ अंश डोनेट किए जाते हैं, जो बाद में पुनर्जीवित हो जाते हैं।
इसे स्कैन कर लें शपथ
सेंटरों की देशभर में कमी
हरियाणा और पंजाब में ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन के लिए संसाधनों की भी कमी है। जिलों में डोनेट सेंटर न होने की वजह से भी अंगदान कम होते हैं। यदि यहां कोई अंगदान करना भी चाहे तो संसाधन उपलब्ध नहीं होते। पूरे देश में निजी व सरकारी मिलाकर इस समय किडनी के 240 सेंटर, लिवर के 125, हार्ट के 25, लंग्स ट्रांसप्लांटेशन के केवल 10 और पेनक्रियाज के 13 ही सेंटर है। हरियाणा-पंजाब के लोगों के लिए पीजीआई चंडीगढ़ में यह सुविधा है। पीजीआई की ओर से मेडिकल कॉलेज 32 में ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन केंद्र खोलने की दिशा में काम किया जा रहा है।
स्किन भी कर सकते हैं डोनेट
1295 कार्यक्रम कर किया जागरूक
पीजीआई के चिकित्सा अधीक्षक एवं रोटो के सह नोडल अधिकारी (उत्तर) प्रो.विपिन कौशल ने बताया कि अंगदान के लिए मार्च 2016 में अपनी स्थापना के बाद से रोटो ने अंगदान पर राष्ट्रीय कार्यक्रम में महत्वपूर्ण प्रगति की है। केवल आठ वर्षों के भीतर रोटो ने 242 शवों के अंग दान के माध्यम से 580 लोगों की जान बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। रोटो ने 480 से अधिक गैर सरकारी संगठनों, सीबीओ, सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के संगठनों और 106 शैक्षणिक संस्थानों के सहयोग से 1295 जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए हैं।
अंगदान पर दैनिक ट्रिब्यून की विशेष रिपोर्ट प्रस्तुत कर रहे हैं विवेक शर्मा
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