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बिना वजह ट्रेन लेट हुई तो दें मुआवजा

श्रीगोपाल नारसन सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि यदि रेलवे अपनी ट्रेन के देरी से आने के कारणों का सबूत नहीं देती और यह साबित नहीं करती कि देरी उनके नियंत्रण से बाहर के कारणों की...
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श्रीगोपाल नारसन

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि यदि रेलवे अपनी ट्रेन के देरी से आने के कारणों का सबूत नहीं देती और यह साबित नहीं करती कि देरी उनके नियंत्रण से बाहर के कारणों की वजह से हुई है, तो रेलवे को ट्रेन के देरी से पहुंचने के लिए यात्रियों को मुआवजे का भुगतान करना होगा। शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के उस आदेश को बरकरार रखा है, जिसमें ट्रेन के देरी से आने के चलते उत्तर पश्चिम रेलवे को उपभोक्ता यात्री को 35 हजार रुपए मुआवजे का भुगतान करने के लिए आदेशित किया गया था। राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने अलवर के जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग द्वारा पारित मूल मुआवजा आदेश की पुष्टि की थी, जिसे रेलवे ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

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अदालत ने खारिज किया रेलवे का तर्क

सुप्रीम कोर्ट में रेलवे की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने दलील दी थी कि ट्रेन के देर से चलने को रेलवे की ओर से सेवा में कमी नहीं माना जा सकता है। भाटी ने नियम का हवाला दिया कि ट्रेन के देरी से चलने पर रेलवे कीमुआवजे का भुगतान करने की जिम्मेदारी नहीं। लेकिन जस्टिस एमआर शाह और अनिरुद्ध बोस की पीठ ने उनके तर्क को खारिज कर दिया। पीठ ने आदेश में कहा कि अगर ट्रेन देरी से पहुंची है और इसके लिए रेलवे के पास कोई वाजिब आधार नहीं है तो वह मुआवजा देने के लिए जिम्मेदार है।

जिला आयोग ने दिये मुआवजे के आदेश

संजय शुक्ला नामक उपभोक्ता यात्री ने जिला उपभोक्ता आयोग में अजमेर-जम्मू एक्सप्रेस ट्रेन के चार घंटे देरी से पहुंचने की शिकायत की कि ट्रेन के देरी से चलने के कारण उनकी फ्लाइट छूट गई और टैक्सी से यात्रा करनी पड़ी। उन्हें शारीरिक-मानसिक कष्ट के साथ ही वित्तीय नुकसान हुआ। जिला उपभोक्ता आयोग ने रेलवे को इस देरी के लिए यात्री को मुआवजा देने का निर्णय सुनाया जिसे राज्य उपभोक्ता आयोग व राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने भी कायम रखा। रेलवे ने इसके बाद सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई थी।

देरी एवं लचर सुविधाओं की शिकायत

ट्रेनों के देरी से चलने की शिकायत आम है, कई बार आरक्षित टिकट पर तय सीट नहीं मिलती, वॉशरूम में पानी-बिजली -सफाई की कमी और बर्थ ठीक न होना जैसी शिकायतें मिलती हैं। रेलवे की सेवा में कमी के चलते जहां यात्रियों की जान तक चली जाती है। एक यात्री ट्रेन के जिस डिब्बे में सपत्नीक यात्रा कर रहा था, उसकी हालत बहुत खराब थी, पंखे व खिड़की के शटर खराब थे, ऊपरी बर्थ को रिपेयर की जरूरत थी, जिससे पत्नी को चोट लग गई। शिकायत रेलवे से की जिसे ‘सेवा में कमी’ मान 1500 रु़ मुआवजा दिया गया।

पानी की कमी बनी जानलेवा

एक अन्य घटना में कबिता नामक लड़की दिल्ली से गुवाहाटी तक भारतीय रेलवे में यात्रा कर रही थी। उसके कोच के शौचालय में पानी नहीं था, इसलिए उसने अगले कोच के शौचालय का उपयोग करने का फैसला किया। वह जिस इंटरकनेक्टिंग वेस्टिबुल से गुजरी है, उसमें सुरक्षा के लिए साइड ग्रिल नहीं थी और जैसे ही वह उस पर चली, ट्रेन ने झटका दिया और वह नीचे रेलवे ट्रैक पर गिर गई और ट्रेन के नीचे कुचल गई। रेलवे ने मृतक के परिवार को 2,25,000 रुपये का मुआवजा दिया।

सेवा में विलंब के मामले में जुर्माना

केरल में एर्नाकुलम जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने चेन्नई-अलाप्पुझा एक्सप्रेस के देरी से पहुंचने को ‘सेवा में गंभीर कमी’ मानते हुए उपभोक्ता को असुविधा और नुकसान के लिए रेलवे पर 60,000 रु़ हर्जाना लगाया है। चेन्नई के कार्तिक मोहन ने मई 2018 में बैठक में भाग को एर्नाकुलम से चेन्नई तक टिकट बुक किया। यह ट्रेन करीब 13 घंटे देरी से चली, जिससे उपभोक्ता की कार्य योजना बाधित हुई व परेशानी हुई। उपभोक्ता ने दावा किया कि रेलवे अधिकारियों को देरी के बारे में तुरंत सूचित करना चाहिए और यात्रियों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करनी चाहिए थी। उन्होंने हुई असुविधा, तनाव और नुकसान के लिए 5 रुपये लाख का मुआवजा मांगा था। लेकिन उपभोक्ता आयोग ने 60,000 रुपये ही हर्जाना दिलाया।

-लेखक उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता आयोग के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।

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