उन्नत तकनीक के दौर में भी खरी है जो गांधी जी की सीख
मौजूदा दौर जितनी उन्नत साइंस व तकनीकी शायद ही दुनिया के इतिहास में कभी रही हो। इंटरनेट, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, रोबोटिक्स और सोशल मीडिया की अकल्पनीय उपलब्धता है। लेकिन इसके साथ ही मानवीय दृष्टि और नैतिकता भी बहुत जरूरी है। वजह प्रगति के बावजूद इंसान संतुष्ट व सुखी नहीं है। यही इस प्रगति की बड़ी खामी भी है। यह तभी संभव है, जब मौजूदा पीढ़ी तकनीकी संपन्नता को गांधी जी के नजरिये से देखे।
महात्मा गांधी 20वीं शताब्दी की एक ऐसी शख्सियत हैं जो दुनिया को सदा चौंकाते रहेंगे। अपने न रहने के 78 साल बाद आज भी एक दिन ऐसा नहीं होता जब गांधीजी की प्रासंगिकता और जीवन में उनके किसी पहलू की अहमियत हमें रह-रहकर न चौंकाती हो। आईंस्टीन ने सही कहा था कि एक ऐसा वक्त आयेगा, जब दुनिया के लोग अचंभा करेंगे कि गांधी जैसा कोई चलता-फिरता शख्स भी इस दुनिया में था। गांधी की यही विराट प्रासंगिकता है जो उन्हें हर पल तरोताजा बनाये रखती है।
Advertisementसब कुछ पाने की धुन
यकीन मानिये क्वांटम तकनीक के पास उतनी संभावनाएं नहीं हैं, जितनी संभावनाएं गांधीजी के जीवनदर्शन में युवाओं के सीखने के लिए हैं। बता दें कि 21वीं सदी का परिदृश्य अनुमान से कहीं ज्यादा तेजी से बदला है। विज्ञान और तकनीक ने जीवन को जो असाधारण गति दी है, शायद कभी इंसान ने उसकी कल्पना भी न की होगी। इंटरनेट, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, रोबोटिक्स और सोशल मीडिया का क्लाउड यह सब ऐसी चकाचौंध है, जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी। लेकिन फिर भी इंसान सुखी नहीं है। यही इस प्रगति की सबसे बड़ी खामी भी है। सब कुछ पाने की धुन में सब कुछ बिखरा-बिखरा है। आज चाहे कृत्रिम बुद्धिमत्ता ने इंसानी क्षमताओं को कितना भी विस्तार दिया हो, लेकिन ये सारी उपलब्धियां मशीनी हैं।
तकनीक का लोकतंत्रीकरण
जब तक इंसान को किसी भी क्षेत्र में दिली संतुष्टि न हो तो किसी भी उपलब्धि का क्या अर्थ है? आज की प्रगति के साथ यही है और ऐसे ही समय में महात्मा गांधी का जीवनदर्शन आज की पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक बनने की पूरी संभावनाएं रखता है। कुछ लोगों ने महात्मा गांधी को तकनीक विरोधी साबित करने की कोशिश की, पर वह ऐसे नहीं थे, वह दुनिया की हर उपलब्धि, हर चाहत व हर जरूरत को इंसान के केंद्र में रखने के पक्षधर थे। जबकि आज की तकनीक के सामने इंसान गौण है। गांधी जी मानते थे कि कोई साधन तभी सार्थक है, जिससे समस्त में अंतिम व्यक्ति भी लाभ ले सके। यह तकनीक का लोकतंत्रीकरण करना है। आज जब तकनीक का बड़ा हिस्सा अमीर देशों और कार्पोरेट के हाथों में केंद्रित है, तब युवा गांधी दर्शन से प्रेरणा ले सकते हैं।
वंचित तबकों की आवाज बने तकनीक
क्या आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की सहूलियत दुनिया के लगभग 1 अरब 32 करोड़ अशिक्षित, अल्पशिक्षित और समाज से पिछड़ गये लोगों की जिंदगी में रोशनी ला सकती है? अगर नहीं, तो ताकतवर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस कुछ हाथों का खिलौना ही होगी। टेक्नो युवा अपने डिजिटल प्लेटफॉर्म से वंचित तबकों को आवाज दें तो यह गांधीगिरि होगी। आज का दौर अपग्रेड कल्चर का है जिसके नाम पर हम नया फोन बदल रहे हैं, नई कारें खरीद रहे हैं और अंतत: उपभोग की नई कोशिशें कर रहे हैं। हम सब जानते हैं कि गांधी जी ने कहा था, ‘पृथ्वी सबकी जरूरतें तो पूरी कर सकती है, लेकिन किसी एक के लालच के सामने भी यह कम पड़ेगी।’ जरा सोचिए किसी एक की जगह जब पूरी दुनिया ही अपने लालच में पगला गई हो तो भला यह धरती कैसे उसकी जरूरतें पूरी कर सकती है।
हौड़ के चलते पर्यावरण संकट
जलवायु संकट, पर्यावरण विनाश व कचरों के ढेर आज अधिकतम लोगों के लालच की निशानियां हैं। अगर दुनिया को जीने लायक रखना है तो इस लालच से तौबा करना ही होगा और गांधी दर्शन ही काम आयेगा। तो हम जीवन जीने के लिए चीजों को एकत्र करें, चीजों को एकत्र करने के लिए न जीएं। इसी तरह आज सच जानने के अनंत साधन है, लेकिन डिजिटल दुनिया में फेक न्यूज, डीप फेक, मैन्यूप्लेटिड डाटा अथाह ढेर हैं, जहां से सच को देख और समझ पाना मुश्किल है। इसी समय गांधी जी का सत्य का सिद्धांत पहले से कहीं ज्यादा प्रासंगिक हो जाता है। आज के युवा को सीख लेना चाहिए कि हर तरफ डिजिटल सूचनाओं का झूठा भ्रमजाल न फैलाएं। ईमानदार संवाद को बढ़ावा दें। सोशल मीडिया में इन दिनों ट्रोलिंग और नफरत की जो भाषा आम हो रही है, उस भाषा के आलोक में आज के युवा गांधी जी के सर्वभाषा और ईमानदार विचार को अपना सकते हैं।
पर्यावरण अनुकूल तकनीक
तकनीकी क्रांति ने हमारे पर्यावरण को बहुत गहरे तक प्रभावित किया है। ई-कचरा, कार्बन उत्सर्जन और बेतहाशा उपभोग आज की सबसे बड़ी समस्या है। प्रकृति के असंतुलन का सबसे बड़ा कारण यही है। ऐसे में युवाओं को सीखना होगा कि तकनीक का प्रयोग पर्यावरण संवेदनशील ढंग से हो। ग्रीन एनर्जी आधारित इनोवेशन दरअसल आज गांधीगिरि ही है और ई-कचरे का जितना ज्यादा रि-साइकिलिंग हो, अच्छा है। इसे सादा जीवन और प्रकृति के साथ संतुलन बनाने की कोशिश ही समझी जाए। आज हम इस 2025 में अब तक के इतिहास में सबसे ज्यादा तकनीकी रूप से समृद्ध हैं, लेकिन मानवीय दृष्टि और नैतिकता की हमें नितांत जरूरत है। इसलिए आज युवाओं को गांधी जी से सीखने की पहले से कहीं ज्यादा जरूरत है।
-इ.रि.सें.