देवदास से सैयारा तक दर्शकों पर प्रेम का जादू
प्रेम कहानियों ने हमेशा ही परदे पर जादू किया है। ‘देवदास’ से शुरू हुए ऐसे कथानक मुगल-ए-आजम, बॉबी, एक दूजे के लिए और ‘बेताब’ से आज तक पसंद किए जाते हैं। ऐसी भावनात्मक कहानियों में नए चेहरे ज्यादा पसंद किये गये। हाल ही में रिलीज ‘सैयारा’ इसी शृंखला की अगली कड़ी है। लंबे अरसे बाद देखा गया कि किसी प्रेम कहानी ने दर्शकों को इतना ज्यादा प्रभावित किया, कि वे उसमें डूब से गए। अनजान हीरो अहान पांडे और हीरोइन अनीता पड्डा को देखकर थियेटर में युवा दर्शक आंखों से आंसू बहाते दिखाई दिए।
प्यार एक जज़्बात है। किशोर से लेकर अधेड़ व्यक्ति तक को सच्चे प्यार की तलाश होती है। स्वरूप चाहे अलग हो, मगर सच्चा प्यार सबकी चाहत होती है। सिर्फ फिल्म के परदे पर ही नहीं, आम लोगों की जिंदगी में भी प्रेम कहानियां होती है। लेकिन, जब दर्शक उन्हें परदे पर देखता है, तो उसे वो ‘लार्जर देन लाइफ’ नजर आती हैं। असल में दर्शक फिल्मों के जरिए अपने प्यार के सपनों को पूरा करने की कल्पना करता है। यही वजह है कि फिल्मों में प्रेम कहानियों पर बनी फिल्में ज्यादा पसंद की जाती हैं और बॉक्स ऑफिस पर ऐसी फ़िल्में कमाई का रिकॉर्ड बनाती हैं। दरअसल, सिनेमा में प्रेम कथाओं का इतिहास समृद्ध और विविधता से भरा रहा है। शुरुआती दौर से आज तक प्रेम, रोमांस और कोमल भावनाओं को प्रमुख विषय के रूप में फिल्माया जाता रहा है, जो दर्शकों की भावनाओं के साथ गहराई से जुड़ता है। फिल्म इतिहास में 1930 से 1950 के दशक में प्रेम कहानियों को सामाजिक और पारिवारिक मूल्यों के संदर्भ में दर्शाया गया था। उस दौर में ‘देवदास’ जैसी फिल्में बनी जिसने प्रेम, त्याग और सामाजिक बंधनों जैसे मसलों को उजागर किया। तब प्रेम को आदर्शवादी और भावनात्मक रूप से चित्रित किया जाता था।
Advertisementइसके बाद फ़िल्में आजादी की कहानियों में उलझ गई। वहीं 1960-70 का दशक फिर प्रेम कहानियों से गुलजार रहा। इस दौरान प्रेम कहानियों में अधिक यथार्थवादी और समकालीन विषयों को शामिल किया गया। ‘प्रेम कहानी’ और ‘लव स्टोरी’ जैसी फिल्मों ने प्रेम और व्यक्तिगत संघर्षों के जटिल पहलुओं को दर्शाया। मनोरंजन के साथ इन फिल्मों ने प्रेम, दोस्ती और पारिवारिक रिश्तों के बदलते स्वरूपों पर भी प्रकाश डाला। वहीं 1980-90 के दशक की प्रेम कहानियों में संगीत, नृत्य और भावनात्मक दृश्यों का अधिक उपयोग किया गया। ‘मैंने प्यार किया’ और ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ जैसी फिल्मों ने युवा दर्शकों को आकर्षित किया और प्रेम को सुखद और आशावादी दृष्टिकोण से चित्रित किया। इन फिल्मों ने प्रेम, दोस्ती, और
परिवार के महत्व पर जोर दिया। लेकिन, 2000 के बाद की लव स्टोरी में सामाजिक मुद्दे, अंतर-सांस्कृतिक प्रेम और प्रेम के विभिन्न रूप शामिल किए गए। ‘गदर’ और ‘तेरे नाम’ जैसी फिल्मों ने प्रेम, देशभक्ति और सामाजिक संघर्षों के बीच के जटिल संबंधों को उजागर किया। सच्ची घटनाओं पर बनी ‘छपाक’ जैसी फ़िल्में भी पसंद की गई।
अनोखा नहीं, पर सैयारा में भावनात्मक मस्का
‘सैयारा’ की सफलता की एक बड़ी वजह यह भी मानी जा सकती है कि दर्शक ओटीटी की उन फिल्मों और वेब सीरीज से ऊब चुके हैं, जिनमें हिंसा और खून खराबा ज्यादा हो। रणवीर कपूर की ‘एनिमल’ जैसी फिल्में भी कम नहीं। ऐसे माहौल में दर्शकों को कुछ अलग से मनोरंजन की जरूरत थी, जिसे ‘सैयारा’ ने काफी हद तक पूरा किया। देखा जाए तो फिल्म के कथानक में कोई नयापन नहीं है, जो दर्शकों को बांधकर रखे। ये फिल्म दक्षिण कोरिया की 2004 में आई फिल्म ‘ए मोमेंट टू रिमेंबर’ का अनऑफिशियल अडॉप्टेशन है। इसी कहानी पर 2008 में अजय देवगन की फिल्म ‘मैं, तुम और हम’ आ चुकी है। इसमें काजोल का किरदार अल्जाइमर से पीड़ित होता है। इस फिल्म से प्रभावित ‘सैयारा’ की कहानी लिखते समय ध्यान रखा गया कि खून खराबा से ऊबे दर्शकों को कैसे भावनात्मक तरीके से रुलाया जाए। नायक और नायिका में तालमेल भी मुश्किल से बनता है, पर जब दोनों एक-दूसरे की पीड़ा को समझते हैं, तो जुड़ जाते हैं। शराबी बाप का परेशान बेटा और अल्जाइमर की मरीज लड़की में नजदीकी बढ़ जाती है और इमोशनल दर्शक फिल्म को हिट करा देते हैं।
‘सैयारा’ ने बदला दर्शकों का मूड
आज के दौर में प्रेम कथा की नई परिभाषा रची है फिल्म ‘सैयारा’ ने। बिना प्रचार के आई नए कलाकारों की इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर कमाई का कीर्तिमान रचा। हालांकि कहानी में कोई नयापन नहीं। ‘सैयारा’ की नई जोड़ी अहान पांडे और अनीता पड्डा में दर्शकों को नयेपन का अहसास हुआ। इसी ताजगी ने ‘सैयारा’ को सफलता दिलाई। हिंदी सिनेमा की करीब सवा सौ साल की यात्रा में दर्शकों को हमेशा से युवा सितारों की चाहत रही, जो बड़े परदे के जरिए उनके दिलों को धड़काए रखें। हालांकि, सिनेमा के शुरुआती दौर में हीरो कहीं से युवा दिखाई नहीं देते थे। फिर भी उन दिनों की परिस्थितियों के चलते दर्शक उनके आकर्षण में बंधे रहे।
लव स्टोरी के जरिए नए चेहरों का आगाज
सिनेमा में प्रेम कहानियां वाली फिल्मों में नए चेहरों को सामने लाने की एक परंपरा सी रही है। इतिहास गवाह है कि फिल्मों में नई उम्र की नई फसल लगाने के लिए प्यार की खेती सबसे ज्यादा उपजाऊ रहती है। फिर चाहे वह बॉबी (ऋषि कपूर-डिंपल कपाड़िया), ट्विंकल खन्ना-बॉबी देओल (बरसात), कुमार गौरव-विजयता पंडित (लव स्टोरी), संजय दत्त-टीना मुनीम (रॉकी),सनी देयोल-अमृता सिंह (बेताब), कमल हासन-रति अग्निहोत्री (एक दूजे के लिए), आमिर खान (कयामत से कयामत तक) हो या सलमान खान-भाग्यश्री (मैंने प्यार किया) हो। ये सभी पहली बार परदे पर आए थे। अजय देवगन-मधुश्री (फूल और कांटे), रितिक रोशन-अमीषा पटेल (कहो ना प्यार है), राहुल रॉय-अनु अग्रवाल (आशिकी), शाहिद कपूर-अमृता राव (इश्क-विश्क), दीपिका पादुकोण-शाहरुख़ खान (ओम शांति ओम), इमरान खान (जाने तू या जाने ना), रणबीर सिंह-अनुष्का सिंह (बैंड बाजा बारात), आलिया भट्ट-सिद्धार्थ-वरुण (स्टूडेंट ऑफ द ईयर) आदि भी नए चेहरे थे।
ये हैं परदे की अमर प्रेम कहानियां
प्रेम कहानियों के मामले में फिल्म जगत हमेशा से अमर रहा है। ‘मुगल-ए-आजम’ और ‘देवदास’ से लगाकर ‘सैयारा’ तक हर बार प्यार के रूहानी जज्बात को दर्शकों ने पसंद कर अपने दिलों में बसाया। हिंदी फिल्मों की अमर प्रेम कहानियों की फेहरिस्त बहुत लंबी और समृद्ध है। मुगल-ए-आजम, आवारा, कागज के फूल, प्यासा, साहिब बीवी और गुलाम, पाकीजा, कश्मीर की कली, आराधना, सिलसिला, दिल है कि मानता नहीं, साजन, दिल, उमराव जान, 1942 ए लव स्टोरी,दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, कुछ कुछ होता है, कल हो न हो, जब वी मेट जैसी फिल्मों के बाद फिल्मों में यंग जनरेशन के प्यार को परिभाषित करने के लिए प्रेम कथाएं रची गई। जिसमें हीरो, रहना है तेरे दिल में, बचना ऐ हसीनों, सलाम नमस्ते, लव आजकल, ये जवानी है दीवानी, वेक अप सिड, अजब प्रेम की गजब कहानी, रॉकस्टार, बर्फी, टू स्टेट्स, आशिकी टू,कॉकटेल, शुद्ध देसी रोमांस, तनु वेड्स मनु, मसान, तमाशा, ऐ दिल है मुश्किल, बरेली की बर्फी जैसी कई फिल्में रही जिनकी गिनती तो ख़त्म होने से रही।