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सेवा के संकल्प से क्रांति तक

सैमुअल इवांस स्टोक्स
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सैमुअल इवांस स्टोक्स, जिन्होंने अपनी जिंदगी भारत की सेवा में समर्पित कर दी, अमेरिका से हिमाचल के पहाड़ों में पहुंचे और मानवता के लिए अनगिनत कार्य किए। उन्होंने कुष्ठ रोगियों की सेवा की, बेगार प्रथा के खिलाफ संघर्ष किया और सेब की खेती की क्रांति लाकर पहाड़ों में आर्थिक समृद्धि की नींव रखी।

अमेरिका के फिलाडेल्फिया में जन्मे सैमुअल इवांस स्टोक्स ने अपनी कर्मभूमि पहाड़ों को बनाया। वर्ष 1904 में उन्होंने मानवता की सेवा का संकल्प लेकर सुबाथू, जो तब अंग्रेजों की छावनी था, में कदम रखा। यहां अमेरिकन मिशनरियों द्वारा कुष्ठ रोग केंद्र स्थापित किया गया था, जहां उन्होंने डॉ. कार्लटन और उनकी पत्नी के साथ मिलकर कुष्ठ रोग से पीड़ित लोगों की न केवल मरहम पट्टी की, बल्कि उनका दिल भी जीता।

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स्टोक्स ने सुबाथू के निवासियों का दु:ख-दर्द समझा और उन्हें बेगार प्रथा से मुक्ति दिलाने में मदद की। उन्होंने उनकी अर्थव्यवस्था को मजबूत किया और निरक्षता के कलंक को मिटाने के लिए काम किया। यह क्षेत्र पहले पंजाब प्रांत का हिस्सा था, लेकिन 1966 में हिमाचल प्रदेश के गठन के बाद यह हिमाचल का हिस्सा बन गया। सोलन जिला आज भी गर्व करता है कि पहाड़ों में व्यावसायिक सेब क्रांति के जनक सैम्यूल इवान स्टोक्स के कदम यहीं पड़े थे।

स्टोक्स का जन्म

सैमुअल इवांस स्टोक्स का जन्म 16 अगस्त, 1882 को फिलाडेल्फिया, अमेरिका में हुआ। उनका पालन-पोषण एक धनाढ्य परिवार में हुआ, लेकिन उन्होंने मानवता की सेवा और पहाड़ों में गरीबी, सुविधाओं के अभाव में जीवनयापन कर रहे लोगों के जीवन में सुधार लाने का बीड़ा उठाया। सुबाथू के कुष्ठ रोग केंद्र में रहते हुए स्टोक्स ने कुष्ठ रोगियों की सेवा की और उन्हें सशक्त बनाया।

कोटगढ़ में बसे

वर्ष 1904 में उन्हें स्वास्थ्य लाभ के लिए कोटगढ़ भेजा गया, जो तब अंग्रेजों के अधीन था। यहां अंग्रेजों ने एंग्लो-गोरखा युद्ध के बाद छावनी स्थापित की थी। इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता को देखकर महान लेखक व कवि रूडयार्ड किपलिंग ने इसे पहाड़ों की स्वामिनी कहा था।

स्टोक्स ने यहां आकर ईसाई धर्म का प्रचार किया, और सरदार सुंदर सिंह के साथ मिलकर गांव-गांव जाकर धर्म का प्रसार किया। इसी दौरान कोटगढ़ में अंग्रेजों द्वारा चाय की खेती शुरू की गई थी।

कांगड़ा का भूकंप

वर्ष 1905 में कांगड़ा में भीषण भूकंप आया। स्टोक्स ने कोटगढ़ से लाहौर जाकर राहत कार्यों में ब्रिटिश सरकार की सहायता की। वह तत्कालीन राहत एवं पुनर्वास अधिकारी बने और तीन माह तक राहत कार्य करते रहे। उनके द्वारा किए गए कार्यों की ब्रिटिश सरकार ने सराहना की।

एकांत गुफा में रहे

कांगड़ा में राहत कार्य के दौरान स्टोक्स बीमार हो गए और स्वास्थ्य लाभ के लिए कोटगढ़ लौटे। उन्होंने यहां एक एकांत गुफा में निवास किया और लोगों को अपने विचारों से प्रभावित किया। इस दौरान उन्होंने पांच अनाथ बच्चों को गोद लिया और उनका पालन-पोषण किया।

घर का नाम रखा 'हारमनी हॉल'

वर्ष 1912 में स्टोक्स ने ब्रिटिश अधिकारी श्रीमती बैट्स से चाय बागान खरीदा और वहीं पर मकान बनवाया, जिसका नाम उन्होंने अपने घर के नाम पर ‘हारमनी हॉल’ रखा। उन्होंने स्थानीय ईसाई लड़की से विवाह किया और अमेरिका से सेब के पौधे और उत्तम किस्म के बीज लेकर आए। उन्होंने उन्हें अपने बाग में रोपित किया, और यहीं से पहाड़ों में व्यावसायिक सेब की खेती की नींव पड़ी।

हिमाचल में सेब के पौधे

पहाड़ों में सेब की खेती से पहले कुल्लू, नग्गर, शिमला और मशोबरा में कुछ बाग लगाए गए थे, लेकिन ये अधिकतर छोटी किस्म के थे। स्टोक्स ने रसदार सेब की किस्में रोपित की और इससे एक नई शुरुआत की। उनके प्रयासों से कोटगढ़ में सेब की खेती ने पूरे क्षेत्र को समृद्ध किया।

प्रथम विश्व युद्ध में भूमिका

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान स्टोक्स ने ब्रिटिश सरकार के अधीन भर्ती अधिकारी के रूप में कार्य किया। उन्होंने अपने घर में युवकों के लिए प्रशिक्षण केंद्र खोला, जिसकी सराहना की गई।

बेगार प्रथा का उन्मूलन

कोटगढ़ में रहते हुए स्टोक्स ने बेगार प्रथा का विरोध किया और इसे समाप्त करने के लिए अभियान चलाया। इस आंदोलन में उन्होंने महात्मा गांधी के सिद्धांतों को अपनाया और स्थानीय लोगों को प्रेरित किया। उनके प्रयासों से बेगार प्रथा समाप्त हुई।

गांधी से संपर्क

स्टोक्स जलियांवाला बाग हत्याकांड से बहुत दुखी हुए और उन्होंने इस घटना की कड़ी आलोचना की। वर्ष 1920 में उन्होंने नागपुर में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस सम्मेलन में भाग लिया, जहां उन्होंने ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों का विरोध किया।

स्टोक्स की गिरफ्तारी

स्टोक्स वर्ष 1921 में पंजाब प्रांत के दौरे के दौरान अमृतसर के बाघा बार्डर अंग्रेजों द्वारा स्टोक्स को प्रांत की शांति भंग करने और उसके द्वारा ‘द ट्रिब्यून’ में लिखे तीन लेख के कारण हिरासत में लिया गया। यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में किसी अमेरिकन की पहली गिरफ्तारी थी। उन्हें छह माह की सजा दी गई, लेकिन बाद में उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया और सामाजिक-आर्थिक कार्यों में जुट गए।

सेब की खेती और शिक्षा

वर्ष 1923 में स्टोक्स ने कोटगढ़ में तारा स्कूल की स्थापना की, जिसका नाम उन्होंने अपने दिवंगत बेटे ताराचंद के नाम पर रखा। उन्होंने स्थानीय लोगों को सेब के पौधे और बीज उपलब्ध कराए, और धीरे-धीरे सेब की खेती ने क्षेत्र में समृद्धि ला दी।

स्टोक्स का योगदान

आज की पीढ़ी भले ही स्टोक्स के योगदान को भूल गई हो, लेकिन उन्होंने हिमाचल प्रदेश में एक आर्थिक क्रांति की नींव रखी। सोलन में स्थित डॉ. वाईएस परमार बागबानी एव वानिकी विश्वविद्यालय और सत्यानंद स्टोक्स लाइब्रेरी उनके योगदान को याद करती है।

भारतीय संस्कृति में समर्पण

वर्ष 1932 में स्टोक्स ने हिंदू धर्म स्वीकार किया और सैम्यूल से सत्यानंद बन गए। उन्होंने 1937 में थानाधार मंदिर का निर्माण भी करवाया। उन्होंने भारतीय दर्शन और संस्कृति को अपनाया और भारतीय रंग में रंग गए। सभी चित्र लेखक

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