बचपन में ही रचनात्मकता की बुनियाद
आजकल अभिभावक पढ़ाई के साथ-साथ अपने नौनिहालों को हॉबी क्लासेज में भी भेजते हैं। दरअसल, उन्हें रचनात्मक कलाओं से जोड़ना बहुत जरूरी है जो व्यक्तित्व निर्माण में भूमिका निभाती हैं। वहीं पढ़ाई की एकरसता से बच्चों को ब्रेक मिलता है। यूं भी ये कलाएं सांस्कृतिक धरोहर हैं जिन्हें अगली पीढ़ी तक पहुंचाना पैरेंट्स का दायित्व है।
अगर हम अपनी परवरिश और आज के दौर के बच्चों की परवरिश को देखें तो बहुत अंतर आ चुका है। आज के ज्यादातर पैरेंट्स अपने बच्चों को ऑल राउंडर बनाना चाहते हैं। पढ़ाई के साथ-साथ अपने नौनिहालों को हॉबी क्लासेज में भी भेजते हैं। वे उन्हें हर मंच पर अव्वल देखना चाहते हैं। जब विद्यार्थी पढ़ाई के साथ किसी रचनात्मक गतिविधि में भाग लेते हैं तो उनका सर्वांगीण विकास होता है, जिसमें शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक व सामाजिक उन्नति शामिल हैं। ये सब व्यक्ति को सफलता के शिखर तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बेशक आज भी माता-पिता रुटीन के बजाय छुट्टियों में ही बच्चों को हॉबी क्लासेज में भेजना ज्यादा पसंद करते हैं लेकिन अच्छा यह है कि अब समाज इस तरफ ध्यान देने लगा है। अच्छी पैरेंटिंग का मतलब केवल बच्चे का अच्छे स्कूल में एडमिशन, अच्छी डाइट व सुख-सुविधा देना ही नहीं बल्कि उसके सर्वांगीण विकास पर फोकस करना है, एक काबिल इंसान बनाना है।
Advertisementहॉबी क्लासेज़ की ओर बढ़ता रुझान
हाल ही की गर्मियों की छुट्टियों में एक अच्छी बात यह देखने को मिली कि लोगों ने बड़ी संख्या में बच्चों को हॉबी क्लासेज़ में भेजा। जिसमें पेंटिंग, डांस, जूड़ो, थिएटर, संगीत और म्यूज़िक इंस्ट्रूमेंट सीखने में बच्चों ने खासी दिलचस्पी दिखाई। यदि ज्यादा से ज्यादा बच्चे इन कलाओं को सीखते हैं तो इसका श्रेय उनके जागरूक माता-पिता को जाता है क्योंकि वे उन्हें इन क्लासेज तक लेकर आए। वे चाहते थे कि बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ रचनात्मक गतिविधियों से जुड़ें। कुछ मामलों में बच्चे भी दोस्तों से प्रेरित होकर कोई हुनर सीखने की जिद्द माता-पिता से करते हैं। यह भी अच्छा है।
थिएटर वर्कशॉप पर पैरेंट्स की प्रतिक्रिया
यहां कुछ मैसेज शेयर किये हैं जो हाल ही में कुछ अभिभावकों ने एनएसडी निदेशक चितरंजन त्रिपाठी को भेजे - ‘सर मेरी बेटी ने एनएसडी द्वारा आयोजित चिल्ड्रन थिएटर वर्कशॉप में भाग लिया जिसके बाद उसमें हम सकारात्मक बदलाव देख रहे हैं। उसका व्यवहार काफी सुधार गया, जिद्द भी नहीं करती। क्रिएटिव हो गई है। हम उसकी प्रगति से खुश हैं।’ एक अन्य अभिभावक लिखते हैं – ‘थिएटर वर्कशॉप के बाद बेटी में कई सकारात्मक बदलाव देखे। ज्यादा अनुशासित हो गई है। उसकी दिनचर्या भी सुधरी है। अब हर परिस्थिति को बिना डरे हैंडल कर रही है।’ एक अन्य पिता लिखते हैं – ‘थिएटर ने मेरी बेटी को बहुत खुशी दी है। अब हर काम लगन से करती है। शिकायत भी कम करती है। अब उसे पढ़ने के लिए कहने की जरूरत नहीं पड़ती। थिएटर ने उसके भीतर धैर्य पैदा किया जिससे वह परिस्थितियों को बेहतर संभाल पा रही है।’ थिएटर से बच्चों में आया आत्मविश्वास उनको जिंदगी भर काम आएगा। यह पूंजी वे जितना खर्च करेंगे उतनी बढ़ेगी क्योंकि सकारात्मक विचार-व्यवहार के साथ जब वे जिंदगी में आगे बढ़ेंगे तो उनका व्यक्तित्व आत्मविश्वास से भरा होगा।
डांस क्लास के सकारात्मक परिणाम
जानी-मानी कथक नृत्यांगना गुरु रानी खानम बताती हैं- ‘जब एग्जाम का समय होता है तो पैरेंट्स मेरे पास आते हैं और कहते हैं कि गुरुजी एक महीने का ब्रेक कर दीजिए अभी बच्चों के एग्जाम हो रहे हैं। उसके बाद डांस क्लास में आ जाएंगे। तो मैं पैरेंट्स से कहती हूं कि एक घंटा डांस करने से पढ़ाई में कोई दिक्कत नहीं बल्कि अगर वह एग्जाम के दिनों में भी एक घंटा डांस करेंगे तो परीक्षा का तनाव कम होगा। लगातार पढ़ाई से ब्रेक मिलेगा और डांस करने के बाद फिर से चार्ज हो जाएंगे, ज्यादा अच्छे से पढ़ सकेंगे। मेरी इस बात को कुछ पैरेंट्स ने माना और फिर मुझे खुश होकर इसके रिजल्ट भी बताए।’
सर्वांगीण विकास की संभावनाएं
दरअसल, बचपन में बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ उनकी रुचि के अनुसार रचनात्मक कलाओं से जोड़ना बहुत जरूरी है। यह कलाएं बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण में सकारात्मक भूमिका निभाती हैं। डर, संकोच निकालकर उन्हें आत्मविश्वास से भर देती हैं। रचनात्मक गतिविधियों से जुड़कर दिमाग एक्टिव रहता है। पढ़ाई की एकरसता से ब्रेक मिलता है। टाइम मैनेजमेंट बेहतर बनती है। टीमवर्क की भावना व स्किल डेवलप होती हैं। ये गुण जीवन में आगे चलकर उसे बहुत मदद करते हैं। वह आत्मविश्वास के साथ इंटरव्यू व परीक्षा का प्रेशर फेस करता है। लोगों के संपर्क में आकर सामंजस्य बिठाना सीखता है। यूं भी ये रचनात्मक कलाएं हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं। उन्हें सहेज कर रखना और अगली पीढ़ी तक पहुंचाना भी हमारी ही जिम्मेदारी है। इसलिए एक अच्छे पैरेंट्स की तरह अपने बच्चे के सर्वांगीण विकास के बारे में सोचें।