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फिल्मी स्ट्रग्लर्स को तलाश शरणस्थली की

हिंदी सिनेमा में नये टैलेंट को ब्रेक देने वाले प्रोडक्शन हाउस बैनर
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अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दिकी
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एक दौर में बॉलीवुड में ऐसे ढेरों प्रोड्यूसर थे,जो नए कलाकारों को लेकर फिल्म बनाते थे जिनमें राजश्री बैनर व यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स प्रमुख थे। ये नये टैलेंट को लगातार मौका देते रहे जिनमें कई बड़े स्टार भी बने। लेकिन 90 के बाद सौदेबाजी व शर्तें शुरू हो गई। प्रतिभा की बजाय नेपोटिज्म पैमाना बना। इससे संघर्षरत प्रतिभाएं पीछे छूटने लगी। स्ट्रग्लर्स को ब्रेक मिलना मुश्किल होता गया।

असीम चक्रवर्ती

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लीवुड का वह दौर अब कल्पना से परे है जब स्टार,सुपर स्टार की दौड़ से इतर स्ट्रगलर्स के बीच भी एक अलग रस्साकसी देखने को मिलती थी। जहां तब निर्माताओं की संस्था यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स बराबर नये टैलेंट को अवसर देती रहती थी,वहीं ताराचंद बडजात्या जैसे प्रोड्यूसर अपने बैनर राजश्री में नये कलाकारों को लगातार मौका दे रहे थे। मगर हाल के वर्षों में परिदृश्य बहुत बदला है। आज तो नए लोगों को मौका देने के नाम पर बहुत सारी शर्तें और छलावे रचे जाते हैं।

कहां है राजश्री प्रोडक्शन

इस बैनर के संस्थापक ताराचंद बडजात्या साफ-सुथरी फिल्मों के जनक के तौर पर पहचाने गए। उन्होंने अपने बैनर के लिए कुछ सीधे-सादे नियम बना रखे थे जिसका अनुकरण उनका बैनर आज तक करता आ रहा है। कम बजट में दर्शनीय फिल्म बनाना उन्हें बहुत पसंद था। बजट कम होता था,इसलिए नये कलाकार,नए निर्देशक,नये टेक्नीशियन के साथ फिल्म बनाने में उन्हें ज्यादा मजा आता था। शायद इसलिए उनका बैनर कभी स्टार्स के पीछे नहीं भागा। यदि उनकी किसी फिल्म में किसी बड़े सितारे की मौजूदगी होती भी थी,तो सिर्फ इस बैनर की शर्तों पर। यही वजह है कि अशोक कुमार,प्रदीप कुमार, धर्मेंद्र, अमिताभ, राखी,जया भादुड़ी जैसे नए कलाकारों को समय-समय पर अच्छा प्लेटफार्म दिया। दर्जनों ऐसे कलाकार थे जिनकी पहली फिल्म के निर्माता के तौर पर राजश्री सामने आया। ताराचंद बाबू माधुरी दीक्षित,रामेश्वरी,जरीना वहाब, सचिन, सारिका आदि ढेरों नये कलाकारों को लगातार मौका देते रहे। उनके बाद उनके पोते सूरज बडजात्या भले ही सितारों के सम्मोहन में आए,लेकिन नए स्ट्रग्लर्स के लिए उन्होंने दरवाजा हमेशा खोले रखा। सलमान-भाग्यश्री को पहला मजबूत प्लेटफार्म देने का श्रेय इस बैनर को जाता है।

और भी कई थे पनाहगाह

ताराचंद बाबू ही नहीं, उस दौर में ऐसे ढेरों प्रोड्यूसर थे,जो नए कलाकारों को लेकर फिल्म बनाने में कोई संकोच नहीं करते थे। सात निर्माताओं मोहन कुमार,बीआर चोपड़ा,मोहन सहगल,प्रमोद चक्रवर्ती,शक्ति सामंत,जीपी सिप्पी आदि ने मिलकर यूनाइटेड प्रोड्यूसर नामक एक संस्था बना रखी थी। जिसने कई नवोदित कलाकारों को मौका दिया था। जिसकी सबसे सनसनीखेज खोज थे राजेश खन्ना। वह अपने दोस्त रवि खन्ना यानी जितेंद्र के साथ प्ले करते थे। साल 1966 की फिल्म महबूब खान की ‘औरत’ में वह पहली बार दिखाई पड़े,मगर उसी साल रिलीज जीपी सिप्पी की ‘राज’ ने उनकी पुख्ता पहचान बनाई। और इसके तीन साल बाद रिलीज फिल्म ‘आराधना’ ने उनके कैरियर को चरम पर पहुंचा दिया। दूसरी ओर यूनाइटेड प्रोड्यूसर की मित्र मंडली स्वतंत्र रूप से कलाकारों को मौका दे रही थी। इस मामले में बीआर चोपड़ा,फिल्मालय के सुबोध मुखर्जी,मोहन सहगल,आत्माराम आदि निर्माता बहुत अग्रणी थे। मोहन सहगल ने अपनी फिल्म ‘सावन भादों’ में नए नायक नवीन निश्चल को हीरो बना दिया। बीआर और सुबोध मुखर्जी ने तो कलाकारों के अलावा टेक्नीशियन तक को धड़ल्ले से मौका दिया। ‘इंसाफ का तराजू’, ‘आज की आवाज’ जैसी बीआर की ऐसी आधा दर्जन फिल्में हैं,जिनमें दीपक पाराशर,राज बब्बर,नाना पाटेकर जैसे कलाकारों का उदय हुआ। वैसे इस प्रसंग का जिक्र निर्माता निर्देशक राम गोपाल वर्मा यानी रामू सर की बात के बिना खत्म नहीं होगा जिन्होंने उर्मिला मातोंडकर,मनोज बाजपेयी,राजपाल यादव जैसे एक्टर्स को मौका दिया। वहीं अनुराग कश्यप,श्रीराम राघवन,शिमीत अमीन आदि- यह सूची बहुत लंबी थी।

फिर शुरू हुई सौदेबाजी

90 के दशक के बाद से सौदेबाजी शुरू हो गई,प्रतिभा की बजाय नेपोटिज्म का सहारा लिया जाने लगा। इससे संघर्षरत प्रतिभाएं पीछे छूटने लगी। नये लोगों को मौका देने के नाम पर बेतुकी शर्तें रखी जाने लगी। यशराज फिल्म्स और करण जौहर पर चुन-चुनकर किसी बड़े सेलिब्रिटी को ही मौका देने के आरोप जगजाहिर हैं।

ऐसे हैं नए बैनर

एकाध अपवाद को छोड़कर ज्यादातर बैनर बड़े टैगलाइन के पीछे ही भागते हैं। उन्हें नए कलाकार की बजाय किसी बड़े हीरो के साथ फिल्म बनाना ज्यादा सुरक्षित सौदा है। ऐसे में यदा-कदा कोई कार्तिक आर्यन,कियारा आडवाणी या पंकज त्रिपाठी जैसे कलाकार ही मुश्किल से लाइम लाइट में आ पाते हैं। नये कलाकार को मौका देने के नाम पर छोटे-छोटे साइड रोल देकर संतुष्ट किया गया। इनमें से कई को सफलता भी मिलती हैं। पंकज त्रिपाठी,नवाजुद्दीन सिद्दीकी आदि कुछेक उदाहरण हैं पर ज्यादातर ऐसे स्ट्रग्लर्स हैं,जिन्हें वर्षों तक कोई शरणस्थली नहीं मिलती है।

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