एक ही मंच पर, एक ही लेखक की कहानियों पर, एक ही निर्देशक के नेतृत्व में 22 नाटकों का नॉन-स्टाप मंचन हुआ। सभी कहानियां कथा सम्राटमुंशी प्रेमचंद की थीं। इन कहानियों का सिर्फ हिन्दी में ही नहीं, संविधान में स्वीकृत 22 भाषाओं में मंचन हुआ।
पिछले दिनों दिल्ली में कॉपरनिकस मार्ग स्थित एल.टी.जी. सभागार में कहानियों के रंगमंच का एक नया इतिहास रचा गया। एक ही दिन में, एक ही मंच पर, एक ही लेखक की कहानियों पर, एक ही निर्देशक के नेतृत्व में 22 नाटकों का नॉन-स्टाप मंचन हुआ। सभी कहानियां कथा सम्राटमुंशी प्रेमचंद की थीं। इन कहानियों का सिर्फ हिन्दी में ही नहीं, संविधान में स्वीकृत 22 भाषाओं में मंचन हुआ। इन नाटकों में मुंबई से आये 40 से अधिक कलाकारों ने हिस्सा लेकर, रंगकर्म की एक नई इबारत लिख दी। गिनीज रिकॉर्ड के लिये नया दावा पेश किया।
10 घंटे में 22 नाटक
‘प्रेमोत्सव 2025’ नाम से आयोजित यह नाट्योत्सव सुबह साढ़े दस बजे शुरू हुआ। शुभारंभ की रस्मों के बाद रात 10 बजे तक निरंतर 22 नाटक प्रदर्शित हुए। पहला नाटक ‘सवा सेर गेहूं’ संथाली भाषा में प्रस्तुत किया गया। गौरतलब है कि संथाली, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की भाषा है। वे सभी भाषा-परम्पराओं की प्रशंसक हैं। उनके इसी विचार को मंच पर बल मिला। इस नाट्य उत्सव की अंतिम प्रस्तुति ‘ज्वालामुखी’ रही। इसे गुजराती भाषा में प्रदर्शित किया गया।
दो साल से तैयारी
इस अभिनव नाट्य महोत्सव का आयोजन राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ट्रस्ट ने किया। ट्रस्ट के अध्यक्ष नीरज कुमार ने उत्सव के सफल समापन पर कहा—‘दो साल से हम इस नाट्योत्सव की तैयारी कर रहे थे। 22 नाटकों के नॉन-स्टाप प्रदर्शन के निर्देशक मुजीब ख़ान ने कहा—‘जिस सपने को पूरा करने के लिये हम महीनों से जुटे हुए थे, हमें ख़ुशी है कि राजधानी दिल्ली में हम उसे साकार कर सके।’
गिनीज़ बुक में दर्ज होगा रिकॉर्ड
यह 22 कहानियों के मंचन का उत्सव गिनीज बुक अॉफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल हो सकता है। बता दें कि रंगकर्म के जुनूनी मुजीब ख़ान, पिछले 20 सालों से प्रेमचंद की कहानियों पर नाटक कर रहे हैं। ‘आदाब, मैं प्रेमचंद हूं’ नाटक के वे 1 हज़ार से ज्यादा मंचन कर चुके हैं। इसे ‘लिम्का बुक अॉफ रिकॉर्ड’ में दर्ज किया गया है। 2023 में प्रेमचंद की 8 कहानियों का 8 भाषाओं में भी वे मंचन कर चुके हैं। उनका यह काम भी ‘वर्ल्ड वाइड रिकॉर्ड’ में स्थान पा चुका है। इस अवसर पर ‘प्रेमचंद का रंगमंच’ शीर्षक से एक विशिष्ट स्मारिका का भी विमोचन हुआ। इस संग्रहणीय स्मारिका में प्रेमचंद पर केंद्रित कुछ दिलचस्प लेख भी शामिल किये गये हैं।
तीन से 84 साल तक के कलाकार
नाट्य प्रस्तुति के इस उत्सव में 2-3 साल की मासूम उम्र से लेकर 84 साल तक के परिपक्व कलाकार बड़ी दक्षता से अपने किरदार निभाते आए हैं। कई कलाकार ऐसे थे, जिन्होंने अपनी मातृभाषा से अलग, दूसरी भाषाओं के नाटकों में सहज अभिनय किया। उन्हें देखकर ऐसा एक बार भी नहीं लगा कि वे किसी दूसरी भाषा चरित्र को जी रहे हैं। कलाकारों के भावपूर्ण अभिनय को देखकर दर्शकों ने बहुत बार तालियां बजाईं, कथ्य भावों में डूबते नज़र आये। इसमें शक नहीं कि 22 नाटकों के मंचन का इतिहास तो बना, मगर इस नॉन स्टाप और मैराथन मंचन में स्वाभाविक रूप से कुछ कमी पेशी भी रह गई। यह कमियां प्रकाश योजना और पाश्र्व संगीत के तालमेल में नज़र आयीं। मगर सभी किरदारों की वेशभूषा और मेकअप प्रभावशाली रहा।
पहले भाषा का विवरण
हर नाट्य प्रस्तुति से पहले मंच पर उसकी भाषा का संक्षिप्त विवरण भी दिया गया, ताकि दर्शक अपनी भारतीय भाषाओं से जुड़ सकें। उत्तर-दक्षिण-पूरब-पश्चिम की विभिन्न भाषाओं के साथ ही वहां की तहज़ीब का हिस्सा बन सकें और जान सकें कि कहानियों के अनुवाद से, देश को एक सूत्र में बांधने वाले भाव नहीं बदलते। ख़ास बात ये भी रही कि अनुवाद के लिये कहानियां इस तरह चुनी गईं कि वे मूल रूप से उसी भाषा की महसूस हों, जिसमें उनका नाटक प्रदर्शित हो रहा है।
कहानियों के मंचन को देखते हुए दर्शकों को मंच से कही गई यह बात भी समझ आयी कि अगर किसी दौर के इतिहास को जानना है, तो उस दौर का इतिहास नहीं बल्कि उस दौर के साहित्य को पढ़िये। प्रेमचंद की कहानियों और उपन्यास में भी अंग्रेजों के दौर का भारत देखा और महसूस किया जा सकता है।
यादगार प्रसंग
हरेक प्रस्तुति से पहले प्रेमंचद के जीवन से जुड़े दिलचस्प प्रसंगों और तथ्यों के बारे में भी बताया गया। मिसाल के लिये— प्रेमचंद ने अपनी पहली कहानी ‘सौतन’ (सौत) उर्दू में लिखी थी। दिल्ली में दोस्तों के कहने पर ‘क़फ़न’ कहानी एक रात में लिखी थी। प्रेमचंद पहले ‘नवाब राय’ के नाम से लिखा करते थे। उनका मूल नाम धनपत राय था। 1908 में उनके कहानी संग्रह ‘सोज़े वतन’ में देशभक्ति की कहानियां छपीं। ब्रिटिश सरकार को ये नागवार गुज़रीं। हमीरपुर में उनके खिलाफ केस हुआ। प्रतियां जला दी गईं। नवाब राय नाम से लिखने पर पाबंदी लगा दी गई। इसके बाद उन्होंने अपना नाम ‘प्रेमचंद’ रख लिया और इसी नाम से लिखने लगे।
जीवंत अभिनय
अंबाला जनार्दन, वरुण मेहरा, निशा पटेल, अजॉय गिरि, संदीप भट्टाचार्य, चेतन गावड़ा, तेजस पारेख, अपेक्षा देशमुख, जाहिया ख़ान, मदीहा ख़ान, मोक्ष गुरु, शालिनी सुनील, रसिका खिरवाड़कर, असित कुमार, सुश्री साहू, कर्फी, प्रीतम बोरो, शिन्तु चीरान, सनीश साइमन, पूनम सियाल, सैकिया, दीपा मुनि, मेघा दत्ता, मदन मुरूगन, प्रो. श्रीपति टुडू, साहिल माधवानी और शशिकांत मुर्मू आदि ने जीवंत अभिनय प्रस्तुति दी।
अभिनीत कहानियां
इनमें संथाली में सवा सेर गेहूं, उर्दू- ईदगाह, उड़िया- अभागिन, मलयालम- मिस पद्मा, पंजाबी- गृह नीति, कश्मीरी- मौत और ज़िन्दगी, नेपाली- प्रेरणा, बंगाली- मासूम बच्चा, डोगरी- खुदी, तमिल- सौतन, असमिया- बूढ़ी काकी, हिन्दी- बड़े घर की बेटी, बोडो- राष्ट्र का सेवक तेलुगू- कफ़न, सिंधी- मेरी पहली रचना, कोंकणी- जादू, मणिपुरी- पागल हाथी संस्कृत- पूस की रात, मराठी-ख़ौफ़-ए-रुसवाई, मैथिली- दुर्गा का मंदिर, कन्नड़- क़ातिल, गुजराती- ज्वालामुखी शामिल थी।
आयोजन की सार्थकता
इस नाट्य उत्सव के आयोजन में बतौर मुख्य अतिथि कवि और पूर्व सांसद सत्यनारायण जटिया ने इस आयोजन के लिये ‘दिनकर’ ट्रस्ट के प्रमुख नीरज कुमार की प्रशंसा की। जीवन में ख़ुद को पहचानकर अपने मकसद में आगे बढ़ने की बात कही। शायर इफ्तिख़ार आरिफ़ के लफ़्ज़ों में कहा— ‘इसी तवज्जो तज्जुस में लगा हूं/ मैं मैं नहीं हूं तो क्या हूं’!
आयोजन में मुंबई से आये सभी कलाकारों का सम्मान किया गया। इ. रि.सें.