Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

स्मृति, सामूहिकता और संस्कृति का पर्व

मिम कुत उत्सव
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

यह वास्तव में परिवार के पूर्वजों की स्मृति का उत्सव है और स्मृति के शोक को उल्लास में बदलने का ढंग है। मिम कुत उत्सव उस साल मृत बुजुर्गों और अतीत में मृत परिवार के सभी बुजुर्गों को याद करने का पर्व है। यह उत्सव ढोल की थाप में पूर्वजों की स्मृति को साझा करने का पर्व है। हर साल अगस्त माह के अंत या सितंबर के पहले सप्ताह में मनाया जाता है। इस साल यह स्थानीय मान्यताओं के मुताबिक 1 से 3 सितंबर के बीच मनाया जायेगा।

मिम कुत उत्सव मिजोरम की आत्मा में बसा पर्व है। यह पर्व मिजोरमवासियों को पूर्वजों की स्मृति के उल्लास से सामूहिक रूप में जोड़ता है। इस उत्सव में वह न केवल प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करते हैं बल्कि अपनी सामाजिक चेतना, सांस्कृतिक गरिमा और मानवीय संबंधों की जीवंतता का भी उल्लास मनाते हैं। यह पर्व हमें संदेश देता है कि जब पूरा समाज मिलकर पूर्वजों की याद में हंसता, गाता है तो ऐसा समाज अतीत को किसी टीस की तरह नहीं बल्कि उत्सव के रूप में लेता है।

मिम कुत उत्सव कहने को तो एक फसल पर्व है, लेकिन इसमें जीवन के उल्लासपूर्ण दर्शन का पूरा आख्यान छिपा है। वास्तव में मिजो भाषा में मिम का मतलब होता है मकई यानी मक्का और कुत का मतलब होता है त्योहार यानी मिम कुत उत्सव प्रत्यक्ष रूप में मकई की बेहतर फसल का उत्सव है। यह उत्सव मकई की भरपूर फसल होने के खुशी में मनाया जाता है। लेकिन मकई तो कृषि जीवन का एक प्रतीकभर है। यह वास्तव में परिवार के पूर्वजों की स्मृति का उत्सव है और स्मृति के शोक को उल्लास में बदलने का ढंग है। मिम कुत उत्सव उस साल मृत बुजुर्गों और अतीत में मृत परिवार के सभी बुजुर्गों को याद करने का पर्व है। यह उत्सव ढोल की थाप में पूर्वजों की स्मृति को साझा करने का पर्व है। हर साल अगस्त माह के अंत या सितंबर के पहले सप्ताह में मनाया जाता है। इस साल यह स्थानीय मान्यताओं के मुताबिक 1 से 3 सितंबर के बीच मनाया जायेगा।

Advertisement

कैसे मनाया जाता

यह पर्व बेहद पारंपरिक लेकिन अतिशय उत्साहपूर्ण ढंग से मनाया जाता है, जिसमें पहले पक चुकी मक्का की बालियों को भूनकर गांवभर के पूर्वजों और देवी-देवताओं की आत्माओं को समर्पित किया जाता है। इसके बाद गांवभर के लोग सामूहिक रूप से एकत्र होकर परंपरागत वेशभूषा में पुरुष और महिलाएं मिलकर चेरो नृत्य और बहुआल लाम करते हैं। तेज और चपल धुनों पर ये नृत्य स्थानीय ढोल, गांेग और बांसुरी के साझा संगीत में सम्पन्न होते हैं। इस नृत्य और संगीत समारोह में पारंपरिक भोज और पेय की विशेष व्यवस्था होती है। खास करके ‘जू’ नाम की चावल से बनी एक विशेष पारंपरिक शराब, इस भोज और उत्सव की खास पहचान होती है। यह शराब पूरे गांव के लोगों के बीच सामूहिक रूप से बांटी जाती है और इसके साथ खाये जाने वाले पकवान भी पूरे गांव के लोग मिलकर बनाते हैं या इनकी व्यवस्था करते हैं। जब पूरे गांव के सभी बड़े, बुजुर्ग और बच्चे खाने-पीने और संगीत की मस्ती में झूम रहे होते हैं, तब युवा लोग अपनी तीरअंदाजी और दूसरे खेल कौशलों तथा कुश्ती का प्रदर्शन करते हैं, जो अपना कौशल दिखाने के साथ-साथ मनपसंद लड़की और लड़के को प्रभावित करने का भी जरिया होता है।

सामूहिकता में सामाजिकता

मिम कुत उत्सव में किसी जाति, वर्ग, उम्र और यहां तक कि लिंग के लोगों का कोई भेद नहीं रहता। सब लोग एक साथ मिलकर यह उत्सव मनाते हैं। इससे सामूहिकता मजबूत होती है और सामाजिकता को भरपूर सम्मान मिलता है। चाहे वह सामाजिक स्तर के भेदभाव हों या आर्थिक स्तर के। इस उत्सव में समाज का हर व्यक्ति पूरे मनोवेग से शामिल होता है। किसी का इस उत्सव में निजी कुछ भी नहीं होता, जो भी लोग अपने घरों से लाते हैं, वह सामूहिक रूप से एकत्र होने की जगह में एक जगह इकट्ठा कर लिया जाता है, जिसमें किसी की कोई पहचान नहीं रह जाती और फिर इन तमाम चीजों का लोग मिलकर भरपूर आनंद लेते हैं। गांव के सभी लोग मिलकर नृत्य करते हैं। मिलकर भोजन तैयार करते हैं।

सहभागिता का संवेदनशील उदाहरण

मिजो संस्कृति अपनी उदारता और खुलेपन के कारण दुनिया को आकर्षित करने का एक बड़ा सांस्कृतिक आकर्षण बन गई है। मिम कुत पर्व बताता है कि अगर आपके अंदर अपनी संस्कृति, अपनी पहचान धड़कती है तो आप किसी भी वैश्विकरण की धुंध में नहीं होते। आपकी अपनी चमक और धमक दोनों ही बनी रहती हैं। इसलिए मिम कुत जैसे पर्व इस वैश्विक समाज में अपने शानदार सहभागिता का भी बड़ा संवेदनशील उदाहरण है।

संस्कृति प्रेमियों का आकर्षण

मिजोरम का यह मिम कुत एक ऐसा सांस्कृतिक उत्सव बन चुका है, जो पर्यटकों और संस्कृति प्रेमियों को खूब आकर्षित करता है। दरअसल पर्यटकों को इस उत्सव में भाग लेने से प्रमाणिक जनजातीय अनुभव होते हैं। देश के कोने कोने से आये पर्यटक मिजो संस्कृति, खानपान, वेशभूषा और पारंपरिक जीवनशैली से परिचित होते हैं। पर्यटकों के पास स्थानीय लोगों की हस्तशिल्प और दस्तकारी की कई अद्भुत चीजों को नजदीक से देखने व खरीदने का मौका मिलता है। ये लोग भी स्थानीय लोगों के साथ मिलकर उनकी ही जैसी पोशाक पहनकर, उनके ही जैसे लोकनृत्य करने की कोशिश करते हैं और इस कोशिश का भरपूर आनंद लेते हैं। इ.रि.सें.

Advertisement
×