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जुनूनी जिंदगी जीने की ललक से उपजा अनुभव कारोबार

नयी जेनरेशन ने जिंदगी में तकरीबन हर चीज़ का अनुभव लेने का सिलसिला शुरू किया है जिससे देश में नए किस्म की एक्सपीरियंस इकॉनमी ने जन्म लिया है। इसका फायदा भी हुआ कि नए किस्म के काम-धंधे पैदा हुए, लेकिन...
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नयी जेनरेशन ने जिंदगी में तकरीबन हर चीज़ का अनुभव लेने का सिलसिला शुरू किया है जिससे देश में नए किस्म की एक्सपीरियंस इकॉनमी ने जन्म लिया है। इसका फायदा भी हुआ कि नए किस्म के काम-धंधे पैदा हुए, लेकिन एक सवाल भी उठता है कि आखिर युवाओं में सब कुछ जान-पा लेने, हर शौक पूरा करने का इतना जुनून या उतावलापन क्यों है। वे किस हद तक जाएंगे। जिंदगी को भरपूर जी लेने की चाह में खर्चीलेे पर्यटन, विवाह व पार्टियां, शो-कॉन्सर्ट व महंगे रेस्टोरेंट में भोजन ट्राई करते हैं। कंपनियां भी युवा बहुल जनसांख्यिकी का फायदा उठाने में कसर नहीं छोड़ रही। इस नयी उभरी अर्थव्यवस्था के तीन तत्व हैं- युवा उपभोक्ता, तकनीक-प्रौद्योगिकी और इनोवेटिव कारोबारी।

 

दार्शनिक भाव से हम अपनी जिंदगी को देखें, तो लगता है कि हमारा यह जीवन हर दिन कोई नया अनुभव लेते हुए ही गुज़र जाता है। पर इसी दुनिया में हाल तक की पीढ़ियों में ऐसे लोगों का प्रतिशत काफी ज्यादा रहा है, जो पूरी जिंदगी एक ढर्रे पर जीते थे। सुबह उठे, तैयार हुए, दफ्तर या दुकान पर गए, शाम को लौटे और खा-पीकर सो गए। उनकी इस जिंदगी में कोई तब्दीली तभी होती थी, जब घर या आस-पड़ोस में कोई शादी-ब्याह हो या किसी प्रियजन की मृत्यु हो गई हो। इसके अलावा उम्र ढलने पर तीर्थयात्राओं का संयोग बिठाया जाता रहा है। लेकिन इसी बीच एक पीढ़ी ऐसी आई, जिसने तीर्थाटन या धार्मिक-आध्यात्मिक पर्यटन से थोड़ा आगे निकलकर सैर-सपाटे किए। नाटक और फिल्में देखीं, किताबें पढ़ीं और कुछ शौक भी पाले। लेकिन इन लोगों को भी आज यह देखकर हैरानी होगी कि अब जवान हुई पीढ़ी ने जिंदगी में एक बार तकरीबन हर चीज़ का अनुभव लेने का जो सिलसिला शुरू किया है, वह इतना हंगामेदार हो गया है कि इससे देश में एक नए किस्म की अनुभव अर्थव्यवस्था (एक्सपीरियंस इकॉनमी) ने जन्म ले लिया है। इसका एक फायदा तो नए किस्म के काम-धंधों को हुआ है, तमाम रोजगार पैदा हुए हैं, साथ में यह सवाल भी उठा है कि आखिर युवाओं को सब कुछ जान लेने और पा लेने की इतनी जल्दबाजी क्यों है। और आखिर वे कितने किस्म के नए अनुभव और शौक पूरा करने के लिए किस हद तक जाएंगे।

सरसरी तौर पर देखें, तो ऐसा लगता है कि कोरोना वायरस से पैदा महामारी कोविड-19 ने इस धरती के लोगों के मिजाज़ में जबर्दस्त बदलाव ला दिया है। लोगों, खासकर युवाओं, को लगने लगा है कि जिंदगी का कोई भरोसा नहीं। इसलिए जितनी जल्दी हो सके- इसे भरपूर जी लिया जाए। इसी का नतीजा दुनिया भर के पर्यटन स्थलों पर बेशुमार उमड़ती भीड़ के रूप में इधर के कुछ वर्षों में नजर आया है। यह भी दिखा है कि युवा पीढ़ी अब सिर्फ आईफोन खरीद लेने भर से संतुष्ट नहीं हो रही है। बल्कि उसे महंगी कारों, ब्रांडेड कपड़ों, घड़ियों को किस्तों या कर्ज पर भी झटपट खरीद लेने में कोई समस्या नहीं है। जिंदगी को नए और हर तरह के अनुभवों से भर लेने का एक जुनून या उतावलापन इस कदर है कि इस नई पीढ़ी ने जीवन का ठहराव या स्थायित्व देने वाले घर के सपने को भी फिलहाल मुल्तवी कर देना ज्यादा बेहतर समझा। हालांकि घरों का एक पहलू यह भी है कि अब वे इतने महंगे हो गए हैं कि वे नए पेशों में आ रहे और लाखों का वेतन पा रहे युवाओं की प्राथमिकता से भी दूर होते चले गए हैं।

नए अनुभव पाने की हालिया बानगियां

जहां तक बात खुद को नए अनुभवों से भर लेने की है, तो इसकी कई बानगियां पिछले कुछ अरसे में देखने को मिली हैं। जैसे, शादी को हर तरह से यादगार बनाने का नया आग्रह युवाओं की बकेट लिस्ट में शामिल है। डेस्टिनेशन वेडिंग, प्री-वेडिंग शूट और शादी की सारी रस्मों को बढ़ा-चढ़ाकर निभाने के लिए बचतों को स्वाह करने और कर्ज लेने में भी इनके माथे पर एक शिकन तक नहीं आती। काशी के तट पर सजे-धजे स्टीमर में यात्रा करने और गंगा आरती में हिस्सा लेने या उसका करीब से दर्शन करने के लिए उन्हें जो कुछ करना पड़े, करते हैं। इन्हीं युवाओं की बड़ी फौज इस साल के आरंभ में प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में दिखी थी। वहां ये युवा आध्यात्मिकता की खोज करते और उसका मर्म समझने का प्रयास करते नजर आए थे। गोवा के समुद्र तटों पर युवाओं का जमावड़ा एकदम हाल का ट्रेंड नहीं कहा जा सकता, लेकिन दिलजीत दोसांझ व एड शिरीन के म्यूजिक कॉन्सर्ट के साथ कोल्ड प्ले में हजारों युवाओं का टूट पड़ना दर्शाता है कि कुछ तो ऐसा हुआ है, जिसने युवाओं में एक अजब-सा उतावलापन पैदा कर दिया है।

जेनरेशन ज़ेड में पैदा हुई रुचि

इस अजीब, लेकिन बेहद दिलचस्प ट्रेंड ने कई तरह के रोजगार और कारोबार के रास्ते भी खोले हैं जिनमें कमाई का कोई ओर-छोर ही नहीं है। हम चाहें तो इस तरह के काम-धंधों की एक आरंभिक सूची बना सकते हैं, जिनमें खासतौर से जेनरेशन ज़ेड कहलाने वाली पीढ़ी में पैदा हुई रुचि ने सनसनी पैदा कर दी है। ऋषिकेश के शिवपुरी में रिवर राफ्टिंग या फिर बंजी जंपिंग करने या फिर पांच सितारा होटल में आयोजित होली-दिवाली पार्टी में एक ही दिन में हजारों रुपये फूंक देने पर उनके अनुभवों की यह पोटली नहीं भरती। इसके बाद स्टैंडअप कॉमेडी शो देखने, शहर की सैर करने, स्पा रिट्रीट लेने से लेकर किसी नए खुले शानदार ब्रांडेड रेस्टोरेंट में भोजन के अनुभव हासिल करने से जुड़ी चीज़ों ने देश में एक ऐसा बड़ा बाजार पैदा किया है, जिसका अभी समुचित दोहन तक नहीं किया गया है।

‘मामला पैसे का नहीं, अनुभवों का’

रोजमर्रा की कई चीजों का हिसाब-किताब रखने वाले लेकिन कुछ मौकों पर बेहिसाब खर्च करने को लेकर युवाओं का तर्क है कि यह मामला पैसे का नहीं, उनके ऐसे अनुभवों का है जिससे हासिल करने का मौका शायद जिंदगी में उन्हें दोबारा न मिले। कोविड महामारी के बाद अतिशय पर्यटन, शादियों में दिखावे-आतिशबाजी और संगीत आदि के अनूठे आयोजनों में युवाओं की बढ़-चढ़कर शिरकत ने बाजार ने एक नए शब्द- एक्सपीरियंस इकोनॉमी (अनुभव आधारित अर्थव्यवस्था) को जन्म दिया है।

देश-समाज में बदलते और उभरते आर्थिक पहलुओं पर नजर रखने वाले विश्लेषकों का मत है कि इस एक्पीरियंस इकोनॉमी के नतीजे में कई ऐसे नए कारोबार पैदा हुए हैं जिन पर फोकस करने वाले कारोबारी और कंपनियां बेशुमार पैसा पीट रही हैं। मिसाल के तौर पर शादियों को किसी फिल्मी कहानी के किस्सों में पिरोने और उसी तरह फिल्मांकन ने प्री-वेडिंग शूट से आगे बढ़कर एक नए किस्म का बिजनेस मॉडल पैदा किया है। इसमें स्क्रिप्ट राइटर से लेकर कैमरामैन और एडिटर मोटा पैसा बना रहे हैं। चूंकि यह एकदम नया ट्रेंड है, इसलिए इसके व्यवस्थित और सालाना कारोबार के ज्यादा आंकड़े नहीं हैं लेकिन बड़े शहरों में इसके उदाहरण आम होने लगे हैं।

अनुभवों की बिक्री का नया आर्थिक मॉडल

असल में, एक्पीरियंस इकोनॉमी (अनुभव अर्थव्यवस्था) एक नया आर्थिक मॉडल है जिसमें होने वाले कारोबार का फोकस वस्तुओं और सेवाओं की बजाय अनुभव बेचने पर है। खास तौर से यह उन युवा पर ज्यादा केंद्रित है जो घर, गाड़ी या महंगी भौतिक वस्तुओं से ज़्यादा वास्तविक जीवन के अनुभवों को महत्व देते हैं। इसकी मिसाल इस साल जनवरी से मार्च के बीच ब्रिटिश संगीतकार एड शिरीन के भारत में आयोजित ‘मैथमेटिक्स टूर’ में मिली। पुणे, शिलांग और दिल्ली-एनसीआर में आयोजित शिरीन के कॉन्सर्ट के बेहद महंगे टिकटों के बावजूद भारी भीड़ रही। इससे आगे बढ़कर युवाओं ने एक अन्य रॉक बैंड- कोल्डप्ले के कॉन्सर्ट में इतनी दिलचस्पी ली कि इसके आयोजकों ने सैकड़ों करोड़ रुपये कमा डाले। इन दोनों आयोजनों में मौलिक अंतर यह है कि एड शिरीन जहां अकेले परफॉर्म करते हैं, वहीं कोल्डप्ले में लोगों को दिलजीत दोसांझ समेत कई लोकप्रिय गायक बैंड में सजीव प्रस्तुति देते हैं। कोल्डप्ले में आतिशबाजी, एलईडी रिस्टबैंड, लेज़र शो, इंटरैक्टिव विजुअल जैसी चीज़ों का समावेश इसे युवाओं में ज्यादा लोकप्रिय बना देता है। एक किस्म की समावेशित दृश्यात्मक (इमर्सिव विजुअल) दावत में इतने आकर्षण होते हैं कि इनका मज़ा लेने वालों के लिए यह मौका जीवन भर की यादगार बन जाता है। यही वजह है कि ऐसे आयोजनों की बुकिंग करने वाले एक मंच ‘बुकमायशो.कॉम’ ने 2024 में लाइव संगीत के टिकटों की बिक्री में 18 फीसदी बढ़ोतरी की जानकारी दी थी। बताते हैं कि इस साल जनवरी में कोल्डप्ले के चार दिवसीय मुंबई आयोजन ने भारतीय संगीत के इतिहास में कमाई का नया रिकॉर्ड बना दिया क्योंकि इन कार्यक्रमों के करीब डेढ़ लाख टिकट बेचे गए थे। यही कारण है कि वैश्विक बाजार अनुसंधान कंपनी स्टेटिस्टा के अनुसार, साल 2021 में भारतीय संगीत उद्योग की कीमत 19 अरब रुपये अर्थात 178 मिलियन डॉलर थी, जो 2026 तक बढ़कर 37 अरब रुपये यानी 346 मिलियन डॉलर हो जाने की उम्मीद है।

ज़िंदगी में न मिले दोबारा

ऐसा नहीं है कि यह एक्सपीरियंस इकोनॉमी सिर्फ लाइव संगीत के फैंसी आयोजनों तक सीमित है। बल्कि इस साल प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में जो करीब 67 करोड़ लोग पहुंचे, उनमें 18-35 साल के युवाओं की हिस्सेदारी करीब 40 प्रतिशत तक रही। गोविंद बल्लभ पंत सोशल साइंस इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रोफेसर बद्री नारायण और एसोसिएट प्रोफेसर अर्चना सिंह के नेतृत्व में 17 सदस्यीय टीम ने अपने शोध के सिलसिले में महाकुंभ से जुड़े जो आंकड़े जुटाए थे, उनका शुरुआती आकलन बताता है कि इस आयोजन में हिस्सा लेने पहुंचे 40 फीसदी युवाओं का मकसद एक बड़े धार्मिक आयोजन के आध्यात्मिक पहलुओं का अनुभव करना था। वे वहां इसलिए पहुंचे क्योंकि ऐसा अनुभव उन्हें शायद ज़िंदगी में दोबारा न मिले।

एक्सपीरियंस इकोनॉमी के बढ़ने के कुछ सांख्यिकीय कारण भी हैं। जैसे, आज के भारत की 1.42 अरब की आबादी का ज्यादा बड़ा हिस्सा युवाओं का है। मनोरंजन, संगीत और शादियों के आयोजन से उद्योग से जुड़े लोग इस जनसांख्यिकी का फायदा उठाने में शायद ही कोई कोर-कसर छोड़ना चाहेंगे। इस नए एक्सपीरियंस इकोनॉमी के ट्रेंड में सोशल मीडिया आग में घी डालने का काम करता है। युवा अपनी विदेश यात्राओं, लाइव संगीत आयोजनों, दावतों और शादियों में शामिल होने के अनुभव इंस्टाग्राम, फेसबुक और यूट्यूब जैसे मंचों पर ऑनलाइन साझा करना चाहते हैं ताकि वे दोस्तों-परिचितों में कुछ अटेंशन पा सकें।

तीन तत्वों की तिकड़ी

इन नई उभरती अर्थव्यवस्था के तीन महत्वपूर्ण तत्व हैं- युवा उपभोक्ता वर्ग का उभार, तकनीक-प्रौद्योगिकी का रोल और नए कारोबार के आइडिया खोज रहे लोग- जिनमें ज्यादातर ऐसे युवा शामिल हैं जो नौकरी की बजाय कोई स्टार्टअप चलाना ज्यादा पसंद करते हैं। तकनीक ने ये यादगार अनुभव प्रदान करने, उससे जुड़े आयोजन कुशल और सुलभ बनाने और अनुभवों का व्यापक दर्शक वर्ग जुटाने में बड़ी भूमिका निभाई है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और मशीन लर्निंग जैसी चीजें विशाल युवा आबादी की अपेक्षा-आकांक्षाओं के डेटा का विश्लेषण करके इस उद्योग में क्रांति ला रही हैं, बशर्ते वे इस डेटा को ठीक से समझ सकें और इसकी और व्याख्या कर सकें। कोविड महामारी के बाद अनुभवों पर खर्च लगातार बढ़ा है। कारोबारी ट्रेंड पर नजर रखने वाली एजेंसी मैकिंसे एंड कंपनी के अध्ययन के मुताबिक, युवाओं की खोजी यात्राओ. पर होने वाला खर्च 1960 के बाद से अपने उच्चतम स्तर पर है। मैकिंसे ने अपने अध्ययन में ‘अनुभवों ’ बनाम ‘चीजों’ (गैर-आवश्यक भौतिक वस्तुओं) पर उपभोक्ता मांग में नाटकीय बदलाव को दर्ज किया है।

तकनीक-संचालित समाधान

किफ़ायती उत्पाद बनाने वाले टूर ऑपरेटर अपने उत्पादों (यात्रा का आयोजन) की ब्रांडिंग इस नजरिए के साथ कर रहे हैं कि वे अपने ग्राहकों (युवा पर्यटकों) की यात्रा के अनुभवों को बेहद आरामदायक और अधिक यादगार बनाते हैं। यात्रा की योजना बनाने और यात्राओं के प्रबंधन के लिए पुराने जमाने के ट्रैवल एजेंट की जगह तकनीक-संचालित और व्यक्तिगत समाधानों ने ले ली है। टूर ऑपरेटरों की एक विस्तृत शृंखला उभरी है, जो विशिष्ट प्रकार के अनुभवों और जनसांख्यिकीय समूहों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। उदाहरण के लिए, डिजिटल लेकिन खानाबदोश किस्म के उद्यमी काम करने के लिए ऐसी अलग-अलग जगहें ढूंढ सकते हैं जहां कुछ समय प्राकृतिक नजारों के बीच टिककर सुकून से काम कर सकें। इसी तरह, बड़ी उम्र के एकल लोग (सिंगल) ऐसे एडवेंचर बुक कर सकते हैं जो अनुभव और रोमांच को एक साथ जोड़ते हैं। ये ऑपरेटर द्वारा प्रदान किए जाने वाले अनूठे अनुभवों की विस्तृत शृंखला के सिर्फ़ दो उदाहरण हैं। इससे इतर देश के विभिन्न हिस्सों में संगीत समारोह, स्टैंडअप शो, खेल आयोजन आदि जैसे और भी मज़ेदार कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं। उत्तर प्रदेश की इत्र नगरी कन्नौज में पर्यटकों को सुगंधित इत्र के कारखानों की यात्रा पर ले जाना- अनुभव आधारित काम-धंधे की ही एक बानगी है। याद रहे कि जिंदगी के अनुभव अब सिर्फ़ नज़दीकी थिएटर में फ़िल्म देखने या छुट्टी मनाने तक सीमित नहीं रह गए हैं। शहर की सैर से लेकर स्पा रिट्रीट, स्थानीय फूड अनुभव से लेकर वीआर गेमिंग ज़ोन तक, भारत में एक बड़ा बाज़ार उभर रहा है जिसका अभी ज्यादा दोहन नहीं किया जा सका है।

बढ़ती आमदनी से जागे जो अरमान

कुछ ऐसे प्रमुख तत्व और चालक हैं, जिन्होंने अनुभव आधारित अर्थव्यवस्था की पैदावार और उभार में पर्याप्त योगदान दिया है। इनमें से पहली वजह लोगों की आय में हुआ इजाफा है जिसके बड़े अंश को वे खर्च करना चाहते हैं। खास तौर से शहरों में बढ़ता वह मध्यवर्ग, जो भारत की आबादी का लगभग 31 फीसदी है। यह वर्ग अपनी छुट्टी में देश-विदेश के पर्यटन स्थलों और मनोरंजन के साधनों पर अपनी आय का बड़ा हिस्सा खर्च कर रहा है। यह बात भी नोटिस की गई है कि देश के कुछ ग्रामीण अंचलों में ग्रामीण और शहरी आबादी में प्रति व्यक्ति आय का फासला कम हुआ है, जिससे अनुभव आधारित अर्थव्यवस्था का दायरा महानगरों से अलग छोटे शहरों, कस्बों और गांवों तक फैलने लगा है। कुछ अध्ययन और सर्वेक्षण यह भी दर्शा रहे हैं कि भारत के लोग अब ऐसे अनुभवों की ज्यादा खोजबीन कर रहे हैं जो उन्हें रोजाना के तनावों से आजाद करें। यह तनाव-मुक्ति उन्हें संगीत कार्यक्रमों, आधुनिक आध्यात्मिक गुरुओं (जैसे कि गौर गोपाल दास) के सान्निध्य से मिलती महसूस होने लगी है। इसमें एक अच्छा और सार्थक ट्रेंड यह नजर आया है कि भौतिक सुख-सुविधाओं की तुलना में लोग बेहतर अनुभवों की तलाश ज्यादा कर रहे हैं। क्षणभंगुर इच्छाओं की पूर्ति के बजाय स्थायी यादें कायम करने की यह कोशिश देश-समाज में हो रहे बदलावों को परिलक्षित कर रही है। तीसरी बड़ी वजह निश्चय ही सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव है। सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ‘छूट जाने का डर’ (FOMO) की संस्कृति का निर्माण करते हैं। ऐसे में युवा उपभोक्ता सोशल मीडिया पर साझा करने योग्य आयोजनों और यात्राओं की तलाश करते हैं और यादगार अनुभवों को इंस्टाग्राम और फेसबुक आदि पर साझा करते हैं। यह भी दिखाई दिया है कि सोशल मीडिया की हस्तियां (इन्फ्लूएंसर) भौतिक विलासिता की वस्तुओं के बजाय संगीत कार्यक्रमों, साहसिक खेलों, पर्यटन-भ्रमण को ज्यादा प्रदर्शित और प्रमोट करते हैं, जिससे युवाओं के उपभोग संबंधी पैटर्न प्रभावित होते हैं। ये सब कारक परस्पर मिलकर अनुभव-आधारित अर्थव्यवस्था के और फूलने-फलने का संकेत दे रहे हैं।  

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-लेखक मीडिया यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।

 

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