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क्षुद्रग्रहों के निशाने पर पृथ्वी

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डॉ. संजय वर्मा

कभी-कभी यह सोचकर हैरानी होती है कि जो ब्रह्मांड सृजन और विनाश की तमाम हलचलों से भरा है, उसमें मौजूद हमारी पृथ्वी बीते लाखों वर्षों से साबुत कैसे बची है और इस पर जिंदगी कैसे फूल-फल रही है। टेलीस्कोप हबल के बाद नासा के जेम्सवेब टेलीस्कोप से मिली सुदूर ब्रह्मांड की तस्वीरें बताती हैं कि किसी कोने में विशाल ब्लैकहोल आसपास की आकाशगंगाओं को हड़पने की कोशिश में हैं, तो कहीं उल्कापिंडों की हाहाकारी बरसात हो रही है। यूं तो ऐसे कई खतरे हमारी पृथ्वी के लिए भी बताए जाते रहे हैं। जैसे कहा जाता रहा है कि अरबों साल बाद हमारा सूर्य खुद ब्लैकहोल में बदल जाएगा। तब पृथ्वी समेत सौरमंडल के अन्य ग्रहों को यह हड़प कर लेगा। लेकिन इनमें एक बड़ी चुनौती क्षुद्रग्रहों (एस्टेरॉयड्स) और टूटते तारों यानी उल्कापात से मिलती रही है।

अक्सर ऐसे दावे किए जाते हैं कि फलां तारीख़ को कोई विशाल क्षुद्रग्रह या तो हमारी धरती से टकरा जाएगा या इतने करीब से गुजरेगा कि मानव सभ्यता सन्नाटे में आ जाएगी। इधर ऐसी ही एक आशंका एस्टेरॉयड 2008- क्यूवाई , एस्टेरॉयड 2023 एसएन-6 और एस्टेरॉयड 2023 क्यूसी-8 के पृथ्वी के बेहद करीब पहुंचने की जताई गई। एस्टेरॉयड 2008 क्यूवाई को अमेरिका के मशहूर गोल्डन गेट के आकार का बताया गया, जबकि एस्टेरॉयड 2023 एसएन-6 के बारे में कहा गया कि चार अक्तूबर की रात बोइंग विमान के आकार वाला यह क्षुद्रग्रह पृथ्वी से 4.83 लाख किलोमीटर दूर से गुजर गया। लेकिन पृथ्वी हमेशा इन क्षुद्रग्रहों के कथित हमले से बचती रहेगी- ऐसी आश्वस्ति वैज्ञानिक नहीं दे रहे हैं। बल्कि उनमें से कुछ का कहना तो यह है कि करीब आने पर इन एस्टेरॉयड्स में से कुछ हमारे ग्रह की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के प्रभाव में आ सकते हैं। ऐसे में आशंका है कि ये हमारी ओर खिंचे चले आएं और धरती से टकरा जाएं। हालांकि, नासा ने अभी तक कोई चेतावनी जारी नहीं की है, लेकिन अंतरिक्ष में सभी क्षुद्रग्रहों की निगरानी करने वाली नासा की ‘जेट प्रोपल्शन लेबोरेट्री’ के मुताबिक, ‘एस्टेरॉयड 2023 जेपी3’ 6.94 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से हमारे ग्रह की ओर बढ़ रहा है। इसी तरह एक अन्य 59 फीट के आकार वाला ‘एस्टेरॉयड 2023 एलडी’ है, जो 9 किलोमीटर प्रति सेकेंड पृथ्वी की ओर बढ़ रहा है। पृथ्वी के 75 लाख किलोमीटर के दायरे में आने वाले क्षुद्रग्रह इस ग्रह के लिए खतरा माने जाते हैं।

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इन खतरों को वास्तविक मानते हुए अमेरिकी स्पेस एजेंसी- नासा ने वर्ष 2021-22 में ‘डार्ट मिशन’ यानी डबल एस्टेरॉयड रिडायरेक्शन टेस्ट का संचालन किया और मानव इतिहास में पहली बार एक अंतरिक्षयान को डाइमॉरफोस एस्टेरॉयड से टकरा दिया, जिससे इस क्षुद्रग्रह की दिशा ही बदल गई। इस मिशन में भेजा गया यान 15,000 मील प्रति घंटा की गति से (6.6 किमी/सेकेंड) डाइमॉरफोस से टकाराया और उसकी कक्षा में थोड़ा सा परिवर्तन कर दिया। ‘डार्ट मिशन’ का उद्देश्य इस क्षमता का आकलन करना था कि यदि कोई क्षुद्रग्रह हमारी पृथ्वी के अस्तित्व के लिए खतरा बनता है तो क्या उसे एक स्पेसक्राफ्ट से टक्कर मारकर खुद से दूर किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि एक साल पहले 27 सितंबर 2022 को नासा ने इस मिशन को पूरा कर लिया और एस्टेरॉयड डाइमॉरफोस का रास्ता ही बदल दिया। सर्च इंजन गूगल नासा के इस मिशन को लेकर इतना उत्साहित रहा है कि उस पर ‘डार्ट मिशन’ की खोज करने पर नतीजे में कंप्यूटर स्क्रीन पर एक स्पेसक्राफ्ट बाईं ओर से दाईं ओर उड़ते हुए और एक स्थान पर टक्कर मारते नजर आता है। इस टक्कर के फौरन बाद कंप्यूटर पर दिखने वाली स्क्रीन कुछ तिरछी नजर आने लगती है जो प्रतीकात्मक रूप से यह दर्शाती है कि यान के टकराने से क्षुद्रग्रह की दिशा बदल गई।

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पर एक अंतरिक्षयान को किसी क्षुद्रग्रह से टकराने की क्या सच में जरूरत थी। असल में ‘डार्ट मिशन’ नामक इस प्रयोग की अहमियत का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि अगर कुछ सौ मीटर के ब्रह्मांडीय मलबे (कॉस्मिक डेबरी) का एक हिस्सा पृथ्वी से टकराता है, तो यह एक पृथ्वी के एक महाद्वीप पर तबाही मचा सकता है। ऐसे में ‘डार्ट मिशन’ को भविष्य में पृथ्वी की ओर आने वाले क्षुद्रग्रहीय खतरों से निपटने का तरीका सीखने की पहली कोशिश माना गया।

वैसे तो हमारे ही सौरमंडल में ग्रहों और तारों के निर्माण से बची सामग्री के रूप में असंख्य क्षुद्रग्रह या उल्कापिंड अथवा मलबा मौजूद है, जिनमें से ज्यादातर हमारी पृथ्वी के लिए खतरनाक नहीं हैं। लेकिन वैज्ञानिक कहते हैं कि जब ऐसी कोई चट्टान सूर्य का चक्कर लगाते हुए पृथ्वी की ओर बढ़ती है तो टक्कर की आशंका पैदा हो सकती है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2005 में, अमेरिकी कांग्रेस ने नासा को पृथ्वी के निकट मौजूद 90% फ़ीसदी एस्टेरॉयड को ट्रेक करने का निर्देश दिया था जिनसे पृथ्वी को खतरा हो सकता है। नासा इनमें से अब तक केवल 40% की ही पहचान कर पाया है। पर क्या यह खतरा सच में इतना है कि भयभीत हुआ जाए।

हालिया वर्षों के कुछ वाकयों पर नजर दौड़ाएं, तो एक घटना 10 साल पहले वर्ष 2013 की मिलती है। 2013 में रूस में मास्को से 1500 किलोमीटर दूर स्थित शहर चेल्याबिंस्क इलाके में एक उल्कापिंड गिरने की घटना ने काफी हलचल मचा दी थी। 15 फरवरी 2013 को करीब 10-11 टन का एक उल्कापिंड 54000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पृथ्वी के वायुमंडल में घर्षण करते हुए दाखिल हुआ जिससे इस इलाके में सोनिक बूम के कारण जबर्दस्त धमाका हुआ और कुछ इमारतें ध्वस्त होने के साथ सैंकड़ों घरों की खिड़कियों के शीशे टूट गए। इससे 30-50 किलोमीटर के दायरे में हजार-डेढ़ हजार लोग घायल भी हुए और इस आशंका ने एक बार फिर सिर उठा लिया कि कहीं दुनिया सच में तो खत्म नहीं होने वाली है। यह भी गौरतलब है कि इस घटना से कुछ घंटे पहले उसी रोज पृथ्वी के बेहद करीब (27,357 किलोमीटर की दूरी) से फुटबॉल के मैदान के आधे आकार का, लगभग 150 फुट का एक क्षुद्रग्रह (एस्टेरॉयड)- 2012 डीए14 भी गुजरा था जो अगर धरती से टकरा जाता, तो न जाने कितना विनाश करता। उस दौरान सर्च इंजन- गूगल ने घटना के महत्व को दर्शाते हुए अपनी वेबसाइट से गूगल नामक डूडल हटा लिया और उसके स्थान पर अंग्रेजी के शब्द-जी को एक उड़ते हुए क्षुद्रग्रह की तरह दर्शाया। रूस में हुई घटना ने साबित कर दिया है कि उल्कापिंडों और क्षुद्रग्रहों के पृथ्वी पर आ गिरने से नुकसान होने की आशंका रहती है। अमेरिका की राष्ट्रीय शोध काउंसिल ने इन वजहों से होने वाली मौतों के बारे में सौ वर्षों की अवधि का एक आकलन कर दिसंबर, 2012 में एक रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट के अनुसार औसतन हर साल 91 लोग क्षुद्रग्रहों और उल्काओं की चपेट में आते हैं।

वैसे तो लगभग हर साल छोटे-मोटे क्षुद्रग्रह और उल्कापिंड धरती पर गिरते रहते हैं, लेकिन बड़े क्षुद्रग्रह के धरती से टकराने की सबसे उल्लेखनीय घटना इससे पहले 30 जून 1908 को हुई थी। उस दिन साइबेरिया के जंगलों के 10 किलोमीटर ऊपर आसमान में एक क्षुद्रग्रह ने पृथ्वी के वायुमंडल में भीषण धमाके के साथ प्रवेश किया था जिससे वायुमंडल में ध्वनि का भारी विस्फोट (सोनिक बूम) हुआ था। इसकी वजह से 1600 वर्ग किलोमीटर इलाके के पेड़ उखड़ गए थे। हालांकि उस वक्त इस घटना पर लोगों ने कोई खास ध्यान नहीं दिया था क्योंकि जंगल बहुत सुदूर था और उसमें किसी इंसान की जान नहीं गई थी। लेकिन वैज्ञानिकों ने अपनी गणनाओं के आधार पर दावा किया है कि यही क्षुद्रग्रह यदि चार घंटे 47 मिनट बाद धरती पर गिरा होता तो धूरी पर घूमती हुई पृथ्वी की अंतरिक्षीय स्थिति बदल जाने से निशाने पर रूस का सेंट पीटर्सबर्ग शहर होता और तब इससे हुए विनाश की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। वैज्ञानिक अपनी गणना से यह भी बताते हैं कि यदि यही विस्फोट न्यूयॉर्क के ऊपर हुआ होता तो दस खरब डॉलर का नुकसान होता, करीब 32 लाख लोगों की जान जाती और 37 लाख लोग घायल होते।

कितने नजदीक है खतरा

आसमान से गिरने वाले उल्कापिंड या क्षुद्रग्रह विभिन्न आकार-प्रकार के होते हैं और इसी आधार पर इनसे नुकसान की आशंका होती है। इनके खतरे को क्षुद्रग्रहों के आकार-प्रकार और इनके द्वारा तय की जाने वाली दूरी के आधार पर ही वर्गीकृत किया जाता है। जैसे अगर सौ-पचास मीटर लंबा-चौड़ा कोई क्षुद्रग्रह धरती और सूरज के बीच की एक तिहाई दूरी यानी 480 लाख किलोमीटर दूरी तय करे तो इसे ‘नियर अर्थ ऑबजेक्ट’ कहा जाता है। इस तरह के 8,500 ‘नियर अर्थ ऑब्जेक्ट’ का पता चल चुका है। नासा के अनुसार अगर कोई 150 मीटर चौड़ा क्षुद्रग्रह धरती और चांद के बीच की दूरी से 20 गुना ज्यादा दूरी से धरती के निकट से गुजरता है तो भी उसे एक संभावित खतरनाक क्षुद्रग्रह माना जा सकता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक 5 से 10 मीटर तक चौड़े क्षुद्रग्रह साल में औसतन एक बार धरती की ओर आते हैं। पृथ्वी के वायुमंडल में घर्षण के साथ इनके प्रवेश के कारण बहुत जोरदार धमाका होता है और भारी मात्रा में ऊर्जा पैदा होती है। कई बार यह ऊर्जा उतनी ही होती है जितनी ऊर्जा हिरोशिमा में परमाणु बम के विस्फोट के दौरान पैदा हुई थी। इससे लगता है कि उल्काओं और क्षुद्रग्रहों से हमारी पृथ्वी को बहुत अधिक खतरा है, लेकिन शुक्र इस बात का है कि इनके गिरने से किसी इंसान के मारे जाने की संभावना कई लाख में एक के बराबर है।

हमारी पृथ्वी के नजदीक तीन तरह के क्षुद्रग्रह हैं। इनमें पहली कैटेगरी सी-टाइप एस्टेरॉयड्स की है। इन्हें कॉर्बनेशस एस्टेरॉयड भी कहा जाता है। ये अमूमन कॉर्बन से बने होते हैं। इनमें आम तौर पर पानी, अमोनिया, मीथेन, नाइट्रोजन जैसे संसाधन काफी ज्यादा मात्रा में होते हैं। इनमें दूसरा प्रकार (एम) टाइप एस्टेरॉयड्स का है। इन्हें मेटल-टाइप एस्टेरॉयड्स कहा जाता है। ये पूरी तरह निकिल-आयरन आदि धातुओं से बने होते हैं। इनमें आयरन, निकिल, कोबाल्ट, प्लेटिनम और ग्रुप मेटल्स पाए जाते हैं। क्षुद्रग्रहों का तीसरा प्रकार एस-टाइप एस्टेरॉयड्स का है। ये पत्थर जैसे होते हैं। ऐसे क्षुद्रग्रह आम तौर पर आयरन और मैग्नीशियम अयस्क से बने होते हैं। इनमें भी आयरन, निकिल, मैग्नीशियम, टाइटैनियम जैसे खनिज तत्व मिलते हैं।

इस वक्त एम-टाइप के सबसे छोटे एस्टेरॉयड 3554 एम्युन का विस्तृत अध्ययन चल रहा है। इस क्षुद्रग्रह का व्यास दो किलोमीटर और द्रव्यमान (मास) 30 अरब टन है। इस एस्टेरॉयड में 8000 अरब डॉलर के बराबर आयरन और निकिल मिल सकते हैं। हमारी धरती में इनकी मौजूदा मात्रा की कीमत 340 अरब डॉलर है। इसी तरह इस पर 6000 अरब डॉलर का प्लेटिनम मिल सकता है, पृथ्वी पर सिर्फ 12 अरब डॉलर के बराबर प्लैटिनम है। वहां से 6000 अरब डॉलर का कोबाल्ट भी मिल सकता है, जबकि पृथ्वी पर मौजूद कोबाल्ट सिर्फ 1.3 अरब डॉलर का है।

छिपे हैं जीवन के निर्माण के संकेत

ऐसा नहीं है कि क्षुद्रग्रहों से हमें सिर्फ खतरा ही हो। इनसे जीवन के संकेत भी मिलने की उम्मीद की जा रही है। दावा किया जाता है कि इनमें सौरमंडल के निर्माण के समय के पहले के भी अमीनो एसिड जैसे पदार्थ मौजूद हो सकते हैं जिनसे पृथ्वी पर जीवन के निर्माण की भूमिका बनी थी। ऐसे ही नमूनों की संभावनाएं लिए नासा के एक मिशन ओसाइरस-रेक्स से एक क्षुद्रग्रह- बेनू से जमा किए गए पत्थर और धूल हाल में पृथ्वी पर आए हैं। ओसाइरस-रेक्स यानी ओरिजिन्स, स्पैक्ट्रल इंटरप्रटेशन, रिसोर्स आइडेंटिफिकेशन एंड सिक्यूरिटी- रेगोलिथ एक्सप्लोरर को सात साल पहले अंतरिक्ष में भेजा गया था और अब इस मिशन के जरिये क्षुद्रग्रह बेनू से 4.5 अरब साल पुराने नमूने पृथ्वी पर आए हैं। इनसे वैज्ञानिकों को पृथ्वी के निर्माण और यहां जीवन पनपने की प्रक्रिया के बारे में जानकारी मिलने की उम्मीद है। बेनु क्षुद्रग्रह के ये नमूने पृथ्वी पर गिराने के बाद यह यान अपने अगले अभियान के लिए पृथ्वी के नजदीक स्थित एपोफिस नाम के अन्य क्षुद्रग्रह के लिए रवाना हो गया। बेनु और एपोफिस जैसे क्षुद्रग्रह सौरमंडल के निर्माण के समय के बने थे और उसके बाद से वे उसी स्वरूप में संरक्षित हैं जैसे अपने निर्माण के समय पर थे। इन नमूनों से इसके बारे में भी काफी कुछ पता चल सकता है कि हमारे सौरमंडल में पृथ्वी और अन्य ग्रहों का निर्माण कैसे हुआ। क्षुद्रग्रह सौरमंडल के निर्माण के समय के बने पथरीले पदार्थों से बने हैं। इसलिए इन्हें ग्रहों के निर्माण की शुरुआती ईंटों जैसा माना जा सकता है। बेनू क्षुद्रग्रह जैसे नमूने सबसे पहले जापान की स्पेस एजेंसी जाक्सा ने ड्यूगू नामक क्षुद्रग्रह से वर्ष 2020 में हासिल किए थे। लेकिन उनकी मात्रा कम होने से बहुत ही सीमित जानकारी मिल सकी थी। लेकिन बेनू से लाए गए नमूनों का वजन 149 से 350 ग्राम के बीच है। इनसे ज्यादा जानकारियां मिलने की उम्मीद वैज्ञानिक कर रहे हैं।

खुदाई के तौर-तरीके

क्षुद्रग्रहों के दोहन की असली समस्या यह है कि आखिर कैसे उन पर खुदाई होगी। इन पिंडों से ये खनिज मिनरल्स निकालने और वहां से पृथ्वी तक लाने की लागत काफी ज्यादा है। उन्हें वहां से पृथ्वी तक किस तरह ढोकर लाया जाएगा, यह भी एक बड़ी समस्या है। पर मुमकिन है कि भविष्य में यह लागत कम हो जाए और मालगाड़ीनुमा ऐसे यान भी बन जाएं जिनमें सैकड़ों टन अयस्क लादकर स्पेस से लाना आसान हो जाए। इधर अमेरिका में मून एक्सप्रेस नामक अभियान के तहत इस योजना को अमल में लाने की तैयारी भी चल रही है। इन अंतरिक्षीय पिंडों से ये मिनरल्स निकालने के लिए कौन-कौन से तरीके आजमाए जा सकते हैं, इसका भी एक खाका तैयार है जिनमें स्ट्रिप माइनिंग, शाफ्ट माइनिंग, मैग्नेटिक रैक्स व हीटिंग आदि शामिल हैं। एक अन्य तरीका सेल्फ रेप्लिकेटिंग मशीन का भी है लेकिन अभी इस किस्म की माइनिंग सिर्फ थ्योरी तक सीमित है।

खोद लाएं सोना और प्लैटिनम

एक अंदाजा है कि अगले 50-60 साल में पृथ्वी पर मौजूद सोना, चांदी, लेड, जिंक, कॉपर, टिन आदि सभी मिनरल दुह लिए जाएंगे। ऐसे में चंद्रमा और पृथ्वी के नजदीकी कक्षा में मौजूद एस्टेरॉयड्स से इन्हें निकाल कर लाने का सपना साइंस जगत देख रहा है। चंद्रमा के हीलियम भंडार पर तो साइंटिस्टों की नजर अरसे से है पर इनके अलावा टाइटेनियम और प्लैटिनम जैसे दुर्लभ मिनरल की भारी मात्रा मिलने की उम्मीद भी लगाई जाती है। अमेरिका में एक नई कंपनी शुरू की जा रही है जो सौरमंडल में सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने वाले एस्टरॉइड यानी क्षुद्रगहों से सोने और प्लेटिनम जैसी दुर्लभ धातुओं का खनन करेगी। करोड़ों डॉलर की लागत वाली इस परियोजना के लिए रोबोट संचालित अंतरिक्ष-यानों का इस्तेमाल किया जाएगा जो क्षुद्रगहों से दुर्लभ धातुओं के साथ ही ईंधन के रासायनिक घटकों को निचोड़ लेंगे। इस कंपनी के संस्थापकों में फिल्म निर्देशक जेम्स कैमरन और गूगल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी लैरी पेज शामिल हैं, जो अंतरिक्ष में ईंधन का एक भंडार बनाना चाहते हैं। लेकिन वैज्ञानिकों ने इस परियोजना पर संदेह जताते हुए इसे साहसिक, मुश्किल और बेहद खर्चीला बताया है। यह खर्च कितना होगा, इसका एक अनुमान नासा के आगामी मिशन से लगाया जा सकता है। नासा का यह मिशन एक क्षुद्रग्रह से 60 ग्राम प्लेटिनम और सोना लेकर आएगा जिसकी लागत लगभग एक अरब डॉलर आएगी। इस परियोजना के तहत अगले 18 से 24 महीनों के दौरान निजी टेलीस्कोपों की मदद से ऐसे क्षुद्रग्रहों की तलाश की जाएगी जिनमें वांछित संसाधन पर्याप्त मात्रा में मौजूद हों। इसका मकसद अंतरिक्ष में अन्वेषण के कार्य को निजी उद्योगों के दायरे में लाना है और योजना का मुख्य लक्ष्य उन क्षुद्रगहों को खंगालना है जो पृथ्वी के अपेक्षाकृत नजदीक हैं। नासा के अलावा एक अन्य कंपनी- प्लैनटरी रिसोर्सेज ऐसी ही परियोजना पर काम कर रही है। प्लैनटरी रिसोर्सेज एक लियो टेलिस्कोप तैयार कर रही है। यह दुनिया का पहला व्यावसायिक टेलिस्कोप होगा। इसका इस्तेमाल नियर-अर्थ ऑब्जेक्ट्स यानी धरती के पास वाली चीजों को स्कैन करने के लिए होगा। हालांकि इस कंपनी के कर्ताधर्ताओं का मानना है कि यह कंपनी रातोंरात लाभ कमाने की स्थिति में नहीं आएगी बल्कि दशकों लग जाएंगे और यह भी तभी संभव होगा, जब क्षुद्रग्रहों से प्लैटिनम समूह की धातुएं और अन्य दुर्लभ खनिज पदार्थ मिलेंगे।

लेखक एसोसिएट प्रोफेसर हैं।

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