शिव नवरात्रि के अवसर पर उज्जैन के श्रीमहाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना और आकर्षक शृंगार होते हैं। इस उत्सव में भगवान महाकाल का दूल्हा रूप में शृंगार कर भक्तों को दर्शन देने की परंपरा है। भक्तगण नवरात्रि के नौ दिनों में भगवान शिव की पूजा, उपवास और साधना करते हुए महाकाल के दिव्य दर्शन का लाभ उठाते हैं।
योगेंद्र माथुर
सनातन धर्म परम्परा में जिस प्रकार शक्ति की आराधना के लिए देवी मंदिरों में नवरात्रि मनाई जाती है, उसी प्रकार उज्जैन के विश्वप्रसिद्ध श्रीमहाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में शिव नवरात्रि मनाई जाती है। देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में एकमात्र श्रीमहाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में ही शिव नवरात्रि उत्सवपूर्वक मनाई जाती है। शिव नवरात्रि का यह उत्सव फाल्गुन कृष्ण पंचमी से महाशिवरात्रि महापर्व के अगले दिन तक होता है।
ऐसी आस्था है कि माता पार्वती ने शिवजी को पाने के लिए शिव नवरात्रि में ही भगवान शिव की पूजा-अर्चना के साथ कठिन साधना व तपस्या की थी। अतः यहां भक्त भगवान शिव को प्रसन्न करने व उनकी कृपा पाने की कामना लेकर शिव नवरात्रि के पूरे नौ दिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना, उपवास व साधना करते हैं।
सामान्यतः महाशिवरात्रि को भगवान शिव के विवाह का पर्व माना जाता है। लोक परम्परा में जिस प्रकार विवाह के समय दूल्हे को कई दिन पूर्व से हल्दी लगाई जाती है, उसी प्रकार महाकाल मंदिर में भगवान महाकाल का शिवरात्रि के नौ दिन पूर्व से हल्दी, चंदन, केसर का उबटन लगाकर दूल्हा रूप में शृंगार किया जाता है। सामान्यतः भगवान शिव को पूजन में हल्दी चढ़ाना निषिद्ध माना गया है लेकिन शिव नवरात्रि के दौरान भगवान महाकाल को हल्दी, चंदन, केसर का उबटन लगाकर सुगंधित इत्र, औषधि व फलों के रस आदि से स्नान कराया जाता है और आकर्षक वस्त्र, आभूषण, मुकुट, छत्र, सोला, दुपट्टा व नौ विविध मुखारविन्दों से शृंगारित किया जाता है।
शिव नवरात्रि के पहले दिन पुजारियों द्वारा मंदिर के नैवेद्य कक्ष में भगवान चंद्रमौलेश्वर व कोटितीर्थ कुंड के समीप स्थित कोटेश्वर महादेव के साथ भगवान महाकाल की पूजा-अर्चना कर शिव नवरात्रि के पूजन का संकल्प लिया जाता है। इसके बाद ब्राह्मणों द्वारा भगवान महाकाल का पंचामृत अभिषेक एवं एकादश-एकादशनी रुद्रपाठ किया जाता है। दोपहर में भोग आरती के पश्चात अपराह्न भगवान महाकाल को हल्दी, चंदन व केसर का उबटन लगाकर दूल्हा बनाया जाता है। तदुपरांत संध्या पूजन के पश्चात जलाधारी पर मेखला एवं भगवान महाकाल को नवीन वस्त्र धारण करा कर शृंगार किया जाता है।
इसी प्रकार आगामी दिनों में भगवान महाकाल का क्रमशः शेषनाग शृंगार, घटाटोप मुखारविंद शृंगार, छबिना शृंगार, होलकर मुखारविंद शृंगार, मनमहेश स्वरूप शृंगार, उमा महेश स्वरूप शृंगार व शिव तांडव स्वरूप में शृंगार होता है। इन सभी आकर्षक व मनमोहक शृंगार में बाबा महाकाल के दर्शन कर श्रद्धालु स्वयं को धन्य अनुभव करते हैं। नवरात्रि के दौरान प्रतिदिन सुबह 9 से दोपहर 1 बजे तक गर्भगृह में ब्राह्मणों द्वारा भगवान महाकाल का विशेष पूजन किया जाता है।
महाशिवरात्रि पर्व पर बाबा महाकाल को जलधारा चढ़ाकर दिनभर विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों, पूजन व आरती का क्रम चलता है। अर्द्धरात्रि में भगवान महाकाल की महानिशाकाल की विशेष पूजा होती है। तत्पश्चात अगले दिन सुबह दूल्हा बने भगवान महाकाल को सप्तधान का मुखारविंद धारण करा कर उनके शीश पर सवा मन पुष्प व फल आदि से सेहरा सजाकर रजत आभूषण यथा मुकुट, छत्र, कानों में कुंडल, तिलक, त्रिपुंड, मुंड व रुद्राक्ष की मालाओं से शृंगारित किया जाता है।
सेहरे में सजे बाबा महाकाल के इस दिव्य, अद्भुत, मनमोहक व आकर्षक स्वरूप के दर्शन कर श्रद्धालु आनंद से अभिभूत हो जयकारे लगाते हैं। समूचा मंदिर परिक्षेत्र बाबा के जयकारे से गूंज उठता है।
भगवान महाकाल के इस अलौकिक दर्शन का पुण्य लाभ श्रद्धालुओं को दोपहर 12 बजे तक प्राप्त होता है। प्रतिदिन तड़के 4 बजे होने वाली बाबा महाकाल की भस्मारती इस दिन सेहरा दर्शन सम्पन्न होने के बाद दोपहर को होती है। वर्ष में केवल एक दिन ही तड़के होने वाली भस्मारती दोपहर में होती है। निराकार बाबा महाकाल के भस्म रमैया स्वरूप के दर्शन कर दर्शनार्थी रोमांच से सराबोर हो जाते हैं।
शिव नवरात्रि के दौरान पूरे नौ दिन दूल्हा बने भगवान महाकाल हरिकथा का श्रवण करते हैं। जिस प्रकार देवर्षि नारदजी खड़े होकर करतल ध्वनि के साथ हरि नाम संकीर्तन करते हैं, उसी प्रकार मंदिर परिसर में पंडित कानड़कर परिवार के सदस्य द्वारा प्रतिदिन खड़े रह कर नारदीय संकीर्तन के साथ हरिकथा की जाती है। मंदिर में यह परंपरा विगत 113 वर्षों से भी अधिक समय से निर्वहन की जाती रही है। उत्सव के दौरान समूचे मंदिर परिक्षेत्र में आकर्षक विद्युत व पुष्प सज्जा की जाती है।
शिव नवरात्रि उत्सव के दौरान बाबा महाकाल के दिव्य व अलौकिक दर्शनों के बाद श्रद्धालु आत्मिक शांति व स्वर्गिक आनंद का अनुभव करते हैं। उनका यहां से वापस लौटने का मन नहीं करता। सभी चित्र लेखक