हिमालय के आंचल में बर्फानी बाबा के दिव्य दर्शन
श्री अमरनाथ यात्रा हिन्दू आस्था, पौराणिकता और प्रकृति के अद्भुत संगम का प्रतीक है। हिमालय की गोद में स्थित यह पवित्र गुफा शिवभक्तों के लिए मोक्ष का द्वार मानी जाती है, जहां प्राकृतिक रूप से बनने वाला हिमलिंग भगवान शिव की अमरकथा का साक्षात प्रमाण प्रस्तुत करता है।
डॉ. जवाहर धीर
आदिदेव भगवान शिव को नीलकंठ, केदारनाथ, त्रिनेत्रधारी, अर्धनारीश्वर, बर्फ़ानी बाबा आदि अनेक नामों से पुकारा जाता है। अगर यह कहा जाए कि शिव भारतीय जनमानस के सर्वाधिक पूजनीय देवता हैं, तो ग़लत नहीं होगा। भारत के राज्य जम्मू-कश्मीर में पीर पंजाल के पर्वतों में स्थित श्री अमरनाथ श्राइन में उनके अपने आप बनने वाले बर्फ के शिवलिंग के रूप में स्थापित होने की घटना को अपनी आंखों से देखने के लिए सदियों से प्रतिवर्ष लाखों लोग अत्यंत श्रद्धा से वहां जाते हैं।
बर्फ़ीले पर्वतों में स्थित श्री अमरनाथ गुफा, प्रकृति का अद्भुत चमत्कार है। 12,756 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह गुफा भगवान शिव द्वारा माता पार्वती को अमरकथा सुनाने का पवित्र स्थल मानी जाती है। प्राकृतिक रूप से निर्मित हिमलिंग के दर्शन हेतु शिवभक्त वर्षभर प्रतीक्षा करते हैं। गुफा हर समय बर्फ़ से घिरी रहती है और इसका आकार लगभग 60 फीट चौड़ा, 30 फीट लंबा व 15 फीट ऊंचा है। श्रीनगर से 125 किलोमीटर दूर इस गुफा तक दो मुख्य मार्ग हैं—एक अनन्तनाग से पहलगांव होते हुए और दूसरा गांदरबल जिले का बालटाल मार्ग, जिसे सेना ने अब सुरक्षित और सुविधाजनक बना दिया है। बालटाल से यह 13.2 किलोमीटर का मार्ग चौड़ा कर दिए जाने के कारण अब श्रद्धालु चार से पांच घंटे में गुफा तक पहुंच सकते हैं।
पहला पड़ाव पहलगाम
पर्यटन स्थल पहलगाम अमरनाथ यात्रा के परम्परागत मार्ग का प्रथम पड़ाव है। पहलगाम से सोलह किलोमीटर दूर चंदनवाड़ी नामक स्थान है, जहां यात्री सुबह-सुबह पहुंच कर पैदल यात्रा प्रारम्भ करते हैं और शेषनाग, पंचतरणी में रात्रि विश्राम के बाद अगली सुबह अमरनाथ गुफ़ा के दर्शन करने जाते हैं। दर्शन करने के बाद कुछ यात्री बालटाल के मार्ग से लौटते हैं तो कुछ पहलगाम वाले रास्ते से लौट पड़ते हैं। दोनों ओर के रास्तों से छड़ी के सहारे आना जाना पड़ता है। श्री अमरनाथ गुफ़ा का सारा मार्ग हिमाच्छादित पर्वत शृंखलाओं, विशालकाय पर्वतों एवं संग-संग बहते झरनों और कल-कल करती नदी के साथ मानव को प्रकृति की इस अलौकिक छटा के दर्शन होते हैं। गुफ़ा से साढ़े तीन किलोमीटर पहले यह मार्ग बर्फ़ के बने उस पुल को पार करने से जुड़ा है, जिसके नीचे तक अमर गंगा निर्बाध रूप से बहती रहती है और ऊपर से मानव बिना किसी भय के चलता जाता है। इस पुल के ऊपर खड़े होकर चारों ओर बर्फ़ से ढकीं पर्वत मालाओं को निहारना शिवभक्तों की मानसिक और शारीरिक थकान को दूर करती चोटियां प्रकृति का मनोरम उपहार है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार भगवान श्री शिव सर्व प्रथम श्रावणी पूर्णिमा को ही इस शिवलिंग में स्थित हो गये थे और प्रत्येक श्रावणी पूर्णिमा को यहां प्रकट होने का वर दिया था। इसी कारण से इस दिन हिमलिंग के दर्शनों का विशेष महत्व माना गया है।
उल्लेखनीय है कि आदिकाल में पहलगाम को नंदीग्राम नाम से जाना जाता था, फिर बैलगांव और बाद में समय के साथ पहलगांव या पहलगाम नाम से पुकारा जाने लगा। यहां से चंदनवाड़ी होते हुए लगभग चौदह किलोमीटर दूर शेषनाग झील के किनारे बसे तम्बुओं के अस्थाई नगर में रात्रि विश्राम की व्यवस्था होती है। शेषनाग झील, जिसके पार्श्व में ब्रह्मा, विष्णु और महेश नामक पर्वत शृंखलाएं हैं, स्वर्ग की कल्पना जैसी शांत, गहरे हरे नीले रंग की मनोरम झील है, में मान्यता है कि श्री शिव ने अपने गले में धारण किए शेषनाग को छोड़ा था। यहां के 12300 फीट की ऊंचाई पर बने बर्फ़ के पुल को पार करके आगे महागुणस पर्वत है, जिसकी ऊंचाई समुद्र तट से 14000 फीट है। इसके आगे का पंचतरणी तक का मार्ग उतराई का मार्ग है। पंचतरणी में बहती जलधारा की पांच धाराएं प्रकृति के मनमोहक दृश्य का दर्शन करके प्राणी आनन्द विभोर हो जाता है। यहां से सात किलोमीटर दूर पावन गुफ़ा है, जहां पहुंचने से पहले लगभग साढ़े तीन किलोमीटर दूर संगम नामक स्थान है जहां बालटाल से आता मार्ग संगम में मिलकर एक हो जाता है। बालटाल वाला मार्ग श्रीनगर से 92 किलोमीटर की दूरी पर सोनमर्ग की खूबसूरत वादियों में से जाता हुआ समय की दृष्टि से काफी निकट है। इस मार्ग से जाने वाले यात्री एक ही दिन में दर्शन करके लौट आते हैं। बालटाल से बहुत से यात्री हेलीकॉप्टर से पंचतरणी के पास बने हैलीपेड तक जाया करते रहे हैं।
गुफ़ा के भीतर दाईं ओर पर्वत के ऊपर से बूंद-बूंद करके गिरने वाले जल से हिमलिंग का निर्माण होता है। इसी चबूतरे के पास माता पार्वती और गणेश जी की छोटी पीठ भी अपने आप निर्मित होती है।
पौराणिक आख्यान
श्री अमरनाथ गुफ़ा के साथ कई आख्यान जुड़े हुए हैं। कहा जाता है कि एक बार माता पार्वती ने शिव भोले से कहा कि मुझे वो अमरकथा सुनाइए, जिसे सुनकर सुनने वाला अमरत्व पा जाता है। वे माता पार्वती को साथ लेकर अमरनाथ गुफ़ा की ओर चल पड़े। इस मार्ग पर सबसे पहले उन्होंने अनंतनाग में अपने गले में धारण किए नागों को छोड़ा। इसके आगे बैलगांव (अब पहलगाम) जाकर उन्होंने अपनी सवारी बैल यानी नन्दी का त्याग किया। इसके आगे चलते हुए वे एक स्थान पर रुके और अपने मस्तक पर धारण किए चन्दन को छोड़ा। इसीलिए इस स्थान का नाम चन्दनबाड़ी पड़ा। इस निर्जन मार्ग पर आगे जाते हुए एक झील में अपने गले में धारण किए शेषनाग को छोड़ा, यह झील बाद में शेषनाग झील नाम से मशहूर हुई। आगे चलकर उन्होंने ने अपने बालों को खोला तो बालों में धारण की गंगा पांच धाराओं में बहने लगी। बाद में यह स्थान पंचतरणी के नाम से जाना जाने लगा। पंचतरणी के आगे भगवान शिव मां पार्वती को साथ लेकर उस निर्जन गुफ़ा में पहुंचे, जिसे उन्होंने अमरकथा सुनाने के लिए चुना था
निर्जन गुफ़ा में प्रवेश कर भोलेनाथ ने समस्त प्राणियों को वहां से दूर किया तथा वनस्पतियों आदि को अग्नि भेंट किया और शांत वातावरण में अमरकथा सुनाना शुरू किया। विधि की लीला कि शिव भगवान के आसन के पास मादा पक्षी तोते का अंडा पड़ा रह गया। भोलेनाथ माता पार्वती को कथा सुनाने लगे। पार्वती जी हुंकार भरती रहीं। कथा सुनते हुए माता को नींद आ गई और उसी समय मादा तोते का बच्चा अंडे से बाहर आ गया और हुंकार भरने लगा। कथा की समाप्ति पर भोलेनाथ ने यह दृश्य देखा तो परेशान हो उठे। मगर तोते का बच्चा कथा सुन कर अमर हो चुका था। यही तोता बाद में ऋषि शुकदेव के नाम से मशहूर हुआ।
ऐसी कथा भी ग्रंथों में वर्णित है कि एक बार श्री शिव तपस्या में लीन थे कि उनके दो गण आपस में झगड़ने लगे तो क्रोध में आकर उन्होंने श्राप दे दिया कि तुम कुरु-कुरु करते हुए यहीं स्थित हो जाओ। कहते हैं कि तभी से ये दोनों कबूतर इसी गुफ़ा की कंदराओं में रह रहे हैं।
अविस्मरणीय सेवा-भाव
पिछले कई दशकों से पहलगाम और बालटाल से गुफ़ा तक के मार्ग पर यात्रियों के लिए लजीज़ खाद्य पदार्थों के लंगर लगे होते हैं, जहां पर सेवा करने वाले शिवभक्तों का स्वागत शिवजी के बारातियों की तरह करते हैं।
यात्रा पर लेकर जाएं
यात्री को गर्म कपड़े, छाता या छड़ी, रेनकोट, टार्च, मफ़लर, गर्म टोपी, सुविधाजनक जूते, मुनक्का, ड्राई फ्रूट्स, अपनी जरूरी दवाइयां, कंधे पर लटकाने योग्य वाटरप्रूफ बैग, पानी की बोतल आदि को साथ लेकर चलें।
इस वर्ष दो जुलाई से शुरू होने वाली यह यात्रा नौ अगस्त तक चलेगी।