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उत्तराखंड के सुलगते सवालों पर मंथन

महिला उत्तरजन
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उत्तराखंड की नारी शक्ति ने संघर्ष और आत्मनिर्भरता के साथ समाज में महत्वपूर्ण स्थान बनाया है। ‘महिला उत्तरजन’ के मंच से इन महिलाओं ने राज्य के विकास और अधिकारों की रक्षा के लिए एकजुट होकर आवाज उठाई। आज यह महिलाएं अपनी जीवटता और सशक्तीकरण के साथ प्रेरणा का स्रोत बन चुकी हैं।

सुषमा जुगरान ध्यानी

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महिला हितों की पैरोकार सामाजिक संस्था ‘महिला उत्तरजन’ के बैनर तले दिल्ली के उत्तराखंड सदन में उत्तराखंड की स्वावलंबी और स्वाभिमानी नारी शक्ति से मिलना गौरव की अनुभूति करा गया। इसलिए कि सत्तर के दशक तक इनमें से अधिसंख्य महिलाओं के दादा या पिता घर-गांवों को, अपनी पत्नियों और बूढ़े माता-पिता के जिम्मे छोड़, उसे आबाद रखने का संकल्प लिए अकेले ही रोजगार की तलाश में दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों की ओर रुख करते चले गये। लेकिन मातृभूमि को आबाद रखने का हौसला बनाये रखने वाली नारी शक्ति शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी और यातायात सुविधाओं के अभाव में अकेले दम पर आखिर कब तक इसे सहेज कर रख सकती थी? स्वास्थ्य और बिजली-पानी के साथ ही बच्चों की शिक्षा का जो सबसे बड़ा सवाल उसके सामने मुंह बाये खड़ा था, उसने उसे घर-गांव छोड़ पहाड़ से सटे शहरों या पति के साथ दिल्ली जैसे महानगरों में रहने के लिए विवश कर दिया। लेकिन इतने पर भी उनका अपनी जड़ों से जुड़ाव बना हुआ था। घर-बार, खेती-पाती और पशुधन को वह अपने बुजुर्ग सास-ससुर के जिम्मे इस वादे के साथ छोड़ गईं कि उनकी देखभाल के लिए उनका गांव आना-जाना बना रहेगा।

उत्तराखंड के गांव मूलभूत सुविधाओं के अभाव में विषम परिस्थितियों में भी आबाद थे, खुशहाल थे क्योंकि तब छोटी या बड़ी किसी भी स्तर की नौकरी करने वाले लोगों का निरंतर घर-गांव आने-जाने का सिलसिला बना रहता था। तब दिल्ली में रहते हुए मध्यवर्गीय उत्तराखंडी समाज के भीतर पूरा का पूरा गांव बसता था। जीवन के अंतिम क्षण तक अपने भीतर पूरा उत्तराखंड सहेजे रखने वाले जाने-माने नाटककार, साहित्यकार और पत्रकार राजेंद्र धस्माना का चर्चित नाटक ‘अर्धग्रामेश्वर’ इसी पृष्ठभूमि पर आधारित था। दिल्ली में रहने वाला उत्तराखंडी समाज तब यहां रहते हुए भी अपने गांव की तरक्की के बड़े सपने देखा करता था और उसके लिए तमाम तरह की संस्थाओं के गठन के माध्यम से उसे पूरा करने के प्रति कृत संकल्पित था लेकिन नौकरी-चाकरी और घर-गृहस्थी की जिम्मेदारी के बीच यह सब निभा ले जाना इतना भी आसान और व्यावहारिक नहीं था। लिहाजा पीढ़ियां आगे बढ़ती रहीं, देश-विदेश में उच्च शिक्षा ग्रहण करते हुए सफलता के पायदान छूती रहीं लेकिन बदले में उनके हिस्से का उत्तराखंड पीछे छूटता चला गया। लेकिन उत्तराखंड सदन में जुटा महिला समाज इस विश्वास को बल दे गया कि दिल की गहराई से ईमानदार कोशिश की जाए तो मातृशक्ति के सशक्तीकरण के साथ उत्तराखंड हर तरह से विश्व पटल अपनी चमक बिखेर सकता है।

उत्तराखंड की नारी के लिए इससे बड़ी जीवटता की बात और क्या हो सकती है कि एक पीढ़ी पहले जिनके अभिभावक घोर आर्थिक अभाव के कारण अपनी जड़ों से कटकर दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों में जाकर बस गये, उनकी बेटियां आज अपनी योग्यता और बुद्धिमत्ता के जरिये बड़े-बड़े ओहदों पर विराजमान हैं। महिला दिवस के मौके पर उत्तराखंड सदन में जुटी पहाड़ की इन बेटियों में केंद्रीय सेवा और शिक्षा विभाग में उच्च पदस्थ अधिकारियों से लेकर, पत्रकार, साहित्यकार, डाक्टर, इंजीनियर, वकील, समाजसेवी, उद्धमी, इंटीरियर डिजाइनर और कलाकार जैसे तमाम पेशों से जुड़ीं महिलाओं की मौजूदगी ने स्पष्ट कर दिया कि चाहे पहाड़ के गांवों की निरक्षर महिलाएं हों या नगरों-महानगरों की उच्च शिक्षित महिलाएं- सभी जीवटता की अद्भुत मिसाल हैं।

अस्सी के दशक तक दिल्ली में उत्तराखंड मूल की ऐसी महिलाओं की संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती थीं, जो घर-गांव छोड़कर पतियों के साथ दिल्ली चली आईं अन्यथा खेती के काम से थोड़ा आराम के दिनों में कुछ समय के लिए ही वे दिल्ली आती थीं। ऐसे में सार्वजनिक जीवन में उनकी सामाजिक भागीदारी न के बराबर होती थी लेकिन उन्हीं की दूसरी और तीसरी पीढ़ी की जागरूक नारी शक्ति समाज में पद-प्रतिष्ठा के साथ अपने को तो सबल कर चुकी हैं। वे उत्तराखंड के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक पराभव के प्रति भी बेहद चिंतित हैं। आज भी उत्तराखंड के गांवों में मजबूरी में रह रहे अभावग्रस्त लोगों के लिए उनके मन में एक चिंता है, पीड़ा है। देश की राजधानी दिल्ली में इसके लिए कई-कई संगठन सक्रिय हैं। कोई बोली-भाषा बचाने के लिए तो कोई सामाजिक और सांस्कृतिक अवमूल्यन के विरुद्ध मुहिम छेड़े है।

ऐसे में आज सबसे बड़ी जरूरत यही लगती है कि उत्तराखंड के विकास की राह में रोड़ा बनी कई-कई समस्यायों के निदान के लिए सभी को एकजुट होना होगा और खासकर यहां की नारी शक्ति को, जो सदियों से आहूत आंदोलनों में अग्रणी भूमिका निभाती रही है।

यही वजह रही कि ‘महिला उत्तरजन’ के मंच से राजधानी दिल्ली में जागरूक महिला शक्ति ने राज्य के हित में कई गंभीर मुद्दों पर चिंतन की जरूरत पर बल दिया। भू-कानून से लेकर स्थायी राजधानी का मुद्दा और चिकित्सा, पानी, बिजली यातायात जैसी मूलभूत जरूरतों के लिए एकजुट होकर आवाज बुलंद करने की जरूरत पर बल दिया क्योंकि उत्तराखंड सदन से उठी आवाज संसद तक भी सुनी जा सकती है। चित्र लेखिका

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