बहुआयामी भूमिका के लिए याद रहेंगे धीरज
बतौर नायक धीरज कुमार ने अपने फिल्म जीवन की शुरुआत साल 1970 में हिंदी फिल्म ‘रातों का राजा’ से की थी । लगभग 50 हिंदी फिल्मों में विविध किरदार निभाये। वहीं पंजाबी में दाज़, जुगनी व गोरी दियां झांझरां जैसी फिल्मों से शोहरत बटौरी। वर्ष 1984 में उन्होंने कंपनी स्थापित करके उम्दा सीरियल्स निर्मित कर पेश किये।
प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता, धारावाहिक निर्माता-निर्देशक धीरज कुमार, विनम्रता और गहरी आध्यात्मिक मान्यताओं के प्रतीक थे। उनका काम के प्रति उत्साह देखते ही बनता था। धीरज कुमार की फ़िल्मी विरासत अभिनय से कहीं आगे तक फैली हुई है। ‘क्रिएटिव आई लिमिटेड’ के संस्थापक के रूप में, उन्होंने शुरुआती दौर में भारतीय टेलीविजन जगत को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनकी उल्लेखनीय पौराणिक धारावाहिक कृतियों में ‘ओम नमः शिवाय’, ‘श्री गणेश’ और ‘जय संतोषी मां’ आदि शुमार की जाती हैं। उन्होंने घर की लक्ष्मी बेटियां, ये प्यार न होगा कम और इश्क सुभान अल्लाह जैसे पारिवारिक मनोरंजक धारावाहिक प्रस्तुत किए। इनके अलावा सीरियलों से सांस्कृतिक और आध्यात्मिक कथाओं को रोज़मर्रा की ज़िंदगी में उतारा।
बचपन से था अभिनय का शौक
पुरुषोत्तम दास कोछड़ उर्फ धीरज कुमार का जन्म 27 सितंबर 1946 को लाहौर के व्यवसायी भगवान दास कोछड़ और लीलावती के घर हुआ था। देश का विभाजन हुआ तो उनका परिवार दिल्ली में आ बसा। यहीं उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई। पुरुषोत्तम को बचपन से ही अभिनय करने का शौक था। स्नातक करने के बाद उन्होंने अभिनय प्रशिक्षण हेतु भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान, पुणे में दाखिला ले लिया। उन्होंने ‘फिल्मफेयर यूनाइटेड प्रोड्यूसर टैलेंट कॉन्टेस्ट’ में भाग लिया व फाइनलिस्ट में चुने गए।
फिल्मी जीवन की शुरुआत
धीरज कुमार को कामयाबी के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा। उनके अभिनय वाली प्रथम फिल्म “दीदार” (1970) अधूरी ही रह गई। धीरज कुमार ने बतौर नायक अपने फिल्म-जीवन की शुरुआत रामराज नाहटा की सीक्रेट एजेंट फिल्म “रातों का राजा” (1970) से की थी । इस फिल्म ने बॉक्स-ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन नहीं किया, परन्तु धीरज एक आकर्षक नायक और अच्छे नर्तक के रूप में उभरे। बहुत से प्रसिद्ध अभिनेता ‘कुमार’ उपनाम से जाने जाते थे, इसलिए उसने भी अपना नाम धीरज कुमार रख लिया।
हिंदी के साथ पंजाबी फिल्मों में भी मिली शोहरत
धीरज कुमार ने लगभग 50 हिंदी फिल्मों जैसे स्वामी, रोटी कपड़ा और मकान, हीरा पन्ना, डार्लिंग डार्लिंग क्रांति, शिरडी के साईंबाबा, रत्नदीप, उधार का सिंदूर, आतिश, फौजी और रंगा खुश इत्यादि में विभिन्न भूमिकाएं निभाई थीं। उन्होंने देव आनंद और मनोज कुमार जैसे दिग्गजों के साथ स्क्रीन स्पेस सांझा किया। उन्होंने एक दर्जन से अधिक पंजाबी फिल्मों में बतौर हीरो अपने अभिनय कौशल द्वारा दर्शकों और फिल्म समीक्षकों का अच्छा प्रतिसाद प्राप्त किया। प्रसिद्ध गीतकार इंद्रजीत हसनपुरी ने धीरज कुमार और नई तारिका दलजीत कौर को लेकर पंजाबी फिल्म ‘दाज़’ (1976) का निर्माण किया। इस फिल्म ने पंजाब सर्किट में हिंदी फिल्मों को पछाड़ते हुए सिल्वर जुबली मनाई थी। उन्हें पंजाबी सिनेमा में बहुत मान-सम्मान प्राप्त हुआ। सुभाष भाखरी द्वारा निर्देशित फ़िल्म “शेर पुत्र” में धीरज ने एक सी.आई.डी. इंस्पेक्टर ‘शेरा’ की रोबदार भूमिका निभाई थी।
‘जुगनी’ की यादगार दोहरी भूमिका
निर्देशक सुभाष भाखरी ने उन्हें अपनी आगामी फिल्मों “जुगनी”, “रांझा इक ते हीरां दो”, “गोरी दियां झांझरां” और “चन्न मेरा माही” में अभिनय करने का अवसर प्रदान किया। धीरज कुमार ने फिल्म “जुगनी” (1979) में डाकू कुंदन और सूरज की दोहरी भूमिका निभाई थी। फिल्म “दरानी जेठानी” (1978) में भी किरदार निभाया।
सीरियल निर्माता कंपनी की स्थापना
वर्ष 1984 में उन्होंने अपनी टेलीविज़न कंपनी ‘क्रिएटिव आई’ स्थापित की। उन्होंने सर्वप्रथम देशभक्ति के थीम पर आधारित धारावाहिक “कहां गए वो लोग” (1985) बनाया था। देश पर अपना सब कुछ न्योछावर करने वाले योद्धाओं की प्रेरणादायक कहानियों को धीरज कुमार, सचिन कुमार और राजेंद्र गुप्ता सरीखे कलाकारों ने छोटे परदे पर साकार किया था। तत्पश्चात उन्होंने ‘अदालत’ (1986-87),’आगे-आगे देखो होता है क्या’, ‘धूप छांव’, ‘जाने अंजाने’ आदि सीरियल का निर्देशन किया। उनका अंतिम टीवी शो ‘इश्क सुभान अल्लाह’ था।
पौराणिक धारावाहिकों की शृंखला
धीरज कुमार ने बैनर ‘नमः शिवाय एंटरप्राइजेज’ के सहयोग से पौराणिक धारावाहिक “ओम नमः शिवाय” (1997) का निर्माण किया और इसके बाद ‘श्री गणेश’, ‘जप तप व्रत’, ‘ओम नमो नारायण’, ‘जय संतोषी मां’ आदि लेकर आये। धीरज कुमार 15 जुलाई, 2025 के दिन इस नश्वर संसार को अलविदा कह गए। उनके शोक संतप्त परिवार में उनकी पत्नी जूबी कोछड़ और पुत्र आशुतोष कोचड़ हैं।