लिवर की साइलेंट बीमारी को सजगता से दें मात
हेपेटाइटिस एक गंभीर बीमारी है लेकिन इसके संकेतों की आमतौर पर इसकी अनदेखी कर दी जाती है। इसके सामान्य लक्षणों में शामिल हैं- भूख न लगाना, थकान-कमजोरी महसूस होना, मतली आना, रंग पीला पड़ना, पेशाब का रंग गहरा होना व पेट में दर्द के साथ हल्का बुखार रहना। विश्व स्वास्थ्य संगठन के जरिये हेपेटाइटिस के बारे में जन जागरूकता फैलाई जा रही है। इसकी रोकथाम और उपचार को बढ़ावा देने के लिए समय पर टेस्ट व पहचान होते ही उपचार जरूरी है।
हेपेटाइटिस एक ऐसी बीमारी है, जो यकृत यानी लिवर में सूजन पैदा करती है। यह रोग आमतौर पर वायरस, अत्यधिक शराब के सेवन, कुछ दवाओं के इस्तेमाल या आटो इम्यून स्थितियों के कारण होता है। हेपेटाइटिस शब्द का प्रयोग अक्सर वायरल हेपेटाइटिस के अर्थ में होता है। लेकिन हेपेटाइटिस बीमारी अलग-अलग पांच प्रकार की होती है -हेपेटाइटिस ए, हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी, हेपेटाइटिस डी और हेपेटाइटिस ई। इनमें हेपेटाइटिस ई बीमारी, दूषित खाने, दूषित पानी से आमतौर पर होती है और यह अकसर खुद ही ठीक हो जाती है। लेकिन इसका टीका भी उपलब्ध है।
Advertisementविभिन्न प्रकार की हेपेटाइटिस की जटिलताएं
हेपेटाइटिस बी, जिसे मिनी एचआईवी भी कहते हैं, संक्रमित सुईं के इस्तेमाल या गलत खून चढ़ाने से होती है। हेपेटाइटिस बी के रोगी साथ यौन संपर्क तथा शिशु को मां से भी यह हो सकती है। यह तीव्र और लंबे समय तक रहने वाली बीमारी है। लिवर कैंसर और सिरोसिस इसकी जटिलताओं का हिस्सा हैं। हालांकि इसका टीका उपलब्ध है, फिर भी यह खतरनाक है। इसी क्रम में हेपेटाइटिस सी बीमारी, संक्रमित रक्त से होती है। इसका कोई टीका उपलब्ध नहीं, पर इलाज हो जाता है, मगर कई मामलों में मरीज दम भी तोड़ देता है। ऐसे ही हेपेटाइटिस डी बीमारी है जो आमतौर पर हेपेटाइटिस बी के साथ होती है। यह बहुत गंभीर है, पर हेपेटाइटिस बी का टीका ज्यादातर मामलों में इसे रोक सकता है। अंत में हेपेटाइटिस ई की बात करें तो यह ज्यादातर समय दूषित पानी से होती है और देश में गर्भवती महिलाओं के लिए विशेष तौरपर खतरनाक है।
जन जागरूकता फैलाने के उपाय
हेपेटाइटिस एक गंभीर लेकिन आमतौर पर अनदेखी कर दी जाने वाली बीमारी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने लोगों को इसकी गंभीरता के प्रति ध्यान आकर्षित करने के लिए साल 2010 में 28 जुलाई को वर्ल्ड हेपेटाइटिस डे मनाने की घोषणा की, जिसका उद्देश्य इस साइलेंट किलर बीमारी को लेकर लोगों को सतर्क करने का आह्वान था। इस दिन स्थानीय स्वास्थ्य संस्थाओं और शैक्षिक संस्थाओं के साथ मिलकर हेपेटाइटिस के बारे में जन जागरूकता फैलाई जाती है। इस दिन इसके परीक्षण, रोकथाम और उपचार को बढ़ावा देने का आह्वान किया जाता है। हेपेटाइटिस बी, वायरस की खोज करने वाले डॉ. बारुक ब्लूमबर्ग (साल 1976 में नोबेल विजेता) के जन्म दिन की इस स्मृति में वर्ल्ड हेपेटाइटिस दिवस मनाया जाता है। समय पर जांच और उपचार के महत्व तथा वैक्सीनेशन और सुरक्षा उपायों पर जोर दिया जाता है।
वैक्सीनेशन का अभियान
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का लक्ष्य साल 2030 तक इसके वैश्विक खतरे को खत्म करना है। हालांकि अभी तक इस सिलसिले में बहुत ज्यादा सफलता तो नहीं मिली, लेकिन हां, कुछ हद तक सफलता मिली है। कई देशों ने हेपेटाइटिस वैक्सीनेशन का अभियान शुरू किया है, विशेषकर हेपेटाइटिस बी के लिए और अब बहुत से देशों में नवजात बच्चों का टीकाकरण अनिवार्य हो गया है, इसमें भारत भी शामिल है। वहीं हेपेटाइटिस सी के लिए अब ज्यादातर जगहों पर इसका प्रभावी इलाज उपलब्ध है, लेकिन ज्यादातर पीड़ितों को पता ही नहीं होता कि उन्हें हेपेटाइटिस सी है। वास्तव में जागरूकता की कमी खासकर भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में यह बीमारी साइलेंट किलर के रूप में विख्यात होती जा रही है।
‘...जांच करें, इलाज करें’
विश्व हेपेटाइटिस डे पर विभिन्न शहरों और स्वास्थ्य केंद्रों में निःशुल्क जांच शिविर लगाए जाते हैं। जागरूकता रैलियां निकाली जाती हैं। सोशल मीडिया अभियान शुरू किए जाते हैं और इसके लिए कई रचनात्मक पोस्टर्स व नारे बनाये जाते हैं। विशेषज्ञ डॉक्टरों के साथ इस दिन वेबिनार के आयोजन होते हैं और रोगियों की कहानियां साझा करके इस मामले में आम लोगों को जागरूक करने की कोशिश होती है। डब्ल्यूएचओ हर साल इसकी अलग अलग थीम चुनता है। जैसे साल 2025 की दिशा है, ‘हेपेटाइटिस इंतजार नहीं कर सकता-जांच करें, इलाज करें, समाप्त करें’। यानी सतर्क बनना है और इसकी चपेट आने से पहले खुद को सुरक्षित रखना है।
हेपेटाइटिस के सामान्य लक्षण
शुरुआत में ज्यादातर लोगों में इसके लक्षण नहीं दिखते। लेकिन ध्यान दें तो लक्षण पकड़े जाते हैं। इसके सामान्य लक्षणों में शामिल हैं- भूख न लगाना, थकान और लगातार कमजोरी महसूस होना, रह रहकर उल्टी और मतली आना, आंखों और त्वचा का रंग पीला पड़ना, पेशाब का रंग गहरा होना, पेट में दर्द होना खासकर इसके ऊपरी हिस्से में, लगातार हल्का बुखार रहना। ऐसी स्थिति में हेपेटाइटिस ए और ई की आशंका रहती है।
हेपेटाइटिस बी और सी की चपेट में आने से धीरे धीरे जहां तक इसके बचाव के प्राथमिक उपाय हैं। उनमें विशेष रूप से कारगर हैं -उबला हुआ साफ पानी पीना, सड़क किनारे और संक्रमित जगह का खाना खाने से बचना, स्वच्छता का ध्यान रखना, हेपेटाइटिस बी और सी से बचाव के लिए एचवीवी का टीका जरूर लगवाएं। वहीं असुरक्षित संबंध से बचें, संक्रमित व्यक्ति के ब्लड या सुईं से संपर्क न करें, टैटू पियर्सिंग आदि केवल लाइसेंस प्राप्त जगह से कराएं। साथ ही ब्लड ट्रांसफ्यूजन से पहले जांच करा लें।
हेपेटाइटिस हो जाये तो ऐसे निपटें
हेपेटाइटिस ए/सी हो जाये तो आमतौर पर ये 4 से 6 हफ्ते में खुद ठीक हो जाती हैं। इसलिए आराम करें। हल्का खाना खाएं। भरपूर साफ पानी पीएं। हल्की एक्सरसाइज करें और लिवर फंक्शन टेस्ट करवाएं। वहीं अगर हेपेटाइटिस बी और सी की चपेट में आ जाएं तो याद रखें यह क्रोनिक हो सकते हैं। इसलिए डॉक्टर से रेगुलर मिलें, अपनी बीमारी की मॉनिटरिंग कराएं। बी के लिए दवाएं उपलब्ध हैं। वहीं हेपेटाइटिस सी के लिए 12 से 24 हफ्तों का इलाज उपलब्ध है। गर्भवती महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को इससे विशेष रूप से बचाएं। साल 2024 तक देश में हेपेटाइटिस बी से करीब 4 करोड़ लोग संक्रमित थे और हेपेटाइटिस सी से करीब 60 से 80 लाख। बता दें कि हेपेटाइटिस ए और ई बीमारियां, विशेषकर बरसात और गंदे पानी से बढ़ती हैं। इसलिए ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में इसके टीकाकरण पर जोर देना चाहिए। नाइयों, टैटू आर्टिस्टों व क्लीनिकों में जागरूकता अभियान चलाना चाहिए।
-इ.रि.सें.