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चे ग्वेरा : बराबरी के गुरिल्ला क्रांतिकारी

लैटिन अमेरिका के गुरिल्ला क्रांतिकारी चे ग्वेरा पेशे से प्रशिक्षित डॉक्टर थे। वह फीदेल कास्त्रो के साथ क्रांतिकारियों की उस टीम का हिस्सा थे, जिसने 1959 में क्यूबा में क्रांति की थी। उनकी उस टीम में फीदेल के बाद दूसरे...

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लैटिन अमेरिका के गुरिल्ला क्रांतिकारी चे ग्वेरा पेशे से प्रशिक्षित डॉक्टर थे। वह फीदेल कास्त्रो के साथ क्रांतिकारियों की उस टीम का हिस्सा थे, जिसने 1959 में क्यूबा में क्रांति की थी। उनकी उस टीम में फीदेल के बाद दूसरे नंबर की हैसियत थी। भारत और भारतीयों से दिली लगाव रखने वाले चे ग्वेरा 30 जून 1959 को यानी क्यूबा में क्रांति संपन्न होने के 6 महीने बाद ही भारत की यात्रा पर आये थे और यहां से वह खासे प्रभावित होकर लौटे थे।

चे ग्वेरा का जन्म अर्जेंटीना के रोसारियो कस्बे में 14 जून 1928 को हुआ था। उनका पूरा नाम था- डॉ. अर्नेस्टो रैफेल ग्वेवारा डि ला सेरना। मगर अपने समर्थकों के बीच वह सिर्फ ‘चे’ अथवा चे ग्वेरा के नाम से जाने जाते थे। उनके उच्च मध्यमवर्गीय परिवार के सदस्य पक्के वामपंथी विचारों के थे। लम्बे पॉज देकर बोलने वाले चे हमेशा फौजी वर्दी में रहते थे। 1948 में उन्होंने ब्यूनस आयर्स यूनिवर्सिटी में प्रवेश लिया और चिकित्सा विज्ञान के छात्र के रूप में 1953 में अपना अध्ययन पूरा किया। इसी दौरान उन्होंने लैटिन अमेरिकी देशों का भ्रमण किया। उसी साल देश में दक्षिणपंथी राष्ट्रपति पेरियन के विरोध में देश छोड़ दिया। पढ़ाई के दौरान ही वह कम्युनिस्ट नेता की हैसियत पा चुके थे। उन दिनों फीदेल कास्त्रो कम्युनिस्ट क्रांति के लिए गुरिल्ला लड़ाई लड़ रहे थे। चे उनसे जा मिले। 1959 में सत्ता पर काबिज होने के बाद कास्त्रो ने चे को कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी। लेकिन उन्होंने 1965 में क्यूबा छोड़ दिया। क्रांति का माहौल बनाने के मकसद से चे पहले कांगो और फिर बोलीविया गए। माना जाता है कि अमेरिका की खुफिया एजेंसी के इशारे पर ग्वेरा को कथित तौर पर बोलीविया के सैनिकों ने मार डाला या सैनिकों के कब्जे से निकल भागने के प्रयास में मारे गए। 9 अक्तूबर 1967 को वे इस दुनिया में नहीं रहे। बराबरी का दुनिया में जब तक सपना देखा जायेगा, चे हमेशा याद किए जाएंगे।

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