बदली जीवनशैली और जांच से न आएगी मासूम दिल पर आंच
बच्चों व किशोरों को सडन कार्डिएक अरेस्ट की घटनाएं बेहद चिंताजनक है। इसमें बच्चे को घबराहट, सांस में दिक्कत, धड़कन में तेजी व बेहोशी आती है और मौत हो सकती है। जिसकी प्रमुख वजह है खराब जीवनशैली व तनाव। ऐसे में पैरेंट्स सावधानी रखें। अगर बीमारी के लक्षण बच्चे में दिखें तो तुरंत मेडिकल मदद लें । इसी विषय पर फरीदाबाद स्थित एक अस्पताल में सीनियर कंसल्टेंट-पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजी डॉ. मनीषा चक्रवर्ती से रजनी अरोड़ा की बातचीत।
बीते दशक में हार्ट अटैक से मरने वालों की फेहरिस्त में कई मासूम शामिल होने की खबरें काफी देखने-सुनने को मिली। जिनकी किसी तरह की मेडिकल हिस्ट्री नहीं थी, फिर भी खेलते-खेलते सडन कार्डियक अरेस्ट होने से मौत हो गई। खेलने-कूदने की उम्र में बच्चे, बड़ों को होने वाली गंभीर बीमारियों का कैसे शिकार हुए, यह दुखदायी तो है ही, सेहत के लिए खतरे की घंटी भी है। जिसके प्रति समाज विशेषकर पैरेंट्स को सजग होने और यथाशीघ्र जीवनशैली में बदलाव लाने की जरूरत है।
Advertisementसडन कार्डियक अरेस्ट
हार्ट अटैक की दशा में कोरोनरी आर्टरीज में फैट या प्लाक जमा होने से हार्ट की मसल्स ठीक तरह से काम नहीं कर पातीं। ज्यादा दवाब पड़ने से आर्टरीज फट जाती हैं। ब्लड क्लॉट बनने से आर्टरीज ब्लॉक हो जाती हैं। हार्ट तक जाने वाला ब्लड सर्कुलेशन बाधित हो जाता है और हार्ट अटैक का खतरा रहता है। जबकि बच्चों को सडन कार्डिएक अरेस्ट नॉर्मल हार्ट अटैक से अलग होता है। यह किसी भी उम्र के बच्चों (नवजात शिशु को भी) को हो सकता है। इसमें बच्चे को घबराहट, सांस लेने में दिक्कत के साथ दिल की धड़कन एकाएक तेज होती है, बेहोशी आने लगती है और एक घंटे के अंदर-अंदर मौत हो सकती है।
सभी पैरेंट्स अपने बच्चे को तंदुरुस्त रखना चाहते हैं। लेकिन आजकल बचपन से ही आरामपरस्त जीवनशैली और खानपान की गलत आदतें विकसित हो रही हैं। मेटाबॉलिक रेट खराब हो रहा है और मोटापा बढ़ रहा है। दस साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते हार्ट आर्टरीज ब्लॉक होनी शुरू हो जाती हैं। देर-सवेर उन्हें हृदय रोग या ऐसी अन्य गंभीर बीमारियां घेर सकती हैं।
ये हैं कारण
बच्चों में हृदय की सेहत से जुड़ी समस्याओं के कई कारण है। मसलन, पैदाइशी हार्ट की बनावट खराब होना, हार्ट ब्लॉक होना। वहीं हार्ट अटैक, ब्लड प्रेशर, ब्लड में कोलेस्ट्रॉल ट्राइग्लिसराइड लेवल ज्यादा होना व मोटापा जैसी समस्याओं की फैमिली हिस्ट्री होना। जन्म से हार्ट की मसल्स कमजोर होना, या हार्ट को ब्लड सप्लाई करने वाली नस उल्टी जुड़ी हुई होना। किसी बीमारी के बाद नसों में सूजन आना यानी कावासाकी डिजीज। हार्ट मसल्स में कैल्शियम, विटामिन डी या किसी एंजाइम की कमी होना। वहीं बच्चे में कोलेस्ट्रॉल ज्यादा होने के कारण हार्ट अटैक का खतरा रहता है। कई मामलों में मेटाबॉलिक गड़बड़ी के कारण बच्चों के हार्ट की पम्पिंग कम होती है जिससे शरीर में कहीं भी ब्लड क्लॉट हो सकता है जो धीरे-धीरे हार्ट आर्टरीज तक पहुंच जाता है व हार्ट अटैक का कारण बनता है। हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी की समस्या होना, जिसमें हार्ट की मसल्स मोटी और बढ़ जाती हैं, जिससे हार्ट को पंप करने में परेशानी होती है । अन्य वजह हो सकती है लॉन्ग क्यूटी सिंड्रोम होना जिसमें हार्टबीट कंट्रोल करने वाले इलेक्ट्रिकल सिस्टम में विकार होने से सांस लेने में दिक्कत होना। नियमित दिनचर्या न होना व मोबाइल-टीवी में ज्यादा समय बिताना, घंटों बैठे रहना। आउटडोर गेम्स खेलने जाने से कतराना। पढ़ाई का प्रेशर, अकेलापन और तनाव। पौष्टिक भोजन न खाना।
कैसे पहचानें दिल की बीमारी को
दिल की बीमारी न सिर्फ बच्चों की विकास प्रक्रिया को प्रभावित करती है, बल्कि गंभीर जटिलताएं भी पैदा कर सकती है। अगर बच्चे में ये लक्षण दिखें तो पैरेंट्स को फौरन मेडिकल मदद लेनी चाहिए, ताकि समय पर टेस्ट और डायग्नोसिस हो सके। मसलन, कमजोर होना या विकास ठीक तरह न होना। चिड़चिड़ा होना या ज्यादा रोना। थकान-कमज़ोरी महसूस करना। पसीना ज्यादा आना। सांस फूलना। त्वचा का पर्पल या फिर ग्रे-ब्लू का होना जैसे होंठों, म्यूकस मेम्ब्रेन और नाखूनों का रंग बदलना। धड़कन तेज होना। घबराहट होना, चक्कर आना। खून की कमी होना। छाती-हाथ या पेट में दर्द होना।
पैरेंट्स रखें ध्यान
हालांकि बच्चों में हार्ट अटैक के मामले बहुत कम ही होते हैं, फिर भी पैरेंट्स को सतर्क रहना चाहिए।
प्रेग्नेंसी में मां के लिए जरूरी है कि बुखार या किसी भी तरह के इंफेक्शन होने से यथासंभव बचाव करे। डॉक्टर को कंसल्ट किए बिना किसी तरह की दवाई नहीं ले। जन्मोपरांत बच्चे की हार्ट-स्क्रीनिंग जरूर करवाएं। इको कार्डियोग्राफी या हार्ट का अल्ट्रासाउंड ( हार्ट की बनावट, हार्ट फंक्शन या अन्य समस्या), ऑक्सीजन सेचुरेशन ( हार्ट फंक्शन), ब्लड प्रेशर का पता चल जाता है। खास बात यह कि तीन साल की उम्र से ही ब्लड प्रेशर समय-समय पर चैक करवाएं ताकि बच्चे में हाइपरटेंशन जैसी समस्या पकड़ में आ सके। वहीं मोटापे का शिकार बच्चों में लिपिड प्रोफाइल,थायरायड ,ब्लड शूगर का टेस्ट समय-समय पर जरूर करवाएं। इससे बच्चे में हार्ट संबंधी समस्या का पहले पता चल सकता है और यथासमय उपचार किया जा सकता है।
हेल्दी खाने, एक्टिव रहने की आदतें
अभिभावक अपने बच्चों को घर में बना पौष्टिक आहार खाने की आदत डालें। प्रत्येक मील में फाइबर, प्रोटीन, विटामिन-मिनरल से भरपूर चीजें शामिल करें। ऑयली खाना कम दें। दिन में 4-5 गिलास पानी या कम चीनी वाले पेय पीने को दें। चीनी, नमक, मैदा और रिफाइंड ऑयल खाने से परहेज करने की आदत डालें। डब्ल्यूएचओ के अनुसार बच्चे को रोजाना 3 चम्मच से अधिक चीनी देना नुकसानदायक है। अल्ट्राप्रोसेस्ड, ब्रेड या बेकरी से बनी चीजें व फास्ट फूड न दें। हेल्दी और ईजी-टू-ईट स्नैक्स बनाकर टिफिन में दें। वहीं बच्चों के रोल मॉडल बनें। सोशल मीडिया एडिक्शन को कम करने के लिए स्क्रीन टाइम सीमित करें। बच्चों को इनडोर गेम्स खेलने, हॉबीज के अनुरूप काम करने या दूसरी एक्टिविटीज करने के लिए प्रोत्साहित करें। बच्चे को सक्रिय रहने और आउटडोर एक्टिविटीज के लिए प्रोत्साहित करें। वहीं पैरेंट्स बच्चों को स्ट्रेस-मैनेजमेंट तकनीक जरूर सिखाएं। वहीं नियत समय पर सोने-जागने ,खाने-पीने का रूटीन सेट हो। लेकिन कम से कम 8 घंटे की नींद जरूरी है।