Tribune
PT
Subscribe To Print Edition About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

चंदा मामा बस एक टूर के

ज्योत्सना कलकल हम चांद को देखें, दुनिया हमें, यूं अंकित हुए इतिहास में। ज्ञान, विज्ञान, प्रज्ञान का ले परचम, चार चांद लगे जोश-विश्वास में। दस्तक दी फिर पूरी तैयारी से, भेजा धरा ने असीम स्नेह। दूर के नहीं बस एक...

  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

ज्योत्सना कलकल

हम चांद को देखें, दुनिया हमें, यूं अंकित हुए इतिहास में।

Advertisement

ज्ञान, विज्ञान, प्रज्ञान का ले परचम, चार चांद लगे जोश-विश्वास में।

Advertisement

दस्तक दी फिर पूरी तैयारी से, भेजा धरा ने असीम स्नेह।

दूर के नहीं बस एक टूर के हुए, अब चंदा मामा निस्संदेह।

चोट पुरानी सुलग रही थी, छूटा जो एक ख़्वाब था।

संपर्क टूटा था, संकल्प नहीं, हौसला बेहिसाब था।

लो निशां कदमों के छोड़ दिए हैं, सुनहरे पन्ने जोड़ दिए हैं।

स्वछंद, उन्मुक्त हुआ अब भारत, आशाओं के रुख मोड़ दिये हैं।

माथे का तिलक बना इसरो, उम्मीदों और अभिलाषाओं सहित।

ऊंचा और ऊंचा उड़े तिरंगा हमारा, लक्ष्य हो सम्पूर्ण जगत का हित।

Advertisement
×