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अलौकिक-मनोहारी आस्था का केंद्र

मणिमहेश
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हिमाचल की गोद में बसी मणिमहेश झील और पर्वत आस्था, रहस्य और शिव भक्ति का अद्वितीय संगम प्रस्तुत करते हैं।

आदिकाल से ही देवभूमि हिमाचल प्रदेश अपने मनोहारी एवं अलौकिक स्वरूप के कारण देवी-देवताओं की प्रिय तपस्थली रहा है। यहां की गगनचुंबी बर्फीली पर्वतमालाएं, पर्वतों के मध्य प्राकृतिक रूप से बनी झीलें, पर्वतों के बीचोंबीच सर्पीले बहाव में कल-कल बहती दूधिया जल की नदियां और प्रकृति की मनोहारी छटाओं का दीदार करने के लिए मानव हमेशा से ही पर्वतों की ओर आकर्षित होता रहा है। इन्हीं शांत, निर्जन तथा सांसारिक कोलाहल से बहुत दूर के वातावरण में एक ऐसी जगह है जिसके बारे में मान्यता है कि यह स्थान शिव-पार्वती की क्रीड़ा स्थली है। मणि महेश नामक यह तीर्थ छोटा अमरनाथ के नाम से भी जगतप्रसिद्ध है।

मणिमहेश की मान्यता

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मणिमहेश पर्वत के शिखर पर प्रातः काल की भोर में एक प्रकाश उभरता है,जो तेज़ी से उसी पर्वत की आगोश में प्राकृतिक रूप से बनी झील में प्रवेश कर जाता है। इसे इस बात का प्रतीक माना जाता है कि भोलेनाथ पर्वत पर बने अपने आसन पर पधारे हैं। दिखाई देने वाला प्रकाश भोलेनाथ के गले में धारण किए हुए नाग की नागमणि का है।

झील में परछाई

मणिमहेश पर्वत तथा इर्दगिर्द के अन्य पर्वतों के मध्य एक नीले रंग के पानी वाली झील है। एक किलोमीटर की परिधि में स्वयं निर्मित इस झील में मणिमहेश पर्वत की परछाई को निहारते ही मन रोमांचित हो उठता है। तीर्थ यात्री इस झील की ही परिक्रमा करके आनंदित होते हैं।

बिना छत का मंदिर

कैलास शिखर के नीचे और झील के बाएं किनारे पर खुले में एक मंदिर है, जो हमेशा से ही बिना छत के है। इस मंदिर में जो बड़ी मूर्ति है वो शिव शंकर की न होकर पवनहारी बाबा बालक नाथ जी की है। इस मंदिर की मूर्तियों के बारे में बताया जाता है कि हड़सड़ गांव, जहां से पैदल पहाड़ी यात्रा प्रारम्भ होती है, के लोग यहां से मंदिर स्थल पर रखने के लिए मूर्तियां लेकर वहां जाते हैं और यात्रा समाप्त होने पर मूर्तियों को वापस हड़सड़ ले आते हैं।

छोटा कैलास

विश्वास है कि झील के साथ का पर्वत, जहां शिव का आसन मौजूद है, शिव का शरीर है। आश्चर्यजनक है कि आज तक कोई भी पर्वतारोही, साधु-संन्यासी आदि मणिमहेश पर्वत के शिखर पर पहुंच नहीं पाया। समुद्र तट से 13 हज़ार फीट ऊंची मणिमहेश झील के किनारे खड़ा मणिमहेश पर्वत उस क्षेत्र के लोगों में छोटा कैलास के नाम से मशहूर है, की समुद्र तट से ऊंचाई 18,564 फीट है।

योगी चरपटनाथ ने खोजी झील

छठी शताब्दी में, जब चम्बा अभी बसा नहीं था, तब ब्रह्मपुर (आज का भरमौर) का राजा मेरु वर्मन था। राजा के गुरु सिद्ध योगी चरपटनाथ थे, जो जंगलों और पर्वतों पर घूमते रहते थे। एक बार पर्वत पर चढ़ते-चढ़ते उन्हें एक विशाल आकार में प्राकृतिक रूप से बनी झील दिखाई दी। मणिमहेश पर्वत के ठीक सामने बनी इस झील को खोजने का श्रेय तभी से योगी चरपटनाथ को दिया जाता है।

इस झील तक जाने के लिए भरमौर कस्बे से चौदह किलोमीटर का पहाड़ी मार्ग तय करने के बाद यात्रा का आधार शिविर हड़सड़ आता है, जहां से मणिमहेश की यात्रा प्रारम्भ होती है। यहां से आगे पहाड़ी पर्वतीय पैदल मार्ग शुरू होता है। यहां से शिखर तक पैदल ही जाना पड़ता है। लगभग पन्द्रह किलोमीटर की चढ़ाई के आगे गोठ तथा मध्य में धनछोह नामक स्थान आता है, जहां लोग विश्राम के लिए रुकते हैं। यहां पर एक झरना है।

कब जाएं

अधिकारिक रूप से मणिमहेश यात्रा हर साल श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से राधाष्टमी तक मात्र दो सप्ताह की ही होती है। जन्माष्टमी पर होते स्नान को ‘योग न्हान’ यानी छोटा स्नान होता है, जिसमें पुरानी परम्पराओं के अनुसार साधु-संन्यासी और भद्रवाह क्षेत्र के लोग स्नान करने के लिए आते थे, जबकि राधाष्टमी पर होने वाले स्नान, जिसे बड़ा स्नान कहते हैं में अन्य सभी वर्गों के लोग भाग लेते हैं।

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