योगेश कुमार गोयल
आनंद, हर्षोल्लास, प्रसन्नता एवं प्रकाश का उत्सव है दिवाली। यह सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि उत्सवों का महासंगम है। यह अलग-अलग सांस्कृतिक विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करने वाले पांच पर्वों का विराट महोत्सव है। धनतेरस, रूप चतुर्दशी, दीपावली, अन्नकूट, भैया दूज- इन पांचों पर्वों का संबंध मानव जीवन में आयु, आरोग्य, धन, वैभव, समृद्धि, ज्ञान एवं मोक्ष प्राप्ति की कामना से जुड़ा है। ‘भैया दूज’ के साथ ही पांच पर्वों की इस महाशृंखला का समापन होता है। दीपोत्सव के रूप में पंचमहापर्व मनाने की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और हर पर्व मानव जाति को कुछ न कुछ सार्थक एवं सकारात्मक संदेश प्रदान करता है। दीपक को ज्ञान का प्रतीक माना जाता है, इसलिए इन पर्वों को मनाते समय दीपक जलाने का तात्पर्य सिर्फ बाहरी प्रकाश करना ही नहीं, बल्कि जलते हुए दीपक का प्रकाश हमें अज्ञान एवं मोहमाया के गहन अंधकार से निकलकर प्रकाश की ओर जाने की प्रेरणा देता है। जिस प्रकार एक दीपक खुद जलकर दूसरों को प्रकाश देता है, उससे हमें प्रेरणा मिलती है कि हम भी अपने ज्ञान रूपी प्रकाश से दुनिया को आलोकित करें और अपनी बुद्धि को सद्कार्यों एवं मानव जाति की भलाई में लगाएं।
दिवाली के रूप में प्रतिवर्ष आने वाला उत्सवों का यह महासंगम हमें संदेश देता है कि हम अपनी राक्षसी मनोवृत्तियों को त्यागकर अपने हृदय में मानवीय गुणों का विकास करें। पंचपर्व महोत्सव पर मनुष्य अपने इष्ट देवों का पूजन कर आयु वृद्धि, उत्तम स्वास्थ्य, अपार धन-दौलत, ज्ञान, वैभव एवं मोक्ष की कामना करता है।
पांच पर्वों के इस महासंगम की शुरुआत कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से होती है और कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को इसका समापन होता है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन आरोग्य के देवता धन्वंतरि तथा मृत्यु के देवता यमराज का पूजन किया जाता है और सायंकाल घर के मुख्य प्रवेश द्वार पर एक दीपक जलाकर यमराज से आयु वृद्धि की प्रार्थना की जाती है। इस दिन नये बर्तन अौर आभूषण खरीदना शुभ माना जाता है। इस दिन घी के दीपक जलाकर लक्ष्मी का भी आह्वान किया जाता है तथा घर में रखे कीमती आभूषणों तथा नकदी का भी पूजन किया जाता है।
कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का दिन ‘नरक चौदस’ के रूप में मनाया जाता है, जिसे ‘रूप चौदस’ व ‘छोटी दीपावली’ भी कहा जाता है। इस दिन यमराज के साथ-साथ धर्मराज, चित्रगुप्त का भी पूजन किया जाता है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व शरीर पर तेल, उबटन आदि लगाकर स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान नहीं करता, उसके शुभ कार्य वर्ष भर सफल नहीं होते। इस पर्व का संबंध शारीरिक स्वच्छता के अलावा घर की स्वच्छता से भी माना गया है, इसीलिए लोग इस अवसर पर अपने घर का कूड़ा-कचरा बाहर निकालते हैं तथा घर की अच्छी तरह सफाई करते हैं। शाम को पुराने दीपक में सरसों का तेल डालकर उसमें पांच अन्न के दाने के साथ उसे घर की नाली की ओर जलाकर रख दिया जाता है और यमराज से कामना की जाती है कि उनकी कृपा से हमें नरक के भय से मुक्ति मिले। यह दीपक ‘यम दीपक’ कहलाता है। इसके अलावा कुछ दीपक जलाकर उनसे घर, दुकान अथवा कार्यालय को अलंकृत किया जाता है। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन नरकासुर नामक राक्षस का वध करके उसके कारागार से 16000 कन्याओं को मुक्त कराया था। कार्तिक मास की अमावस्या को बड़ी धूमधाम से ‘दीपावली’ का त्योहार पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है और आतिशबाजी करके खुशियां मनाई जाती हैं। इस दिन महालक्ष्मी, गणेश, सरस्वती, महाकाली, कुबेर और नवग्रहों का पूजन किया जाता है। रात्रि के समय दीपों की कतार से अपने घर, प्रतिष्ठानों को आलोकित किया जाता है। महालक्ष्मी से प्रार्थना की जाती है कि वह हमारी आर्थिक प्रगति के मार्ग में आने वाली तमाम बाधाओं और दरिद्रता को दूर कर हम पर सदैव अपनी कृपादृष्टि बनाए रखें।
दीपावली के अगले दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए ‘अन्नकूट’ पर्व मनाया जाता है। मोक्ष प्राप्ति के लिए इस दिन ‘गौ पूजन’ करने का विशेष विधान है। पशुओं के गोबर से लोग घर में गोवर्धन की आकृति बनाते हैं तथा विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाकर गोवर्धन की पूजा की जाती है। कुछ लोग इस दिन भगवान चित्रगुप्त एवं विश्वकर्मा की भी पूजा करते हैं।
इसके अगले दिन यानी कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को ‘भैया दूज’ मनाया जाता है, जिसे ‘यम द्वितीया’ के नाम से भी जाना जाता है। नारद पुराण में कहा गया है कि इस दिन भाई द्वारा अपनी बहन के घर जाकर भोजन ग्रहण करने तथा अपनी सामर्थ्यानुसार बहन को आभूषण या अन्य उपहार देकर उसका आशीर्वाद लेने से यमराज उसके निकट नहीं आते और वह अकाल मृत्यु के प्रभाव से बचा रहता है। शाम को मृत्यु के देवता यमराज को प्रसन्न करने के लिए तेल का दीपक प्रज्वलित कर दीपदान किया जाता है।