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लोक संस्कृति और जीवंत परंपराओं का उत्सव

पुष्कर मेला 30 अक्तूबर से 5 नवंबर

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रेगिस्तान की रेत पर लगने वाला पुष्कर मेला, आस्था, संस्कृति और लोकजीवन का अद्वितीय संगम है। यह परंपरा, पर्यावरण और पर्यटन के बीच संवाद की एक जीवंत अनुभूति बन चुका है।

भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश की आत्मा उसकी लोकसंस्कृति और धार्मिक परंपराओं में बसती है। ऐसी ही लोकधर्मी परंपराओं का वाहक है पुष्कर मेला। पुष्कर मेला न केवल राजस्थान बल्कि सम्पूर्ण भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर का प्रतीक है। यह मेला हर साल कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित होता है। आज केवल यह अतीत में मशहूर रहे पशु मेला के रूप में ही अपनी उपस्थिति नहीं रखता बल्कि भारत की धार्मिक, सांस्कृतिक और पर्यटन की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण ‘राष्ट्रीय लैंडमार्क’ की ख्याति हासिल कर चुका है। आइये जानते हैं इस मेले में क्या कुछ खास होता है।

ब्रह्माजी की नगरी का उत्सव

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पुष्कर भारत का अद्वितीय नगर है। सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा का देश में एकमात्र मंदिर यहीं स्थित है। मान्यता है कि ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना करने के बाद यज्ञ करने के लिए एक पवित्रस्थल की खोज कर रहे थे, तब एक कमल पुष्प उनकी हथेली से गिर पड़ा और यह जहां गिरा, उस स्थान पर पुष्कर झील बन गई। इसलिए यह स्थल पुष्कर तीर्थ कहलाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन इस झील में स्नान करना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन ब्रह्माजी स्वयं झील के जल में स्नान करने के लिए आते हैं, जो व्यक्ति इस दिन यहां स्नान करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। यही कारण है कि पुष्कर मेला के समय देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु और साधु-संत यहां पवित्र स्नान के लिए पहुंचते हैं। इस अवसर पर पुष्कर झील के घाटों पर होने वाले दीपदान और आरती का दृश्य भारतीय आध्यात्म का जीवंत रूप प्रस्तुत करता है।

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लोकजीवन और परंपराओं का महाकुंभ

पुष्कर मेला सिर्फ भारतीय लोकसंस्कृति का ही बहुत बड़ा उत्सव नहीं है, यह पशु व्यापार का भी बहुत बड़ा मेला है। यहां समूचे भारत के ग्रामीण जीवन की जीवंत झांकी देखने को मिलती है। राजस्थान के विभिन्न जिलों से लेकर इस मेले में हरियाणा, पंजाब, गुजरात और उत्तर प्रदेश तक के ग्रामीण लोग अपनी पारंपरिक वेषभूषा, गीत, नृत्य और हस्तशिल्प के साथ आ जुटते हैं। पुष्कर मेले में होने वाले लोकनृत्य प्रतियोगिताओं में मटकी दौड़, ऊंट सजावट, ग्रामीण खेल, लोकसंगीत, कठपुतली नाटक और पारंपरिक वाद्ययंत्रों की धुनें, भारत की विविधता में एकता का अद्भुत संदेश देती हैं। यह मेला वास्तव में ग्रामीण भारत की सजीव आत्मा पेश करता है। यहां महिलाएं पारंपरिक लहंगे, ओढ़नी आदि में सजी दिखती हैं और पुरुष रंग-बिरंगी पगड़ियों में सजते हैं।

व्यापार और पर्यटन

हम सब जानते हैं पुष्कर मेला भारत का सबसे बड़ा पशु मेला भी है। विशेष रूप से ऊंट और घोड़ों के व्यापार के लिए। राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में पशुधन आजीविका का महत्वपूर्ण आधार है। इस मेले के दौरान यहां हजारों ऊंट, घोड़े और गाय, बिकने के लिए आती हैं। इस खरीद-फरोख्त के जरिये स्थानीय अर्थव्यवस्था को खूब बल मिलता है। इसके साथ ही इस मेले का अपना पर्यटन उद्योग भी असाधारण होता है। पुष्कर मेला के दौरान देश-विदेश से लाखों सैलानी यहां आते हैं। विदेशी पर्यटक विशेषकर यहां भारतीय संस्कृति, योग, संगीत और आध्यात्म का जीवंत अनुभव करने आते हैं।

मरुस्थल में नखलिस्तान

पुष्कर अरावली पर्वतमाला के बीच में स्थित है। जहां रेगिस्तान का शुष्क भू-भाग और झील का शांत जल एक अद्भुत विरोधाभास रचते हैं। राजस्थान में स्थित यह ऐसा क्षेत्र है, जहां जल और मरुस्थल का साझा अस्तित्व देखने को मिलता है। ऐसी विविधता का दूसरा उदाहरण दुर्लभ है। झील के चारों ओर फैले घाट, मंदिरों की घंटियां और दूर तक फैले रेत के टीले, इस स्थान को एक आध्यात्मिक और दृश्यात्मक लैंडमार्क बना देते हैं।

पुष्कर मेला के दौरान यहां योग शिविर, कल्चरल वर्कशॉप और डेजर्ट सफारी जैसे आयोजन पर्यटकों का मनमोह लेते हैं। पुष्कर मेला वास्तव में धार्मिक आस्था के साथ साथ पर्यटन का आधुनिक केंद्र बनकर उभरा है। इ.रि.सें.

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